श्री राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे 🌺 सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने 🙏

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रामलल्ला की प्रारंभिक मूर्ति, स्थान

* ऐसे अवसर पर भवुक होना स्वाभाविक है। भाव-विह्वल होना प्रकृति का नियम है। आज भारतभूमि पर अथवा इस भूमि से दूर अपने – अपने जीवन यापन करने के लिए जेद्दोजेहद कर रहे करोड़ों ‘आस्तिकों’ के लिए, जिन्हे राम से, मर्यादा से, पुरुषोत्तम से अगाध प्रेम और समर्पण है, पहली बार जीवन में कुछ अलग तरह के मनोभाव से गुजर रहे होंगे। खासकर भारत केव प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जिन्हे ‘समय’ और उनका प्रारब्ध’ उन्हें सभी भारतवासियों का प्रतिनिधित्व करने का निमित्त बनाया है। ये एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। हे राम !! हे मर्यादा !! ये मर्यादित !! हे पुरुषोत्तम !! हे दशरथ पुत्र ……

* आज हम उस ऐतिहासिक क्षण में प्रवेश कर रहे हैं जब कुछ घंटों बाद गर्भ-गृह में श्रीराम लल्ला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम पूर्ण होगा। विभिन्न राज्यों के लोग लगातार जल, मिट्टी, सोना, चांदी, मणियां, कपड़े, आभूषण, विशाल घंटे, ढोल, सुगंध इत्यादि के साथ आ रहे हैं। उनमें से सबसे उल्लेखनीय है माँ जानकी के मायके द्वारा भेजे गए भार (एक बेटी के घर स्थापना के समय भेजे जाने वाले उपहार) जो जनकपुर (नेपाल) और सीतामढ़ी (बिहार) के ननिहाल से अयोध्या आये हैं । रायपुर, दंडकारण्य क्षेत्र स्थित प्रभु के ननिहाल से भी विभिन्न प्रकार के आभूषणों आदि के उपहार भेजे गए हैं।

* भारत के इतिहास में पहली बार पहाड़ों, वनों, तटीय क्षेत्रों, द्वीपों आदि के वासियों द्वारा एक स्थान पर ऐसे किसी समारोह में प्रतिभाग किया जा रहा है जो अपने आप में अद्वितीय होगा। शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, पात्य, सिख, बौद्ध, जैन, दशनाम शंकर, रामानंद, रामानुज, निम्बार्क, माध्व, विष्णु नामी, रामसनेही, घिसापंथ, गरीबदासी, गौड़ीय, कबीरपंथी, वाल्मीकि, शंकरदेव (असम), माधव देव, इस्कॉन, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, भारत सेवाश्रम संघ, गायत्री परिवार, अनुकूल चंद्र ठाकुर परंपरा, ओडिशा के महिमा समाज, अकाली, निरंकारी, नामधारी (पंजाब), राधास्वामी और स्वामीनारायण, वारकरी, वीर शैव इत्यादि कई सम्मानित परंपराएँ इसमें भाग लेंगी।

* भारतीय आध्यात्मिकता, धर्म, संप्रदाय, पूजा पद्धति, परंपरा के सभी विद्यालयों के आचार्य, 150 से अधिक परंपराओं के संत, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत, नागा सहित 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी, तातवासी, द्वीपवासी आदिवासी परंपराओं के प्रमुख व्यक्तियों की कार्यक्रम में उपस्थिति रहेगी, जो श्री राम मंदिर परिसर में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के दर्शन हेतु पधारेंगे। प्राण प्रतिष्ठा भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूजनीय सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी, उत्तर प्रदेश के आदरणीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में होगी।

