जेल रोड (तिहाड़ जेल), नई दिल्ली: एक सौ तेईस लाख रुपये कम नहीं होते। भारत का निनानब्बे फीसदी आवाम इस राशि के बारे में सोच नहीं सकता, देखने, अपना होने की बात या फिर किसी को देने की बात तो मीलों दूर। लेकिन 39,000/- करोड़ रुपये निवेशकों को वापस करने में असमर्थता जाहिर करने के कारण सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय (अब दिवंगत) दिल्ली सरकार द्वारा संचालित और नियंत्रित केंद्रीय कारा तिहाड़ में ‘कई प्रकार की सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए तिहाड़ प्रशासन को 1.23 करोड़ रूपये का भुगतान किये थे। सुविधा के लिए भुगतान करने का आदेश भारत का उच्चतम न्यायालय ने दिया था।
वैसी स्थिति में दिल्ली के तत्कालीन राजनीतिक आकाओं से यह उम्मीद करना कि वे तिहाड़ में बंद उस ‘कैदी’ के विरुद्ध प्रशासनिक कार्रवाई करेंगे, चाहे कार्रवाई करने वाला तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हो या तत्कालीन जेल मंत्री सत्येंद्र जैन – व्यर्थ था। लेकिन, एक अधिकारी के रूप में ‘शिकायत’ की गई और अंततः, पूरे 35-वर्षों के सेवा काल में वह अधिकारी जिस निकृष्टता से बचता रहा, अवकाश के बाद ‘विदाई के उपहार’ के रूप में आच्छादित करती नजर आई। यही राजनीति है और राजनीति में पैसों का मोल भी।
विगत दिनों केंद्रीय कारा तिहाड़ के पूर्व जेलर सुनील कुमार गुप्ता से मिला था एक कहानी के क्रम में। जेल में दबंग, खूंखार, पैसे वाले कैदियों द्वारा सामानांतर प्रशासन चलाने से लेकर, जेल के अंदर जेल कर्मियों, यहाँ तक कि ऊँचे-ऊँचे पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा ‘जबरदस्ती बसूली’ के साथ-साथ ‘अवैध सुविधा उपलब्ध कराने के लिए छोटी-छोटी राशियों की बसूली तक, अनेकानेक विषयों पर चर्चा हुई।
@अखबारवाला001 (233) ✍ दिल्ली के तिहाड़ कारावास में वह सब कुछ होता है जो कारावास में नहीं होनी चाहिए 😢
आंकड़ों के अनुसार देश में अभी कुल 1412 कारावास हैं, जिसमें 137 केंद्रीय कारा, 394 जिला कारावास, 732 सब-जेल, 20 महिलाओं के कारावास, 20 बोरोस्टल जेल, 64 खुला जेल, 42 स्पेशल जेल और तीन अन्य प्रकार के जेल। इन सभी कारावासों को मिलकर 380876 कैदियों को रखने की क्षमता है। हकीकत यह है कि आज़ादी के 78 वर्ष बाद आज भी भारत में 1412 कारावासों की स्थिति बेहतर नहीं है। आज भी कारावासों की संख्या बढ़ाने के लिए बैठकें होती है। सरकारी कोष से पैसे निकलते हैं लेकिन प्रशासन से लेकर समाज सुधारक तक, अधिकारियों से लेकर कैदियों तक – इन बातों पर बहस नहीं करते, सकारात्मक पहल नहीं करते जिससे कारावासों की संख्या बढे नहीं, बल्कि कैदियों की संख्या कम को। खैर।
विगत दिनों भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति (अब सेवानिवृत्त) डॉ. न्यायमूर्ति धनञ्जय वाई. चंद्रचूड़ सर्वोच्च न्यायलय के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग के तत्वावधान में निष्पादित और प्रकाशित Report on Prisons In India: Mapping Prisons Manual and Measures for Reformationa and Decongestion – 2024 के प्रस्तावना में लिखा है कि “हम कैदियों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, यह एक समाज के रूप में हमारे बारे में और मानवाधिकारों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता के बारे में बहुत कुछ बताता है। भारतीय न्यायपालिका ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि हर इंसान के आंतरिक मूल्य को पहचाना और संरक्षित किया जाना चाहिए। इसमें जेलों में बंद व्यक्ति भी शामिल हैं। गरिमापूर्ण जेलों की अवधारणा केवल एक आकांक्षा नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक अनिवार्यता है, जो सभी नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों पर आधारित है।”
