पुरानी दिल्ली की गलियों में आज भी यह घर, मिट्टी, चौखट इंतज़ार कर रहा है अपनी बेटी सायरा बानो का

अदाकारा नसीम बानो यानि अदाकारा सायरा बानो का पुरानी दिल्ली में घर। यह दिलीप कुमार साहब का ससुराल है।

पुरानी दिल्ली : उस दिन गोदौलिया (बनारस) चौक पर बाएं हाथ कोने पर स्थित एक छोटा सा होटल में कचौड़ी-सब्जी और जलेबी खाकर पत्नी और पुत्र के साथ रिक्शा पर बैठा था। बनारस का रिक्शा उन दिनों पटना, मुजफ्फरपुर, धनबाद और दिल्ली की रिक्शा से कुछ अलग था। बैठे तो रिक्शा पर थे लेकिन सतर्कता इतनी अधिक थी कि कब आगे मुंह के बल नीचे जमीन पर लुढ़क जायँ। वैसे बनारस में चाहे रिक्शा पर चढ़िये या हेलीकॉप्टर से गोदौलिया चौक पर उतरिये, वहां के लोग हमेशा जमीन पर होते थे। यह बाद दो दशक और अधिक पहले की है। आज समय के साथ साथ बनारस में सड़क क्या, गली क्या, गंगा की धाराएं भी राजनीतिक उफ़ान से प्रभावित हो गया है। खैर।

जैसे ही रिक्शा पर बैठे पतलून के दाहिने जेब में रखा मोबाइल फोन हिनहिनाने लगा। उसके हिनहिनाते ही सम्पूर्ण शरीर में, खासकर कमर के निचले हिस्से में गजब का कंपन महसूस किया। मेरे बाबूजी कहते थे “जिन्दा रहेंगे तो क्या-क्या न देखेंगे, अनुभव करेंगे,” मोबाईल का हिनहिनाना भी एक अनुभव ही था। उस दिन से पतलून के जेब में मोबाईल रखना ही छोड़ दिया।

किसी तरह थरथराते हाथों से मोबाईल को निकला और बटन दबाते बनारस के अंदाज में ‘प्रणाम हुकुम’ बोला ही था की दूसरे छोड़ से आवाज आयी” “आदाब झा साहब। उम्मीद है आप बनारस अब तक पहुँच कर उस्ताद के घर की ओर निकल गए होंगे। मोहतरमा नीना जी और पुत्र आकाश भी आपके साथ होंगे । मैं कितना बदनसीब हूँ कि उस्ताद से मिलने के लिए आँखें पथरा गई है और काफी दिनों से उनसे मुलाक़ात नहीं हो पायी। मैं जल्द मिलने की कोशिश करूँगा। आप मेरे तरफ से मेरा आदाब उन्हें कह देंगे। आप अपना काम करते रहें। मैं दिल्ली आते ही आपसे मिलूंगा।”

अदाकारा नसीम बानो यानि अदाकारा सायरा बानो का पुरानी दिल्ली में घर। यह दिलीप कुमार साहब का ससुराल है।

मैं उनकी बातों को सुन रहा था। उनके अनुसार उस्ताद बिस्मिल्लाह खान भारतीय संगीत की दुनिया में अल्लाह के बराबर थे।और उस्ताद पर किये जा रहे प्रयास का वे अभिन्न अंग थे। जो सज्जन मोबाइल के दूसरे किनारे से बोल रहे थे वे थे सम्मानित फ़ारुख़ शेख साहब। अस्सी के ज़माने से पटना का कालिदास रंगालय रंगमंच और इप्टा के कारण उनसे सम्बन्ध था। जिस समय हम बात कर रहे थे साल 2002 था। उस्ताद का दिल्ली के पार्लियामेंट एनेक्सी कार्यक्रम के बाद उनके लिए अपनी सामर्थ्य भर एक कोशिश कर रहे थे जिससे उनकी अंतिम सांस तक उन्हें मदद की गुहार नहीं लगनी पड़े । आज कल तो समाज में पढ़े-लिखे लोग भी ‘मदद’ शब्द का अर्थ लगाते-लगाते ‘अनर्थ’ कर देते हैं। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के साथ उनके जीवन के अंतिम वसंत के काल खंड में भी कुछ वैसा ही हुआ था।

