दरभंगा / पटना /नई दिल्ली : यशपाल की एक कहानी है “अख़बार में नाम” जिसका मुख्य पात्र है गुरुदास। गुरुदास अपना नाम अखबार में छपा देखना चाहता है । अखबार में उसके गाँव या मोहल्ले का किसी का भी नाम प्रकाशित देखता है, उसे बहुत चुभन होती है। वह अखबार में नाम छपवाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है। विद्यालय में भी नाम जब कभी लिया जाता तो बनवारी, खन्ना, ख़लीक और महेश का ही, गुरदास बेचारे का कभी नहीं। ऐसी ही हालत व्याकरण और अंग्रेज़ी की क्लास में भी होती। कुछ लड़के पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज़ होने की प्रशंसा पाते और कोई डांट-डपट के प्रति निर्द्वन्द्व होने के कारण बेंच पर खड़े कर दिए जाने से लोगों की नज़र में चढ़कर नाम कमा लेते। गुरदास बेचारा दोनों तरफ़ से बीच में रह जाता। खैर।
उस साल वसन्त के आरम्भ में शहर में प्लेग हुआ। दुर्भाग्य से गुरदास के ग़रीब मुहल्ले में गलियां कच्ची और तंग होने के कारण, बीमारी का पहला शिकार, उसी मोहल्ले में दुलारे नाम का व्यक्ति हुआ। गुरदास ने पढ़ा कि बीमारी का इलाज देर से आरम्भ होने के कारण दुलारे की अवस्था चिंताजनक है। पढ़कर दुख हुआ। फिर ख़्याल आया इस आदमी का नाम अखबार में छप जाने की क्या आशा थी? पर छप ही गया। एक दिन गुरदास को होश आया तो उसने सुना,‘इधर से संभालो! ऊपर से उठाओ!’ कूल्हे में बहुत जोर से दर्द हो रहा था। वह स्वयं उठ नहीं पा रहा था। लोग उसे उठा रहे थे। ‘हाय! हाय मां!’ उसकी चीखें निकली जा रही थी। लोगों ने उठा कर उसे एक मोटर में डाल दिया। अस्पताल पहुंचकर उसे समझ में आया कि वह बाज़ार में एक मोटर के धक्के से गिर पड़ा था।
मोटर के मालिक एक शरीफ वकील साहब थे। उस घटना के लिए बहुत दुख प्रकट कर रहे थे। एक बच्चे को बचाने के प्रयत्न में मोटर को दाईं तरफ जल्दी से मोड़ना पड़ा। उन्होंने बहुत ज़ोर से हार्न भी बजाया और ब्रेक भी लगाया पर ये आदमी चलता-चलता अख़बार पढ़ने में इतना मगन था कि उसने सुना ही नहीं। गुरदास कूल्हे और घुटने के दर्द के मारे कराह रहा था। रात में जब नींद टूटी तो दर्द फिर होने लगा और साथ ही ख़्याल भी आया कि अब शायद अखबार में उसका नाम छप ही जाये। दर्द में भी एक उत्साह-सा अनुभव हुआ और दर्द भी कम लगने लगा। कल्पना में गुरदास को अख़बार के पन्ने पर अपना नाम छपा दिखाई देने लगा। सुबह मोटर के मालिक वकील साहब उसका हालचाल पूछने आ गए।
वकील साहब एक स्टूल खींचकर गुरदास के लोहे के पलंग के पास बैठ गए और समझाने लगे, तुम्हारी चोट के लिए बहुत अफ़सोस है। हम तुम्हारे लिए दो-चार सौ रुपये का भी प्रबंध कर देंगे। कचहरी में तो मामला पेश होगा ही, जैसे हम कहें, तुम बयान दे देना; समझे…!’ गुरदास वकील साहब की बात सुन रहा था पर ध्यान उसका वकील साहब के हाथ में गोल-मोल लिपटे अखबार की ओर था। रह न सका तो पूछ बैठा,‘वक़ील साहब, अखबार में हमारा नाम छपा है? हमारा नाम गुरदास है। मकान नाहर मुहल्ले में है।’ वक़ील साहब की सहानुभूति में झुकी आंखें सहसा पूरी खुल गईं,‘अख़बार में नाम?’ उन्होंने पूछा,‘चाहते हो? छपवा दें?’ ‘हां साहब, अख़बार में तो ज़रूर छपना चाहिए।’ आग्रह और विनय से गुरदास बोला। ‘अच्छा, एक काग़ज़ पर नाम-पता लिख दो।’ वकील साहब ने कलम और एक कागज गुरदास की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘अभी नहीं छपा तो कचहरी में मामला पेश होने के दिन छप जाएगा, ऐसी बात है।
