छोड़िये सेबी की श्रीमती माधाबी पुरी बुच को, जिस दिन IAS अधिकारी ‘एक जुट’ हो जायेंगे, कोई भी राजनेता धूर्तता से उनसे काम नहीं निकाल सकता

सुश्री माधबी पुरी बुच

रायसीना हिल के बरामदे से (नई दिल्ली): पिछले दिनों संघ लोक सेवा आयोग के 1972 परीक्षा बैच के प्रथम स्थान धारक और भारतीय रिजर्व बैंक के 22 वें अध्यक्ष (अब अवकाशप्राप्त) डी सुब्बाराव एक किताब Just A Mercenary: Notes From My Life & Career का लोकार्पण किये। यह किताब उन्होंने ही लिखा है। इस किताब के बारे में अनेकानेक कहानियां लिखी गई, प्रकाशित हुई। उसी क्रम में उन्होंने FORTUNE INDIA पत्रिका से भी बात किये। अपने साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा कि “कभी अपनी क्षमता, अपनी ईमानदारी और अपनी प्रतिबद्धता के लिए विख्यात थे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी। आज अपनी अयोग्यता, अपनी अकुशलता और अपनी भ्रष्टाचार में लिप्तता के कारण कुख्यात हो गए हैं 25% IAS अधिकारी।” यह छोटी बात नहीं है। 

उन्होंने आगे कहा: “भारत का प्रशासनिक कार्य 25 फीसदी प्रशासनिक अधिकारी करते हैं और शेष 50 फीसदी ‘मध्यस्थ है। आज प्रशासनिक अधिकारियों में एकता का सम्पूर्ण अभाव है। जिस दिन उनमें एकता आ जाएगी, एक हो जायेंगे, भारत का कोई भी राजनेता उनकी ओर ऊँगली नहीं उठा सकता है। वे अपनी क्षमता, ईमानदार और प्रतिबद्धता के लिए पुनः जाने जायेंगे।” राव साहब की बातों में बहुत दम है। 

तभी तो सं 1970 के बाद से 2024 के हिंडनबर्ग की खोज तक भारत में 100 से अधिक घोटाले हुए हैं और इन घोटालों में राजनेताओं के अलावे, सैकड़ों भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी लिप्त हैं। अब तो देश में आईएएस बनाने का कारखाना भी चल रहा है, भले कारखाने के स्वामी या उस कारखाने में कार्य करने वाले अधिकारियों, पदाधिकारियों में देखता हो अथवा नहीं। देश की बात बाद में करेंगे, महज दिल्ली शहर में सैकड़ों आईएएस कोचिंग केंद्र केंद्र हैं और औसतन 14लाख अभ्यर्थी प्रतिवर्ष कोचिंग लेते हैं। आंकड़े के हिसाब से प्रति अभ्यर्थी से औसतन 50,000 ₹ से 2,00,000 ₹ शुल्क लेता है कोचिंग संस्था। कहानी को सरल बनाने के लिए हम औसतन 1,50,000 ₹ आंकते हैं। यानी 14,00,000 (अभ्यर्थियों की संख्या) x ₹ 1,50,000 रुपये प्रति अभ्यर्थी। यानी कुल: ₹ 210000000000 का व्यवसाय है कोचिंग केंद्र। इन कोचिंग केंद्रों के कितने छात्र-छात्राओं का नाम संघ लोक सेवा आयोग के बाहर प्रकाशित होता है अंतिम सूची में, यह गहन शोध का विषय है। खैर। 

आज़ादी के कोई तीन साल बाद एक घोटाला सन 1950 में पहला घोटाला हुआ था और इस घोटाले में कलकत्ता के हरिदास मूंदड़ा मुख्य अभियुक्त थे। स्वतंत्र भारत का पहला वित्तीय घोटाला था। मूंदड़ा कलकत्ता के एक स्टॉक सट्टेबाज थे। इस अनियमितता को 1958 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के फ़िरोज़ गांधी उजागर किये थे । फिरोज गांधी भारत की संसद में रायबरेली सीट का प्रतिनिधित्व करते थे उन दिनों और उनकी शादी तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी से हो गई थी। सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में नेहरू चाहते थे कि एलआईसी मामले को चुपचाप निपटाया जाए क्योंकि इससे सरकार की छवि ख़राब हो सकती थी।

