सीतामढ़ी / दरभंगा / नई दिल्ली : कई शताब्दी बाद नए तेवर में अयोध्या में राम आ गए। उनके आने से पूरा भारत राष्ट्र राम मय हो गया है। लोग कह रहे हैं कि रोगियों के रोग दूर होते दिख रहे हैं। अपाहिज भी लंगड़ाकर ही सही, चलने का यत्न कर रहा है। गूंगा-बहरा भी ‘राम राम’ बोलने – सुनने की कोशिश कर रहा है। दिव्यांग भी उछलकर मंदिरों की घंटियों को बजने की कोशिश कर रहा है । दो पाया से लेकर चार पाया तक, सजीव से लेकर निर्जीव तक सभी के मुखमण्डलों पर प्रसन्नता दिख रही है – आखिर राम आ गए है। किसी के लिए राम बेटा हैं, तो किसी के लिए ‘जमाय’, किसी के लिए ‘आदर्श’ हैं तो किसी की लिए ‘मर्यादा’ – सभी अपने-अपने तरह से राम को अपना समर्पण दे रहे हैं। लेकिन जानकी कहाँ चली गयी?
विगत कई महीनों से, वर्षों से जब से राम के आने की सुगबुगाहट देश की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक गलियारों में, देश के राजनीतिक मानचित्र पर लिखे जाने लगे, सबों का ध्यान राम की ओर अटक गया। लाखों शब्द लिखे गए – कुछ पक्ष में, कुछ विपक्ष में, कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक – परन्तु ‘जानकी’ को सभी भूल गए। जानकी के बारे में पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण में रहने वाले भारत के लोग ही नहीं, जानकी के मायके मिथिला के लोग भी, मिथिला की महिलाएं भी ‘जानकी को याद’ नहीं की।, एक बार भी नहीं।
आज के पत्रकारों को, मिथिला के लोगों को (जो न्यूनतम 40 वर्ष के होंगे) शायद मालूम नहीं होगा कि तीन दशक पूर्व पटना के अख़बारों में प्रकाशित एक लेख मिथिला की महिलाओं को अश्रुपात कर दिया था। उस अखबार का कतरन काटकर लोग देवी-देवताओं के पास रख रहे थे – श्रद्धा स्वरुप। वैसे आज भी सुबह-सवेरे 10 . 30 बजे सहरसा-मनिहारी के बीच जानकी एक्सप्रेस छुक-छुक गाड़ी चलती हैं और इन दो स्थानों के बीच रहने वाले लोगों की सेवा करती हैं, पूर्व की तरह। लेकिन मुझे याद है कि नब्बे के दशक के उत्तरार्ध दरभंगा से आगे छोटी लाइन को बड़ी लाइन में बदलने के कारण मिथिला की जानकी एक्सप्रेस (इस ट्रेन का नाम माता सीता यानी जानकी के नाम पर है) के साथ जो व्यवहार हुआ था। ट्रेन को बंद कर दिया गया था, उसी तरह जिस तरह मिथिला में लड़कियों को स्वतंत्रता पूर्वं घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता है (अपवाद छोड़कर) ।
जानकी एक्सप्रेस के साथ हुए व्यवहार के मद्दे नजर पटना के एक वरिष्ठ पत्रकार श्री ज्ञानवर्धन मिश्र एक कहानी किये। वैसे कहानी जानकी एक्सप्रेस ट्रेन से सम्बंधित थी, लेकिन शब्दों का चुनाव और वाक्यों का विन्यास कुछ इस कदर था की पाठकों के ह्रदय को वेध दिया था, खास कर महिलाओं के ह्रदय को। पाठक ‘ट्रेन के साथ हुए व्यवहार’ को ”जानकी/सीता के साथ हुआ व्यवहार समझ रहे थे।
उन दिनों जानकी ट्रेन के बहाने ज्ञानवर्धन मिश्र की कहानी मिथिला के लोगों को, खासकर मिथिला की महिलाओं को द्रवीभूत कर दिया था । मेरी माँ कभी कभार अखबार पढ़ती थी। संयोगवश उन दिनों गाँव में थी और उस कहानी को पढ़ी थी। कहानी की मार्मिकता कुछ ऐसी थी कि गाँव-घर के लोग, खासकर महिलाएं, अखबार के उस स्थान को काट काट, लई ,(आटा को गरम कर चिपकाने में इस्तेमाल किया जाता है) से कूट (मोटा गत्ता) में साटकर अपने इष्ट देवी-देवता के पास भी रहे थे – जानकी के सम्मानार्थ। लेकिन आज भी वही प्रश्न है क्या जानकी को वह सम्मान मिला जिसकी वह हकदार थी ? शायद नहीं।

