है कोई देखने वाला भारत के इस एकलौते ब्रह्मा मन्दिर को या सभी नोच-खसोट में ही व्यस्त हैं ?

आप ही देखें और बताएं
आप ही देखें और बताएं

पुष्कर : राजस्थान के अरावली श्रेणी की घाटी में जिस तरह पथ्थरों की कटाई होते देखकर भी प्रशासन शान्त और शिथिल रही है, वहीँ पुष्कर स्थित ब्रह्मा मंदिर के ऊपरी मंजिल पर लिखे शब्दों में टूट-फुट और कटाव को भी शायद कोई देखने वाला नहीं है – न स्थानीय लोग, न स्थानीय बाजार के व्यापारी और न ही स्थानीय प्रशासन। इतना ही नहीं, जहाँ ब्रह्मा स्थापित है, उनके पीछे स्थित विशाल बृक्ष के पीछे मान भगवती के मंदिर में भी पथ्थर खिसकने लगे हैं।

संडेपोस्ट से बात करते मंदिर परिसर के एक पुजारी ने कहा कि “जिस अनुपात में यहाँ भारत से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी पर्यटक आते हैं; मन्दिर का रखरखाव उस अनुपात में नहीं है। हाँ, सुरक्षा-व्यवस्था में कोई कोताही नहीं है, परन्तु मंदिर की ऊंचाई अधिक होने के कारण इसका उचित देखरेख बहुत ही महत्वपूर्ण है।”

आदि शंकराचार्य ने संवत्‌ 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ईं.में बनवाया था। पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं। हिन्दुओं के लिए पुष्कर एक पवित्र तीर्थ व महान पवित्र स्थल है।

ब्रह्मा के मूर्ति के पिछले हिस्से में पेड़ के पास स्थित माँ भगवती के मंदिर में सतह पर अनेकानेक पथ्थर धंस गए हैं जिससे पर्यटकों को असुविधा भी होता है। कुछ पर्यटकों का मानना है की समयांतराल में कहीं ऊंचाई के वजह से कोई परिवर्तन तो नहीं आया है।

ये भी पढ़े   भगवान की तरह रोजाना होती है गांधी की पूजा अर्चना
हुकुम !! जरा इस पथ्थर की ओर भी ध्यान दें
हुकुम !! जरा इस पथ्थर की ओर भी ध्यान दें

सृष्टि के रचियता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषियों की तपस्यास्थली तीर्थ पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। यहाँ प्रति वर्ष विश्वविख्यात कार्तिक मेला लगता है । पुष्कर में अगस्तय, वामदेव, जमदाग्नि, भर्तृहरि इत्यादि ऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में उनकी गुफाएँ आज भी नाग पहाड़ में हैं।

यह मंदिर विश्व में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ 69 फुट की ऊँचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। यज्ञ में शामिल नहीं किए जाने से कुपित होकर सावित्री ने केवल पुष्कर में ब्रह्माजी की पूजा किए जाने का श्राप दिया था।

ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था, जिसकी स्मृति में अनादि काल से यहाँ कार्तिक मेला लगता आ रहा है।

पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में पाँच तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पञ्च तीर्थ कहा गया है। अर्द्ध चंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है।

झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है।

ये भी पढ़े   दरभंगा वाले 'गोपाल जी' को संसद में बोलते देख 'गुजरात वाले मोदी जी' भी मजा लेते हैं (#बिहारकेसांसद : भाग - 1)

पुष्कर के महत्व का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि सभी धर्मो के देवी-देवताओं का यहाँ आगमन रहा है। जैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावती का पद्मावतीपुरम यहाँ जमींदोज हो चुका है जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं। इसके साथ ही सिख समाज का गुरुद्वारा भी विशाल स्तर पर बनाया गया है। नए रंगजी और पुराना रंगजी का मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है। जगतगुरु रामचन्द्राचार्य का श्रीरणछोड़ मंदिर, निम्बार्क सम्प्रदाय का परशुराम मंदिर, महाप्रभु की बैठक, जोधपुर के बाईजी का बिहारी मंदिर, तुलसी मानस व नवखंडीय मंदिर, गायत्री शक्तिपीठ, जैन मंदिर, गुरुद्वारा आदि दर्शनीय स्थल हैं।
पुष्कर में गुलाब की खेती भी विश्वप्रसिद्ध है। यहाँ का गुलाब तथा पुष्प से बनी गुलकंद, गुलाब जल इत्यादि का निर्यात किया जाता है। अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की पवित्र मजार पर चढ़ाने के लिए रोजाना कई क्विंटल गुलाब भेजा जाता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here