गुरदास को लंगड़ाते हुए ही कचहरी जाना पड़ा। वक़ील साहब की टेढ़ी जिरह का उत्तर देना सहज न था, आरम्भ में ही उन्होंने पूछा, ‘तुम अख़बार में नाम छपवाना चाहते थे?’ ‘जी हां.’ गुरदास को स्वीकार करना पड़ा। ‘तुम्हें उम्मीद थी कि मोटर के नीचे दब जाने वाले आदमी का नाम अखबार में छप जाएगा?’ वकील साहब ने फिर प्रश्न किया। ‘जी हां!’ गुरदास कुछ झिझका पर उसने स्वीकार कर लिया। अगले दिन अख़बार में छपा, ‘मोटर दुर्घटना में आहत गुरदास को अदालत ने हर्जाना देने से इनकार कर दिया। आहत के बयान से साबित हुआ कि अख़बार में नाम छपाने के लिए ही वह जान-बूझकर मोटर के सामने आ गया था…’ गुरदास ने अखबार से अपना मुंह ढांप लिया ।
बिहार के चालीस लोक सभा सांसदों में दरभंगा संसदीय क्षेत्र के वर्तमान सांसद सम्मानित गोपालजी ठाकुर की स्थिति यशपाल की अख़बार में नाम कहानी के आस-पास ही भ्रमण करती है। दरभंगा संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं, जिसमें विद्वान भी हैं, विदुषी भी, सब्जीवाला भी है, रेड़ीवाला भी, व्याख्याता भी हैं, पत्रकार भी, किसान भी हैं, जमींदार भी, निर्धन भी हैं, धनाढ्य भी, दो-टूक बोलने वाले भी हैं, चापलूस भी, बनिया भी हैं, दलाल भी, छात्र भी हैं, छात्राएं भी, स्मार्ट लोग भी हैं, स्मार्ट फोन धारक भी, सभी तबके के लोग सम्मिलित हैं। लेकिन सभी लोगों में एक बात ‘सामान्य’ है।
एक : सांसद महोदय को आम मतदाता नहीं जानता। आम मतदाताओं की समस्याओं से न तो अवगत हैं और ना ही अवगत होना चाहते हैं। दरभंगा राज के वंशजों की तरह चतुर्दिक चमचों और चापलूसों से घीरे हैं। संसदीय क्षेत्र में दीखते नहीं, परन्तु सोशल मीडिया पर, विशेषकर फेसबुक पर, 24x7x356 अवतरित रहते हैं। मतदाताओं से यहीं मिलन-सम्मलेन होता है। समस्याएं भी उन्ही के लोग वहीँ लिखते हैं और समाधान भी वहीँ टिपण्णी पेटी में हो जाता है। एक बात और, शायद भयवश, सांसद साहेब स्थानीय पत्रकारों, विद्वानों, समाज सेवकों से रूबरू नहीं होते कहीं कोई गंभीर सवाल न पूछ ले।
दो: ‘अख़बार में नाम’ के लिए ये गुरुदास के बराबर हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि यशपाल का गुरदास कहीं ‘ट्रिंग ट्रिंग’ नहीं करता था, लेकिन दरभंगा के सांसद साहेब स्थानीय अख़बारों में सुबह-सवेरे अपना नाम, अपनी तस्वीर नहीं देखते तो सीधा अखबार के संपादक को ‘ट्रिंग-ट्रिंग’ कर देते हैं। किसी भी राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों से बात नहीं करते। स्थानीय पत्रकारों को क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति पर, मतदाताओं की आकांक्षाओं पर और सांसद द्वारा दुःख निवारण टीकाकरण पर किसी भी प्रकार की टीका-टिप्पणी करने की सख्त मनाही है। अगर कोई मुख खोले, तो कार्यालय मुख मोड़ लेता है ।
इस कहानी को शब्दबद्ध करने से पूर्व आर्यावर्तइण्डियननेशन.कॉम दो बार माननीय संसद को ‘ट्रिंग-ट्रिंग’ किया उनसे बात करने के लिए । सवाल की शुरुआत करने के लिए उनसे पूछा ‘आप दस अंक में स्वयं को कितना अंक देंगे?’ सम्मानित सांसद पहली बार कहते हैं: “बाहर हूँ बाद में बात करते हैं…… हूँ……. हूँ और फोन रख दिए। आज सुबह-सवेरे साढ़े आठ बजे के करीब फिर ट्रिंग-ट्रिंग’ किया और उसी प्रश्न को दुहराया । सम्मानित सांसद कहते हैं: “….. हूँ……. हूँ …. बैठकर बात करेंगे।” हकीकत यह है कि इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कोई भी जनप्रतिनिधि अपना सभी कार्य को त्यागकर स्वयं का ‘आत्म-मूल्याङ्कन’ करने के लिए सुबह से रात कर देगा जब तक प्रश्नकर्ता संतुष्ट नहीं हो जाय। वैसे भी, “आप दस अंकों में अपने को कितना अंक देंगे?” इस प्रश्न का उत्तर एक सांस के बराबर भी नहीं है – मसलन एक, दो, तीन, चार, पांच, छः, सात, आठ, नौ अथवा दस – और इस अंक को बताने के लिए “बैठने” की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
