नई दिल्ली : क्या विडंबना है। भारत सरकार के खेल मंत्रालय के पास देश में कितने दिव्यांग खिलाड़ी हैं, से सम्बंधित आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। यह अलग बात है कि विगत वर्ष तक देश में करीब तीन करोड़ लोग दिव्यांग थे, जो अपनी-अपनी पहुँच के अनुसार दिव्यांगों के निमित्त प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। औसतन 99 फ़ीसदी दिव्यांग खिलाड़ी अपनी मेहनत, अपने पैसे से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेलों में भाग लेकर राष्ट्र की गरिमा को बढ़ा रहे हैं। हाँ, जीत हासिल करने के बाद, स्वर्ण, चांदी और कांस्य पदक जीतने के बाद प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेता उन्हें कुछ क्षण के लिए सम्मानित अवश्य करते हैं, ताकि अख़बारों के पन्नों पर तस्वीरों के साथ सुर्खियां प्रकाशित हो सके। फिर सभी भूल जाते हैं और ये दिव्यांग खिलाड़ी गुमनाम हो जाते हैं।
अगर ऐसा नहीं होता तो शायद बलिया के बांसडीह तहसील के हालपुर गांव निवासी और राष्ट्रीय तैराक दिव्यांग लक्ष्मी साहनी को राष्ट्र की गरिमा को बढ़ाने के लिए दर-दर का ठोकर नहीं खाना होता। अखबारवाला(डॉट)कॉम से बात करते हुए लक्ष्मी साहनी, जो जाति से मछुआरा हैं, कहते हैं: “चाहत तो हैं भारत का तिरंगा विश्व में लहराऊँ। हम तो शरीर से दिव्यांग हैं, फिर भी तैर सकते हैं; जो आत्मा से दिव्यांग जीवन जी रहे हैं, सत्ता के सिंहासन पर बैठे हैं, वे हमारी याचना को कैसे समझेंगे?”
साहनी का कहना है कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को, प्रदेश के मुख्यमंत्री सम्मानित आदित्यनाथ योगी जी को अपने देश में, प्रदेश में, एक ऐसे प्रशिक्षण केंद्रों को अपनी-अपनी निगरानी में जन्म देना होगा, जहाँ सरकारी महकमें के अधिकारियों को को संवेदनशीलता का पाठ और प्रशिक्षण देने की व्यवस्था होगी। जो दिव्यांगों की पीड़ा को समझेंगे। हम शरीर से लाचार हैं, फिर भी देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। लेकिन जो शरीर से लाचार नहीं हैं, उनकी मानसिकता में लोच नहीं हैं – यह दुखद है।”
वैसे भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता, न्याय व गरिमा सुनिश्चित करता है और स्पष्ट रूप से यह विकलांग व्यक्तियों समेत एक संयुक्त समाज बनाने पर जोर डालता है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि हाल के वर्षों में विकलांगों के प्रति समाज का नजरिया तेजी से बदला है। लोग यह मानने लगे हैं कि यदि विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर तथा प्रभावी पुनर्वास की सुविधा मिले तो वे बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
उधर उत्तर प्रदेश सरकार भी दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग ने दिव्यांगों की सुविधा के लिए कई योजनाओं का संचालन शुरू किया है। इनमें दिव्यांग भरण पोषण अनुदान (दिव्यांग पेंशन) योजना, कृत्रिम अंग/ सहायक उपकरण योजना, दुकान निर्माण/संचालन ऋण योजना, शादी- प्रोत्साहन योजना, दिव्यांगता निवारण के लिए शल्य चिकित्सा के लिए अनुदान योजना आदि सम्मिलित है।
इन बातों को यहाँ इसलिए जिक्र कर रहा हूँ कि क्या यह योजनाएं व्यवहार में सम्पूर्णता के साथ हैं भी या सिर्फ कागजों पर दौड़ रहे हैं ?