हे राम !! हे मर्यादा !! हे पुरुषोत्तम

अयोध्या / नई दिल्ली : कहते हैं उत्तरा के गर्भ में जब अभिमन्यु थे, चक्रव्यूह तोड़ने के बारे में चर्चाएं हो रही थी। कुछ क्षण के लिए उत्तरा की आँखें लग गयी और अभिमन्यु चक्रव्यूह तोड़ने सम्बन्धी संवाद को नहीं सुन सका। समयांतराल महाभारत में अभिमन्यु का क्या हश्र हुआ, हम सभी जानते हैं। यही अभिमन्यु का प्रारब्ध था। ईश्वर की रचना भी कुछ वैसी ही थी।

लेकिन जब श्रीमती हीराबेन के गर्भ में एक बालक का अभ्युदय हुआ, हीराबेन का मातृहृदय ईश्वर के प्रति समर्पित था। वह सजग थी और ईश्वर तथा समय तो सजग थे ही। अन्यथा अगर ऐसा नहीं होता तो भारत के राजनीतिक मानचित्र पर जिस व्यक्ति को किनार-दरकिनार करने वालों की किल्लत नहीं थी, वह शनैः शनैः भारत ही नहीं, विश्व के मानचित्र पर भारत राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कैसे करता। दशरथ पुत्र राम की जन्मभूमि पर अनंतकाल से हो रही राजनीति को उखाड़ फेंक कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम को कैसे स्थापित करता। यही समय है। यही प्रारब्ध है और यही ईश्वर चाहते भी थे।

आप माने अथवा नहीं। यह भी संभव है कि इन शब्दों को पढ़ने के बाद आपके मन में अनेकानेक ‘नकारात्मक’ सोच मेरे प्रति आने लगे। अनेकानेक ‘नकारात्मक शब्दों से मेरा अलंकरण आप करने लगें। लेकिन मेरे बाबूजी कहते थे कि ‘जीवन में ईश्वर और समय द्वारा लिखित किसी के प्रारब्ध को कोई बदल नहीं सकता है, छीन नहीं सकता है। आज ही नहीं आने वाले कई शताब्दियों तक जब भी ‘विष्णु और महेश’ का नाम लिया जायेगा, जब भी बनारस और अयोध्या का उच्चरण लोग करेंगे, स्वतः वर्त्तमान काल के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ का नाम पर्यायवाची हो जायेगा ।

इसे मैं अपना भी प्रारब्ध मानता हूँ कि आज मैं रामजन्म स्थान पर बने ऐतिहासिक मंदिर के बारे में कहानी लिख रहा हूँ। चौंतीस वर्ष पहले जब इसका बीजारोपरान हुआ था तत्कालीन नेता लालकृष्ण आडवाणी के हाथों सोमनाथ से, मैं चश्मदीद गवाह था धनबाद में। इस स्थान के बारे में कहानियों की श्रृंखला अनंत है, लेकिन जो तथ्य मेरे प्रारब्ध में थे, जो शब्द मुझे लिखना था, आज तक किसी ने नहीं लिखा। आज बाबूजी की बातें बहुत याद आ रही है। आज 2024 साल का जनवरी महीना का 18 तारीख है। आज से 75 वर्ष पहले अयोध्या में जिस विवाद की शुरुआत हुई थी, उस विवाद का अंत आज से चार दिवस बाद हो जायेगा। कौशल्या-दशरथ पुत्र राम अपने जन्मस्थान पर विराजेंगे।

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प्रारब्ध की बात देखिये। जिस दिन रामजन्म भूमि – बाबरी मस्जिद विवाद की शुरुआत हुई थी, यानी 22/23 दिसंबर, 1949, उस तिथि को श्रीमती हीराबेन मोदी के गर्भ में एक बालक का बीजारोपन हो गया था। सन 1949 की उस तारीख के नौ-माह बाद 17 सितम्बर, 1950 को हुआ नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ।