कारण: सन 2014 के बाद, कंगना रनौत के शब्दों में, ‘देश की वास्तविक आज़ादी के बाद’, यानी गुजरात के पूर्व मुख्य मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी को भारत का प्रधान मंत्री बनने के बाद, इस कहानी को लिखते समय तक, जितने भी अदम्य-साहसिक निर्णय लिए हैं, सभी खड़े-खड़े। उन साहसिक निर्णयों में ‘डिमॉनेटाइजेशन’, ‘अयोध्या में मंदिर का निर्माण’, बनारस में विश्वनाथ मंदिर का नवीकरण, आर्टकिल – 370 का जम्मू-कश्मीर से हटाना, बिहार में 74 विधायक जीतने के बाद भी नितीश कुमार को मुख्य मंत्री बनाना, किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना इत्यादि-इत्यादि। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इन साहसिक निर्णयों के समय अपने आवासीय कार्यालय अथवा प्रधान मंत्री कार्यालय में बैठे नहीं।
इतना ही नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू को छोड़कर (हमने उन्हें नहीं देखा), श्रीमती इंदिरा गाँधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, राजीव गाँधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, पी वी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी बाजपेयी, एच डी देवेगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, डॉ मन मोहन सिंह जैसे देश के प्रधान मंत्रियों ने जो भी निर्णय लिए, कभी “बैठकर” निर्णय नहीं लिए। फोन पर तो प्रदेशों के “लाट साहबों” को “पदच्युत” करने की परम्परा भी है भारत में। और अगर “बैठकर” निर्णय लेने की परंपरा होती तो प्रधान मंत्री के अभिन्न मित्र और देश के अव्वल धनाढ्य-परिवार का वह विज्ञापन ‘वॉक व्हेन यु टॉक’ ऐतिहासिक भी नहीं हुआ होता – क्योंकि चाहे ‘शारीरिक स्वास्थ’ हो या ‘राजनीतिक स्वास्थ’ ‘स्थिर’ होना शुभ संकेत नहीं है। अगर ऐसा होता तो शायद ‘मोबाइल वान’, ‘मोबाईल डिस्पेंसरी’, ‘मोबाईल बुक शॉप’, ‘मोबाईल शौचालय’ इत्यादि सेवाओं की खोज नहीं होता। खैर।
विश्वस्त सूत्र कहता है कि पटना अथवा दरभंगा से प्रकाशित (दरभंगा संस्करण) हिंदी अख़बारों में लिखने वाले नुमाईंदों का दरभंगा के वर्तमान सांसदों के प्रति ‘बहुत अच्छा’ की बात नहीं करें, ‘अच्छा’ ‘सकारात्मक’ सोच नहीं है। यही कारण है कि समाचार पत्रों में लिखने के क्रम में, चाहे लेखक हों अथवा संवाददाता, पटना में बैठे संपादक अथवा संस्थान के स्वामियों द्वारा खींची गई रेखाओं को लांघना नामुमकिन समझते हैं । समाचार पत्रों में ‘लिखने’ की बात छोड़ें, दरभंगा के लालबाग़ चौक अथवा रामबाग परिसर में भी वर्तमान सांसद अथवा विधायकों का ‘वास्तविक रिपोर्ट कार्ड’ पर बहस, जिरह नहीं कर सकते हैं। चारो तरफ ‘जादुई ऐंटिना’ ख़बरों के संकलन में ‘मोबाईल फोन’ के साथ मोबाईल होते हैं।
दरभंगा के इतिहास के शोधकर्ता और लेखक तेजकर झा कहते हैं: ” मैं किसी सांसद को नहीं जानता हूँ। अख़बारों में नित्य नाम पढता हूँ, बस इतना ही। आज तक मिला नहीं हूँ। ‘बिहार इन दी आईज ऑफ़ ट्रैवेलर्स एंड पेंटर्स 1780-1850, बायोग्राफी ऑफ़ डॉ राजेंद्र प्रसाद के अलावे पांच बेहतरीन किताबों के लेखक, तेजकर कहते हैं: ‘दरभंगा के सांसद को मुझ जैसा पढ़ा लिखा मनुष्य के अलावे समाज के दबे-कुचले, उपेक्षित लोग भी नहीं जानते। इसका वजह यह है कि आम तौर पर लोक सभा का सांसद आम चुनाब में जीत कर भले संसद जाते हों, अपने संसदीय क्षेत्र में कभी आम नहीं होता है। दरभंगा संसदीय चुनाब क्षेत्र से जीतकर कोई अगर संसद तक पहुँच रहे हैं तो यह सिर्फ सम्बद्ध पार्टी अथवा उस पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को ब्रांड होने के कारण। आज दरभंगा ही नहीं, बिहार के 40 संसदीय क्षेत्रों में शायद ही कोई क्षेत्र होगा जिसके उम्मीदवार अथवा विजय नेता की अपनी पहचान होगी। जनता ‘उन्हें’ चयनित की होगी। क्योंकि आज “ब्रांड की सेवा”, “ब्रांड का भजन” “ब्रांड की चापलूसी” ही मूल मंत्र हो गया है राजनीति में जीवित रहने के लिए। और सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार स्थिति को और भी जटिल बना दिया है।
