सियासत को खूब पतित किया केजरीवाल ने

अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल को अब कोई गंभीरता से नहीं लेता। दरअसल अरविंद केजरीवाल नाटक करने में माहिर हो चुके हैं। उन्होंने वास्तव में भारतीय राजनीति को पतित किया है। रामलीला मैदान में वे देश के तिरंगे का इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए करते थे। वे ईवीएम में गड़बड़ी की बातें करते हैं। वे करप्शन से लड़ने का दावा करते थे। पर करप्शन के खिलाफ की गई नोटबंदी का वे विरोध कर रहे थे। तब देश की जनता को अपने पुराने नोटों को बैकों में जमा करवाने से लेकर नए नोट हासिल करने में दिक्कतें आईं। जनता को लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ा। पर किसी ने ये नहीं कहा कि मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला गलत है। भारी कष्ट उठाने के बाद भी देश कहता रहा है कि अब कालेधन से मुक्ति देश को मिलनी ही चाहिए। पर ममता बैनर्जी के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने जनता को भड़काने की हरचंद कोशिशें की।

किसी पर कभी भी,कोई भी अनर्गल आरोप लगाने के बाद अब वे माफी मांगने लगेहैं। माफी तब मांगते है, जब उन्हें लगता है कि उन पर हुए मानहानि के केस में वे कमजोर पड़ रहे हैं। उन्हें जेल हो सकती है। पिछले पंजाब विधान सभा चुनाव के दौरान वे अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया पर नशे के कारोबारियों से संबंध रखने के आरोप लगा रहे थे। वे और उनके सखा संजय सिंह प्रेस वार्ताओं से लेकर जन सभाओं में पंजाब की जनता से वादा कर रहे थे अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वो अकाली दल के नेता को कॉलर पकड़ कर घसीटते हुए जेल ले जाएंगे। आप जरा देख लें कि कितने सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल वे कर रहे थे। तब मजीठिया ने दिल्ली के मुख्यकमंत्री और आम आदमी पार्टी के दो अन्य नेताओं संजय सिंह और आशीष खेतान के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करा दिया था। जब केजरीवाल दावा कर रहे थे कि वे पंजाब में नशे के कारोबारियों के खिलाफ आख़िरी दम तक लड़ेंगे। मर भी गए तो अफ़सोस नहीं होगा। पंजाब को नशामुक्त बनाएँगे।

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बार-बार फिसलती जुबान
ये बात अलग है कि पंजाब के अपने नेताओं को भरोसे में लिए बग़ैर अरविंद केजरीवाल ने बिक्रमजीत सिंह से लिखित में माफ़ी मांग ली। दरअसल अपने आरोपों से पलटना तो उनकी आदत हो चुकी है। केजरीवाल की जुबान बार-बार फिसलती है। उनकी गटर राजनीति को सारा देश देख रहा है। हालत ये है कि अब उनसे उनके साथी भी किनारा करने लगे हैं। मजीठिया से माफी मांगने से पहले पिछले साल उन्होंने पिछले साल अगस्त में भाजपा नेता अवतार सिंह भड़ाना से मानहानि का मामला खत्म करने के लिए माफी मांगी थी। उन्होंने 2014 में भड़ाना को भ्रष्ट कहा था।