उन दिनों फिरोज गांधी रायसीना रोड के नुक्कड़ पर स्थित 1, रायसीना रोड में रहते थे। आज 1, रायसीना रोड में प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया है। फ़िरोज़ गांधी उस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पीछे प्राथमिक शक्ति थे, जिसके परिणामस्वरूप 1956 में भारत के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक, राम किशन डालमिया को अपनी जीवन बीमा कंपनी को धोखा देने के लिए कारावास में डाल दिया गया था। इसके बाद, संसद ने 19 जून 1956 को भारतीय जीवन बीमा अधिनियम पारित किया, जिसके तहत 245 संस्थानों का राष्ट्रीयकरण किया गया और जीवन बीमा निगम के तहत समेकित किया गया। इसलिए, उन्होंने एलआईसी को “संसद के बच्चे” कहा। यह प्रश्न भी संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में पूछा जा चूका है।

फिरोज गांधी इस मामले पर कोई नरमी नहीं बरती और मामले को सीधे संसद में ले गए। उन्होंने संसद में भाषण के दौरान कहा कि “संसद को अपने द्वारा बनाए गए सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली वित्तीय संस्थान, भारतीय जीवन बीमा निगम, जिसके सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की जांच के साथ-साथ सतर्कता और नियंत्रण रखना चाहिए।” मूंदड़ा कांड ने नौकरशाही, शेयर बाजार के सट्टेबाजों और छोटे दुष्ट व्यापारियों के बीच सांठगांठ को उजागर किया। यह घटना दामाद-ससुर के संबंधों को मानसिक रूप से विच्छेद कर दिया। उस कालखंड में भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री टी. टी. कृष्णामाचारी को इस्तीफा देना पड़ा।

मूंदड़ा कांड, नागरवाला कांड, चारा घोटाला, बोफोर्स, इंडियन स्टॉक मार्केट स्केम, स्टाम्प पेपर कांड, मैच फिक्सिंग, जयललिता मामला, जलगाओं हाउसिंग स्केम, पुरुलिआ आर्म्स ड्राप, हवाला, ऑपरेशन वेस्ट एन्ड, केतन पारेख कांड, बेस्ट बेकरी कांड, ताज कॉरिडोर कांड, जेबीटी शिक्षक नियुक्ति स्कीम, हसन अली मनी लॉन्ड्रिंग कांड, 2जी स्पेक्ट्रम कांड, सत्यम कांड, आदर्श हाउसिंग, बलकेरी पोर्ट कांड, यूपी सैंड घोटाला, व्यापम कांड, रेलवे घूस कांड, एनएसई को-लोकेशन कांड, पीएनबी कांड, नीरव मोदी कांड सहित सन 1950 के बाद भारत में अब तक 100 से अधिक वित्तीय काण्ड हुआ है।

देश के सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ प्रदेशों के उच्च न्यायालय के रास्ते इन मुकदमों को देखने-सुनने वाली अदालतों में आज भी कई हज़ार लाल वस्त्र में बंधे गठरियों में मुकदमों का भविष्य बंद पड़ा होगा। कई मामलों में अदालत का निर्णय हो गया होगा, कई मालमों में निर्णय लिखने हेतु प्रतीक्षा कर रहा होगा। कई मामले में अभियुक्त अंतिम सांस लेकर ईश्वर की अदालत में पहुँच गए होंगे, तो कई न्यायालय के फैसले का सम्मान करते आम जीवन जी रहे होंगे। कई नेता बन गए होंगे तो कई अधिकारी – पदाधिकारियों के साथ मिलकर कोई दूसरा काम शुरू कर दिए होंगे।  

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समय दूर नहीं है जब विश्व के अख़बारों में भारत का नाम स्कैम्स, घोटाला, घपला का देश कहा जायेगा। लेकिन इन घोटालों में, घपलो में राजनेता तो मुख्य हाथ तो होता ही है, भारतवर्ष में संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित और प्रतिष्ठित परीक्षा, जो भारतोय प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारिओं को जन्म देता है, उन अधिकारियों का हाथ सर्वोपरि होता है। देश में कोई भी घोटाला या स्केम इन प्रशासनिक अधिकारियों, चाहे वे आईएएस हो, आईपीएस हो, आईआरएस हों या किसी भी सेवा और कैडर के हों, के मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।

अगर देश में यह तथाकथित प्रशासनिक अधिकारी ईमानदार हो जाएँ, कर्तव्यनिष्ठ हो जाएँ, अपने पद की गरिमा को समझें, अपनी सत्यनिष्ठा को समझें, अपनी योग्यता को समझें, उनके प्रति भारत के लोगों के विश्वास को समझें तो शायद कोई भी राजनेता इस तरह के भ्रष्टाचार या स्केम को जन्म नहीं दे सकता है। किसी बीज को अंकुरित होने के लिए मिट्टी, पानी या मौसम की जरुरत होती है। भारत में ये सभी प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (अपवाद छोड़कर) उसी मिट्टी, पानी और मौसम का कार्य करते हैं।