मनुष्य योनि में देवकी पुत्र कृष्ण का जन्म भी हुआ था – एक उद्येश्य की पूर्ति करने के लिए। कृष्ण तो विष्णु के अवतार थे। लेकिन मोदी मनुष्य योनि में एक ऐसे अवतार हैं जो भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में ‘राम के प्रति विश्वास और आस्था रखने वालों की ओर से दशरथ पुत्र राम को ससम्मान उनकी जन्मभूमि पर विराजने के लिए अपने जीवन उद्दैश्य को पूरा किया।

हे दशरथ पुत्र !! हम अपने कर्तब्य का निर्वहन करने को सज्ज हैं

राजनीतिक दृष्टि से आधुनिक भारत के राजनेतागण चाहे इस सम्पूर्ण मामले को जिन रंगों में रंगे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस स्थान के विवाद में आने के साथ ही एक बालक का गर्भ में अभ्युदय हो गया था जो राम को लाने का मार्ग प्रशस्त करेगा, किया। आज ही नहीं, आने वाले कई सदियों तक, जब भी भगवान् राम की बात होगी, अयोध्या की बात होगी, राम जन्मभूमि की बात होगी, देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का नाम स्वतः लोगों के मुख पर आ जायेगा। आप माने अथवा नहीं।

विगत दिनों श्री राम जन्मभूमि मंदिर’ का शिलान्यास की गयी थी तो इसकी शुरुआत ‘‘सियावर रामचंद्र की जय’’ के उद्घोष से की गई । वह उद्घोष सिर्फ राम की नगरी में ही नहीं, बल्कि इसकी गूंज पूरे विश्व में सुनाई दे रही है, आज भी । देशवासियों को और विश्व में फैले करोड़ों राम भक्तों को उस ‘‘पवित्र’’ अवसर पर ‘‘कोटि कोटि’’ बधाई दी।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के अनुसार जिस प्रकार स्वतंत्रता दिवस लाखों बलिदानों और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है, उसी तरह राम मंदिर का निर्माण कई पीढ़ियों के अखंड तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है। यह मंदिर राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा तथा करोड़ों लोगों की सामूहिक शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। यह आने वाली पीढ़ियों को आस्था और संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा। राम मंदिर के लिए कई सदियों तक कई पीढ़ियों ने लगातार प्रयास किया और आज का यह दिन उसी तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है।’’ राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में अर्पण भी था, तर्पण भी था, संघर्ष भी था, संकल्प भी था।

मोदी ने कहा था बरसों से टाट और टेंट के नीचे रह रहे ‘‘हमारे रामलला’’ के लिए अब एक भव्य मंदिर में रहेंगे। उनके अनुसार ‘‘टूटना और फिर उठ खड़ा होना, सदियों से चल रहे इस व्यतिक्रम से राम जन्मभूमि अब मुक्त होगा ‘जिनके त्याग, बलिदान और संघर्ष से आज ये स्वप्न साकार हो रहा है, जिनकी तपस्या राम मंदिर में नींव की तरह जुड़ी हुई है। मैं उन सबको आज 130 करोड़ देशवासियों की तरफ से नमन करता हूं। राम का मंदिर भारतीय संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा, हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक बनेगा, राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा। ये मंदिर करोड़ों-करोड़ों लोगों की सामूहिक शक्ति का भी प्रतीक बनेगा।

बहरहाल, प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने 22 जनवरी को अयोध्या धाम में मंदिर में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 11 दिवसीय विशेष अनुष्ठान शुरू किया। उन्होंने कहा था कि “ये एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। जैसा हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है, हमें ईश्वर के यज्ञ के लिए, आराधना के लिए, स्वयं में भी दैवीय चेतना जागृत करनी होती है। इसके लिए शास्त्रों में व्रत और कठोर नियम बताए गए हैं, जिन्हें प्राण प्रतिष्ठा से पहले पालन करना होता है।