उन दिनों उस्ताद को लेकर देश के अखबार वाले टूट पड़े थे। समाचार लिखते थक नहीं रहे थे कि उस्ताद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से मदद की गुहार कर रहे हैं। कोई लिख रहे थे कि उस्ताद अपने बेटे के लिए पेट्रोल पम्प मांग रहे हैं तो कोई लिखे रहे थे की हवाई यात्रा करना चाहते हैं। कोई लिख रहे थे उस्ताद पैसे मांग रहे हैं तो कोई कुछ। रह-रह कर टीवी के स्क्रीन पर भी कुछ कुछ, कभी-कभी दिखाया जा रहा था। उसी बीच दिल्ली में एक कार्यक्रम कराकर उस्ताद को कुछ पैसे दिए गए। मैं दिल्ली सल्तनत में एक छोटा सा पत्रकार था। पटना के नोवेल्टी एंड कंपनी में बाबूजी के साथ अपने जीवन का प्रारंभिक सांस लिया था। किताबों के पन्नों को सुंघा था। सुगंध से कागज का जीएसएम अंदाजा लग जाता था। बाबूजी कहते भी थे ‘किताबों के गंध को नाक के सहारे मस्तिष्क में जाने दो । एक बार किताब का सुगंध मस्तिष्क में चला गया, जीवन सुधर जायेगा।”

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अदाकारा नसीम बानो यानि अदाकारा सायरा बानो का पुरानी दिल्ली में घर। यह दिलीप कुमार साहब का ससुराल है।

बाबूजी के बातें उस वक्त तो समझ में नहीं आयी थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जिस तरह उस्ताद का नाम ‘मदद’ उपसर्ग-प्रत्यय के साथ दिल्ली और अन्य प्रांतों के अख़बारों में प्रकाशित हो रहा था, टीवी पर प्रसारण हो रहा था, अच्छा नहीं लग रहा था।

उस्ताद के घर में ‘शिक्षा’ का पूर्णतः अभाव था और संयुक्त परिवार के सभी लोग, बच्चा-बड़ा, महिला-पुरुष सभी उस्ताद की शहनाई के धुन से मिलने वाली राशि पर ही आश्रित थे। मैं एक किताब बनाने का निर्णय लिया – मोनोग्राफ ऑन उस्तादक बिस्मिल्लाह खान – जिसमें गंगा की धाराएं थी, विश्वनाथ मंदिर था, बनारस की गलियां थी, गलियों में संगीत था, बिस्मिल्लाह थे, उनकी शहनाई था – इत्यादि। मेरे बाबूजी का बनारस से बहुत गहरा रिश्ता था। वे कहते भी थे ‘बनारस’ तुमसे भी कुछ अलग काम करायेगा ।

उस दौरान बनारस कितने बार गया कह नहीं सकता। अनेकानेक बार उस्ताद से मिला। उस्ताद का मिथिला और दरभंगा से बहुत गहरा नाता था। किताब को लेकर जब भी बात करते थे वे चमियां बाई ‘शमशाद बेगम’ का जिक्र जरूर करते थे। उनकी पेशा तो कुछ और थी, लेकिन वह पेशा भी संगीत से जुड़ा था। मैं नहीं जानता था कि उस्ताद द्वारा शमशाद बेगम का जिक्र एक दिन मुझे उनकी अदाकारा बेटी नसीम बानो और उनकी बेटी सायरा बानो के घर तक ले आएगा। मैं तो महज एक माध्यम था और मुझसे समय उन दिनों बनारस की गलियों के माध्यम से उस्ताद के घर ले गया, आज पुरानी दिल्ली की गलियों के रास्ते नसीम बानो-सायरा बानो के घर ले आया।

