जेलरोड (तिहाड़ जेल), नई दिल्ली : भारत को आज़ाद होने से कोई तीन वर्ष पहले 6 अप्रैल, 1944 को एक भारतीय पिता और एक वियतनामी माँ के यहाँ साइगॉन (बियतनाम) में जन्मे हतचंद भाओनानी गुरुमुख शोभराज यानी 81-वर्षीय चार्ल्स शोभराज अपने जीवन का चालीस से अधिक बहुमूल्य वर्ष, विश्व के अन्य कारावासों की बात न भी करें तो भारत और नेपाल के कारावासों में गुजारे है। “लोहों को चकित करने की आदत से ओत-प्रोत जीवन शैली वाला चार्ल्स शोभराज अंततः नेपाल से रिहाई के बाद आजकल फ़्रांस में दिखाई दे रहे हैं। तत्कालीन दस्यु महारानी फूलन देवी की रिहाई (1994) के तीन साल बाद फरवरी 1997 में अपनी 20-वर्षीय कारावास की सजा पूरी करने के बाद वैसे शोभराज को फ्रांसीसी अधिकारियों को सौंप दिया गया था, लेकिन कुछ ही वर्ष बाद नेपाल में उनकी गिरफ्तारी हुई थी।
@अखबारवाला001 (233) ✍ दिल्ली के तिहाड़ कारावास में वह सब कुछ होता है जो कारावास में नहीं होनी चाहिए 😢
नब्बे के दशक में दिल्ली से प्रकाशित अख़बारों, पत्रिकाओं में दो लोगों – एक महिला और एक पुरुष – का नाम बहुत अधिक प्रमुखता के साथ प्रकाशित होता था। एक थीं बागी फूलन देवी, जिन्हें ग्वालियर जेल से तिहाड़ जेल हस्तानांतरित किया गया था और दूसरे थे – चार्ल्स शोभराज। ग्वालियर जेल से तिहाड़ हस्तानांतरण के बाद फूलन देवी के परिवार के लोग, खासकर उनके चाचा हरफूल सिंह और उनका परिवार अत्यधिक सचेष्ठ था ताकि वे शीघ्र ही जेल से रिहाई हो। फूलन देवी की रिहाई में और रिहाई के बाद राजनीति में प्रवेश के लिए दो समाजवादी नेताओं को सर्वाधिक श्रेय दिया जा सकता है। एक: मुलायम सिंह यादव और दूसरे: अमर सिंह। तिहाड़ कारावास से रिहाई के बाद फूलन देवी वर्षों भारत के संसद में विराजमान रहीं। वहीँ चार्ल्स शोभराज तिहाड़ से रिहाई के बाद सैद्धांतिक रूप से भले फ़्रांस के अधिकारियों को सौंपे गए हों, कुछ ही साल बाद नेपाल पुलिस के गिरफ्त में आ गए और लगभग 19 वर्ष तक नेपाल के कारावास में बंद रहे।
कहते हैं 60 के दशक की शुरुआत में भारत आने से पहले, चार्ल्स एक किशोर अपराधी थे। छोटे-मोटे अपराधों के ज़रिए छोटी-छोटी रकम कमाना और भारत पहुंचना उनका मकसद था। विज्ञान में स्नातक करने के बाद, चार्ल्स शोभराज 1967 के आसपास पहले 1967 के आसपास भारत आये और फिर नवंबर 1971 में। कहते हैं उस कालखंड में उपासपोर्ट नहीं होने के कारण वे दिल्ली पुलिस के गिरफ्त में आये। वह बहुत छोटी बात थी। जेल आना-जाना उसकी रोजमर्रे की आदत जैसी हो गई थी। शोभराज खुद को एक आकर्षक व्यक्ति के रूप में पेश करता था। वह विदेशियों से दोस्ती करता था, उन्हें नशीला पदार्थ खिलाता था और लूटता था। यह उसका काम करने का तरीका था।

भारत से रिहाई के बाद शोभराज 2003 में नेपाल गए जहाँ उसे गिरफ्तार किया गया और मुकदमा चलाया गया। मुकदमें में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 21 दिसंबर 2022 को नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने उसे उसकी बढ़ती उम्र के कारण जेल से रिहा करने का आदेश दिया, जबकि वह अपनी जेल की सज़ा के 19 साल काट चुका था। काठमांडू में, शोभराज 29 वर्षीय अमेरिकी रेडियोलॉजी छात्र कोनी जो ब्रोंज़िच और 26 वर्षीय कनाडाई बैकपैकर और मौसमी खनिक लॉरेंट