दरभंगा राज की मिट्टी फिर धंसी, शहर-रामबाग को जोड़ने वाली सड़क फिर टूटी – ‘सरकार निद्रा में’😪

दरभंगा के ऐतिहासिक रामबाग परिसर को शहर, प्रदेश और देश से जोड़ने वाला पुल मिट्टी में धंसा - तस्वीर आशिष कुमार पत्रकार

दरभंगा (रामबाग) : दरभंगा ही नहीं, प्रदेश सहित देश-विदेश को कल तक दरभंगा का लालकिला से जोड़ने वाला यह पथ, जो कभी राष्ट्र की राजनीतिक धाराओं को नियंत्रित करता था, आज उसी लालकिले के उत्तराधिकारियों की उपेक्षा के कारण धराशायी होना पड़ा।  वजह – “सरकार सोये हुए हैं और दरभंगा राज सहित मिथिला की संस्कृति बहाल हो रही है – सोये-सोये।”

शहर के साथ साथ लालकिले के अंदर दरभंगा राज परिवार के लोगों को जानने-पहचानने वाले तो कुछ और कह रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि इस ऐतिहासिक मार्ग को देखने वाला कोई नहीं है। वैसे किले के अंदर रहने वाले और सम्पत्तियों के स्वामी यह कहते नहीं थकते कि “वे दरभंगा राज परिवार की, मिथिला की गरिमा और संस्कृति को पुनः स्थापित करने, बहाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।” लेकिन इस पुल के अस्तित्व को देखकर दरभंगा के लोग कुछ और सोच रहे हैं। 

स्थानीय लोग, स्थानीय प्रशासन को दोषी करार करते हैं कि प्रशासन का इस दिशा में कोई पहल नहीं कर रही है। लेकिन दरभंगा के ही अन्य लोगों का कहना है कि “यह मार्ग निजी है और उसकी देखरेख, रखरखाव करने का एकमात्र दायित्व दरभंगा राज और ट्रस्ट के लोगों का है। चुकी इस परिसर के अंदर की जमीनों को ट्रस्ट-डीड के विरुद्ध जाकर निजी लाभ के लिए निजी लोगों के हाथों बेचा गया है, इस दृष्टि से विक्रेता का और भी महत्वपूर्ण दायित्व होता है कि वह क्रेताओं को बेहतर मार्ग प्रशस्त करे। बहरहाल, स्थानीय पुलिस इस मामले में एक ट्रेक्टर को पकड़ी है। बेचारा ट्रेक्टर !!!

दरभंगा के आशीष कुमार (पत्रकार) का कहना है कि “आज पुल अंतिम सांसे गिन रहा है। जिन्हें खतरे का आभास है वो तो बच कर निकल जाते पर अनजान लोगों के लिए जान पर आफत है। आज भी एक दर्दनाक हादसा होते होते बचा है। एक बालू लदा ओवरलोडेड ट्रक पुल से जा रहा था, जानकारी के अभाव में ट्रक समेत टूटे पूल के कारण पोखर में समा गया, उसे तत्काल तत्परता दिखाते हुए अपने जान को जोखिम में डाल कर ट्रक को निकाल दिया गया।” 

दरभंगा के रामबाग पैलेस के मुख्य द्वार पर दरभंगा राज के पूर्व के 20 महाराजाओं की ‘ना’ ‘सही, महाराजा माधव सिंह के बाद से लेकर महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह तक के “सात राजाओं की आत्मा” अवश्य बिलखती होगी, सोचती होगी कि इस परिसर में कल तक तो ‘अनुशासन’ अपनी ‘पराकाष्ठा’ पर थी, रास्ता ‘खास’ था – आज ‘आम’ कैसे हो गया? छोड़िये पीपल के पेड़ को। रहने दें बरगद के बृक्षों को जो दरभंगा के रामबाग किले के चारो तरफ दीवारों में जहाँ-जहाँ छेद दिखा, अपनी जड़ें मजबूत करने में लग गया। यह बात सिर्फ पेड़-पौधों के साथ नहीं, बल्कि दरभंगा के अंतिम महाराजा सर कामेशर सिंह के शरीर को पार्थिव होने के बाद उस चारदीवारी के अंदर या फिर कुछ अपने, कुछ दूर-दराज के सम्बधी, सभी अपना-अपना ठिकाना उन्हीं बृक्षों की भांति रामबाग के छत्रछाया में करने लगे, कुछ जीवन-यात्रा सफल कर लिए, कुछ मसक्कत कर रहे हैं । महाराज की पत्नी महारानी राज्यलक्ष्मी की मृत्यु के बाद इस परिसर का स्वामित्व जिनके हाथों आया उनसे दरभंगा राज की, महाराज की, संस्कृति की, पुरातत्व की, घरोहर की सुरक्षा और संरक्षित रहने की बात सोचा नहीं जा सकता। 

