अब तक शरद यादव को ढोते रहे, अब उनकी पुत्री को राजनीति में ढोयें क्योंकि बिहार में तो “किल्लत” है ओजस्वी महिलाओं की 

शरद यादव अपनी पुत्री सुभाषिनी यादव के साथ
शरद यादव अपनी पुत्री सुभाषिनी यादव के साथ

चलिए, अब तक मध्य प्रदेश के होशंगाबाद गाँव में जन्म लिए शरद यादव को बिहार के लोग ढोते रहे, अब पुत्री को ढोएंगे। लगता है बिहार में ‘शिक्षित, ओजस्वी, दूरदर्शी महिलाओं की किल्लत हो गयी है। या फिर, राजनीतिक परजीवी अधिक हो गए हैं। 

शरद यादव का बिहार से कुछ भी लेना-देना नहीं है। अगर बिहार में उनकी राजनीतिक जीवन में बिहार के विकास में योगदान को आँका जाय, तो आंकने वाला स्वयं मूर्छित हो जायेगा। क्योंकि कुछ  मिलेगा ही नहीं। शरद यादव शिक्षाविद हैं, अभियंता हैं और कृषक भी हैं – लेकिन इस महानतम गुणों को बिहार के लोगों में बाँट नहीं सके जिससे बिहार के लोगों का कल्याण होता। 

बहरहाल, लोकतांत्रिक जनता दल के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव की पुत्री सुभाषिनी यादव बुधवार को कांग्रेस में शामिल हो गयी। उनके साथ ही लोजपा के वरिष्ठ नेता काली पांडे भी कांग्रेस में शामिल हो गए। माना जा रहा है कि सुभाषिनी बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ सकती हैं।

सुभाषिनी और काली पांडे ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पवन खेड़ा, देवेंद्र यादव और अजय कपूर की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ली।

इस मौके पर कांग्रेस प्रवक्ता खेड़ा ने कहा, ‘‘हमें गर्व है कि सुभाषिनी यादव कांग्रेस में शामिल हुई हैं। उनके पिता का भारत के संसदीय लोकतंत्र में बहुत बड़ा योगदान है।’’ गौरतलब है कि शरद यादव अपनी पार्टी गठित करने से पहले जद(यू) में थे और उन्होंने पार्टी का अध्यक्ष रहने के साथ कई वर्षों तक राजग के संयोजक की भूमिका भी निभाई।

वर्ष 2017 में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण शरद यादव को जद (यू) से निकाल दिया गया था। इसके बाद उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वह महागठबंधन का हिस्सा थे और इसी के बैनर तले मधेपुरा से चुनाव भी लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा  

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