विगत दिनों भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के अध्यक्ष सुश्री माधाबी पुरी बुच का नाम हिंडनबर्ग खोज के तहत एक स्केम में आया है । इनपर छह आरोप लगाए गए हैं। उन आरोपों से सुश्री बुच के साथ-साथ उनके पति भी विवादों के दायरे में हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च ने बुच दंपत्ति पर अडानी स्टॉक हेराफेरी मामले में अपनी ताकत का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। इन आरोपों के कारण सुश्री बुच विगत सप्ताह दिल्ली के रायसीना हिल पर वित्त मंत्रालय के अलावे कई अन्य संवेदनशील कार्यालयों में भी प्रवेश ली जो आम तौर पर संदेहास्पद स्थिति में होता है। खैर। 

रायसीना हिल पर सुश्री बुच के विरुद्ध तत्काल किसी भी प्रकार का अनुशासनिक कार्रवाई करने के मामले में विचारधारा दो फांक में बंटा है। एक पक्ष का कहना है कि चुकि यह बात प्रत्यक्ष रूप से अदानी से सम्बंधित है, और अदानी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के बहुत करीबी हैं, वैसी स्थति में  इस बात की भी चर्चा है कि बुच दंपत्ति हिंडनबर्ग खुलासे से भी सेबी प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है। जबकि दूसरा पक्ष यह कहता है कि अन्य घोटालों के तरह यह भी एक घोटालों के संख्या में जुड़ जायेगा। 

दो वर्ष पूर्व नरेंद्र मोदी की सरकार सुश्री माधबी पुरी बुच को तीन साल की अवधि के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड का नया अध्यक्ष बनाया था। वह सेबी अध्यक्ष बनने वाली निजी क्षेत्र की पहली महिला और व्यक्ति हैं। बुच पिछले साल तक सेबी सेबी में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में कार्यरत थीं और उससे पहले शंघाई में न्यू डेवलपमेंट बैंक में कार्यरत थीं। वह सेबी के नए अध्यक्ष के रूप में अजय त्यागी (सेवानिवृत्त आईएएस: 1984: एचपी) का स्थान लीं। त्यागी को 1 मार्च 2017 को तीन साल की अवधि के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद, उन्हें छह महीने का विस्तार दिया गया और बाद में अगस्त 2020 में उनका कार्यकाल 18 महीने बढ़ा दिया गया।

रायसीना हिल के सूत्रों के अनुसार सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में सुश्री माधबी पुरी बुच की नियुक्ति ने सेबी प्रमुख के चयन से संबंधित एक दिलचस्प पहलू है जब जिसमें अजय त्यागी विजेता के रूप में उभरे। बहुत कम लोग जानते हैं कि अंतिम चरण में सेबी प्रमुख पद की दौड़ त्यागी और सुश्री बुच के बीच थी। हालांकि, अधिकांश मीडिया रिपोर्ट में यह अनुमान लगाती रहीं कि बिजली सचिव पी के पुजारी (IAS: 1981: GJ) या DEA सचिव शक्तिकांत दास (IAS: 1981: TN) को इस पद के लिए चुना जा सकता है। कहा जाता है कि उस समय सेबी प्रमुख के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए अंतिम पैनल में केवल दो नाम थे – पहला: अजय त्यागी और दूसरा: सुश्री बुचोन। सुश्री बुच इस पद के लिए एक गंभीर दावेदार थीं। चूंकि त्यागी विजयी हुए थे, इसलिए शीर्ष पर यह उचित माना गया कि यह सेबी के व्यापक हित में होगा यदि सुश्री बुच को शेयर बाजार नियामक का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त किया गया। 