कैरियर की हत्या के लिए 20 साल की आजीवन कारावास की सजा काट रहा था। कहते हैं वह हर व्यक्ति के मनोविज्ञान को पढ़ सकता था और ठीक से समझ जाता था कि वे क्या चाहते हैं। शोभराज ने अपराध के अंतर्राष्ट्रीय जीवन की शुरुआत की और 1975 में थाईलैंड में पहुँच गए। शिष्ट और परिष्कृत, वह एक युवा अमेरिकी महिला की हत्या में शामिल था, जिसका शव बिकनी पहने हुए समुद्र तट पर पाया गया था। “बिकनी किलर” के नाम से प्रसिद्ध शोभराज पर दर्जनों हत्याओं का आरोप लगाया गया।

आइये चलते हैं तिहाड़ जेल के पूर्व जेलर सुनील कुमार गुप्ता के पास जिन्होंने तिहाड़ के एक-एक कैदियों को हजी नहीं, तिहाड़ की भौगोलिक स्थिति को ही नहीं, वहां की गिरती-लुढ़कती प्रशासनिक व्यवस्था और उस व्यवस्था में गोंते लगाते कई एक भ्रष्ट अधिकारीयों, कर्मचारियों को अपने 35-वर्ष के सेवा काल में देखे थे। वैसे तिहाड़ जेल के अंदर चार्ल्स शोभराज की कहानियां ऐतिहासिक हो सकती है, लेकिन उसके जेल से भागने की तुलना में वे नगण्य हैं।
शोभराज के जेल से भागने की घटना 6 जुलाई, 1976 को हुई थी। यद्यपि वह भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में कई हत्याओं के सिलसिले में खोजा जा रहा था, उसके ऊपर 60 फ़्रांसिसी पर्यटकों को नशा देने के प्रयास में प्रत्यावर्तन का भी मुकदमा चल रहा था। लेकिन जिस आदमी ने दुनिया भर के लोगों को मुर्ख बनाया था, अंततः वह दिल्ली में पकड़ा गया था। दिल्ली के विक्रम होटल में 60 पर्यटकों को नशा खिलाकर लूटने की उसकी कोशिश विफल हो गयी थी। उसने सैलानियों को नशे की जो खुराक दी थी, वह थोड़ी काम थी और उसके शिकारों को डायरिया हो गया था। शोभराज के ऊपर संदेह करते हुए उन्होंने होटलवालों पर पुलिस बुलाने और उससे पूछताछ करने गिरफ्तार करने का दबाव डाला। अतः इस मामले में शोभराज की योजना शौचालय में पहुंचकर उलटी पर गयी। यानी चार्ल्स शोभराज की पहली पकड़ शौचालय में हुई।

सुनील गुप्ता के अनुसार, “वास्तव वह अकेला मामला नहीं था, जिसमें वह सजा काट रहा था। उसके ऊपर 3 जनवरी, 1976 को वाराणसी में एक इजरायली नागरिक एलन एरन जैकब्स की हत्या का भी आरोप था। उसने उसके मामले में भी नशीली दबाव का प्रयोग किया था। शोभराज और एक अन्य विदेशी, एक महिला, ने वाराणसी के नटराज होटल में जैकब्स और मोहन लाल नमक एक भारतीय के साथ प्रवेश किया। एक और जहाँ मोहन लाल और जैकब्स एक ही कमरे में एक साथ ठहरे, वहीँ दूसरी ओर शोभराज और वह महिला ने फ़्रांसिसी दंपत्ति होने का बहाना बनाकर मिस्टर नैपियर पोनेंट और मिसेज निकोल पोनेंट के छद्म नाम से होटल में प्रवेश किया। अगले दिन वे दोनों उस होटल से यह बहाना बनाकर निकल आये कि उन्हें उसके बजाय क्लर्क होटल में ठहरना पसंद है। वे दोनों उस होटल में इस बार श्रीमती एवं श्री एलन जैकब्स के नकली नाम से क्लर्क होटल में ठहरे और उन्होंने भुगतान करने के लिए जैकब्स के फॉरेक्स ट्रैवेलर्स चेक का प्रयोग किया।
5 जनवरी को वे दोनों होटल नटराज में वापस गए और वहां जैकब्स और मोहन लाल के बारे में पूछताछ की। होटल के कर्मचारी ने उन्हें बताया कि पिछली रात जब एक परिचारक उसके कमरे में पानी देने गया था तो वह जीवित था और उसने शोभराज को मोहन लाल को कोई गोली देते हुए देखा था। कुछ घंटे बाद वह दंपत्ति और मोहन लाल वहां से चले गए थे, लेकिन जैकब्स जिनक फॉस्फेट के जहर से मरा पड़ा पाया गया था।