कोई दो दशक समय के बाद एक कंधे पर झोला, दूसरे कंधे पर कैमरा लटकाए पुरानी दिल्ली की गलियों में जैसे जैसे अपना कदम बढ़ा रहा था, ऐसा लग रहा था समय और उस्ताद दोनों मेरे साथ चल रहे हैं। गलियों में आने-जाने वाले लोग बिना किसी स्वार्थ के देखकर मुस्कुरा रहे थे। कई मोहतरमायें कंधे पर कैमरा देखकर कुछ इस कदर मुस्कुरा रही थी, जैसे वह कह रही हों ‘एक तस्वीर मेरी भी’, और मैं ना किसी को नहीं कहा।

बातचीत में उन गलियों के बारे में, नाम के बारे में पूछ लेता था। उस गली की विशेषताओं के बारे में भी पूछ लेता था। अमृता प्रीतम भी तो दिल्ली की गलियां उपन्यास लिखी थी।उन्हीं गलियों के सहारे समय मुझे शमशाद बेगम की बेटी नसीम बानो और उनकी सायरा बानो के घर वाली गली में ले आया।

पहले गली की नुक्कड़ पर खड़े होकर मन में सोचा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि अविभाजित हिंदुस्तान से लेकर विभाजित हिंदुस्तान में रहने वाले लोग इन तीनों महिलाओं को बहुत सम्मान करते थे और आज भी करते हैं। यह अलग बात है कि शायद 99 फीसदी लोग जिस स्थान पर मैं खड़ा था, जिस घर में मैं जा रहा था, शायद देखे भी नहीं होंगे।

अदाकारा नसीम बानो यानि अदाकारा सायरा बानो का पुरानी दिल्ली में घर। यह दिलीप कुमार साहब का ससुराल है।

कभी-कभी तो मैं में यह भी बात आने लगी कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले 95 फीसदी से अधिक लोग ‘अजमेरी गेट’ भी नहीं देखे होंगे।आम तौर पर अजमेरी गेट का अर्थ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का वह भाग समझते हैं। संभव है, मैं गलत होऊं, लेकिन विश्वास करने के लिए आप भी कुछ लोगों से पूछिए कि क्या वे अजमेरी गेट देखे हैं या फिर दिल्ली की गलियों में भ्रमण-सम्मेलन किये हैं ? कुण्डेवाली गली कभी आये हैं ? खैर।

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आइये चलते हैं नसीम बानो के घर। ऐतिहासिक अजमेरी गेट के तरफ से जब आप मेट्रो स्टेशन हौज काज़ी मेट्रो स्टेशन की ओर बढ़ेंगे तो मुड़ते ही आपके दाहिने हाथ कोने पर दिल्ली सरकार / नगर निगम द्वारा संचालित शौचालय दिखेगा। नाक पर कपड़े रख लें। शौचालय भले लघु-शंका निवृत होने का है, अगर आप अधिक गंभीरता से देखेंगे तो उस शौचालय की बनावट कुछ ऐसी है जिससे आप निवृत होते मनुष्य का अंग-प्रत्यंग का अवलोकन कर लेंगे। इसलिए सावधानी बरतें अपने लिए।

इस शौचालय से दस कदम आगे दाहिने तरफ जाने वाली गली को पकड़ लें। किसी को पूछें नहीं क्योंकि दिल्ली की गलियों में ही नहीं, नुक्कड़ पर रहने वाले लोगों, दुकानदारों को उन गलियों का भूगोल पता नहीं है। वजह भी है – सभी आधुनिक भारत के हैं और उनके पूर्वज (अपवाद छोड़कर) इतिहास बताने की जरुरत नहीं किये और ना ही उनमें अभिरुचि जगी। स्वाभाविक भी है। देश में मुद्रा का मोल और उसका चरित्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतना लुढ़का, लोग जीने के लिए कमाने में अधिक उन्मुख हो गए।