उन्होंने आगे लिखा है: “गरिमापूर्ण जेलें प्रभावी पुनर्वास के लिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि वे आत्म-चिंतन, व्यक्तिगत विकास और अंततः समाज में पुनः एकीकरण के लिए अनुकूल वातावरण बनाती हैं। भारत में जेलों का गहन अध्ययन करने का विचार जेल मैनुअल में निहित औपनिवेशिक अतीत के अवशेषों की पहचान करने और देश की सुधार प्रणाली का मूल स्वरूप बनाने वाली जेल संस्थाओं को मानवीय बनाने के लिए बनाया गया था। साथ ही, हमारी जेल प्रणालियों के भीतर सामाजिक-आर्थिक भेदभाव का अध्ययन हमारे राष्ट्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय है। हमारी जेलें, जो सुधार और पुनर्वास की संस्थाएँ हैं, उन्हें उन असमानताओं और पूर्वाग्रहों को कायम नहीं रखना चाहिए जो हमारे समाज को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं। इसके अलावा, यह समझना कि कैसे प्रौद्योगिकी का अभिनव उपयोग जेलों में भीड़भाड़ को कम करने में मदद कर सकता है और अधिक मानवीय सुधार प्रणाली में योगदान दे सकता है, इसमें परिवर्तनकारी क्षमता है।”
न्यायमूर्ति ने यह भी लिखा है कि “एक मानवीय जेल प्रणाली को अकेले हासिल नहीं किया जा सकता। इसके लिए न्याय प्रशासन प्रणाली के सभी संस्थानों से समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है, जिसका उद्देश्य कैदियों की स्वतंत्रता और गरिमा को सुरक्षित रखना है। जिला न्यायालयों द्वारा जमानत देने और न्याय तक पहुँच को आसान बनाने, कारावास के वैकल्पिक तरीकों को विकसित करने और मामलों का समय पर निपटान सुनिश्चित करने के लिए अभिनव उपायों को देने में बढ़ती अनिच्छा पर अधिक चर्चा होनी चाहिए।”
प्रस्तावना में उन्होंने लिखा है कि “यह रिपोर्ट जेलों की कानूनी संरचना की एक तस्वीर पेश करने और यह आकलन करने का एक प्रयास है कि जेलें सजा के बजाय सुधार और देखभाल के लिए कैसे एक स्थान बन सकती हैं।
मुझे उम्मीद है कि इस रिपोर्ट की सामग्री को जेल परिदृश्य को फिर से जीवंत करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के आह्वान के रूप में लिया जाएगा। मेरा मानना है कि यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं, सुधारात्मक संस्थानों, न्यायपालिका और अकादमिक बिरादरी के लिए सहायक होगी क्योंकि वे भारत में जेल प्रणाली को मजबूत करने के लिए रणनीति तैयार करते हैं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, मुझे उम्मीद है कि यह रिपोर्ट हमारे सामूहिक प्रयास में सहायता करेगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि समानता और सम्मान के सिद्धांत हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली के हर पहलू में परिलक्षित हों। सुधार का मार्ग चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह एक ऐसी यात्रा है जिसे हमें अपने संविधान, लोकतंत्र और समाज के मूल्यों को बनाए रखने और प्रत्येक व्यक्ति के निहित मूल्य की रक्षा करने के लिए करना चाहिए।”