16 मार्च, 1986 को रविवार था और उस दिन गुप्ता जी की छुट्टी थी। बाद में वह कहानी कई बार सुने तो उन्होंने महसूस किया कि काश !! उस दिन वे वहां होते !! सबसे पहले चेतावनी देना वाला व्यक्ति सिपाही आनंद प्रकाश था। वह एक मोटे कपडे से अपना चेहरा ढंके हुए जेल के क्वार्टर तक आया। उसके चेहरा छिपाने का कारण बाद में पता चला। जब उसने जेल के डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट के कार्यालय की घंटी बजे, उस समय वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। बड़ी मुश्किल से वह जेल नंबर 3 के प्रभारी से इतना ही कह पाया, “भागो, जल्दी करो !’ बाद में जेल नंबर 3 के सहायक अध्यक्ष वीडी पुष्करणा ने कहा कि उसने जो कुछ देखा, वह उसकी कल्पना से पड़े था। वह एक निकृष्ट दुखद कथा से होकर गुजरा था। जेल के सभी दरवाजे खुले पड़े थे। जेल स्टाफ, जिसमें द्वारपाल, सुरक्षा दस्ता और यहाँ तक कि ड्यूटी ऑफिसर शिवराज यादव तक या तो सोये हुए थे या हक्का-बक्का नजर आ रहे थे।

पुष्करणा ने देखा की गेट की छवियां अपने बास्तविक स्थान पर नहीं थी। वहां योग्य तमिलनाडु पुलिस के संतरियों को तिहाड़ की पहरेदारी के किये इसलिए चुना गया था, क्योंकि भौगोलिक रूप से भिन्न भाषा उन्हें उत्तर भारतीय अपराधियों से मेल जोल बढ़ने से रोकती थी। उस दिन वे गिरे पड़े थे। आम तौर पर जेल के चारो ओर बने ऊँचे निगरानी टावरों से उन्हें एक संतरी काफी दूर सड़क पर अपनी थ्री नॉट थ्री राइफल के साथ लेटा दिखाई पड़ा था। सिपाही आनंद प्रकाश ने अपना चेहरा शर्मा के कारण नहीं छिपाया था, बल्कि इसलिए छिपाया था कि उसे भी नशा दिया गया था। जब वह नींद से जाएगा तो खुद को औंधे मुंह गिरा पाया और उसके चेरे पर जलन हो रही थी।
पुष्करणा जानता था की तिहाड़ में अवश्य ही कुछ बहयनक, भयानक रूप से कोई गलत घटना हुयी है। इसलिए बहुत लम्बे अंतराल के बाद पहली बार वैधानिक कारणों से बजर – खतरे की घंटी – बजाया गया था। वह इस कारण से नहीं बजाय गया था की कोई नम्बरदार किसी खूंखार नए कैदी से प्रतिशोध लेना चाहता था, या की वे जेल के अंदर कोई लड़ाई शुरू करना चाहते थे। इस बार जब उसे बजाय गया तो वास्तव में आपात स्थिति थी। और ऐसा महसूस हुआ जैसे जेल संख्या – 3 की समुच जनसंख्या वहां से पलायन कर गयी थी। नियमानुसार, खतरे की घंटी बजने के साथ ही कैदियों की गिनती शुरू हो जाती है। जब गिनती समाप्त हुयी तो 900 में से केवल 12 कैदी, जो खास तौर से उसी जेल में थे, फरार हुए थे। लेकिन भागने वालों में तिहाड़ का अति प्रसिद्द चार्ल्स गुरुमुख शोभराज भी शामिल था।
सुनील गुप्ता कहते हैं: “मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं अपरान्ह 3 बजे खबर सुनी तो मैं अपने घर में बैठा टीवी देख रहा था। तभी दूरदर्शन ने अपने नियमित कार्यक्रमों को अचानक रोक कर कारा टूट की घोषणा की और यह भी बताया कि चार्ल्स शोभराज जेल से फरार हो गया है। मैं तत्काल अपनी ड्यूटी पर पहुँच गया। ऑफिस पहुँचने के बाद हमने घटनाओं को क्रमशः जोड़ना प्रारम्भ कर दिया। एक महत्वपूर्ण सुराग यह था कि प्रत्येक मूर्छित प्रहरी अपने हाथ में पचास रुपये का नोट पकडे हुआ था। इस प्रकार, पुष्करणा ने अनुमान लगाया कि पहले उन्हें पैसे का लालच दिया गया और उसके बाद उन्हें चार्ल्स शोभराज द्वारा उसके तथाकथित जन्मदिन के बहाने नशीली मिठाइयां खिला दी गई।
