ऐसे सैकड़ों-हज़ारों पत्रकार बंधू हैं जो विभिन्न राजनीतिक परिवेश में अपने-अपने “राजनीतिक आकाओं” का भरपूर फ़ायदा उठाये हैं, उठा रहे हैं। वर्तमान व्यवस्था में अनगिनत लोग ऐसे हैं, जिन्हे कल तक अख़बारों में पढ़ते थे लोग; आज लोगों का भाग्य निर्धारित कर रहे हैं। इसमें भाषा का कोई भेदभाव नहीं है – हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, तमिल, तेलगु सभी भाषाओं का समिश्रण है। फिर रजत शर्मा ही क्यों?
नब्बे के दसक में मैं दिल्ली से प्रकाशित इण्डियन एक्सप्रेस में था। राजेंद्र प्रसाद रोड पर स्थित केंद्रीय सरकार के एक कार्यालय में एक फाईल था – ऑउट ऑफ़ टर्न अलॉटमेंट ऑफ़ सरकारी फ्लैट – का। मुझे उस फाईल की तलास थी, एक कहानी करना चाहता था। वजह था – इण्डियन एक्सप्रेस में मेरी नौकरी पक्की नहीं हुयी थी और दिल्ली ऐसे शहर में मैं अकेला था, बिना किसी आका के।
एक्सप्रेस में हुकूमतों में बदलाव हो गया था। दो-चार-छः राजनीतिक पार्टियों के समर्थक आला-कमान संभाले थे। और मैं एक “झोलटन बिहारी” – विलियम सेक्सपियर, ऑस्कर वैल्डी जैसे अंग्रेजी साहित्यकारों का नाम सुनते ही डर लगने लगता था। मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी। लेकिन हिम्मत नहीं हारा था।
दूसरे दिन देर रात देर रात कोई एक बजे दफ्तर के फाईल आ गया। मैं रात के शिफ्ट में था। फाईल पढ़ा और दूसरे दिन केंद्रीय मंत्री श्रीमती शीला कौल से मिलने उनके घर पहुंचा। उस समय केंद्रीय मंत्रियों से मिलने के लिए कोई “ताम -झाम” नहीं था और मैं उनके लॉन में बैठा चाय की चुस्की ले रहा था। मेरे एक मित्र, जो लखनऊ के थे, वे मेरी हिम्मत को देखकर मुस्कुरा रहे थे। मैं उनके सामने भी कुछ नहीं था। मुझे मेरी औकात का पता था। एक वृद्ध और बेहद सुन्दर सी महिला साड़ी की पल्लू को संभालती तेजी से मेरे सामने आयीं। उन्हें देखते ही मैं उठ खड़ा हुआ। दिल्ली में मेरे जीवन का यह पहला अवसर था किसी केंद्रीय मंत्री से मिलना। आज भी आभारी हूँ उस मित्र का।
शीला कौल जी अपने साथ तीन पन्ना कागज़ और लायीं थी। पहले वे बैठीं। फिर कहती हैं : शिवनाथ तुम एक्सप्रेस में हो। मुझे बिहार के पत्रकार बहुत अच्छे लगते हैं। कोई डर नहीं। कोई भय नहीं जब लिखने को बैठे।” मैं उनके सम्मान में उठा ही था की शीला जी कागज का टुकड़ा हाथ में देती बोली: “शिवनाथ, उस फाईल की एक-एक कहानी सीरीज में करो – लेकिन इन तीन पन्नों में जिनका नाम लिखा है, उन पर कहानी जरूर करना। यह बोलती वे मंत्रालय की ओर निकल गयीं।
उस कागज़ में करीब बारह दर्जन ऐसे पत्रकारों – संपादक सहित – जिसमे इण्डियन एक्सप्रेस के संपादक के साथ कई वरिष्ठ पत्रकारों को नाम था जो सरकारी बंगले में रहते तो थे, लेकिन दसकों से सरकारी दर वाला किराया भी नहीं दिए थे। बकाया लाखों नहीं करोड़ों में थे। आखिर वे पत्रकार थे न। आज ऐसे-ऐसे, वैसे-वैसे पत्रकारों की बाढ़ है।
बहरहाल, रजत शर्मा, यह जग विदित है, अरुण जेटली का दूसरा रूप हैं दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन में, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है की उन्होंने खुलेआम यह बात कहा की अंततः पत्रकारिता में उन्हें एक बिहारी पत्रकार, दरभंगा जिले के सिंघवाड़ा के श्री पुष्कर ठाकुर के पुत्र पत्रकार जनार्दन ठाकुर, जिन्होंने पटना से प्रकशित इण्डियन नेशन समाचार पत्र से पत्रकारिता शुरू किये थे, दिल्ली में अपने अपने फीचर सिंडिकेट में पहला अवसर दिए थे। जनार्दन ठाकुर “ऑल द प्राइ मिनिस्टर्स मैन” के लेखक थे जिन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी और उनके ‘अनुयायिओं के बारे में लिखे थे। श्री शंकर्षण ठाकुर दिवंगत जनार्दन ठाकुर के पुत्र हैं।
खैर, भाषा द्वारा जारी इस कहानी को पढ़ें : टेलीविजन के पर्दे पर बड़े बड़े नेताओं, अभिनेताओं, संतों और खिलाड़ियों को कटघरे में बिठाकर उनपर संगीन इलजाम लगाने वाले रजत शर्मा अब एक नयी पारी खेलने के लिए तैयार हैं। जीतना चुनावी राजनीति में उनका पहला कदम कहा जा सकता है।