अदाकारा नसीम बानो यानि अदाकारा सायरा बानो का पुरानी दिल्ली में घर। यह दिलीप कुमार साहब का ससुराल है।

बहरहाल, इस गली में आगे कोई तीस कदम जाने पर दो रास्ता निकलता है। आप वाम पंथी हो जाएँ। इसी कोने पर कोई दो सौ किलो का एक मनुष्य बैठा दिखेगा। बाएं हाथ एक वृक्ष मिलेगा और आप नाक के सीध में कोई बीस कदम चलें। आपके बाएं हाथ जो भी मकान मिले, समझ लें आप नसीम बानो के घर के बाहर खड़े हैं। वैसे बाहर एक बोर्ड पर अदालती फरमान भी लिखा मिलेगा जो आपको विश्वास दिलाएगा कि आप सही जगह पर हैं। घ्यान रहे गूगल मानचित्र का इस्तेमाल नहीं करें। गूगल मानचित्र दिल्ली की गलियों में रास्ता भले दिखा दे, लेकिन उन गलियों से आपका आत्मीय सम्बन्ध नहीं जोड़ पायेगा।

अदाकारा नसीम बानो

नसीम बानो का जन्म जन्म 4 जुलाई 1916 को आरा बेगम के रूप में​ यहां हुआ था। उनकी मां, चमियां बाई (जिन्हें शमशाद बेगम के नाम से भी जाना जाता ​है, थी तो वे नाच गाना करने वाली घराने से, लेकिन उनके गीत, बोल, राग बहुत ही मनभावन थे। शमशाद बेगम की बेटी नसीम​ बानो ने क्वीन मैरी हाई स्कूल, दिल्ली से पढ़ाई की। चमियां बाई चाहती थीं कि वह डॉक्टर बनें​ लेकिन उन्हें फिल्मों का शौक था, जबकि माँ फिल्म में काम करने के बिलकुल विरुद्ध थी।

समय को कौन टाल सकता है। समय कुछ और चाहता था नसीम बानो से। माँ के साथ बंबई​ आयी और शूटिंग देखने चली। किसी एक फिल्म के सेट पर शूटिंग के दौरान सोहराब मोदी की नजर उस पर पड़ी और वे ‘हेलमेट’ फिल्म के लिए काम करने को कहा। शमशाद बेगम जैसे ही मना की वे भूख हड़ताल पर चली गयी। सहमति मिली। इस फिल्म में काम करने के बाद नसीम की आगे की पढ़ाई बाधित हुई। उन दिनों सिनेमा में काम करना एक निम्न पेशा समझा जाता था।

सायरा बानो

इतिहास गवाह है कि नसीम बंबई लौट आए और सोहराब मोदी के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत​ हैमलेट​-(1935से की थी और मिनर्वा मूवीटोन बैनर के तहत मोदी के साथ कई फिल्में बनाईं। “खान बहादुर” (1937),​ तलाक​-1938,​ मीठा जहर और वसंती – 1938 जैसी फिल्मों में काम करने के बाद ‘नूरजहां’ की भूमिका में ‘पुकार’में काम की। लोगों का कहना है कि 40 के दशक की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस नसीम बानो ने 31 साल तक फिल्म इंडस्ट्री पर राज किया। खूबसूरत इतनी थीं कि नजर से बचाने के लिए उन्हें पर्दे में रखा जाता था। यही वजह थी कि उन्हें ब्यूटी क्वीन और पहली फीमेल सुपरस्टार कहा जाता था। मां के मना करने के बाद एक्टिंग में आने के लिए वो भूख हड़ताल पर चली गईं। हालांकि मां को झुकना पड़ा और फिल्मी सफर शुरू हुआ। पहली फिल्म ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया।चार दशक तक फिल्म इंडस्ट्री पर राज करने के बाद उन्होंने अपनी बेटी सायरा बानो के लिए फिल्मों में काम करना बंद कर दिया।

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अदाकारा नसीम बानो यानि अदाकारा सायरा बानो का पुरानी दिल्ली में घर। यह दिलीप कुमार साहब का ससुराल है।