दरभंगा से टाईम्स ऑफ़ इंडिया और अन्य अंग्रेजी अख़बारों में दशकों से लिखने वाले पत्रकार विनय कुमार झा कहते हैं: “गोपाल जी ठाकुर एक अच्छे व्यक्ति हैं। धार्मिक प्रवृति के हैं। उनकी इक्षा होती है कि सरकारी स्तर के जितने भी कार्यक्रम हैं, सरकारी सुविधाएँ हैं, उन तमाम सुविधाओं के बारे में अपने क्षेत्र के लोगों को अवगत कराएं। मेरा मानना है कि वे दरभंगा संसदीय क्षेत्र में जागरूकता फैलाना चाहते हैं – चाहे शिक्षा की बात हो या स्वास्थ्य की। समाज के सभी तबके के लोगों को उसका लाभ मिले। लेकिन कीर्ति आज़ाद का प्रतिस्थापन नहीं हो सकते।” ज्ञातब्य हो कि दरभंगा के पूर्व सांसद कीर्ति आज़ाद को पार्टी आला-कमान द्वारा अपमानित किया गया। उन्हें निलंबित किया गया और परिणाम यह हुआ कि वे पार्टी छोड़ दिए।
विनय कुमार झा कहते हैं: “वर्तमान जनतांत्रिक प्रथा में पंचायत से लेकर संसद तक जान प्रतिनिधियों को अपने चुनाव क्षेत्र और मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए, जिसकी घोर किल्लत है। सरकार की अनेकानेक योजनाएं हैं। उन योजनाओं को पंचायत के लोग क्या, विधायक क्या, सांसद भी तब तक नहीं जानते जब तक उसका प्रचार-प्रसार नहीं करती है सरकार और इसका मूल कारण है ‘अध्ययन की किल्लत’ – मुखिया को चाहिए कि हर बच्चा विद्यालय जाय, अपने पंचायत के प्रत्येक घरों में भ्रमण कर बच्चों को विद्यालय की ओर उन्मुख करे। मिड-डे मिल का प्रत्येक पखवाड़े जांच करे, किसानों को सरकारी सुविधाएँ मिल रही हैं अथवा नहीं, जानकारी प्राप्त करे – लेकिन कितने मुखिया ऐसा करते हैं ? कितने विधायक ऐसा करते हैं ? कितने सांसद ऐसा करते हैं। अगर प्रतिशत में आंकेंगे तो 10 फीसदी नेता भी नहीं मिलेंगे। मतदाता को क्या? वह तो सुबह से रात तक जीने के लिए मसक्कत करता है।” जब आर्यावर्तइण्डियननेशन.कॉम उनके सांसद के बारे में पूछा तो वे कहते हैं: “He Is Welcome Everywhere” हां, चाहे किसी बच्चे की छठी में कहीं पहुंचें, कहीं उसके नामकरण में पहुंचें, कहीं प्रधान मंत्री की मन की बात सुने, कहीं बिहार के मंत्री से मिलें, कहीं दिल्ली में किसी मंत्री से मिलें – फेसबुक पर आपको अवश्य दृष्टिगोचित हो जायेंगे। विस्वास नहीं हो हो देख लीजिये .
फेसबुक पर तो कई पेज हैं दरभंगा के सांसद गोपाल जी ठाकुर का। जीवन-वृत्त लिखा है वहां। एक स्थान पर लिखा मिला जो लोक सभा चुनाव से पूर्व लिखा गया था। यह इस बात का गवाह है कि सांसद अथवा उनके इर्द-गर्ग के लोग स्वयं ही नहीं, अपने सांसद को किये ‘अद्यतन’ (अपडेट) रखे हैं। फेसबुक पर लिखा मिला: “आईये जाने अपने भावी सांसद, युवाओं की पसंद, लोकप्रिय नेता, मिथिलांचल के शान, गरीबों की मशीहा, बेदाग शख्सियत वाले प्रदेश उपाध्यक्ष माननीय गोपाल जी ठाकुर का राजनीतिक सफर – सैंतालीस वर्षीय ठाकुर जी, स्नातकोत्तर हैं। बहुत ही शांत स्वभाव के हैं, हमेशा गरीब गुरबों की सेवा में तत्पर रहते हैं, उनके लिये हर एक व्यक्ति उनके मिलनसार और मृदुल स्वभाव का कायल है। “गोपाल जी ठाकुर पार्टी को हमेशा भगवान का दर्जा देते हुऐ पार्टी के दिशा निर्देश पर ही चलते हैं ।”