एक भावनात्मक संदेश में प्रधानमंत्री ने प्राण प्रतिष्ठा से पहले पूरे देश में राम भक्ति की भावना का उल्लेख किया। इस क्षण को ईश्वर का आशीर्वाद बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, मैं भावुक हूँ,भाव-विह्वल हूँ! मैं पहली बार जीवन में इस तरह के मनोभाव से गुजर रहा हूँ, मैं एक अलग ही भाव-भक्ति की अनुभूति कर रहा हूं। मेरे अंतर्मन की ये भाव-यात्रा, मेरे लिए अभिव्यक्ति का नहीं, अनुभूति का अवसर है। चाहते हुए भी मैं इसकी गहनता, व्यापकता और तीव्रता को शब्दों में बांध नहीं पा रहा हूं। आप भी मेरी स्थिति भली भाँति समझ सकते हैं।”

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प्रारब्ध और विश्वास

प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर के लिए आभार व्‍यक्‍त किया, ”मुझे उस सपने के पूरा होने के समय उपस्थित होने का सौभाग्य मिला है, जिस स्वप्न को अनेकों पीढ़ियों ने वर्षों तक एक संकल्प की तरह अपने हृदय में जिया, मुझे उसकी सिद्धि के समय उपस्थित होने का सौभाग्य मिला है। प्रभु ने मुझे सभी भारतवासियों का प्रतिनिधित्व करने का निमित्त बनाया है। ये एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है।”इस पवित्र अवसर पर ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों और परमात्‍मा का आशीर्वाद मांगा और खुशी व्यक्त की कि वह नासिक धाम- पंचवटी से अनुष्ठान शुरू करेंगे जहां प्रभु श्रीराम ने काफी समय बिताया था।

प्रधानमंत्री ने कहा, “शरीर के रूप में, तो मैं उस पवित्र पल का साक्षी बनूंगा ही, लेकिन मेरे मन में, मेरे हृदय के हर स्पंदन में, 140 करोड़ भारतीय मेरे साथ होंगे। आप मेरे साथ होंगे…हर राम भक्त मेरे साथ होगा। और वो चैतन्य पल, हम सबकी सांझी अनुभूति होगी। मैं अपने साथ राम मंदिर के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले अनगिनत व्यक्तित्वों की प्रेरणा लेकर जाऊंगा। हम सब इस सत्य को जानते हैं कि ईश्वर निराकार है। लेकिन ईश्वर, साकार रूप में भी हमारी आध्यात्मिक यात्रा को बल देते हैं। जनता-जनार्दन में ईश्वर का रूप होता है, ये मैंने साक्षात देखा है, महसूस किया है। लेकिन जब ईश्वर रूपी वही जनता शब्दों में अपनी भावनाएं प्रकट करती है, आशीर्वाद देती है, तो मुझमें भी नई ऊर्जा का संचार होता है। आज, मुझे आपके आशीर्वाद की आवश्यकता है।”

बहरहाल, 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की तैयारियां जोरों पर है। राम मंदिर का गर्भगृह कुछ ऐसे बनाया गया है कि 25 फीट दूर से श्रद्धालु भगवान राम की छवि निहार सकेंगे। दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी हैं। तीन मंजिला राम मंदिर पारंपरिक नागर शैली में बनाया गया है। मुख्य गर्भगृह में श्रीराम लला की मूर्ति है और पहली मंजिल पर श्री राम दरबार होगा। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अनुसार, राम मंदिर में 5 मंडप (हॉल) होंगे। इसमें नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना और कीर्तन मंडप।

रामलला का घर

देवताओं, देवी-देवताओं की मूर्तियां मंदिर के स्तंभों और दीवारों को सुशोभित करती हैं। 32 सीढ़ियां चढ़कर श्रद्धालु सिंहद्वार से प्रवेश कर सकेंगे। मंदिर के चारों तरफ आयताकार परकोटा रहेगा। मंदिर में दिव्यांग और बुजुर्ग तीर्थयात्री के लिए भी विशेष सुविधाएं हैं। रैंप और लिफ्ट भी हैं। मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि मंदिर के पास एक ऐतिहासिक कुआं (सीता कूप) है, जो प्राचीन काल का है। इसके अलावा, 25,000 लोगों की क्षमता वाला एक तीर्थयात्री सुविधा केंद्र (पीएफसी) का निर्माण किया जा रहा है। यह तीर्थयात्रियों के लिए चिकित्सा सुविधाएं और लॉकर सुविधा प्रदान करेगा।