दिल्ली के पुलिस तत्कालीन उपायुक्त अजय अग्रवाल ने संवाददाताओं को बताया था की वार्डर के पास आकर दो लोगों ने किसी कैदी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में फल और मिठाइयां बांटने की इजाजत मांगी थी। वार्डर शिवराज यादव ने उन्हें वैसे करने की अनुमति दे दी थी, जिसके बाद आगंतुकों ने उसे और अन्य पांच प्रहरियों को मिठाइयां दी थी। मिठाइयां खाने के तत्काल बाद ड्यूटी पर तैनात जेलकर्मी मूर्छित हो गए और उन्हें घंटों बाद होश आया।

सुनील गुप्ता कहते हैं: “जांच करने के बाद हमने पाया कि डेविड हॉल नमक एक पूर्व कैसी उस दिन चार्ल्स शोभराज से मिलने आया था और उसी ने उसके भागने में मुख्य भूमिका अदा की थी। ब्रितानी नागरिक हॉल ने नशीली पदार्थों के तस्करी के आरोप में तिहाड़ जेल में सजा काटी थी, बाद में रिहा हुआ था। मैंने तो उसे अच्छी तरह नहीं जानता था, परन्तु शोभराज को उसके बारे में पूरी जानकारी थी। विदेशी नागरिक होने के कारण दोनों में भाईचारा उत्पन्न हो गया था और जब शोभराज ने उसकी जमानत की अर्जी लिखने में सहायता की तो उसकी मित्रता और अधिक प्रगाढ़ हो गई। आगे जांच करने से पता चला कि जिस दिन हॉल शोभराज से मिलने आया था, उस दिन उसे कुछ सामान दिया था – संभवतः वह वही सामग्री थी, जिसका प्रयोग शोभराज ने जेलकर्मियों को बेहद करने हेतु किया था।”
शोभराज को अपनी कोठरी में अपना खाना स्वयं पकाने की सुविधा प्राप्त थी, जिसका उसने अनुचित लाभ उठाया। इस घोषणा के बाद उस दिन उसका जन्मदिन था। उसने जेल में मिठाइयां बनाई और उसमें एक विशेष सामग्री -लारपोज नामक नींद की गोली मिला दी। कहते हैं उसने 820 गोलियों का इस्तेमाल किया था। उसने अपनी 12 अन्य कैदियों को शामिल किया था। ये कैदी वे थे, जो अपने आप जेल से भागने की हिम्मत नहीं कर सकते थे। उसमें से दो कैदी वे थे, जो ड्योढ़ी पर रहकर जेल प्रशासन का काम किया करते थे। वे छोटे मोटे अपराधी थे और उन्होंने बाद में दावा किया था कि उन दोनों को भी शोभराज ने नशीली मिठाइयां खिला दी थी। जब अख़बारों में उसका नाम अख़बारों में प्रकाशित हो गया तो वे इस बात से डर गए कि अब उनकी तलाश की जाएगी। अधिक बिलम्ब होने से पूर्व ही उन दोनों ने जनकपुरी ठाणे में आत्मसमर्पण कर दिया और तिहाड़ में वापस लौट गए।
सुनील गुप्ता के अनुसार: “लेकिन वास्तविकता यह है कि पुलिस उस घटना को उसके आत्मसमर्पण के रूप में नहीं दिखाना चाहती थी। अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखने की कोशिश में पुलिस ने घोषणा की कि उसने दो लोगों को गिरफ्तार का लिया है। परन्तु वह केवल अपनी छवि बचने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं थी। जैसे ही अन्तर्रष्ट्रीय समाचार जगत में एक अन्य चार्ल्स शोभराज गिरोह के करतब की खबर प्रकाशित की वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ साथ दिल्ली पुलिस के उच्च पदस्थ अधिकारी तिहाड़ की ओर दौड़ पड़े। उपराज्यपाल एच.के.एल. कपूर एवं पुलिस आयुक्त वेद मारवाह ने तिहाड़ का दौड़ा किया और आदेश दिया की वीडी पुष्करणा एवं अन्य कर्मियों को गिरफ्तार करने उनसे पूछताछ की जाय। अखबारों में ऐसी कहानियों की बाढ़ आ गई कि किस प्रकार शोभराज अपने हाथों से जेल अधिकारियों को खाना खिलाता था, अथवा कि कैसे वह जेल कर्मचारियों की अर्जियां लिखता था और कैसे उसे रिश्वत के शक्ल में मोटी रकम दिया जाता था।