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दरभंगा के ऐतिहासिक रामबाग परिसर को शहर, प्रदेश और देश से जोड़ने वाला पुल मिट्टी में धंसा – तस्वीर आशिष कुमार पत्रकार

दिनांक 5 जुलाई, 1961 को “दि लास्ट विल एंड टेस्टामेंट” में दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह अपना वसीयत बनाते समय वसीयत के आठवें पैरा में लिखा है: “I, bequeath the property mentioned in Schedule “A” to my wife Maharani Rajyalakshmi for her life for her residence (and for no other purposes). She shall be entitled to reside in the said house and use the furniture and fittings only without let or hindrance by anybody. After her demise the said property shall vest in my youngest nephew Rajkumar Subheshawra Singh absolutely.“ और महारानी राज्यलक्ष्मी अपने पति और दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज की मृत्यु के 16-वर्ष बाद अंतिम सांस ली। दस्तावेज के अनुसार उक्त संपत्ति महाराजाधिराज के छोटे भतीजे कुमार शुभेश्वर सिंह का हो गया “अब्सॉल्युटली” – आगे कुमार शुभेश्वर सिंह भी मृत्यु को प्राप्त किये। स्वाभाविक है यह संपत्ति उनके दो पुत्रों को हस्तगत हुआ होगा। 

लेकिन आज जब महाराजाधिराज के इस ऐतिहासिक परिसर के प्रवेश द्वार पर प्रवेश कर्ज का यह हाल देखा तो मन विह्वलित हो उठा। महाराजाधिराज की आत्मा विलखती होगी। क्योंकि महाराजधिराज वसीयत के 11वें पारा में ऐसा क्यों लिखा की उनकी दोनों पत्नियों की मृत्यु के बाद संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा उनके सबसे छोटे भतीजे, राजकुमार शुभेश्वर सिंह के “हिन्दू ब्राह्मण समुदाय” की पत्नी द्वारा उत्पन्न बच्चों का होगा। 

महाराज की मृत्यु 1 अक्टूबर, 1962 को होती है। उनकी पत्नी महारानी राज्यलक्ष्मी सन 1978 में मृत्यु को प्राप्त कर अपने पति के पास पहुँचती हैं, और 1934  में दरभंगा के लालकिला, यानी रामबाग परिसर के प्रवेश के साथ बाहरी दीवार और किले के अंदर प्रवेश करने के द्वार के बीच बना ऐतिहासिक 86-वर्ष का वृद्ध पुल अपनी रख-रखाव, इस विशाल परिसर के स्वामित्व रखने वाले की उपेक्षा के कारण आंशिक रूप से मृत्यु को प्राप्त करता है, ध्वस्त हो जाता है। कहते हैं  कभी दरभंगा राज परिवार के लोग इसी पुल से एक किले से दूसरे किले जाते थे। यह भी एक धरोहर ही था। ध्वस्त हो भी क्यों नहीं? देखते ही देखते कभी “खास” रास्ता “आम” हो गया। कहते हैं यह पुल तब धंसा जब एक जरूरत-से-अधिक सामानों से लदा ट्रक इस रास्ते से गुजर रही थी। 

इतना ही ”ओवरलोडेड”  मानसिक स्थिति होती तो आज महाराजाधिराज का नाम, उनकी संपत्ति इस तरह “ध्वस्त” नहीं ऐसी घटना पहले भी हो चुकी है। उस समय विश्वविद्यालय थाना में ट्रक के मालिक पर प्राथमिकी दर्ज किया गया था। जिला प्रशासन से कई बार ये मांग की थी कि पुल पर से भारी वाहनों को गुजरने से रोका जाय। लेकिन किसी ने रामबाग पैलेस के स्वामी की ओर ऊँगली नहीं उठाया। किसी ने यह नहीं पूछा, जो रास्ता कल तक “खास” था, आज “आम” कैसे हो गया ? कहा जाता है कि इस भव्य किले का निर्माण कोई 240 वर्ष पूर्व राजा प्रताप सिंह के काल में हुआ था। बाद में राजा माधव सिंह के काल-खंड में कुछ पुनर्निर्माण और विस्तार हुआ । 

