
नई दिल्ली : संभव है इस कहानी को पढ़कर, सुनकर, देखकर आप अपना निर्णय ले लें। परन्तु जब आप इण्डिया गेट के रास्ते अपने दाहिने हाथ नवनिर्मित/स्थापित सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा को नमस्कार करते, शाहजहां रोड के रास्ते पृथ्वीराज रोड – ए पी जे अब्दुल कलाम रोड के नुक्कड़ पर पहुँचते हैं, वहां मुद्दत से ईंट-से-ईंट अलग होते दीवारों के अंदर वाला भवन आज भी भारत के उस महान नायक को याद करते बिलखता है, जो कभी इस भवन के वासिंदे थे।
उस भवन को देखकर आत्मा बिलख जाता है। मन सोचने को विवश हो जाता है कि राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को वह सम्मान नहीं मिल पाया आज तक, जिसके वे हकदार थे। इस कार्य के लिए अगर कांग्रेस सरकार की ओर ऊँगली उठाते हैं तो गैर-कांग्रेसी सरकार और कोई प्रधानमंत्री भी इस दिशा में सकारात्मक पहल नहीं किये ‘अंतिम निर्णय’ तक ।
मसलन, 1977-1979 मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे, फिर 1979-1980 चरण सिंह आये। चौधरी चरण सिंह के बाद 1989-1990 विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय में विराजमान हुए। फिर 1990-1991 में आये चंद्रशेखर। फिर कुछ दिन के लिए आये अटल बिहारी वाजपेयी, साल 1996 था। सन 1996-1997 में एच डी देवेगौड़ा, 1997-1998 इंद्र कुमार गुजराल और फिर आये 1998-2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी। लेकिन सन 2014 से आज तक भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय में नरेंद्र मोदी जी विराजमान हैं ।
सरदार पटेल का दिल्ली आगमन सन 1946 में हुआ था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में ‘अंतरिम सरकार’ बनी थी। पटेल चाहते तो सरकारी आवास में रह सकते थे, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और नई दिल्ली क्षेत्र में कुछ कमरों वाले एक निजी भवन में रहना पसंद किये। यह समय था आज़ादी के पहले का।
जब देश आज़ाद हुआ सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र भारत के उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने, वे उसी बंगला में रहना पसंद किये। इतिहास गवाह भी है कि जंगे आज़ादी के बाद, भारत-पाकिस्तान के बंटबारे के परिणाम स्वरुप देश में जहाँ-जहाँ भी सांप्रदायिक दंगे हुए, जान-माल हुई, सरदार पटेल इसी भवन से स्वतंत्र भारत के लोगों को अमन-चैन के लिए प्रार्थना किये और लोगों ने उनकी बातों को ह्रदय से स्वीकार किया। भारत के इतिहास में, चाहे स्वतंत्रता से पहले की बात हो या आज़ादी के बाद की, सरदार पटेल की भूमिका को भी वह स्थान नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार थे। तत्कालीन लेखकों ने, इतिहासकारों ने सरदार पटेल के लिए भी ‘शब्दों का बट्टा मार’ लिए। कहते भी हैं – Those who rules writes the History .

बहरहाल, औरंगजेब रोड (अब ए पी जे अब्दुल कलाम रोड) वाले इस मकान के स्वामी थे सरदार पटेल के अभिन्न मित्र श्री बनवारी लाल। श्री बनवारी लाल जी उन्हें अपने कोठी में रहने का निमंत्रण दिया। सरदार पटेल अपने मित्र की बात को टाल नहीं सके और मणिबेहन पटेल के साथ रहने लगे। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 21 अप्रैल, 1947 को भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के पहले बैच से बात की थी । उनके साथ ‘स्वराज्य’ के महत्व पर चर्चा की थी और कहा था कि वे भारत के आम लोगों को अपना समझें, अपने ह्रदय में स्थान दें।
सरदार पटेल का मानना था कि भारत, देश के सिविल सेवकों पर भरोसा और विश्वास कर सकती हैं। उसे विश्वास करनी ही होगी तभी सिविल सेवक अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी विश्वास जताया कि प्रशासन की अधिकतम निष्पक्षता और अस्थिरता बनाए रखने में इन सिविल सेवकों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
सरदार पटेल का मानना था कि एक सिविल सेवक राजनीति में भाग नहीं ले सकता है , न ही उसे भाग लेना चाहिए और न ही उसे खुद को सांप्रदायिक झगड़ों में शामिल करना चाहिए। सिविल सेवकों के महत्व को बताते वे यह भी कहे थे कि जिन अनुबंधों पर वे हस्ताक्षर करते हैं उस अनुबंध के अनुसार वे अपनी पूरी सेवा के दौरान उसकी गरिमा, सत्यनिष्ठा और अस्थिरता को बनाए रखने के लिए इसे एक गौरवपूर्ण विशेषाधिकार के रूप में स्वीकार करेंगे समग्र रूप से भारत की भलाई में योगदान देने का सर्वोत्तम प्रयास करेंगे। बहुत उम्मीद किये थे सरदार पटेल भारत के सिविल सेवकों से।
अब सवाल यह है कि अगर बिड़ला हाउस जहां गांधी अपने जीवन के अंतिम 144 दिन रहे, 26 अलीपुर रोड जहां डॉ. बी. आंबेडकर 1956 में अपनी मृत्यु तक रहे, को उनका स्मारक बनाया जा सकता है, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, जगजीवन राम, लाल बहादुर शास्त्री आदि राष्ट्रीय नेताओं का समर्पित स्मारक हो सकता है तो फिर लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को सिर्फ पटेल चौक, पटेल चेस्ट और सरदार वल्लभ भाई पटेल मार्ग तक ही क्यों सीमित कर दिया गया।
आज लोग यह नहीं कह सकते हैं कि सरकार कांग्रेस की है। यह भी नहीं कह सकते कि दिल्ली में केजरीवाल की अनुमति के बिना यह कार्य नहीं हो सकता – क्योंकि पूरी नई दिल्ली तो भारत सरकार की ही है और भारत सरकार में श्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह उपस्थित हैं। गुजरात में बने ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ सरदार पटेल के बेहतरीन स्मारक है, सम्मान है; परन्तु वह स्मारक या सम्मान राष्ट्र की राजधानी में नहीं है।
कहते हैं 1- एपीजे अब्दुल कलाम रोड (पहले औरंगजेब रोड) चुकी निजी संपत्ति है और वर्तमान परिपेक्ष में उस भवन और स्थान की कीमत आम नागरिक नहीं लगा सकता। लेकिन अगर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण के समय राष्ट्र के लोगों से “लौह” की मदद की गुहार की जा सकती थी, तो आज दिल्ली में उस स्थान पर सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम से स्मारक बनाने हेतु भी राष्ट्र से मौद्रिक सहायता के लिए प्रार्थना की जा सकती है।
मुझे उम्मीद है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिल्ली सल्तनत में सम्मान के साथ स्थान देने हेतु राष्ट्र के लोग दिल खोल देंगे क्योंकि आजादी से पहले और आजादी के बाद आज तक सरदार वल्लभ भाई पटेल की ऊंचाई को कोई मापने वाला जन्म नहीं लिया है। उनकी गहराई को कोई माप नहीं सकता। वे भारत के लोगों के ह्रदय में पीढ़ी-दर-पीढ़ी रहते आ रहे हैं।