विडंबना यह थी कि वास्तविक कहानी कभी बाहर नहीं आई। इसलिए एक और जहाँ पुष्करणा को दण्डित किया गया था, डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट आर.टी.एल. डिसूजा को कोई फटकार भी नहीं लगाई गई। उस समय उसके बारे में यह कहानी चल रही थी कि डिसूजा एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी का रिश्तेदार था, जिसने उपराज्यपाल से उसके बचाव के लिए संपर्क किया, क्योंकि उपराज्यपाल स्वयं भी रक्षा सेवा से आये थे। यह भी निर्विवाद सत्य है कि भागने ऐसे पहले चार्ल्स शोभराज का जेल संख्या 1 से जेल संख्या 3 में रहस्यमय तरीके से स्थानांतरित किया गया था। उसे जेल संख्या -1 से क्यों हटाया गया? क्या उसका स्थानांतरण उसके भागने के योजना का एक अंग था? जेल संख्या – 3 एक नई जेल थी इसलिए उसके कर्मचारी जेल संख्या – 1 के कर्मचारियों से भांति सुप्रशिक्षित नहीं थे। एक अन्य संयोग यह था कि लगभग उसी समय नशे के कारोबारी डेविड हॉल को मात्र 12000 रुपये की जमानत पर छोड़ दिया गया था।
वरिष्ठ स्तर पर कोई भी जेल अधिकारी नहीं चाहता था कि शोभराज के भागने के मामले में गंभीरता से जांच हो, क्योंकि उन्हें अपनी अकर्मण्यता एवं अयोग्यता उजागर होने का भय था। बहरहाल, सार्वजनिक चीख पुकार को देखते हुए एक अवकाश प्राप्त फ्रंटियर सर्विस ऑफिसर के नेतृत्व में आतंरिक जांच करने का आदेश देना पड़ा। रिपोर्ट में शिवराज यादव, पुष्करणा एवं पांच ने लोगों का नाम शामिल किया गया था और बताया गया कि इन्हीं लोगों ने चार्ल्स शोभराज को लारपोज जैसी नशीली दवाइयाँ और मिठाइयां लाने की अनुमति दी थी। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि इन्ही लोगों की लापरवाही से जेल कर्मचारियों को शोभराज के षड़यंत्र का शिकार होना पड़ा। सभी पांच आरोपियों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया, जो बाद में रिहा हो गए।
भारत में उसे पहली बार 1973 में नई दिल्ली के अशोका होटल स्थित एक जेवरात की दूकान को लूटने के असफल प्रयास के लिए जेल में डाला गया था। इस दौरान वह झूठी बिमारी के बहाने अस्पताल में भर्ती हुआ और वहां से भाग खड़ा हुआ था। दरअसल, लोगों को जहर देकर भागने का शोभराज का तरीका बहुत पुराना था। साल 1971-1972 के दौरान उसे काबुल में होटल कांटिनेंटल का बिल चुकाए बिना भागने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वहां भी वह बीमार होने के बहाने अस्पताल में दाखिल हुआ और वहां से पहरेदारों को नशा खिलाकर भाग निकला।
लेकिन तिहाड़ में उस सारे तमाशे के 23 दिनों बाद चार्ल्स शोभराज तिहाड़ जेल में वापस आ गया। उसे गोआ में गिरफ्तार किया गया था। जेल से फरार होने के बाद वह अपने दोस्त डेविड हॉल के साथ गोआ चला गया था। उसी दौरान अजय सिंह तोमर नामक व्यक्ति को अपने बैग में एक जिन्दा बम और कुछ कारतूस के साथ एक रेलगाड़ी पर सवार होते समय बम्बई मुंबई में गिरफ्तार किया गया। उसके बाद पुलिस उसे लेकर उस होटल में गयी जहाँ एक अन्य भगोड़ा अपराधी देवकुमार ब्रह्मदत्त त्यागी छिपा हुआ था। पूछताछ करने पर दोनों ने पुलिस को बताया की शोभराज और हॉल उससे अलग होकर गोआ चले गए थे। पुलिस शोभराज के पास से एक रिवॉल्वर और हॉल से 12000 अमेरिकन डालर नकद बरामद किए थे।