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ज्ञातब्य हो कि महाराजाधिराज दिल्ली के लाल किले के तर्ज पर अपने 85 एकड़ की जमीन पर एक किला बनाना प्रारम्भ किये थे जिसका प्रारम्भ 1934 के ऐतिहासिक भूकंप के बाद प्रारम्भ हुआ था। इस किले के निर्माण के लिए ब्रिटिश फर्म के ठेकेदार बैग कैगटीम को जिम्मेदारी दी गई थी। किले के तीन तरफ लगभग 90 फ़ीट ऊंची यह दीवार तैयार की गयी। तीन तरफ तो दीवार बन गई, चौथी तरफ, यानी, पश्चिम इलाके में यह दीवार नहीं बन सका । कुछ लोग कहते हैं कि तीन तरफ दीवार बनते-बनते देश आज़ाद हो गया, जमींदारी प्रथा समाप्त हो गई, इसलिए पश्चिमी दीवार अछूता रह गया। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि इस किले के पश्चिम इलाके में रहने वाले लोगों शिकायत की कि इस दीवार से उनके घरों में आने वाली रोशनी अवरुद्ध हो गयी है। सभी न्यायालय से न्याय मांगे और और फिर अदालत ने निर्माण कार्य पर रोक लगा दी। खैर।इस किले में लाल ईंटों का प्रयोग किया गया | इसका डिज़ाइन फतेहपुर, सिकरी के बुलंद दरवाज़ा से प्रेरित है | 


दरभंगा के ऐतिहासिक रामबाग परिसर को शहर, प्रदेश और देश से जोड़ने वाला पुल मिट्टी में धंसा – तस्वीर आशिष कुमार पत्रकार

इस किले के अंदर दो महल हैं। ऐसा माना जाता है कि राज परिवार की “कुल देवता” यहीं हैं । विगत कई भूकम्पों के दौरान महल नष्ट हो गया। लालकिला कई जगहों से दरक गया। लेकिन तब इसकी मरम्मत का कोई काम नहीं हुआ। फिर 2015 के तेज भूकंप में कई जगहों पर न सिर्फ छतिग्रस्त हुआ बल्कि किले के ऊपरी हिस्से का मलबा सड़को पर भी गिर था। किले की मरम्मत नहीं होने से किला लगातार जर्जर हाल होता जा रहा है। जगह-जगह.दीवाल पर बड़े-बड़े पेड़ निकल आए हैं। कई जगहों पर 10 से 20 फ़ीट तक ऊंची दीवारों में दरार साफ दिखाई दे रही है। दीवार के दक्षिण इलाके में 90 फ़ीट की दीवार घट कर 20-25 फ़ीट ही रह गई है। 

महाराजाधिराज के इस ऐतिहासिक किले का क्षेत्रफल में उत्तरोत्तर कमी हो रही है। किले की दक्षिण दीवार की ऊंचाई में भी क्रमशः कम हो रही है। महाराजा कामेश्वर सिंह की जब मृत्यु हुई उसके बाद, उनके उत्तराधिकारियों ने कई महलों के भूखंड को  बेचना शुरू कर दिया था । उन प्लॉटों को खरीदने वाले लोगों ने कॉलोनियों और घरों का निर्माण किया। तो कही,होटल, रेस्तरां और दुकानों को खोला गया |  महाराजाधिराज के वसीयत के शिड्यूल ‘A’ और ‘B’ में उद्धृत सम्पत्तियाँ, यानी महारानी राजलक्ष्मी और महारानी कामसुंदरी को जीवन पर्यन्त रहने के लिए जिन भवनों को महाराज बहुत “स्नेह” और “प्रेम” से लिखा था, ताकि उन्हें महाराज के बिना भी, अपनी अंतिम सांस तक “तकलीफ” नहीं हो; महाराजा की मृत्यु के बाद विगत छः दशकों से उन महलों की दीवारें, महलों की ईंट, बरामदे, खम्भे, छत, परिसर सभी टकटकी निगाहों से सूर्य की रोशनी में प्रत्येक आवक-जावक जीव को देखता आ रहा है, सोचता आ रहा है – कोई उसका भी हाल पूछे !! बारिस में बादलों की गर्जन के साथ भवनों के एक-एक ईंटों के रूह काँप जाते हैं। सभी डर से थर-थर कांपते हैं। परन्तु कोई नहीं आता, कोई नहीं पूछता। चतुर्दिक ‘उपेक्षाओं के पेड़-पौधे, घास-फूस कुकुरमुत्तों जैसा फ़ैल गया है। 