आज अयोध्या में राम अपने घर नए स्वरुप में आ गए। आश्चर्य की बात यह है कि आज भी मिथिला के लोग ‘जमाय’ के नाम को भले जप रहे हैं, बेटी ‘जानकी’ के लिए एक बार भी जयजयकार नहीं किये। मिथिला का प्रारब्ध यही है। हर घर में ‘जानकी’ एक नहीं कई हैं, लेकिन सभी ‘राम’ और ‘श्याम’ की आराधना करते हैं।
वैसे ‘जानकी’ भले ‘अयोध्या नरेश दशरथ की बहु हों, लेकिन मिथिला में जानकी तो बेटी थी, हैं भी, लेकिन ‘जानकी को वह स्थान नहीं मिला जिसकी वे हकदार थी, हकदार हैं। वैसे आज भी उत्तर बिहार के इस क्षेत्र में रहने वाले माता-पिता की नज़रों में उनके घरों में पलने वाली ‘जानकियों’ की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। विश्वास नहीं हो तो इस क्षेत्र में जितनी भी शैक्षणिक संस्थाएं हैं, स्वास्थ्य केंद्र हैं, सामाजिक दालान हैं, सांस्कृतिक गलियां हैं, कारावास में बंद पुरुषों के बंदी के कारण हैं – पड़ताल के लिए एक नजर घुमा लें। आप कल भी मूक-बधिर रहे, आगे भी रहेंगे।

आइये वापस अयोध्या चलते हैं। भारत के राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को अयोध्या के ऐतिहासिक स्थान पर इतिहास लिखने के लिए बधाई देते कहती हैं कि “माननीय प्रधानमंत्री जी, अयोध्या धाम में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के पावन अवसर पर शुभकामनाओं के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। मुझे विश्वास है कि यह ऐतिहासिक क्षण भारतीय विरासत एवं संस्कृति को और समृद्ध करने के साथ ही हमारी विकास यात्रा को नए उत्कर्ष पर ले जाएगा।” जानकी की चर्चा भारत के राष्ट्राध्यक्ष भी नहीं की।
प्रधानमंत्री को अपने शुभकामना सन्देश में उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि “आज श्री राम जन्मभूमि अयोध्या की ऐतिहासिक नगरी में आयोजित, युगांतरकारी भव्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के शुभ अवसर की हार्दिक शुभकामनाएं ! हर्ष और उल्लास से सराबोर यह अवसर देश के गौरव के प्रति राष्ट्र की असीम जागृत चेतना का द्योतक है। अपने संकल्प को सफलतापूर्वक सिद्ध करने पर, प्रधानमंत्री का कोटिशः अभिनंदन !”
वे आगे कहते हैं कि “22 जनवरी का यह दिन, हमारी सभ्यता के इतिहास में “दिव्यता के साथ साक्षात्कार” के क्षण के रूप में परिभाषित रहेगा। आज के दिन प्रभु श्री राम के क्षमा, सत्यनिष्ठा, पराक्रम, शालीनता, दया और करुणा जैसे सद्गुणों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लें जिससे हमारे चतुर्दिक शांति, सौहार्द, शुचिता, शुभता और विद्वत्ता का प्रकाश फैले।” उपराष्ट्रपति भी जानकी को ध्यान नहीं दिए – जबकि जानकी के बिना राम अस्तित्वहीन थे, हैं।

इतना ही नहीं, केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का संकल्प पूरा होने पर 5 सदी की प्रतीक्षा और प्रतिज्ञा आज पूर्ण हुई है। उनके अनुसार “जय श्री राम…5 सदी की प्रतीक्षा और प्रतिज्ञा आज पूर्ण हुई। आज का दिन करोड़ों रामभक्तों के लिये कभी ना भूलने वाला दिन है। आज जब हमारे रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजमान हुए हैं, तब असंख्य राम भक्तों की तरह मैं भी भाव विभोर हूँ। इस भावना को शब्दों में समेट पाना संभव नहीं है। इस पल की प्रतीक्षा में न जाने हमारी कितनी पीढ़ियां खप गईं, लेकिन कोई भी डर और आतंक रामजन्मभूमि पर फिर से मंदिर बनाने के संकल्प और विश्वास को डिगा नहीं पाया। आज माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में यह संकल्प सिद्ध हुआ है। इसके लिए मैं हृदय की गहराइयों से उनका आभार व्यक्त करता हूँ।“