बहरहाल, शोभराज की गिरफ्तारी तिहाड़ जेल के कुछ अधिकारियों के लिए अत्यंत तनावपूर्ण थी। पुलिस ने जब जेल तोड़ षड्यंत्र की तह तक जाने के लिए पूछताछ की तो सभी के साँसे थम गयी थी। क्या शोभराज उन्हें बर्वाद कर देगा? क्या वह पुलिस को उन लोगों का नाम बता देगा जो उसके पे रोल पर थे? वह हर समय अपने घुटनों बांधकर एक गुप्त ध्वनि रिकार्डर (छिपाए रखता था, ताकि वह सुपरिन्टेन्डेन्ट और डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट की रिष्वस्त मांगने वाली आवाज को रिकार्ड कर सके। उसे भगाने के बारे में हुई इतनी सारी पूछताछ के बाद क्या वह खुला रहस्य सामने आ पाया? लेकिन उनके लिए चिंता करने की जरुरत नहीं थी, क्योंकि बड़े से बड़े रहस्योद्घाटन के बाद भी वहां कुछ बदलता नहीं था।

सुनील गुप्ता कहते हैं: “अप्रैल 1986 में उसके तिहाड़ लौटने के बाद जब मैं उससे मिला और पूछा की वह क्यों भागा था? उसने बड़े आराम से मुस्कुराते हुए कहा: “मुझे सनसनी पैदा करना पसंद है।” ऐसा उसने इसलिए किया कि भारत में उसकी सजा लगभग ख़त्म होने वाली थी और उसके बाद उसे थाईलैंड में प्रत्यर्पित किया जाने वाला था और अनेक लोगों की हत्या करने के अपराध में उसे गोली मारी जाने वाली थी। जेल तोड़ की घटना ने भारतीय प्राधिकारियों को उसे लम्बी अवधि तक जेल में रखने का एक और अवसर प्रदान कर दिता था।”
इसके विपरीत, पुलिस का मत अलग था। उन्होंने एक अन्य कुख्यात कैदी और शोभराज के सहनिवासी एवं दिल्ली के प्रमुख कारोबारी राजेंद्र सेठिया पर आरोप मढ़ दिया। उस समय अभियोजकों ने आरोप लगाया था कि सेठिया ने शोभराज को भाड़े पर लिया था, ताकि वह बैंक घोटाले के मुख्य गवाह से अपना हिसाब चुकता कर सके, जिसमें वह स्वयं एक अभियुक्त था। वह गवाह कोई स्वामी सत्संगी नामक व्यक्ति था और उसकी हत्या करने के लिए सेठिया शोभराज से सहायता मांगी थी। इसके बदले सेठिया की पत्नी ने साफ़ तौर पर ब्रिटेन के खाते में 99000 अमेरिकी डालर जमा करवाए थे, और पुलिस का दावा था कि शोभराज के जेल से भागने से ठीक पहले वह राशि निकाल ली गयी थी। पुलिस की कहानी को पूर्णतया नकार दिया गया और सेठिया उसे निरस्त कराने के लिए न्यायालय चला गया।
अपने प्रभावशाली मित्रों और पटे पटाये जेल कर्मियों के बावजूद शोभराज उस कठोर सच्चाई से बच नहीं सका जो उसे तिहाड़ में वापस लाये जाने के बाद उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। कहीं भी स्वतंत्रतता पूर्वक घूमने के स्थान पर अब उसे जंजीरों में जकड़कर अलग थलग वार्ड में बंद कर दिया गया था। उसे खूंखार आतंकवादियों के लिए बने उच्च सुरक्षा वार्ड में रखा गया था और उसकी सभी गतिविधियों पर चौबीसों घंटे सतर्क निगाह रखे जाने लागिओ थी। किसी सुरक्षा गार्ड को साथ लिए बिना उसे कहीं भी जाने की अनुमति नहीं थी। सभी चतुर कैदियों की तरह चार्ल्स शोभराज ने भी जेल की तपिश, ऊब और एकाकीपन से निजात पाने के लिए एक गुप्त मार्ग खोज लिया। होशियार कैदी बार बार कोर्ट जाते हैं। कोर्ट में आप बाहरी, अपने परिवार के लोगों से मिल सकते हैं और आपको यहाँ अच्छा खाना मिल सकता है।
