आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम महज एक समाचार वेवसाईट नहीं है। यह मुद्दत बाद, दसकों बाद बिहार के पाठकों के लिए एक वजह है अविस्मरणीय ख़ुशी के लिए, मुस्कराहट के लिए।
मैं इस संस्था में सं 1975 से 1988 तक कार्य किया था। महज माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण कर गरीबी के कारण नौकरी शुरू किया था मार्च 1975 में। यहीं पत्रकारिता सीखा था। सैकड़ों-हज़ारों कर्मचारियों के सामने अनेकानेक कारणों से नामोनिशान मिट गया इन अख़बारों का । लोगों के घरों में चूल्हे की आँच बुझ गई। परिवार का मुखिया ईश्वर के पास चला गया। सैकड़ों-हज़ारों विधवाएं अपने पति के कमाए पैसे के लिए जीवन की अन्तिम साँस तक प्रतीक्षा की। कुछ खुश नसीब रहीं तो कुछ को समय भी दुत्कार दिया। मेरे माता-पिता भी उन्ही लोगों के कतार में पंक्तिबद्ध थे। पिताजी 1992 में मृत्यु को प्राप्त किये, जबकि माँ 18 वर्ष विधवा की जिन्दगी जीकर खाली हाथ अग्नि के रास्ते अपने पति के पास पहुँचने के लिए अनन्त यात्रा पर निकलीं।
अपनी साँसे बंद न हो इसलिए 1988 में इस अखबार को छोड़ा। सन 1988 से 2020 तक भारत के महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में, पत्रिकाओं में, समाचार एजेंसी में कार्य किया। ऑस्ट्रेलिया , अमेरिका के रेडियो तक पहुंचा। लेकिन इन दो नामों को अपने मानसिक-पटल से कभी ओझिल नहीं होने दिया। जिस पत्रकारिता की बुनियाद यहाँ रहा था, अपनी मेहनत और सोच से पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया। आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम समाचार वेबसाईट उसी प्रयास का एक हिस्सा है। ताकि हम उस समाचारपत्र के नाम को बिहार के तमाम लोगों के मानस-पटल पर पुनः जीवित कर सकें ।
यह वेब साईट समर्पित है दरभंगा के महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह को, जिन्होने इन अख़बारों का नींव रहे थे। यह समर्पित है, सभी महारानियों को। यह समर्पित है श्री कुमार शुभेश्वर सिंह को जिन्होंने मुझे साढ़े-चौदह वर्ष की आयु में इस संस्थान में नौकरी दिए थे, पत्रकारिता की पहली सीढ़ी पर स्थान दिए थे। यह समर्पित हैं उन तमाम लोगों को जिनकी गन्दी-राजनीति के कारण इस संस्थान का नामोनिशान समाप्त हो गया। यह समर्पित है उन तमाम माताओं को, विधवाओं को, इस संस्थान के कर्मियों के परिवार और परिजनों को जो जीने की आस लिए जीने का रास्ता बदल लिए। यह समर्पित हैं मेरे दिवंगत माता-पिता को जो लाखो रूपये छोड़कर मृत्यु को प्राप्त किये। यदि न्यायसंगत लगे, तो मदद भी करें।