बहरहाल, एगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड की संस्थापक सदस्य सुश्री बुच न्यू डेवलपमेंट बैंक (शंघाई) में कार्यरत थी । इससे पहले उन्होंने आईसीआईसीआई समूह की वित्तीय सेवा शाखा के सीईओ और एमडी के रूप में भी काम किया था और व्यक्तिगत कारणों से और सिंगापुर में स्थानांतरित होने के लिए 2011 में आईसीआईसीआई छोड़ दिया था। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि उनके पति धवल बुच को कॉर्पोरेट जगत के सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों में से एक माना जाता है और वह वैश्विक एफएमसीजी प्रमुख यूनिलीवर के साथ सिंगापुर में तैनात हैं और हरीश मनवानी की टीम का हिस्सा हैं जो एशिया, अफ्रीका के लिए कंपनी के कारोबार का नेतृत्व कर रहे हैं। और कुछ अन्य क्षेत्र। बुच पहले यूनिलीवर की वैश्विक टीम का हिस्सा थे और यूके में स्थित थे।

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वापस आते हैं आईएएस अधिकारियों के मामले में। भारतीय रिजर्व बैंक के स्थापना के बाद 1 अप्रैल 1935 से अब तक 25 गवर्नर हुए – ओस्बोर्न स्मिथ, जेम्स ब्रैड टेलर, सीडी देशमुख, बेनेगल रामा राव, केजी आंबेडकर, एचवीआर लेंगर, पीसी भट्टाचार्य, लक्ष्मीकांत झा, बीएन अदरकर, सरुक्काई जगन्नाथ, एनसी सेनगुप्ता, के आर पूरी, एम नरसिम्हन, आईजी पटेल, मनमोहन सिंह, अमिताभ घोष, आरएन मल्होत्रा, एस वेंकटरमन, सी रंगराजन, विमल जालान, वीवी रेड्डी, डी सुब्बाराव, रघुराम राजन, उर्जित पटेल और शक्तिकांत दास। रिजर्व बैंक के 22 वे गवर्नर डी सुब्बाराव पिछले दिनों एक किताब – Just A Mercenary: Notes From My Life & Career – का लोकार्पण किये। सुब्बाराव संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित 1972 बैच के प्रशासनिक सेवा की परीक्षा के प्रथम स्थान धारक थे और उन्हें आंध्र प्रदेश कैडर मिला था। 

इस किताब के लोकार्पण के बाद FORTUNE INDIA को दिए गए एक साक्षात्कार में सुब्बाराव ने कहा कि सं 1950 से 1970 के दशक तक आईएएस अधिकारी अपनी क्षमता (कंपीटेंस), ईमानदारी (इंटिग्रिटी) अपने प्रतिबद्धता (कमिटमेंट्स) के लिए विख्यात थे। लेकिन आज उनकी प्रतिष्ठा उनकी अयोग्यता (इनेप्टीच्यूड), अकुशलता (इनएफ़्फीसिएन्सी) और भ्रष्टाचार में बदल गई है।  आज 2024 हो गया है यानी 52 साल में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की प्रतिष्ठा इतनी ख़राब हो गयी है।

उन्होंने कहा: “Currently, 25% of IAS officers are either corrupt, incompetent, or inefficient. The middle 50% started well but have become complacent, while only the top 25% are truly delivering. Ideally, we need 75% to be effective. The problem lies in the wrong incentives – no rewards for good performance and no penalties for no performance. Some officers blame politicians for their inability to deliver, but if IAS officers stood united, politicians would not be able to manipulate them. The entire service has suffered because of this.” 

शासन और सेवा के सिद्धांतों को कायम रखने की जिम्मेदारी संभालने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को अक्सर ‘स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया’ के रूप में जाना जाता है, यह शब्द सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा राष्ट्रीय अखंडता बनाए रखने और नीति को लागू करने में उनकी अपरिहार्य भूमिका को दर्शाने के लिए गढ़ा गया था। लेकिन भारत के गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय से जुड़े सभी जान संस्थानों में आज भी सैकड़ों ऐसे फ़ाइल संसथान और अदालत का यात्रा कर रहे हैं, जिसमें सैकड़ों भारतीय और प्रशासनिक सेवा के अधिकारीयों का नाम उल्लिखित है – अभियुक्त के रूप में।

छत्तीसगढ़ कैडर के 2009 बैच के आईएएस अधिकारी समीर विश्नोई को प्रवर्तन निदेशालय ने खनन कार्यों के लिए रिश्वत वसूली से जुड़े बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया था। उनके निर्देश के तहत, खनिजों को भेजने के लिए मैन्युअल अनुमोदन प्रक्रिया को फिर से शुरू किया गया, जिससे परिवहन परमिट के लिए लेवी के संग्रह में व्यापक भ्रष्टाचार हुआ। 16 महीने की अवधि में, कथित तौर पर रिश्वत के रूप में ₹500 करोड़ से अधिक एकत्र किया गया था।