चलिए वापस तिहाड़ चलते हैं। केंद्रीय कारा तिहाड़ के पूर्व जेलर सुनील कुमार गुप्ता दिल्ली की एक पत्रकार सुश्री सुनेत्रा चौधरी के साथ मिलकर ‘तिहाड़ जेल के जेलर की इनसाइड स्टोरी ‘ब्लैक वारंट’ किताब लिखे। यह किताब कई मामलों में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व निदेशक जोगिन्दर सिंह (अब दिवंगत) द्वारा लिखित ‘इनसाइड सीबीआई’ जैसा ही है – संस्थान की अंदर की बातें। सुश्री सुनेत्रा चौधरी इण्डियन एक्सप्रेस से पत्रकारिता की शुरुआत की थी। समयान्तराल एनडीटीवी में आयीं। साल 2016 में रेड इंक पुरस्कार से सम्मानित हुईं और फिर ‘जेफरसन फेलो’ के बाद ‘मेरी मॉर्गन हेवेट’ सम्मान से सम्मानित हुईं। वर्तमान में राजनीतिक संपादक हैं। खैर।
वार्तालाप के दौरान सुनील गुप्ता इस बात को स्वीकार किये कि दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल ‘भ्रष्टाचार के विरोध’ में बहुत काम किये और उनके प्रति उनका (गुप्ता का) सम्मान बहुत अधिक था और है भी। लेकिन यह बात स्पष्ट नहीं हो सका कि’तिहाड़ के आतंरिक स्थिति, खासकर सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय के बारे में जब उन्होंने अपनी बात सिर्फ केजरीवाल और तत्कालीन जेल मंत्री सत्येंद्र जैन को ही विश्वास पर बताये, वह भी बंद कमरे में; फिर मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास के उस बंद कमरे की बात कोई 20 किलोमीटर दूर स्थित तिहाड़ के तत्कालीन कारावास के महानिदेशक अलोक वर्मा के कक्ष तक कैसे पहुँच गयी? अगर केजरीवाल या फिर सत्येंद्र जैन उन बातों (शिकायतों) की चर्चा तत्कालीन कारा महानिदेशक के साथ नहीं किये तो फिर अचानक आलोक वर्मा के व्यवहार में परिवर्तन कैसे हो गया?
बहरहाल, आज न केजरीवाल गद्दी पर हैं और ना ही सत्येंद्र जैन। हाँ, एक बात की समानता दोनों में है – दोनों केंद्रीय कारा तिहाड़ में कारावास की सजा अवश्य भुगत लिए। इसी कारावास की स्थिति के बारे में सुनील गुप्ता वर्षों पहले उनसे शिकायत किये थे। केजरीवाल और जैन दोनों भ्रष्टाचार के मामले में ही कारावास में बंद हुए थे। दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य/जेल मंत्री सत्येंद्र जैन को 30 मई 2022 को गिरफ्तार किया गया था। 18 महीने बाद जैन 50000 की जमानत पर जेल से बाहर आये हैं। लेकिन न्यायालय उन्हें देश से बाहर जाने पर रोक लगा दी गई है। इतना ही नहीं, सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्रालय भारत के राष्ट्रपति से निवेदन किया है कि जैन को मनी लॉन्ड्रिंग मुकदमें के मामले में दण्डित करने का आदेश दें।
गुप्ता ने अपने किताब “ब्लैक वारंट” में लिखा है कि “सहारा समूह के मालिक सुब्रत राय भारतीय जेलों के इतिहास में पहला कैदी था, जिसे वातानुकूलित स्थान उपलब्ध कराया गया था। वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठकें करने हेतु इंटरनेट एवं वाई-फाई की सुविधाओं के साथ मोबाईल फोन और लैपटॉप में उपयोग की अनुमति भी प्रदान की गयी थी। आशुलिपिकों (स्टेनोग्राफर्स) एवं सहायकों के स्टाफ को प्रातः 6 बजे से रात 8 बजे तक वहां ठहरने की इजाजत दी गई थी। इन सुविधाओं के एवज में उच्चतम न्यायालय ने तिहाड़ कारावास को 1. 23 करोड़ रुपये का भुगतान का आदेश भी दिया था।
लेखनी के अनुसार, “मार्च 2014 में उच्चतम न्यायालय ने सुब्रत राय को अपने निवेशकों के 39000 करोड़ रुपये वापस लौटने की असमर्थता के कारण तिहाड़ भेज दिया गया था। 64-वर्षित ऐश्वर्यपूर्ण कारोबारी, जो आये दिन अमिताभ बच्चन, अनिल अम्बानी और ऐश्वर्या राय जैयसी फ़िल्मी हस्तितियों के साथ पार्टियां किया करता था, तिहाड़ का कैदी बन गया था और बाजार नियंता भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम्य बॉडी (सेबी) ने कहा था की उसे तब तक जमानत नहीं दी जाय, जब तक कि वह अपनी देनदारी के बराबर राशि न अर्जित कर ले। परन्तु सुब्रत राय के वकीलों ने न्यायालय को इस बात के लिए राजी कर लिया कि उसे बांछित राशि एकत्रित करने तक कारोबार करने की अनुमति दी जाय।”