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि “आज के इस पावन दिन मैं सदियों तक इस संघर्ष और संकल्प को जीवित रखने वाले महापुरुषों को भी नमन करता हूँ, जिन्होंने अनेक अपमान और यातनाएँ सहीं, पर धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा। विश्व हिंदू परिषद्, हजारों श्रेष्ठ संत और असंख्य नामी-गुमनामी लोगों के संघर्ष का आज सुखद व सुफल परिणाम आया है।यह विशाल श्री राम जन्मभूमि मंदिर युगों-युगों तक अविरल अविनाशी सनातन संस्कृति का अद्वितीय प्रतीक रहेगा।” सम्मानित गृहमंत्री भी जानकी की चर्चा नहीं किये।
उधर, पीढ़ियों से, धार्मिक महत्व से जुड़ा होने के कारण अयोध्या, भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में आराधना का स्थल रहा है और दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए आध्यात्म के केन्द्र के रूप में कार्य करता रहा है। हालाँकि, हाल के वर्षों में एक असाधारण बदलाव देखने को मिला है, जिसमें शहर की तकदीर बदली और उसकी प्रगति और विकास का ताना-बाना विस्तार से बुना गया। विकास संबंधी पहलों की सावधानीपूर्वक तैयार की गई योजना और उनके कार्यान्वयन ने शहर के पुनरुत्थान का मार्ग प्रशस्त किया तथा संस्कृति और समृद्धि के प्रकाश स्तम्भ के रूप में इसकी कायाकल्प कर दी है। “यह स्थान अब स्वर्ग है।”
उधर प्राण-प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं ”आज हमारे राम आ गए हैं! सदियों की प्रतीक्षा के बाद हमारे राम आ गए हैं। सदियों का अभूतपूर्व धैर्य, अनगिनत बलिदान, त्याग और तपस्या के बाद हमारे प्रभु राम आ गये हैं। इस शुभ घड़ी की आप सभी को, समस्त देशवासियों को, बहुत-बहुत बधाई।”

प्रधानमंत्री आगे कहते हैं कि “मैं अभी गर्भगृह में ईश्वरीय चेतना का साक्षी बनकर आपके सामने उपस्थित हुआ हूँ। कितना कुछ कहने को है… लेकिन कंठ अवरुद्ध है। मेरा शरीर अभी भी स्पंदित है, चित्त अभी भी उस पल में लीन है। हमारे रामलला अब टेंट में नहीं रहेंगे। हमारे रामलला अब इस दिव्य मंदिर में रहेंगे। मेरा पक्का विश्वास है, अपार श्रद्धा है कि जो घटित हुआ है इसकी अनुभूति, देश के, विश्व के, कोने-कोने में रामभक्तों को हो रही होगी। ये क्षण अलौकिक है। ये पल पवित्रतम है। ये माहौल, ये वातावरण, ये ऊर्जा, ये घड़ी… प्रभु श्रीराम का हम सब पर आशीर्वाद है। 22 जनवरी, 2024 का ये सूरज एक अद्भुत आभा लेकर आया है। 22 जनवरी, 2024, ये कैलेंडर पर लिखी एक तारीख नहीं। ये एक नए कालचक्र का उद्गम है।”
प्रधानमंत्री के अनुसार, राम मंदिर के भूमिपूजन के बाद से प्रतिदिन पूरे देश में उमंग और उत्साह बढ़ता ही जा रहा था। निर्माण कार्य देख, देशवासियों में हर दिन एक नया विश्वास पैदा हो रहा था। आज हमें सदियों के उस धैर्य की धरोहर मिली है, आज हमें श्रीराम का मंदिर मिला है। गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हो रहा राष्ट्र, अतीत के हर दंश से हौसला लेता हुआ राष्ट्र, ऐसे ही नव इतिहास का सृजन करता है। आज से हजार साल बाद भी लोग आज की इस तारीख की, आज के इस पल की चर्चा करेंगे। और ये कितनी बड़ी रामकृपा है कि हम इस पल को जी रहे हैं, इसे साक्षात घटित होते देख रहे हैं। आज दिन-दिशाएँ… दिग-दिगंत… सब दिव्यता से परिपूर्ण हैं। ये समय, सामान्य समय नहीं है। ये काल के चक्र पर सर्वकालिक स्याही से अंकित हो रहीं अमिट स्मृति रेखाएँ हैं। ”