झारखंड कैडर की 2000 बैच की आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल को प्रवर्तन निदेशालय ने मनरेगा फंड के गबन से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था। उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट ने खुलासा किया कि छापे के दौरान बरामद की गई बड़ी मात्रा में नकदी उनकी थी, जिसका इस्तेमाल संपत्ति खरीदने और रिश्वत देने के लिए किया गया था। आरोपों में ग्रामीण विकास परियोजना के लिए बड़ी रकम का दुरुपयोग शामिल है। 

गुजरात कैडर के 2011 बैच के आईएएस अधिकारी के राजेश को रिश्वत मामले में शामिल होने के आरोप में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने गिरफ्तार किया था। यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने बंदूक लाइसेंस जारी करने के लिए रिश्वत ली और सुरेंद्रनगर जिले के कलेक्टर के रूप में कार्य करते हुए संदिग्ध भूमि सौदों में शामिल थे। उनकी गिरफ्तारी के बाद सिलसिलेवार छापेमारी की गई, जिसमें महत्वपूर्ण आपत्तिजनक सबूत सामने आए।उत्तर प्रदेश कैडर के नीरा यादव उत्तर प्रदेश और एनसीआर में विभिन्न भूमि घोटालों में शामिल थी, वह अक्सर बड़ी रकम के बदले राजनेताओं और व्यापारियों को पॉश इलाकों में भूमि भूखंड आवंटित करती थी। घनिष्ठ राजनीतिक संपर्क बनाए रखने के बावजूद, उन्हें अंततः 2017 में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति रखने के लिए दोषी ठहराया गया और दो साल की जेल की सजा सुनाई गई। 

उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी राकेश कुमार जैन को भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण 2010 में निलंबन और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा। उन पर विशेष रूप से वाणिज्य विभाग के निदेशक के रूप में कार्य करते हुए कुल ₹7.5 करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। यह आरोप व्यक्तिगत लाभ के बदले में अवैध लेनदेन को सुविधाजनक बनाने में उनकी संलिप्तता से उपजे हैं।

नोएडा में ₹4000 करोड़ के भूमि घोटाले में शामिल उत्तर प्रदेश कैडर के राकेश बहादुर को 2009 में निलंबित कर दिया गया था। इन आरोपों के बावजूद, राज्य सरकार में बदलाव के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया और नोएडा विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। 

छत्तीसगढ़ कैडर के राज्य के कृषि सचिव के रूप में, बाबूलाल अग्रवाल के पास आईटी छापे के दौरान ₹500 करोड़ से अधिक की संपत्ति पाई गई, जिसमें 446 बेनामी बैंक खातों में पैसा और हवाला लेनदेन के लिए इस्तेमाल की गई 16 शेल कंपनियों का स्वामित्व शामिल था। 2010 में उनके निलंबन के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया था।

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हिमाचल प्रदेश कैडर के और मुख्यमंत्री के प्रधान निजी सचिव के रूप में कार्यरत सुभाष अहलूवालिया पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने की जांच की गई थी। उन्हें और उनकी पत्नी को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा निलंबित कर दिया गया और गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि बाद में विभागीय जांच में मंजूरी के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया। 

राजस्थान कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और प्रमुख सचिव (खान) अशोक सिंघवी को राजस्थान के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने ₹2.55 करोड़ के भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तार किया था। यह रिश्वत कथित तौर पर बंद खदानों को फिर से खोलने की अनुमति देने के लिए थी, जिससे छापेमारी के दौरान ₹3.82 करोड़ की अवैध नकदी जब्त हुई।

तमिलनाडु कैडर के धर्मपुरी के जिला कलेक्टर के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान कथित भ्रष्टाचार के लिए सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय द्वारा एस मालारविज़ी की जांच की गई थी। उन पर एक आपराधिक साजिश में शामिल होने का आरोप है जिसके कारण सरकारी धन से ₹1.31 करोड़ का दुरुपयोग हुआ।

वापस चलते हैं सेबी में। सेबी के गठन के बाद बुच 10 वें अध्यक्ष हैं। सबसे पहले आये डॉ. एस ए दवे, जी वी रामकृष्णा, एसएस नाडकर्णी, डीआर मेहता, जीएन बाजपेयी, एम दामोदरन, सी बी भावे, यु के सिन्हा, अजय त्यागी और सुश्री माधबी पुरी बुच। पिछले कई अध्यक्षों के कालखंड में कई घोटाले हुए जो उन दिनों के अखबारों के प्रथम पृष्ठ से लेकर पत्रिकाओं के अंतिम पृष्ठ तक विराजमान रहे।  टीवी, रेडियो या इंटरनेट पर उनकी उपस्थिति तो थी ही। लगभग 18 महीने पहले हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह के भीतर स्टॉक हेरफेर के बारे में चिंता जताई थी। अब अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर ने नया दावा किया है कि इस घोटाले में भारत के शेयर बाजार नियामक सेबी का हाथ है। हिंडनबर्ग ने इस घोटाले को “अडानी मनी साइफ़ोनिंग स्कैंडल” नाम दिया है।

