केंद्रीय स्वास्थ राज्य मंत्री अश्विनी चौबे और बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार (दोनों बिहारी) का प्रदेश में उपलब्ध स्वास्थ सुविधा पटना के वरिष्ठ छायाकार कृष्ण मोहन शर्मा के लिए बेकार सिद्ध हुआ। कृष्मोहन, जिन्होंने न जाने कितने लाख “क्लिक-क्लिक” बटन दबाएं होंगे सत्तर के दसक से इन छात्र नेताओं को प्रदेश और राष्ट्र का नेता बनाने के लिए – आज पटना ऐम्स में अन्तिम सांस लिए। बिहार का शायद ही कोई नेता होगा, चाहे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष साडी जे पी नड्डा ही क्यों न हो, जो मोहन को नहीं जानते होंगे।
छायाकार कृष्णमोहन शर्मा का आज निधन हो गया। वे पटना ऐम्स में तीन दिन पहले एडमिट हुए थे। उन्हें बुखार था और सांस लेने में तनिक कठिनाई भी हो रही थी। अस्पताल में एडमिट होने से कुछ दिन पूर्व वे अपना कोरोना का टेस्ट भी कराये थे, जिसमें निगेटिव परिणाम आया था। तीन दिन पहले वे पुनः बुखार से पीड़ित हुए। एम्स में उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। लेकिन आज करीब एक बजे वे अंतिम सांस लिए। वे अपने पीछे अपनी विधवा, दो बेटी और एक बेटा छोड़ गए हैं। कृष्ण मोहन के बड़े भाई कृष्ण मुरारी किशन पटना के वरिष्ठ छायाकार थे। कुछ वर्ष पहले उनकी मृत्यु हो गयी थी। मोहन पटना के टाइम्स ऑफ़ इंडिया अखबार से दसकों से जुड़े थे। टाइम्स से पहले वे जनशक्ति अखबार में थे।
पिछले सप्ताह अपने पुराने मित्र को फोन किया था। मोहन के मोबाईल की तीसरी घंटी बजते ही दूसरे छोड़ से आवाज आया – का रे शिवनाथ !!! स्वाभाविक है मेरा नंबर उनके पास था, परन्तु मैं उसका नंबर टाईम्स ऑफ़ इण्डिया के पुराने साथी प्रणव चौधरी से लिया था। दोनों काफी देर बातचीत किये। एक दूसरे के परिवार, पत्नी, बच्चों के बारे में भी बात किये।
मोहन हमलोगों का हम उम्र था, साथ ही, पटना में सत्तर-अस्सी के दसक में एक दूसरे से सड़कों पर मेहनत करने के क्रम में टकराया करते थे। मोहन उस समय जनशक्ति अखबार में छायाकार था, जबकि उसका बड़ा भाई मृश्न मुरनरी ‘किशन’ आर्यावर्त – इण्डियन नेशन अखबार के लिए कार्य करता था। बारी-पथ जहाँ से दो रास्ते में बंटता है – एक रास्ता कदम कुआं के लिए और दूसरा गाँधी मैदान के लिए – उस नुक्कड़ पर बाएं तरफ अपने घर से थोड़ा हटकर मोहन शाम के समय सडकों पर चलने वाले रिक्शावालों की बत्ती (लैम्प) के लिए “तेल” बेचा करता था। उसके पिता की वहीँ कोने पर साईकिल मरम्मत करने की दूकान थी।
पटना से टाईम्स ऑफ़ इण्डिया अखबार का प्रकाशन प्रारम्भ होने के साथ ही, मोहन यहाँ आ गया। जनशक्ति जैसे छोटे अखबार से टाईम्स ऑफ़ इण्डिया जैसे अख़बार का छायाकार होने के बाद भी उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया।
उसी जनशक्ति अखबार में एक और फोटोग्राफर था, जिसे “नशा” करने की आदत थी। वह अपना खून बेचकर भी नशा करता था। मोहन उसके सामने एक शर्त रखा की “अगर उसे वह टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में नौकरी दिलाता है तो वह नशा छोड़ देगा।” ऐसा ही हुआ। वह नशा छोड़ दिया। टाईम्स ऑफ़ इंडिया में अभी उसकी नौकरी पक्की भी नहीं हुई थी की एक दिन उसकी तस्वीर टाईम्स ऑफ़ इण्डिया के संस्करणों में प्रथम पृष्ठ पर चार कॉलम में छपा। पूरा मुल्क उस तस्वीर की चर्चा कर रहे थे सुवह से – तस्वीर थी: बोटानिकल गार्डेन, पटना में एक बाघिन को बच्चा हुआ था। जिस कक्ष में वह थी, उस कक्ष का रख-रखाव करने वाले की पत्नी को भी कुछ सप्ताह पूर्व प्रसव-पीड़ा से निकली थी। वह झट बाघिन के बच्चे को अपने स्तन से दूध पिलाने लगी थी। यह दृश्य उस कैमरा मैन के कैमरे में कैद हो गया।
जब टाईम्स ऑफ़ इण्डिया के मुंबई और दिल्ली संस्करण के सम्पादकों को, अधिकारीयों को मालुम हुआ की सम्बद्ध छायाकार की नौकरी अभी “पक्की” नहीं है – तुरंत टेलीप्रिंटर से नौकरी पक्की हुई।
उस दिन जब उसे यह बताया की आर्यावर्त इंडियन नेशन डॉट कॉम नाम का एक समाचार वेबसाईट लाने जा रहा हूँ, वह तुरंत कहा: “शिवू, मेरे पास कुछ तस्वीरें हैं पुराने भवन का, संस्थान के अध्यक्ष-सह-प्रबन्ध निदेशक दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह का क्रिकेट खेलते हुए, और कुछ नेताओं से मिलते; मैं ढूंढकर मेल कर दूंगा बहुत बेहतर काम किये उस ऐतिहासिक नाम को जीवित करने कोशिश किये। वैस मिथिला में झौआ सब मिलकर खा गया उसे, मालिक भी कमजोर था। आज तो सभी मिटटी में मिल गया। ”
मेरे दोस्त, थोड़ी जल्दी कर दिए। अनन्त बातें हैं।
आर्यावर्तइंडियननेशन(डॉट)कॉम के तरफ से सम्पूर्ण श्रद्धांजलि