त्रेता में राम आगमन पर तुलसीदास जी ने लिखा है- प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित वियोग बिपति सब नासी। अर्थात्, प्रभु का आगमन देखकर ही सब अयोध्यावासी, समग्र देशवासी हर्ष से भर गए। लंबे वियोग से जो आपत्ति आई थी, उसका अंत हो गया। उस कालखंड में तो वो वियोग केवल 14 वर्षों का था, तब भी इतना असह्य था। इस युग में तो अयोध्या और देशवासियों ने सैकड़ों वर्षों का वियोग सहा है। हमारी कई-कई पीढ़ियों ने वियोग सहा है। भारत के तो संविधान में, उसकी पहली प्रति में, भगवान राम विराजमान हैं। संविधान के अस्तित्व में आने के बाद भी दशकों तक प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली। मैं आभार व्यक्त करूंगा भारत की न्यायपालिका का, जिसने न्याय की लाज रख ली। न्याय के पर्याय प्रभु राम का मंदिर भी न्याय बद्ध तरीके से ही बना। आज गाँव-गाँव में एक साथ कीर्तन, संकीर्तन हो रहे हैं।
आज मंदिरों में उत्सव हो रहे हैं, स्वच्छता अभियान चलाए जा रहे हैं। पूरा देश आज दीवाली मना रहा है। अपने 11 दिन के व्रत-अनुष्ठान के दौरान मैंने उन स्थानों का चरण स्पर्श करने का प्रयास किया, जहां प्रभु राम के चरण पड़े थे। चाहे वो नासिक का पंचवटी धाम हो, केरला का पवित्र त्रिप्रायर मंदिर हो, आंध्र प्रदेश में लेपाक्षी हो, श्रीरंगम में रंगनाथ स्वामी मंदिर हो, रामेश्वरम में श्री रामनाथस्वामी मंदिर हो, या फिर धनुषकोडि… मेरा सौभाग्य है कि इसी पुनीत पवित्र भाव के साथ मुझे सागर से सरयू तक की यात्रा का अवसर मिला। सागर से सरयू तक, हर जगह राम नाम का वही उत्सव भाव छाया हुआ है। प्रभु राम तो भारत की आत्मा के कण-कण से जुड़े हुए हैं।

प्रधानमंत्री कहते हैं कि ‘आज का ये अवसर उत्सव का क्षण तो है ही, लेकिन इसके साथ ही ये क्षण भारतीय समाज की परिपक्वता के बोध का क्षण भी है। हमारे लिए ये अवसर सिर्फ विजय का नहीं, विनय का भी है। दुनिया का इतिहास साक्षी है कि कई राष्ट्र अपने ही इतिहास में उलझ जाते हैं। ऐसे देशों ने जब भी अपने इतिहास की उलझी हुई गांठों को खोलने का प्रयास किया, उन्हें सफलता पाने में बहुत कठिनाई आई। बल्कि कई बार तो पहले से ज्यादा मुश्किल परिस्थितियां बन गईं। लेकिन हमारे देश ने इतिहास की इस गांठ को जिस गंभीरता और भावुकता के साथ खोला है, वो ये बताती है कि हमारा भविष्य हमारे अतीत से बहुत सुंदर होने जा रहा है। वो भी एक समय था, जब कुछ लोग कहते थे कि राम मंदिर बना तो आग लग जाएगी। ऐसे लोग भारत के सामाजिक भाव की पवित्रता को नहीं जान पाए।”
प्रधानमंत्री के अनुसार ‘रामलला के इस मंदिर का निर्माण, भारतीय समाज के शांति, धैर्य, आपसी सद्भाव और समन्वय का भी प्रतीक है। हम देख रहे हैं, ये निर्माण किसी आग को नहीं, बल्कि ऊर्जा को जन्म दे रहा है। राम मंदिर समाज के हर वर्ग को एक उज्जवल भविष्य के पथ पर बढ़ने की प्रेरणा लेकर आया है। मैं आज उन लोगों से आह्वान करूंगा… आईये, आप महसूस कीजिए, अपनी सोच पर पुनर्विचार कीजिए। राम आग नहीं है, राम ऊर्जा हैं। राम विवाद नहीं, राम समाधान हैं। राम सिर्फ हमारे नहीं हैं, राम तो सबके हैं। राम वर्तमान ही नहीं, राम अनंतकाल हैं।’