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बहरहाल, कोई सात सात पहले, बिहार सरकार द्वारा बिहार के एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स के अधीन दरभंगा के रामबाग पैलेस को एन्सिएंट मोन्यूमेंट की श्रेणी में रखने से पूर्व लोगों से उनका विचार, ऑब्जेक्शन मांगी थी। जैसे ही लोगों से आपत्ति मांगने से संबंधित सूचना के प्रकाशन के साथ ही दरभंगा राज फोर्ट में रहने वाले लोगों में खलबली मच गई। कोर्ट-मुकदमा हो गया। कला, संस्कृति और युवा विभाग, बिहार सरकार के सचिव, विभाग के उप-सचिव, पुरातत्व विभाग के निदेशक, अधीक्षक (पटना अंचल), दरभंगा के जिला मजिस्ट्रेट, सब-डिविजनल अधिकारी और अंचल अधिकारी प्रतिवादी बन गए।  महाराजाधिराज के भतीजे दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्र – राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह – पटना उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि बिहार सरकार के डिप्टी सेक्रेटरी, आर्ट, कल्चर और यूथ डिपार्टमेंट द्वारा दिनांक 17 अगस्त, 2010 को जारी एक अधिसूचना, जिसमें उपरोक्त अधिकारी ने ‘आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1976 के अधीन लोगों से ‘ऑब्जेक्शन’ मांगे थे की दरभंगा स्थित महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के दरभंगा राज फोर्ट को क्यों नहीं “बिहार एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स रिमेंस” के अधीन ले लिया जाय, निरस्त कर दिया जाय। 

वादी का कहना था कि नियमानुसार उसी स्थान / भवनों को उक्त नियमों के तहत ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता है जो न्यूनतम 100-वर्ष पूरे नहीं किये हों। और नियमानुसार, दरभंगा राज फोर्ट 100 वर्ष की आयु के नहीं हैं, अतः नियमनुसार यह ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता। नियमों के अनुसार, कोई भी ऐसी चीज जो 100 साल या इससे अधिक पुरानी हो तो वह ‘पुरातात्विक’ है। इस ऐतिहासिक निर्णय का श्रेय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के एंटीक्वटीज एंड आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1972 को जाता है। यह कानून 1976 से लागू हुआ। इसका मकसद भारतीय सांस्कृतिक विरासत की बहुमूल्य वस्तुओं की लूट और उन्हें गैर-कानूनी माध्यमों से देश से बाहर भेजने पर रोक लगाना था। वैसे, इसके सिर्फ नकारात्मक और अनपेक्षित परिणामों का अतिरेक ही सामने आया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह कानून इतने कड़े और अभावग्रस्त नियमों से भरा हुआ है कि बेईमान ‘कला के सौदागर’ सरकारी अधिकारियों और कस्टम अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर अपना रास्ता निकाल ही लेते है।  

सवाल यह है कि रामबाग परिसर में पैसे के लिए जमीन बिकेगी, भवन निर्माण होगा तो जमीन के क्रेता/भवन निर्माण कर्ता तो भवन निर्माण सामग्री लाएंगे ही। दूकान ही खोल दिए। पिछले कुछ सालों में एक बड़ी आबादी बस गई है। आप कुछ कर सकते नहीं। बेचारे महाराजाधिराज की आत्मा भी रामबाग परिसर में कराहती होगी। दरभंगा के लोगों का मानना है कि दरभंगा राज की नींव क्रमशः कमजोर हो रही है। उनके पुरखों का उदाहरण देकर जिस दरभंगा राज की गरिमा की, यहाँ के राजा-महाराजाओं की वर्चस्व की चर्चाएं की जाती थी, आज समय के गर्त में धूमिल हो गई है। आज दरभंगा राज की गरिमा समाप्त हो गयी है। लेकिन वे स्वयं में इतना सामर्थ नहीं जुटा पा रहे हैं कि वे दरभंगा राज की गरिमा को पुनः स्थापित कर सकें। 

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