वजह यह है कि बलिया के बांसडीह तहसील अंतर्गत हालपुर गांव निवासी राष्ट्रीय तैराक दिव्यांग लक्ष्मी साहनी विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखे हैं जिसमें वे उनसे अनुरोध किये हैं कि उन्हें आगामी पैरा ओलम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए मार्ग प्रशस्त करें। दिव्यांग लक्ष्मी साहनी की कहानी अविश्वसनीय है। अपने पैर न होने के बावजूद भी लगातार 72 घंटे पानी पर लेट कर पूजा करना, खाना खाना, मोबाइल पर बात करना अपने दैनिक दिनचर्या को पूरा करते हैं। लक्ष्मी साहनी अपने इस प्रतिभा के कारण कई बार उन्हें सम्मानित भी हुए हैं।
ऐसा माना जाता है कि देश में तक़रीबन तीन करोड़ से अधिक लोग दिव्यांग हैं। लेकिन उन दिव्यांगों में खेल-कूद की दुनिया से ताल्लुकात रखने वाले कितने खिलाड़िओ हैं, इसका आंकड़ा भारत सरकार के पास नहीं है। लेकिन 2024 पेरिस में सम्पन्न पैरा-ओलम्पिक खेल में भारत से 84 खिलाडी भाग लिए थे, जो अब तक ऐसे खेलों में भेजे गए खिलाड़ियों की संख्यां में सबसे अधिक थी। पेरिस पैरा-ओलम्पिक खेल में भारत को 29 पदक मिले थे, जिसमें सात स्वर्ण, 9 चांदी और 13 ताम्बे के थे।
वैसे आधिकारिक रूप से न सही, अन्तःमन से खेल की दुनिया से जुड़े खिलाड़ियों से लेकर अधिकारियों और राजनेताओं तक, सभी इस बात को स्वीकारते हैं कि भारत में दिव्यांग खिलाड़ियों के सामने हिमालय की चोटी की ऊंचाई जैसी चुनौतियाँ खड़ी होती हैं। मसलन, सुविधाओं और विशेष उपकरणों तक उनकी पहुँच सीमित है, भेदभाव उत्कर्ष पर होता है, वित्तीय सुविधायें नहीं के बराबर मिलती हैं और सरकारी नुमाईंदे की आँखों में तो वे सुहाते नहीं हैं।
पिछले महीने श्रीलंका के कोलंबो में आयोजित पीडी चैम्पियंस ट्रॉफी 2025 की विजेता भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम, जिसने असाधारण कौशल स्थिति अनुरूप प्रदर्शन करते हुए टूर्नामेंट के फाइनल में इंग्लैंड को पराजित किया था, केंद्रीय युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समावेशी खेल भागीदारी दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए दिव्यांग खिलाड़ियों को सहयोग देने की सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर दिया।
उन्होंने कहा भी कि “माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दिव्यांग खिलाड़ियों के सहयोग के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की है। अगर आप दिव्यांग हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि आप देश को गौरवान्वित नहीं कर सकते… और आपकी जीत इसका प्रमाण है। भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम ने चयन की कठोर प्रक्रिया से लेकर श्रीलंका में प्रदर्शन तक जो जुनून दिखाया है, वह आपकी अपार क्षमता को उजागर करता है।” डॉ. मांडविया इस बात को स्वीकारे थे कि पेरिस पैरालंपिक से लेकर पीडी चैंपियंस ट्रॉफी 2025 तक दिव्यांग एथलीटों ने खेल के क्षेत्र में देश के लिए उपलब्धियां हासिल की। उन्होंने यह भी कहा था कि “हमारे ‘दिव्यांग’ एथलीटों ने अपने प्रदर्शन से हमें गौरवान्वित किया है।
इतना ही नहीं, 2023 में, दिव्यांग खेलों के लिए अटल बिहारी प्रशिक्षण केंद्र खोले गए जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किये थे। उस समय यह कहा गया था कि यह पहल सभी के लिए खेल समावेशिता और पहुंच को बढ़ावा देने की हमारे देश की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। दिव्यांग खेलों के लिए अटल बिहारी प्रशिक्षण केंद्र विकलांग व्यक्तियों को खेल में समान अवसर प्रदान करने, उनकी प्रतिभा को बढ़ावा देने और विभिन्न खेल विषयों में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करता है।