आज जिस तरह राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा के इस आयोजन से पूरा विश्व जुड़ा हुआ है, उसमें राम की सर्वव्यापकता के दर्शन हो रहे हैं। जैसा उत्सव भारत में है, वैसा ही अनेकों देशों में है। आज अयोध्या का ये उत्सव रामायण की उन वैश्विक परम्पराओं का भी उत्सव बना है। रामलला की ये प्रतिष्ठा ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार की भी प्रतिष्ठा है। आज अयोध्या में, केवल श्रीराम के विग्रह रूप की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई है। ये श्रीराम के रूप में साक्षात् भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट विश्वास की भी प्राण प्रतिष्ठा है। ये साक्षात् मानवीय मूल्यों और सर्वोच्च आदर्शों की भी प्राण प्रतिष्ठा है। इन मूल्यों की, इन आदर्शों की आवश्यकता आज सम्पूर्ण विश्व को है। सर्वे भवन्तु सुखिन: ये संकल्प हम सदियों से दोहराते आए हैं।

प्रधानमंत्री के अनुसार, ‘आज उसी संकल्प को राममंदिर के रूप में साक्षात् आकार मिला है। ये मंदिर, मात्र एक देव मंदिर नहीं है। ये भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है। ये राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है। राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार हैं। राम भारत का विचार हैं, राम भारत का विधान हैं। राम भारत की चेतना हैं, राम भारत का चिंतन हैं। राम भारत की प्रतिष्ठा हैं, राम भारत का प्रताप हैं। राम प्रवाह हैं, राम प्रभाव हैं। राम नेति भी हैं। राम नीति भी हैं। राम नित्यता भी हैं। राम निरंतरता भी हैं। राम विभु हैं, विशद हैं। राम व्यापक हैं, विश्व हैं, विश्वात्मा हैं। और इसलिए, जब राम की प्रतिष्ठा होती है, तो उसका प्रभाव वर्षों या शताब्दियों तक ही नहीं होता।’
आज के युग की मांग है कि हमें अपने अंतःकरण को विस्तार देना होगा। हमारी चेतना का विस्तार… देव से देश तक, राम से राष्ट्र तक होना चाहिए। हनुमान जी की भक्ति, हनुमान जी की सेवा, हनुमान जी का समर्पण, ये ऐसे गुण हैं जिन्हें हमें बाहर नहीं खोजना पड़ता। प्रत्येक भारतीय में भक्ति, सेवा और समर्पण के ये भाव, समर्थ-सक्षम,भव्य-दिव्य भारत का आधार बनेंगे। और यही तो है देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार ! दूर-सुदूर जंगल में कुटिया में जीवन गुजारने वाली मेरी आदिवासी मां शबरी का ध्यान आते ही, अप्रतिम विश्वास जागृत होता है। मां शबरी तो कबसे कहती थीं- राम आएंगे।
प्रत्येक भारतीय में जन्मा यही विश्वास, समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत का आधार बनेगा। और यही तो है देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार! हम सब जानते हैं कि निषादराज की मित्रता, सभी बंधनों से परे है। निषादराज का राम के प्रति सम्मोहन, प्रभु राम का निषादराज के लिए अपनापन कितना मौलिक है। सब अपने हैं, सभी समान हैं। प्रत्येक भारतीय में अपनत्व की, बंधुत्व की ये भावना, समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत का आधार बनेगी। और यही तो है देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार!
प्रभु श्रीराम की हमारी पूजा, विशेष होनी चाहिए। ये पूजा, स्व से ऊपर उठकर समष्टि के लिए होनी चाहिए। ये पूजा, अहम से उठकर वयम के लिए होनी चाहिए। प्रभु को जो भोग चढ़ेगा, वो विकसित भारत के लिए हमारे परिश्रम की पराकाष्ठा का प्रसाद भी होगा। हमें नित्य पराक्रम, पुरुषार्थ, समर्पण का प्रसाद प्रभु राम को चढ़ाना होगा। इनसे नित्य प्रभु राम की पूजा करनी होगी, तब हम भारत को वैभवशाली और विकसित बना पाएंगे।