रजत शर्मा एक ऐसा नाम है, जो माटी से उठकर आसमान छू लेने के संघर्ष और सफलता की एक प्रेरक कहानी कहता है। वह कहने को भले ही टीवी एंकर हैं, लेकिन उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह जिस पद पर चुने गए हैं, उसपर 1998 से 2013 तक वित्त मंत्री अरूण जेटली काबिज थे।
इंडिया टीवी के चेयरमैन और एडिटर इन चीफ रजत शर्मा के लोकप्रिय शो ‘‘आप की अदालत’’ और ‘‘आज की बात’’ उन्हें सफलता के उस पायदान तक ले गए, जहां पहुंचने का लोग सपना देखा करते हैं। इस शो के लिए उन्हें कई बार बेस्ट एंकर के अवार्ड से नवाजा गया। उन्हें इंडियन टेलीविजन एकेडमी ने लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड भी दिया।
18 फरवरी 1957 को दिल्ली में जन्मे रजत शर्मा का बचपन बहुत मुफलिसी में बीता। कपिल शर्मा के एक शो के दौरान अपनी जिंदगी के संघर्ष का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया था कि पुरानी दिल्ली में, सब्जी मंडी के पास तीन मंजिला मकान की तीसरी मंजिल पर एक छोटे से कमरे में वह अपने माता पिता, सात भाई बहनों के साथ रहते थे। उन्होंने रूंधे गले से कहा था कि बहुत बार घर में खाने के पैसे नहीं होते थे तो पूरा परिवार भूखे पेट सो जाता था।
रजत सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। मिडिल स्कूल में उनके अच्छे नंबर आये तो एक मेहरबान टीचर ने उनका दाखिला रामजस स्कूल में करा दिया। स्कूल उनके घर से खासा दूर था, लेकिन किराए के पैसे न होने के कारण रोज पैदल आना जाना होता था। यह सिलसिला तीन साल तक चला।
हायर सेकेंड्री में अच्छे नंबर आये तो रजत का एडमिशन श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में हो गया। यह ऐसा संस्थान था जहां बहुत बड़े-बड़े घरों के लोग पढ़ने आते थे। यहां उन्हें अरुण जेटली, रंजन भट्टाचार्य, अतुल कुंज, रोहिंटन नरीमन जैसे लोगों का साथ मिला और उनके लिए एक नयी दुनिया के रास्ते खुलने लगे। हालांकि उन्होंने ऊंची उड़ान के लिए अपने पंख नहीं तौले और बस बीकॉम ऑनर्स करके फोर फिगर वेतन की उम्मीद लगाए थे।
वह खुद नहीं जानते थे कि किस्मत उनके सपनों में धीरे धीरे रंग भर रही थी। बी कॉम करने के बाद उन्होंने एम कॉम करने का इरादा किया। इस दौरान वे जनार्दन ठाकुर से मिले, जिन्हें अपने फीचर सिंडिकेशन के लिए एक रिसर्चर की जरूरत थी। रजत उनके लिए काम करने लगे और इस दौरान अन्य पत्रिकाओं में भी अपने लेख भेजने लगे।
‘ऑनलुकर’ पत्रिका में लिखे उनके लेख के लिए उन्हें 500 रूपए मिले और पत्रिका के संपादक ने बुलाकर काम करने का न्यौता दिया। इस तरह 1982 में उन्हें पहली नौकरी मिली और तीन साल में वह पत्रिका के संपादक बन गए।
इस दौरान ओत्तावियो क्वात्रोच्चि पर पहली स्टोरी और इंटरव्यू रजत शर्मा ने किया, चंद्रास्वामी को एक स्टिंग ऑपरेशन के तहत एक्सपोज किया, गिरफ्तार होकर तिहाड़ जेल पहुंचे और वहां इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह से बातचीत करके स्टोरी की। इसके बाद वह ‘संडे ऑब्जर्बर’ अखबार से जुड़े और उसके संपादक बने।
1992 में जी न्यूज के प्रमुख सुभाष चंद्रा से उनकी मुलाकात उनके भाग्य का निर्णायक मोड़ साबित हुई। उन्होंने ‘आपकी अदालत’ पर चर्चा की और यह शो शुरू हुआ। ‘आपकी अदालत’ के बाद का किस्सा किसी परीलोक की गाथा जैसा है। 1995 में उन्होंने भारत के पहले प्राइवेट टेलीविजन न्यूज़ चैनल की शुरुआत की और यह भारतीय मीडिया के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ।
किसी भी व्यक्ति की सफलता को उसके भाग्य का परिणाम बता देना उस व्यक्ति की प्रतिभा को नजरअंदाज करने जैसा है। उन्होंने अपनी सफलता के रास्ते खुद बनाए, हां उनके भाग्य ने इतना साथ जरूर दिया कि उनके रास्ते में आने वाली कठिनाइयों में भी उनका हौसला कम नहीं होने दिया। किसी ने शायद रजत शर्मा के लिए ही कहा है, ‘‘खुदी को कर बुलंद इतना, कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है?’’ (भाषा के सौजन्य से)