सन् 1990 ई.में पड़री भाजपा पंचायत अध्यक्ष से राजनीतिक सफ़र तय करते हुए सन् 1994 में दरभंगा जिला महामंत्री किसान मोर्चा का दायित्व निभाते हुए सन् 1996 में विरौल अनुमंडल संग़ठन प्रभारी बने। फ़िर बेनीपुर मंडल अध्यक्ष फिर सन 2003 ई.में काफी संघर्ष और कार्यकर्ताओं की माँग पर सर्वसम्मति से दरभंगा जिला अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए। साथ ही साथ पैक्स अध्यक्ष, समस्तीपुर रेलवे परामर्शदाता समिति सदस्य, ललित नारायण विश्वविद्यालय सीनेट सदस्य सहित कई सरकारी और सामाजिक पदों पर भी रहते हुए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत कर पहली बार विधायक बने और 2017 में उन्हें भारतीय जनता पार्टी के बिहार प्रदेश उपाध्यक्ष पद से नवाजा गया ।”
दरभंगा के सांसद गोपालजी ठाकुर और यशपाल की कहानी ‘अख़बार में नाम’ के मुख्य पात्र गुरुदास में एक समानता और है। गुरुदास की हमेशा इक्षा होती थी कि वर्ग में शिक्षक उसका भी नाम लें, उसकी ओर भी दिखें। अब अगर भारत के संसद को ‘वर्ग’ माना जाय, गोपालजी ठाकुर को छात्र और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को शिक्षक – तो गोपालजी ठाकुर कोई अपनी जानकारी में कोई भी अवसर छोड़ते नहीं हैं जिससे वर्ग (संसद) में उनकी पूछ बनी रहे; शिक्षक (प्रधान मंत्री) उनके तरफ देखते रहें। गोपाल जी ठाकुर पहली बार लोकसभा पहुंचे हैं। स्वाभाविक है दूसरी और तीसरी बार पहुँचने के लिए (पहले टिकट प्राप्ति हेतु) शिक्षक की नजर में ‘विश्वासपात्र’ बने रहना होगा – चाहे उनकी हरकत, क्रिया-कलापों से संसदीय क्षेत्र दरभंगा के मतदाताओं की जीवन रेखा में कोई सकारात्मक परिवर्तन हो अथवा नहीं।
भारतीय मतदाताओं की यह गजब का गुण है – भूल जाना। चाहे ‘ऊँगली’ में कालिख पोते या ‘चेहरा’ पर, उसे कोई मतलब नहीं है ‘अच्छा, बुरा में फर्क समझना। क्योंकि अगर इन सब बातों में वह उलझ जायेगा तो शायद उसके परिवार का प्रत्येक सदस्य भुखमरी और गरीबी के कारण आत्महत्या कर लेगा। इसका उत्तर संसद में दरभंगा के सांसद के द्वारा पूछे गए पृष्ठों से आंक सकते हैं। गोपालजी ठाकुर चाहे ‘कुशेश्वर स्थान पक्षी सेंचुरी’ के बारे में हो या ‘डे बोर्डिंग’ के बारे में, ‘नई रेल लाइन’ के बारे में हो या ‘मखाना की खेती’ के बारे में, ‘सैनिक स्कूल’ के बारे में हो या ‘एलपीजी’ के बारे में, ‘एयरपोर्ट’ के बारे में हो या ‘ट्रांसपोर्ट’ के बारे में, ‘बिना माता-पिता के बच्चों के लिए ओर्फनेज’ के बारे में हो या ‘रेडियो स्टेशन से मैथिली’ में उद्घोषणा करके पूछे की ‘माँछ-भात खेबै की?, चाहे ‘बीएसएनएल सेवा’ के बारे में हो या ‘नया रेलवे स्टेशन’ के बारे में, ‘मछली पालन’ के बारे में हो या ‘पानी की सफाई’ के बारे में, ‘न्यूनतम मजदूरी’ के बारे में हो या ‘आधार सेवा’ के बारे में, ‘सोलर पावर’ के बारे में हो या ‘गुमनाम पुलों’ के बारे में, ‘आईटी पार्क’ के बारे में हो या ‘स्टील प्लांट’ के बारे में – कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है जिसके बारे में ‘अनस्टार्ड” प्रश्न नहीं पूछे गए हो संसद में।
आप पूछेंगे ‘अनस्टार्ड’ ही क्यों? मिथिला के लोग “लिखित” में अधिक विश्वास करते हैं। गोपाल जी ठाकुर भी तो मिथिला से ही हैं और दरभंगा का संसद भी हैं – स्वाभाविक है लिखित में विश्वास करेंगे। इसलिए वे ‘अनस्टार्ड प्रश्न’ पूछते हैं। इसमें सम्बद्ध मंत्री/मंत्रालय को उन प्रश्नों का उत्तर लिखित में संसद के पटल पर प्रस्तुत करना होता है। गोपाल जी ठाकुर अब तक 89 अनस्टार्ड प्रश्न पूछे हैं संसद में और 30 बहसों में हिस्सा लिए हैं, संसद का टेबुल थपथपाये हैं। लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न है दरभंगा के मतदाताओं को क्या मिला अभी तक?”