नसीम ने अपने बचपन के दोस्त आर्किटेक्ट मियां एहसान-उल-हक से शादी की, जिसके साथ उन्होंने ताज महल पिक्चर्स बैनर की शुरुआत की। उनके दो बच्चे थे, एक बेटी सायरा बानो और एक बेटा, स्वर्गीय सुल्तान अहमद (1939 – 2016)।एहसान से विवाहित, पति-पत्नी की टीम ने ताज महल पिक्चर्स की शुरुआत की और उजाला (1942), बेगम (1945), मुलाकात (1947), चांदनी रात (1949) और अजीब लड़की (1942) जैसी कई फिल्में बनाईं। फिल्म पुकार के नूर जहां किरदार ने नसीम बानो को बहुत ख्याति दिलाई।

1947 के भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद नसीम के पति पाकिस्तान चले गए थे। वो चाहते थे कि नसीम भी उनके साथ वहां आ जाएं लेकिन नसीम ने वहां जाने से मना कर दिया था। उन्होंने पाकिस्तान ना जाकर अपने देश भारत में ही रहने का फैसला किया। इसके बाद पति भी उनसे मिलने कभी भी भारत नहीं आए। वो अपने साथ नसीम की कई फिल्मों के निगेटिव ले गए थे, जो उन्होंने पाकिस्तान में रिलीज किए थे। वहां पर भी ये फिल्में अच्छी कमाई करती थीं क्योंकि पाकिस्तान में भी नसीम की जबरदस्त ​ख्याति मिली थी।

अदाकारा नसीम बानो यानि अदाकारा सायरा बानो का पुरानी दिल्ली में घर। यह दिलीप कुमार साहब का ससुराल है।

फिल्म ‘अजीब लडक़ी’ बतौर एक्ट्रेस नसीम बानो के सिने करियर की अंतिम फिल्म थी। इस फिल्म के बाद नसीम ने अपने एक्टिंग करियर को अलविदा कह दिया था। ये वही दौर था जब उनकी बेटी सायरा बानो फिल्मी परदे पर दस्तक देने वाली थी। ऐसा भी कहा जाता है कि नसीम नहीं चाहती थी कि बेटी से उनकी तुलना हो इसलिए उन्होंने फिल्मों से संन्यास ले लिया।यह भी कहा जाता है कि नसीम ने बतौर फैशन डिजाइनर काम शुरू किया और अपनी बेटी की कई फिल्मों के लिए उन्होंने ड्रैसेज भी डिजाइन की। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये भी कहा जाता है कि सायरा बानो और दिलीप कुमार की शादी में नसीम की बड़ी भूमिका थी। आखिरकार 18 जून 2002 को 85 साल की उम्र में नसीम ने अंतिम सांस ली।

खैर। वापस नसीम बानो के घर आते हैं। आप इन तस्वीरों को देखिये। पुरानी दिल्ली की गलियों को देखिये। इन तस्वीरों को देखकर अंदाजा लगाएं कि उस ज़माने में इस घर में क्या रौनक रहा होगा। आज यह खंडहर जैसा हो गया है। इस घर को देखकर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का याद आ गए, सराय हरहा की तंग गली में शहनाई सम्राट का घर याद आना स्वाभाविक है। लेकिन आज वहां भी हालत कुछ ऐसी ही है।

अदाकारा नसीम बानो यानि अदाकारा सायरा बानो का पुरानी दिल्ली में घर। यह दिलीप कुमार साहब का ससुराल है।

हमारी कोशिश होगी कि नसीम बानो की अदाकारा बेटी और दिलीप कुमार (दिवंगत) की पत्नी सायरा बानो अपने जीवन काल में अपनी माँ के सम्मानार्थ, इस भूमि पर जरूर आएं। आखिर यह मिट्टी ही है। इस मूक-बधिर मिट्टी घर की दीवारों को, चौखटों को उनका इंतज़ार रहेगा।

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