नई दिल्ली : कितनी समानता है। विगत 16 अक्टूबर, 2018 को इलाहाबाद ‘प्रयाग राज’ हो गया और फिर लगभग तीन साल आते-आते तत्कालीन इलाहाबाद के बेटे को उसके जन्म दिन से तीन सप्ताह पूर्व मुद्दत से बकाये अलंकरण से सम्मानित भी किया गया। ऐतिहासिक इलाहाबाद को अब “प्रयाग राज” के नाम से जानते हैं। इसी तरह ऐतिहासिक भारत का उत्कर्ष खेल रत्न पुरस्कार को अब ”राजीव गांधी खेल रत्न” नहीं बल्कि ”मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान” के नाम से जाना जायेगा। मेजर ध्यानचंद का जन्म इसी महीने (अगस्त) के 29 तारीख को कोई 116 वर्ष पूर्व 1905 में हुआ था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पुरस्कार का नाम अब राजीव गांधी खेल रत्न नहीं बल्कि मेजर ध्यानचंद खेल रत्न होगा । भारतीय हॉकी टीमों के तोक्यो ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन के बाद इस सम्मान का नाम महान हॉकी खिलाड़ी के नाम पर रखने का फैसला लिया गया । प्रधानमंत्री यह घोषणा करते हुए कहा कि उन्हें देशवासियों के अनुरोध मिल रहे हैं कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखा जाये ।
मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘देश को गर्वित कर देने वाले पलों के बीच अनेक देशवासियों का ये आग्रह भी सामने आया है कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद जी को समर्पित किया जाये। लोगों की भावनाओं को देखते हुए, इसका नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा कि तोक्यो ओलंपिक में भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीमों के प्रदर्शन ने पूरे देश को रोमांचित किया है । उन्होंने कहा कि अब हॉकी में लोगों की दिलचस्पी फिर से बढ़ी है जो आने वाले समय के लिये सकारात्मक संकेत है । खेल रत्न सम्मान के तहत 25 लाख रुपये नकद पुरस्कार दिया जाता है।
भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पुरस्कार का नाम राजीव गांधी खेल रत्न की जगह मेजर ध्यानचंद खेल रत्न रखने के फैसले का खेल जगत ने स्वागत किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की कि नागरिकों की भावनाओं का सम्मान करते हुए खेल रत्न पुरस्कार को अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाएगा। तोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीमों के शानदार प्रदर्शन के बाद इस सम्मान का नाम महान हॉकी खिलाड़ी के नाम पर रखने का फैसला लिया गया ।
‘हॉकी के जादूगर’ कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद ने भारत को लगातार 3 बार ओलिंपिक में गोल्ड मेडल दिलवाया था। कहा जाता है कि उनके मैच देखने वालों को लगता था कि उनकी हॉकी में कोई चुंबक लगा है। इसलिए एक बार मैच के दौरान उनकी हॉकी तक तुड़वाकर देखी गई थी।
ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। इस दिन को पूरे भारत में खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है और इसी दिन खेल पुरस्कारों की घोषणा भी की जाती है। सिर्फ ध्यानचंद ही नहीं उनके भाई रूप सिंह भी भारत के लिए हॉकी खेल हैं और ओलिंपिक जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे हैं। ध्यान चंद का निधन तीन दिसंबर 1979 को हुआ था। ध्यानचंद भारतीय सेना का हिस्सा थे और महज 16 साल की उम्र में उन्होंने सेना में कदम रख दिए थे और हॉकी थाम ली थी। भारत ने एम्सडरडम ओलिंपिक-1928 हिस्सा लिया था और इन्हीं खेलों से शुरू हुई भारत की ओलिंपिक में हॉकी की बादशाहत। भारत ने इन खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। टीम की जीत में ध्यान चंद ने 14 गोल कर बड़ा योगदान दिया था।
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ध्यान चंद भारत की उस हॉकी टीम का अहम हिस्सा थे जिसने ओलिंपिक में स्वर्ण पदक की हैट्रिक लगाई थी। 1928 के बाद भारत ने 1932 और फिर 1936 ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किए थे। 1932 ओलिंपिक खेलों में ध्यानचंद ने 12 गोल किए थे। 1936 में बर्लिन में खेले गए ओलिंपिक खेलों में ध्यानचंद ने 11 गोल किए थे। इन खेलों में ध्यानचंद ने टीम की कप्तानी भी की थी। ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर इसलिए कहा जाता था क्योंकि उनका गेंद पर नियंत्रण शानदार था। वह एक बार गेंद को अपनी हॉकी से चिपका लेते थे तो उनको गेंद को छीनने नामुमकिन सा काम था। उन्होंने अपने हॉकी करियर की शुरुआत 1922 से की थी और वह सेना के लिए हॉकी खेला करते थे। 1926 में वह इंडियन आर्मी के साथ न्यूजीलैंड दौरे पर गए। यहां पर उन्होंने अपने प्रदर्शन की छाप छोड़ी और फिर 1928 में ओलिंपिक में भारतीय टीम का हिस्सा बने। वहां से जो सफर शुरू हुआ उसने ध्यानचंद को हॉकी के महानतम खिलाड़ियों में खड़ा कर दिया। (हम प्रसार भारती का आभारी हैं इस ऐतिहासिक इंटरव्यू का इस्तेमाल करने के लिए)