संसद के एक प्रश्न को उद्धृत करते मिथिला के एक जमींदार परिवार के युवक कहते हैं: “माननीय श्री गोपाल जी ठाकुर संसद में एक प्रश्न किये थे कि मिथिला क्षेत्र में कोसी, कमला, जीवछ, बागमती, बलान, गंडक, करेह, अधवारा, समूह आदि नदियां बहती है । बरसात के समय यह नदियां उफान पर होती और पूरे मिथिला में भारी विनाश करती है । जिस कारण इस क्षेत्र के लाखों की आबादी प्रभावित होती है । मिथिला क्षेत्र कृषि पर आधारित हैं और बाढ़ और सूखे के कारण लगभग प्रतिवर्ष फसलें बर्बाद होती रहती है, इन्हीं कारणों से उत्तर बिहार के करोड़ों लोगों को पलायन करना पड़ता है। आज़ादी से अब तक करोड़ों लोग विभिन्न महानगरों को पलायन कर चुके हैं । श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार नदी से नदी को जोड़ने की परिकल्पना की गई थी, जिसका क्रियान्वन इस क्षेत्र के लोगों के लिए अत्यंत आवश्यक है । साथ ही साथ नदियों का उराहीकरण, नदियों पर डैम बनाकर पानी का उचित प्रबंधन कर बाढ़ और सुखाड़ दोनों विभीषिका से मिथिला क्षेत्र को बचाया जा सकता है । मैं आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री आदरणीय श्री गजेंद्र सिंह शेखावत जी से मिथिला व 8 करोड़ मिथिलावासियों को बाढ़ से स्थायी निदान दिलाएं, क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है।यह मैं आपसे आग्रह करता हूँ ।”
युवक कहते हैं: “अब देखिये अंत में अपने शिक्षक (प्रधानमंत्री) को चापलूसी करने में सार्वजानिक रूप से पीछे नहीं हटे – मोदी है तो मुमकिन है – कहकर। यह बात मैं नहीं कर रहा हूँ। आप संसद के पृष्ठों को देखें, पढ़ें। अब सांसद साहब को कौन समझाए कि एक पंचायत का प्रमुख जिला के रास्ते, प्रदेश के विधान सभा होते, देश के संसद में अपना स्थान बना सकता है अपना रास्ता ढूंढ कर; तो पानी को भी अपने रास्ते चलने दें। जिस प्रकार पंचायत से संसद तक पहुँचने में उनकी प्रजा और मतदाताओं की आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक, शैक्षिक आपदा और विपदा का ग्राफ अनवरत जमीन के अंदर प्रवेश कर रहा है; संसद में सवाल कर आखिर क्या सन्देश देना चाहते हैं? आज तो देश के प्रत्येक मतदाताओं के हाथ में ‘मुफ्त वाला इंटरनेट डाटा पैक के साथ है। रिक्शावाला भी लालबाग़ चौक पर बैठकर संसद की कार्रवाई को देखता है और पेट भरने के लिए जैसे ही सवारी मिलता, दो ‘अपशब्द’ बोलकर अपने डाटा को बचा लेता है ताकि बाद में ‘फ़िल्मी गीत’ सुने।
मनोहर झा एक शिक्षक हैं। बच्चों को पढ़ाते हैं। कहते हैं: “माननीय सांसद महोदय एक प्रश्न लोक सभा में पूछे थे। वह यह था कि “दरभंगा, उतर बिहार व मिथिला का केंद्र है एवं भौगोलिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। दरभंगा का अतीत अत्यंत गौरवशाली है, यह विद्वानों की धरती रही है। पूर्व से ही दरभंगा के लिए सुरक्षा अत्यंत चिंता का विषय बना रहा है। यह क्षेत्र काफी शांतिप्रिय है एवं क्षेत्र के लोग मृदु भाषी होते है। इसी का फायदा लेकर आतंकी संगठनों के लिए यह पूरा क्षेत्र एक सुरक्षित स्थल बनता जा रहा है और कई मामलों में यहां के संदिग्ध लोगों के तार पाकिस्तान व आतंकी संगठनों से जुड़े हुए पाये गये है। विदित हो कि इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादी इस क्षेत्र में सक्रिय रहे है। इंडियन मुजाहिद्दीन के कुख्यात आंतकवादी यासीन भटकल, तहसीन अख्तर के तार भी इस क्षेत्र से जुड़े हुए पाये गये थे। ज्ञात हो कि पिछले वर्ष भी शहर के मध्य में एक अति शक्तिशाली ब्लास्ट हुआ था, जिसमें स्थानीय स्तर पर काफी क्षति भी हुई थी, लेकिन उसकी जांच को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया । वर्तमान में बीते दिनों दरभंगा रेलवे स्टेशन पर भी कपड़े के बंडल में एक केमिकल ब्लास्ट हुआ है, जिसके तार पाकिस्तान से जुड़े है। ऐसे कई असामान्य व राष्ट्र विरोधी घटनाएं आए दिन होती रहती हैं , जिससे यह प्रमाणित होता है कि पूर्व के आतंकियों ने इस क्षेत्र में रहकर अपने नेटवर्क को बढ़ाने का कार्य किया है । महोदय, सुरक्षा जैसे अति संवेदनशील मुद्दों पर थोड़ी सी भी चूक काफी घातक सिद्ध हो सकती है, ऐसे में मैं माननीय गृह मंत्री जी से आग्रह करता हूं कि सभी केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों को इस क्षेत्र में इंटेलिजेंस मजबूत करने, सभी महत्वपूर्ण संस्थानों की सुरक्षा व्यवस्था पर पैनी नजर रखने एवं आंतरिक सुरक्षा की दृष्टिकोण से किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए केंद्रीय पुलिस बल की तैनाती दरभंगा में करने की कृपा करें ।”