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लेकिन राष्ट्रीय एकलव्य सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष कश्यप, जिन्होंने साहिनी को अंतराष्ट्रीय मंच पर ले जाने का वचन दिया है, कहते हैं कि “हमें, यानी दिव्यांग खिलाड़ियों को) यह भी विस्वास दिलाया गया था कि खेलों में बाधाओं को पार करने और व्यक्तियों को उनकी शारीरिक क्षमताओं की परवाह किए बिना सरकार की नीतियां प्रेरित करने के लिए वचनबद्ध है। उसी वचनबद्धता का एक कदम था दिव्यांग खेलों के लिए अटल बिहारी प्रशिक्षण केंद्र। जिसमें कहा गया था कि यहाँ अत्याधुनिक सुविधा है जो विकलांग एथलीटों के प्रशिक्षण और पोषण के लिए समर्पित होगा। यहाँ दिव्यांग एथलीटों के लिए सर्वोत्तम संभव प्रशिक्षण वातावरण प्रदान करने के लिए विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा और कोचिंग स्टाफ मौजूद होगा। इसमें दिव्यांग एथलीटों के लिए सर्वोत्तम संभव प्रशिक्षण वातावरण प्रदान करने के लिए विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा और कोचिंग स्टाफ मौजूद होगा।
कश्यप आगे कहते हैं कि ” लेकिन सवाल यह है कि यहाँ तक भारत के गाँव से, कस्बों से, पंचायतों से, जिलों से दिव्यांग खिलाड़ी पहुंचेंगे कैसे? क्योंकि खिलाड़ियों और खेल की दशा और दिशा को निर्धारित करनेवाले अधिकारियों, पदाधिकारियों, नेताओं के बीच मानसिक रूप से, व्यावहारिक रूप से एक विशाल खाई है, जिसे आज की तारीख में दिव्यांग खिलाड़ी भरने की कूबत नहीं रखते हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी दिव्यांग खेल प्रशिक्षण केंद्र- ग्वालियर (पूर्व में विकलांगता खेल केंद्र) भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग द्वारा स्थापित एक स्वायत्त निकाय है। इस केंद्र को एमपी सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1973 दिनांक: 22.09.2021 के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया है और इसकी गतिविधियों की देखरेख करने के लिए गवर्निंग बॉडी और कार्यकारी समिति गठित है। यह केंद्र निम्नलिखित लक्ष्य और उद्देश्यों के साथ कार्य करता है:-
* मानदंडों के अनुसार पूरी तरह से पहुंच के साथ पैरा खिलाड़ियों (पीडब्ल्यूडी) के लिए खेल के लिए एक अत्याधुनिक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना।
* विशेष खेल बुनियादी ढांचे का निर्माण करना ताकि पैरा खिलाड़ी केंद्र में कठोर और विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें।
* दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए दुनिया में अन्य जगहों पर उपलब्ध नवीनतम सुविधाओं के बराबर प्रशिक्षण सुविधाएं प्रदान करना।
* अधिक संख्या में खेल गतिविधियों में दिव्यांगजनों की भागीदारी सुनिश्चित करना और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाना।
* समाज में उनके एकीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिए दिव्यांगजनों में आत्मविश्वास पैदा करने और अपनेपन की भावना विकसित करने में मदद करना।
* मंत्रीमंडल ने केंद्र की स्थापना के लिए 34 एकड़ क्षेत्र में 151.16 करोड़ के बजट को मंजूरी दी है।
साहनी कहते हैं: “मैं बहुत साधारण परिवार का रहने वाला हूं। बचपन से दोनों पैर तो नहीं थे, लेकिन सपना था कि मैं वह काम करें, जो ऐसी स्थिति में करना असंभव माना जाता है। मैंने पहले अपने गांव की छोटी बड़ी नदियों में प्रयास किया, मेरे कुछ मित्रों ने साथ दिया और मैं तैरना सीखा। वाराणसी के अस्सी घाट से बलिया तक का सफर गंगा नदी से साढ़े 17 घंटे में तैरकर रिकॉर्ड बनाया था। यही नहीं, एक मिनट में 50 मीटर तैराकी का मिसाल भी कायम किया था। लेकिन सभी प्रयास अपने स्तर से किये हैं। व्यवस्था की और से किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं है, चाहे आर्थिक मदद हो, स्वास्थ्य दुरुस्त रखने के लिए खाने-पीने की बात है, प्रशिक्षण की सुविधा की बात है। चेन्नई, महाराष्ट्र, इलाहाबाद और पश्चिम बंगाल में आयोजित राष्ट्रिय खेलों में मैं अब तक सात पदक जीता हूँ, जिसमें पांच स्वर्ण पदक हैं, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज।”