सुनील गुप्ता मुस्कुराते कहते हैं: “मुझे उसकी बेड़ियों में जकड़े जाने की विचित्र चाल के पीछे की कहानी याद है। हम उसे जंजीरों में जकड कर रखना चाहते थे, परन्तु भारतीय न्याय प्रणाली इस मामले में स्पष्ट इंगित करती है कि ऐसा करने के लिए केवल जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट की इच्छा ही पर्याप्त नहीं थी। इसके लिए न्यायालय का वैधानिक निर्देश भी होना चाहिए। यह भी उसकी चाल थी। क्योंकि शारीरिक रूप से घिसटते हुए कैदी को देखना मानवाधिकारों के निकृष्टम उल्लंघनों में से एक माना जाता था। कोई भी जिला जज अपने नाम से ऐसा आदेश पारित करने का इच्छुक नहीं था। तीन महीने गुजर गए तब पी.के. बाहरी एक नए जज जिला एवं सत्र न्यायधीश आये। उन्होंने न केवल उसे जंजीरों में जकड़ने की अनुमति दी। लेकिन उनका आदेश न केवल दोषपूर्ण था बल्कि उसका यह भी अर्थ था कि शोभराज को अनिश्चित काल तक बेड़ियों में रखा जा सकता है। एक विधि अधिकारी के रूप में मैं यह जानता था कि किसी कैदी को धिकतम तीन महीने तक ही जंजिदों में जकड़कर रखा जा सकता है।” खैर।

उसे कभी भी किसी को चकित करने की आदत नहीं गयी थी। जब वह तन्हाई वार्ड में था, उसका डबल रोटी के बीच से थोड़ी मात्रा में हशीश पाई गयी थी और वह हमारे अनुमान से बाहर था कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में नशे का सामानंदर पहुँचाने में सफल हो गया था। दो सिपाहियो को निलंबित कर दिया गया और बाद में उन्हें शोभराज को नशे की आपूर्ति करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। आप उस वयक्ति को दण्डित कैसे कर सकते हैं जो पहले से ही जंजीरों और बेड़ियों में जकड़ा हुआ हो ?
अंततोगत्वा, साल 1997 में रिहा होकर भारत से फ़्रांस जाने से पूर्व वह किरण बेदी के तबादले का कारण भी बना। जिस समय (साल 1993) में किरण बेदी को महानिरीक्षा के रूप में तिहाड़ के 8000 से अधिक कैदियों की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया था, उस समय जेल तोड़ की घटना को कई वर्ष बीत चुके थे और हथकड़ी-बेड़िया गुजरे ज़माने की बात होकर रह गयी थी। सभी कैदियों के लिए अब कोई न कोई काम करना जरुरी था और इसलिए किरण बेदी ने शोभराज को क़ानूनी सहायता प्रकोष्ठ में भेज दिया, जहाँ उसे एक टाइपराइटर दिया गया था।
कारागार नियमों के अनुसार, यह जेल प्रभारी को निर्णय करना होता था की किसे टाइपराइटर उपलब्ध कराया जाय। उनके निर्णय में कुछ भी गैर-क़ानूनी नहीं था, परन्तु उस समय दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना किरण बेदी को दण्डित करने के लिए कोई बहाना खोज रहे थे और वह बहाना उन्हें शोभराज के रूप में मिल गया और उन्हें जेल से हटा दिया गया । बहरहाल, 17 फरवरी, 1997 को अपनी 20 वर्षीय जेल की सजा पूरी करने के बाद 53-वर्षीय शोभराज को फ़्रांसिसी अधिकारियों को सौंप दिया गया। यद्यपि उस समय भी उसके खिलाफ कुछ मामले लंबित थे, परन्तु सरकार ने उसे रिहा करना उचित समझा। लेकिन साल 2003 में नेपाल में पुनः गिरफ्तार किया गया।
क्रमशः ….