मनोहर झा आगे कहते हैं: “दरभंगा का एक-एक नागरिक अपनी सुरक्षा, जिले की सुरक्षा, प्रदेश की सुरक्षा और राष्ट्र के सुरक्षा के लिए कटिबद्ध है, प्रतिबद्ध है। सवाल यह है कि यहाँ जो गिरोह कार्य कर रहा है, नित्य किसी न किसी को अपना शिकार बना रहा है जो भी उसके हित के विरुद्ध जाता है, चाहे पत्रकार अविनाश झा ही क्यों न हो; कभी ये सांसद महोदय स्थानीय प्रशासन के क्रिया-कलापों के विरुद्ध सड़क पर उतरे? नहीं। झा का कहना है कि “अपनी छवि को यत्र-तत्र-सर्वत्र फ़ैलाने के लिए एक खास नेकवर्क तैयार किये हुए हैं जो सोसल साइटों पर कार्य करते हैं। स्थानीय अख़बारों में सांसद के कार्यों का लेखा-जोखा नहीं प्रकाशित हो सकता है। लिखने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता। उसे नौकरी से हाथ धोनी होगी। इनसे तो कई गुना बेहतर पूर्व सांसद कीर्ति आज़ाद थे जो जनता की बात सुनते तो थे। यह बात भी सत्य है कि किसी भी सांसदों ने स्थानीय लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया जिसे आपको बता सकूँ। झा कहते हैं : “हां, एक बात अवश्य है कि गोपाल जी ठाकुर मृदुभाषी हैं। लेकिन, मौध (मधु) जनता को खाने का अवसर अभी तक नहीं मिला हैं।”
वॉइस ऑफ़ दरभंगा नेटवर्क के अभिषेक कुमार का कहना है कि “सांसद महोदय अपने क्षेत्र के पत्रकारों से रूबरू होने की क्षमता नहीं रखते हैं। उन्हें डर होता है कि वे किसी सवाल में न उलझ जायँ। क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति की कोई समस्या होने पर, जिसका निदान तत्काल अधिकारियों से (चाहे किसी भी तबके का हो) बातचीत द्वारा हो सकता है, चिठ्ठी लिखने लगते हैं। सैकड़ों-हज़ारों चिठ्ठियाँ नित्य लिखी जाती है, अधिकारियों को प्रेषित की जाती है। लेकिन समस्याएं बढ़ती ही जाती। एक खास मीडिया ग्रुप बना रखे हैं जो उनके सोसल साइटों को देखता है।”
तक़रीबन 10924 अनुयायियों वाला यह नेटवर्क अब तक दो वीडियो वाइरल कर चूका है जिसमें दरभंगा का 150-करोड़ वाला सुपर स्पेसिलिटी हॉस्पिटल में ठेकेदार की लापरवाही वाला वीडियो प्रमुख था। इस वीडियो के अनुसार, बिना किसी बैंक गारंटी के उक्त ठेकेदार, जिसके विरुद्ध बैंकों का करोड़ों रूपया बकाया था, इस अस्पताल का निर्माण कार्य दे दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब भी सकरकर की ओर से इस अस्पताल के निर्माण और अन्य सुविधाओं के लिए (85 करोड़ भवन निर्माण + 15 करोड़ मिसलेनियस और ५० करोड़ इक्विपमेंट्स) रुपये निर्गत किये जाते थे, वह राशि उस ठेकेदार के विरुद्ध बकाये राशि के भुगतान के कहते में चला जाता था।
आम तौर पर संसद में ‘जीरो ऑवर’ में एक सदस्य को अधिकतम 150 शब्दों में अपनी बात कहने का हक़ है। यह संसद नहीं, संसद में रखा कंप्यूटर महाशय का आदेश है। ज्यादा बोलेंगे तो आपकी मर्जी। विगत दिनों मिथिला मखान को लेकर दरभंगा के सांसद गोपाल जी ठाकुर संसद में प्रधान मंत्री का गुणगान करते संसद के नियम को ही भूल गए। सवाल माखन का था और सांसद साहेब ने कहा था: “महोदय, 04 अगस्त, 2020 को बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर की टीम द्वारा जिओग्राफिकल इंडिकेशन के लिए रजिस्ट्रार के पास बिहार मखान के नाम से जीआई टैग हेतु एक आवेदन भेजा गया है । मखाना मिथिला क्षेत्र की प्रमुख फसल है, पूरे देश के उत्पादन का 90 प्रतिशत मिथिला में होता है, जहाँ पग-पग पोखर माछ मखान के लिए प्रसिद्ध मिथिला जैसे जल-ही-जल वाले क्षेत्र में मखाने का उत्पादन 9.5 लाख हेक्टेयर से अधिक में होता है । यह शब्द समाप्त हुआ भी नहीं था की ‘राज दरबारी’ पर उछल गए और कहने लगे: “देश के यशस्वी प्रधान मंत्री परम आदरणीय श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी को समस्त मिथिला की तरफ से मैं बधाई देना चाहूँगा कि जिन्होंने आत्मनिर्भर भारत बनाने के मार्ग को प्रशस्त करते हुए वोकल फॉर लोकल का आह्वान किया और दस हज़ार करोड़ रुपये माइक्रो फूड एंटरप्राइेजेज़ के लिए दिया गया, जिसमें मखाने को शामिल किया गया ।”