बहरहाल, यह आरोप लगाया गया है कि हिंडनबर्ग रिसर्च ने सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर जटिल व्यवस्थाओं के माध्यम से बरमूडा और मॉरीशस स्थित ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी रखने का आरोप लगाया है। रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि 2017 में माधबी पुरी बुच को पूर्णकालिक सेबी सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने से कुछ हफ्ते पहले, उनके पति ने मॉरीशस फंड प्रशासक से उन्हें “खातों को संचालित करने के लिए अधिकृत एकमात्र व्यक्ति” बनाने का अनुरोध किया था।
यह भी कहा जाता है कि हिंडनबर्ग ने मॉरीशस में अडानी समूह के छिपे हुए ऑफशोर संस्थाओं के कथित नेटवर्क की गहन जांच नहीं करने के लिए सेबी की आलोचना की। उन्होंने दावा किया कि अदानी के एक निदेशक ने इंडिया इंफोलाइन लिमिटेड (आईआईएफएल) के माध्यम से “आईपीई प्लस फंड” नामक एक छोटा ऑफशोर फंड स्थापित किया, जिसका इस्तेमाल कथित तौर पर गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी ने अदानी समूह से पैसा निकालने और भारतीय बाजारों में निवेश करने के लिए किया था।

अब तक प्रकाशित ख़बरों के अनुसार, हिंडनबर्ग ने यह भी दावा किया है कि सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने अडानी समूह की कथित मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों से जुड़े ऑफशोर फंड में निवेश किया था। उन्होंने बताया कि माधाबी पुरी बुच के पास एगोरा पार्टनर्स नामक एक अपतटीय सिंगापुर परामर्श फर्म में 100% हिस्सेदारी थी, जब तक कि उन्होंने सेबी अध्यक्ष बनने के दो सप्ताह बाद ही इसे अपने पति को हस्तांतरित नहीं कर दिया।

हिंडनबर्ग ने दावा किया कि जब माधाबी पुरी बुच सेबी के अधिकारी थे, उनके पति को ब्लैकस्टोन के वरिष्ठ सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था, भले ही उन्हें रियल एस्टेट या पूंजी बाजार में कोई पूर्व अनुभव नहीं था। अपने कार्यकाल के दौरान, ब्लैकस्टोन ने भारत में दो प्रमुख रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (आरईआईटी) को प्रायोजित किया, जिन्हें आईपीओ के लिए सेबी की मंजूरी मिली। हिंडनबर्ग ने यह भी नोट किया कि सेबी ने इस दौरान भारत के आरईआईटी नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव किए, जिससे संभावित रूप से ब्लैकस्टोन को फायदा हुआ।यह भी कहा जाता है कि, हिंडनबर्ग ने माधाबी पुरी बुच पर अपने पति के ब्लैकस्टोन से संबंध का खुलासा किए बिना उद्योग सम्मेलनों में आरईआईटी को बढ़ावा देने का आरोप लगाया, जिसे परिसंपत्ति वर्ग से लाभ होने वाला था। हिंडनबर्ग ने बताया कि माधबी पुरी बुच के पास कथित तौर पर एक भारतीय कंसल्टिंग कंपनी, एगोरा एडवाइजरी का 99% स्वामित्व था, जिसने सेबी द्वारा बताए गए उनके वेतन की तुलना में कंसल्टिंग से काफी अधिक कमाई की। 

बहरहाल, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अडानी के अपतटीय शेयरधारकों की फंडिंग की सेबी की जांच में “कोई नतीजा नहीं निकला।” हिंडनबर्ग ने सुझाव दिया कि सेबी को अपने अध्यक्ष की संलिप्तता को देखते हुए अपनी जांच शुरू करनी चाहिए थी।हालाँकि, माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने इन आरोपों का दृढ़ता से खंडन किया है। उन्होंने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को “निराधार,” “झूठा,” और उनके “चरित्र हनन” का प्रयास बताया।

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