मंदिर का पारंपरिक नागर शैली में निर्माण हुआ है । मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है। मंदिर तीन मंजिला है, जिसकी प्रत्येक मंजिल 20 फीट ऊंची है। इसमें कुल 392 खंभे हैं। 44 दरवाजे हैं। मुख्य गर्भगृह में भगवान श्रीराम का बचपन का स्वरूप (श्री राम लला की मूर्ति) है, जबकि पहली मंजिल पर श्रीराम का दरबार होगा। पांच मंडप (हॉल) – नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना और कीर्तन मंडप। मंदिर के चारों तरफ आयताकार परकोटा होगा।

चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर और चौड़ाई 14 फीट है। राम मंदिर परिसर के चारों कोनों पर चार मंदिर होंगे, इनमें सूर्य देव, देवी भगवती, गणेश भगवान और भगवान शिव को समर्पित होंगे। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा का मंदिर, जबकि दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर है। अन्य मंदिर महर्षि वाल्मिकी, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि अगस्त्य, महर्षि विश्वामित्र, निषाद राज, माता शबरी और देवी अहिल्या की पूज्य पत्नी को समर्पित रहेंगे। मंदिर में कहीं भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

रामलला का घर

इतिहास

* मीर बाक़ी बाबर के सिपहसलार 1528 – 29 में बाबरी मजदीद बनबाई। बाबर नाम में बाक़ी ताशकंडी के नाम से उल्लेख है। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि 1529 में बाबर ने उसे सेना से निकाला था। जबकि बाबरनामा में ज़िक्र है कि उसे छुट्टी पर भेजा गया था।

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* फ़्रांसीसी बुकानन एक ब्रिटिश सर्वेयर्थे जिन्होंने 1813 -14 में अपनी सर्वे रिपोर्ट में लिखी इसमें पहली बार ज़िक्र किया की अयोध्या में मस्जिद की दीवार पर शिलालेश मिला है जिसमे इसे बाबरी मस्जिद कहा गया है।

* 1885 में महंत रहुबर दास ने पहली बार मंदिर निर्माण के लिए फैजाबाद सिविल कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका ख़ारिज हो गई लेकिन इससे मंदिर निर्माण की क़ानूनी लड़ाई का रास्ता खुल गया।

* 1949 में मूर्तियाँ प्रकट होने के साथ परमहंश रामचंद्र दास का नाम चर्चा में आया। तब वे हिंदू सभा के नगर अध्यक्ष थे। 1990 में अयोध्या में कार सेवकों को जुटाया। 31 जुलाई 2003 को92 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

* 1949 मूर्तियाँ प्रकट होने के बाद दर्ज हुए fir में महंत अभिराम दस का भी नाम था। वे मूलतः बिहार के दरभंगा के थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था कि रामलला ने सपने में आकर अपने जन्म का सटीक स्थान बताया है।

* गोपाल सिंह विशारद ने रामलला के दर्शन और पूजन के व्यक्तिगत आधिकार पर 1950 में फैजाबाद कोर्ट में मुक़दमा दायर किया था। ये राम मंदिर विवाद के शुरुआती चार सिविल मुक़दमों में से एक था। 1986 में उनके निधन के बाद उनके बेटे राजेंद्र सिंह केस की पैरवी करते रहे।

* के के नायर 1949 में मूर्तियाँ प्रकट होने के वक्त फैजाबाद के ज़िलाधिकारी थे। राज्य सरकार और पंडित नेहरू के कहने पर नायर ने मूर्तियाँ नहीं हटाई थी। 1952 में अवकाश लेकर जनसंघ के टिकट पर बहराइच के सांसद बने। 7 सितंबर 1977 को उनका देहांत हो गया।