बहरहाल, मिथिला में एक कहावत है “हमर गप सुनल जाए – अपन गप राखल जाए” – यानी मेरे बात पहले सुने, अपनी बात रखें अभी। दरभंगा के वर्तमान सांसद को संसद में बोलते समय जिन्होंने भी सुना होगा, इन शब्दों को स्वीकार करेंगे। गोपालजी ठाकुर जब अपने संसदीय क्षेत्र के प्रश्नों को संसद में बोलते हैं, तो प्रश्न से पूर्व प्रधान मंत्री की ‘व्याख्या’ करते हैं। अब चाहे अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे कोई भी माननीय अध्यक्ष महोदय उनसे ‘निहोरा’, ‘विनती’ करते हैं, उन्हें बताते रहे कि ‘ऐसे प्रश्नों को पूछने की अवधि मात्र एक मिनट का है, क्या मजाल है गोपाल जी ठाकुर पूर्ण विराम दें।
इतना ही नहीं, कभी कभी तो तो बोलते समय वे प्रधान मंत्री के तरफ भी बार-बार देखते रहते हैं जैसे ‘पूछ रहे हों कि और बोलूं सर!!’ सामने बैठे प्रधान मंत्री भी मन ही मन मुस्कुराते रहते हैं। यह देश का सौभाग्य है कि विगत प्रधान मंत्रियों की सूची में अगर डॉ मनमोहन सिंह को छोड़ दें तो पिछले दस प्रधान मंत्रियों की सूची में नरेंद्र मोदी सबसे अधिक हँसते हैं, वह भी ठहाका लगाकर। संसद में वाजपेयी जी को, आई के गुजराल को, पी वी नरसिम्हा राव को, चंद्रशेखर जी को, विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी हम लोगों ने ठहाका लगाकर हँसते देखा है। इंदिरागांधी और राजिव गाँधी की तो बात ही नहीं करें। हां, आज 303 की संख्या में मोदीजी की हंसी कुछ अलग है।
बहरहाल, साठ-सत्तर के ज़माने में जब धोबी कपडा लाता था, तो समाज के संभ्रांत लोगों का ‘विशेष तौर पर आदेश’ होता था कि कपड़े में कड़क इतनी होनी चाहिए कि आवश्यकता पड़ने पर सीढ़ी की अनुपस्थिति में उसी कपड़े के माध्यम से जमीन से उठकर पांचवे तल्ले पर पहुँच जायँ। उस ज़माने में बिहार में ‘ऐसे संभ्रांत’ या तो जमींदार होते थे या फिर समाज का ऐसा वर्ग जो ‘मूलकदास’ पर अधिक विश्वास करते थे, तभी तो मूलकदास लिखे भी: ‘अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए, सब के दाता राम !’ कोई पचास-साठ वर्ष बाद बिहार में यह संभ्रांत वर्ग एक खास प्रकार के नेताओं के रूप में उभरे जो अपने पार्टी के शीर्षस्त नेता के ‘विशेष अनुयायिओं’ के रूप में ‘स्वयंभू’ होते हैं। यह बात सम्बद्ध राजनीतिक पार्टी के आला नेता जो जानते ही होते हैं, लेकिन वे ‘मजे’ लेते हैं। क्योंकि वे जानते रहते हैं कि ‘ऐसे अनुयायिओं’ की संख्या संसद में होने से ही उनकी जय-जयकार हो सकेगी।
यदि कभी भारत के विद्धिजीवियों, पत्रकारों से राय माँगा गया तो हम यह अनुशंशा अवश्य करेंगे की उन सभी ‘धोबियों’ को, जो राजनेताओं के परिधानों को इस कदर लोहे जैसा कड़क, एल्युमुनियम जैसा चमक बनाते हैं, उन्हें न्यूनतम ‘पद्मश्री’ सम्मान से अलंकृत अवश्य किया जाय। परिधान घारकों को जमीन पर चलते देख, उन्हें उक्त वेशभूषा में देख, चलने का अंदाज देख – मुस्कुराते तो हैं ही लोग, मतदाता भी, परन्तु क्या करे? बिहार के ऐसे राजनीतिक संभ्रांतों में अनेकानेक लोग हैं, लेकिन शुरुआत मिथिला से, वह भी दरभंगा से – दरभंगा संसदीय क्षेत्र के वर्तमान सांसद सम्मानित श्री गोपाल जी ठाकुर साहब से। वैसे उनकी वेशभूषा को देखकर गोवर्धन और मथुरा में ‘कृष्ण’ भी ‘मुस्कुराते’ होंगे – दिल्ली के रायसीना हिल पर सम्मानित नरेंद्र मोदी जी तो मन ही मन ठहाका लगाते ही हैं।
तस्वीरें: पत्र सूचना कार्यालय से, सांसद श्री गोपाल जी ठाकुर के फेसबुक वाल और उनके नाम से फेसबुक पर चलने वाले पेजों से