सरकारी योजनाओं के तहत, दिव्यांग भरण-पोषण अनुदान (दिव्यांग पेंशन) योजना के तहत कम से कम 40 प्रतिशत दिव्यांगता से प्रभावित 18 से अधिक आयु वर्ग के लोगों को उनके भरण-पोषण के लिए 500 रुपये और उस अवस्था से ग्रसित दिव्यांगजन को 2500 रुपये प्रति माह दिया जाता है। कृत्रिम अंग/ सहायक उपकरण योजना के तहत कम से कम 40 प्रतिशत दिव्यांगता से प्रभावित गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्ति को कृत्रिम अंग/ सहायक उपकरण जैसे- ट्राई साइकिल, वैशाखी, व्हीलचेयर, कान की मशीन, वाकर, कैलिपर्स आर्टिफिशियल हाथ-पैर आदि निशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं। इतना ही नहीं, प्रदेश सरकार ने दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए लक्ष्मण पुरस्कार और रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार की योजना शुरू की है. इस योजना के तहत, राज्य सरकार 31 खेलों में पुरुष खिलाड़ियों को लक्ष्मण पुरस्कार और महिला खिलाड़ियों को रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार से सम्मानित करती है। लेकिन यह सभी बातें कहाँ हैं?
सुभाष कश्यप, जिन्होंने साहनी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी हालत में ले जाने के लिए कृतसंकल्प हैं, कहते हैं: “वर्ण-व्यवस्था पर आज चाहे कितना भी विचार और संगोष्ठी हो जाय, आज भी हमारा समाज मछुआरे का समाज, विकास की मुख्यधारा में प्रवेश से वंचित है। ऐसी बात नहीं है कि हमारे समाज में ऐसे युवकों, युवतियों की किल्लत है, चतुर्दिक भरे-परे हैं; लेकिन सभी अवसर की तलाश में हैं। सभी चाहते हैं कि चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो, या विज्ञानं का, खेल-कूद का हो या अधिकारी-पदाधिकारी बनने का, मछुआरे समाज के बच्चे-बच्चियां भी आगे बढ़ना चाहते हैं। लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिलता। उनकी पहुँच आज भी मीलों दूर है और इसका दृष्टान्त है साहनी।”
कश्यप आगे कहते हैं कि “साहनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने समाज को, जिला को, प्रदेश को और राष्ट्र को ऊँचा करना चाहते है। इसी उद्देश्य से विगत दिनों उससे मुलाकात किये। उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं है। आर्थिक स्थिति से कमजोर होने के कारण वह अपनी प्रतिभा को एक नई उड़ान नहीं दे पायेगा। इसलिए हम आगे आये। अंतराष्ट्रीय खेलों में उसकी भागीदारी के लिए जितने भी विधि-विधान हैं, हमारी कोशिश होगी, उसे पूरा करें। उसे वहां तक पहुँचाने के लिए जो भी आर्थिक व्यय होंगे (करीब 25+ लाख) हम खर्च करने को सज्ज हैं। उसकी िक्षा है कि वह इंग्लिश चैनल को पार कर इतिहास रचे, हम सभी मछुआरे समाज के लोग राष्ट्रीय एकलव्य सेना के तहत खड़े यहीं।”
उधर साहनी का कहना है कि पिछले कई वर्षों में वह जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के पैर पकड़े हैं, निहोरा, विनती किये, ताकि उसके सपने को उड़ान मिले, लेकिन सबों ने आश्वासन देकर आगे निकल गए और वे वहीँ का वहीँ पड़े रहे। साहनी कहते हैं “कश्यप जी का सहयोग प्राप्त कर एक उम्मीद की लकीर दिखी है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को भी ईमेल किया हूँ और उनसे निवेदन किया हूँ कि मुझे इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए मार्ग प्रशस्त करें – मैं शरीर से दिव्यांग हूँ, परन्तु मानसिकता और मेहनत से राष्ट्रीय ध्वज को ऊँचा करना चाहता हूँ।