* मंदिर आंदोलन में सक्रिय महंत नृत्य गोपाल आंदोलन का जन्म 11 जून 1938 को मथुरा के कहौला में हुआ था। वे 1990 में कार सेवकों का नेतृत्व किए। ये श्री रामजन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं।

* 1946 में यूपी के बिजनौर में जन्मे चंपत राय आरएसएस से जुड़े है। संगठन के प्रचारक के तौर पर मंदिर आंदोलन को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई। आज वे रामजन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के महासचिव हैं।

* 1986 में राजीव गांधी ने गर्भ गृह का ताला खोलने का आदेश दिया था। सन 1991 में उनकी हत्या कर दी गई।

* 1990 में मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे। उन्हीं के आदेश पर 30 अक्तूबर 1990 को कार सेवकों पर गोलियाँ चली थी । अगले चुनाव में उनकी सरकार नहीं रही। विगत 10 अक्तूबर 2022 को उनका निधन हो गया।

* विश्व हिंदू परिषद के संस्थकों में एक थे अशोक सिंहल। बाबरी मस्जिद ढाँचे के टूटने पर दर्ज प्राथमिकी में इनका भी नाम था। विगत 17 नवम्बर 2015 को इनका निधन हो गया।

* सोमनाथ से लाल कृष्ण आडवाणी ने 25 सितम्बर 1989 को मंदिर के लिये रथ यात्रा शुरू की थी। प्राथमिकी में इनका भी नाम था। आज बीजेपी मार्गदर्शक मण्डल का हिस्सा हैं। आड़नी को पदयात्रा के बजाय रथयात्रा की सलाह प्रमोद महाजन ने थी।

* मुरली मनोहर जोशी मंदिर आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिये।

* नरसिम्हा राव के कार्यकाल में ही 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढाँचा गिराया गया था।

* कल्याण सिंह उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री थे जब ढाँचा गिराया गया था। उनका नाम उन 13 लोगों में था । ढाँचा गिरने के बाद उनकी सरकार को बर्खास्त कर दी गई।21 अगस्त 2021 को इनका देहांत हो गया।

* मंदिर आंदोलन में उमा भारती मुख्य वक्ताओं में रहीं।

* बतौर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही राममंदिर मामले की सुनवाई में तेज़ी आयी और 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर निर्माण को मंज़ूरी दे दी।

* सीबीआई कोर्ट के जज एस के यादव 30 सितंबर 2020 को बाबरी ढाँचा गिराए जाने वाले सभी 32 आरोपियों को बरी किया था। अवकाश के बाद वे उत्तर प्रदेश में उप लोकायुक्त बने।

* जस्टिस रंजन गोगाई ने आयोध्य मामले पर फ़ैसला देने वाली पाँच जजों वाली संविधान पीठ की अध्यक्षता की। 17 नबम्बर 2019 को अवकाश के बाद वे राज्य सभा में मनोनीत हुए।

* संविधान पीठ के सदस्य शरद अरविंद बोबडे जस्टिस गोगाई के बाद मुख्य न्यायाधीश बने। 23 अप्रैल 2021 को अवकाश के बाद वे महाराष्ट्र लॉ यूनिवर्सिटी नागपुर के चांसलर बने।

* अयोध्या पर बनी पीठ में जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ भी थे। आज वे मुख्य न्यायाधीश हैं।

* चौथे जज थे अशोक भूषण। 2021 में अवकाश के बाद वे नेशनल कंपनी लॉ अपीलीय ट्रिब्यूनल का चेयरपर्सन हैं। और अंत में पीठ के पाँचवे जज थे एस अब्दुल नज़ीर । जनवरी 2023 में अवकाश के बाद उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया।

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