बार-बार माफी मांगेंगे
अब केजरीवाल एक तरह से संकेत दे रहे हैं कि आने वाले समय में वे अरुण जेटली और नितिन गडकरी से भी माफी मांगेंगे। अरुण जेटली और नितिन गडकरी ने भी उनपर पर मानहानि के मुकदमे कर रखे हैं। केजरीवाल ने यह बच्चों का खेल समझ लिया है कि किसी की इज्जत को तार-तार करने के बाद माफी मांग लो। दिल्लीम के मुख्यकमंत्री के खिलाफ वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अलग से मानहानि का दावा किया था क्योंलकि केजरीवाल ने अरुण जेटली पर दिल्लीट क्रिकेट एसोसिएशन के प्रमुख के रूप में उनके 13 साल के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। अरविंद केजरीवाल दर्जनों मामलों का सामना कर रहे हैं जिनमें मानहानि, चुनाव प्रचार के दौरान होर्डिंग/पोस्टर लगाना, धारा 144 का उल्लंघन, दिल्ली में प्रदर्शन जैसे मुद्दों को लेकर दायर किए गए हैं। ऐसे ही मामले देश के अन्य हिस्सों जैसे वाराणसी, अमेठी, पंजाब, असम, महाराष्ट्रए, गोवा और अन्य‍ जगहों पर भी दायर किए गए हैं। इनमें से ज्यादातर मामलों में व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में मौजूद रहने की आवश्यकता होती है। मतलब उन्हें अब समझ आने लगा है कि जिन पर वे वार करते हैं, वे भी उनकी नींद हराम कर सकते हैं। केजरीवाल ने मजीठिया को लिखे ‘माफीनामे’ में कहाहै, ‘अब मैं जान गया हूं कि सारे आरोप निराधार हैं, इसलिए मैं आपके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप और बयान वापस लेता हूं और उनके लिए माफी भी मांगता हूं।’

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केजरीवाल को देश से भी माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उन्होंने किसी शख्स पर मिथ्या आरोप लगाए। लोकतंत्र में वैचारिक और मत-भिन्नता हो सकती है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। पर लोकतंत्र किसी को भी ये अनुमति नहीं देता कि कोई अपने राजनीतिक विरोधी पर बेबुनियाद आरोप लगाए। आपकी भाषा शालीन तो रहनी ही चाहिए। भाषा में किसी तरह की अनुशासनहीनता स्वीकार्य नहीं है। आप ईमानदार होने का दावा करते हैं, तो दूसरे को भ्रष्ट कहने का अधिकार आपको किसने दे दिया। केजरीवाल यही तो कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री बनकर वे देश के राजा बन गए। चूंकि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, इसलिए मीडिया का उन पर फोकस रहता है। वर्ना उनमें कोई विशेष योग्यता नहीं है।

आरोपवीर केजरीवाल
राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार से पहले कांग्रेस और भाजपा की की सरकारें रहीं हैं। तब यहां कभी अराजकता और अव्यवस्था नहीं देखी गई। लेकिन अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनते ही यहां उप राज्यपाल से लेकर मुख्य सचिव उनके निशाने पर आने लगे। वे पहले उप राज्यपाल नजीब जंग को कोसते थे, अनिल बैजल को बुरा-भला कहते हैं। बीते दिनों उन्होंने दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश को अपने सरकारी आवास पर मध्य रात्रि में बुलवाकर गुंडे किस्म के हिस्ट्रीशीटर विधायकों द्वारा लात- घूँसों से पिटाई करवा दी। वे अपने को तानाशाह समझने लगे हैं। आखिर दिल्ली कहां जा रही है? क्या यह सब अब देश की राजधानी में घटित होगा? आखिर हम सारी दुनिया को क्या संदेश दे रहे हैं? पूरी दुनिया दिल्ली सरकार पर थू-थू कर रही है। हर किसी पर सुबह-शाह आरोपों की बौछार करने वाला मुख्यमंत्री काम कब करता है?

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दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल को खूब अच्छी तरह से जान गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद कहा था कि वे सरकारी बंगला नहीं लेंगे। तब केजरीवाल कह रहे थे कि वे अपने लिए छोटा सरकारी घर लेंगे। लेकिन वे बाद में थूक कर चाटने लगे। वे शान से राजधानी के पॉश सिविल लाइंस इलाके के बंगले में रहने लगे। हालांकिवे बार-बार कहते थे कि हम वीआईपी कल्चर के खिलाफ हैं। केजरीवाल ने हद कर दी है। अब उन्हें नाटक बंद करके दिल्ली की जनता की सेवा करनी चाहिए।

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