किताब के पृष्ठ संख्या 228 पर गुप्ता-चौधरी ने लिखा है कि “न्यायालय ने नियंत्रित अवधि के लिए तिहाड़ के सम्मलेन कक्ष को सुब्रत राय की कोठरी के रूप में उपयोग करने की अनुमति प्रदान कर दी, जिसका अर्थ यह था की वह भारतीय जेलों के इतिहास में पहला कैदी था, जिस वातानुकूलित स्थान उपलब्ध कराया गया था। वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठकें करने हेतु इंटरनेट एवं वाई-फाई की सुविधाओं के साथ मोबाईल फोन और लैपटॉप में उपयोग की अनुमति भी प्रदान की गयी थी। यह सुविधा उसे 57 दिनों की निर्धारित अवधि हेतु प्रदान की गयी थी, ताकि वह अपनी सुविधा संपन्न संपत्ति को बेचने के लिए मोल-भाव कर सके; परन्तु सुब्रत राय को उसकी दो वर्षों की समूची अवधि के निवास के दौरान शाही (रेड कार्पेट) सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई।”
गुप्ता आगे लिखे हैं: “बोतल बंद पानी और रेस्तरां के भोजन को तो भूल जाइये, जेल में बनाये गए विशेष न्यायालय परिसर में अब उन्मुक्त मद्द्य प्रवाह हो रहा था। अतीत में कैदी एक या दो पैग का जुगाड़ का लेते थे, परन्तु यहाँ कारोबार की बैठकों की आड़ में ‘विस्की भी अनुमत्य थी। उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित किये गए सचिवालय कर्मचारियों को देय भत्ते के कारण महिलाएं भी अति विशिष्ठ लोगों (वीआईपी) से सम्मलेन कक्ष में मिलने में सक्षम थीं। सहारा के दो कर्मचारियों को भी सुब्रत राय के साथ जेल में बंद किया गया था।
गुप्ता कहते हैं कि “इस सबके बारे में कुछ चीजें मुझे सचमुच बहुत व्यथित करती थी। शायद इसका कारण यह सोच थी की अब कोई भी मेरी बात सुनने को तैयार नहीं था। यह वर्ष 2015 की बात थी और मैं अवकाश ग्रहण करने के निकट था। जब भी मैं अपने अधिकारियों के कक्ष में जाता था और उन्हें मनु शर्मा या सहारा प्रमुख के साथ खाते देखता था तो वे मेरे लिए दरवाजा बंद कर देते थे। मैं उसके बारे में कुछ करना चाहता था।”
वार्तालाप के दौरान गुप्ता कहे भी थे और किताब में भी उद्धृत किया गया है कि “मैंने दिल्ली के नए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलने का निर्णय किया। प्रशासनिक तौर पर हम सब दिल्ली सरकार को अपना प्रतिवेदन देते थे और भ्रष्टाचार विरोध मुख्यमंत्री और प्रिय विषय था। यदि किसी के पास सुब्रत राय का विरोध करने का साहस था तो वह आम आदमी पार्टी के मुखिया थे। दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली सरकार के नियुक्त अधिवक्ता राहुल मेहरा के साथ बैठक आयोजित की गई न्यायालय में मेरी पेशियों के के कारण हम एक दूसरे को अच्छी तरह जानते थे और मैंने संक्षेप में समझा दिया था की हमें इस मुलाकात की आवश्यकता क्यों थी। अप्रैल 2015 में मुझे और राहुल मेहरा को मुख्यमंत्री से मिलने में अधिक समय नहीं लगा और हम दोनों उनके सामने बैठे थे।”
यह तिहाड़ में मेरी अंतिम लड़ाई होने जा रही थी। मैंने उन्हें वह सब कुछ बता दिया, जो मैंने देखा था-किस तरह बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के कारण समुच जेल प्रणाली धूल चाट रही थी। अरविन्द केजरीवाल ने एक घंटे तक बड़े धैर्य से मेरी बात सुनी और उसके बाद मुझे दो दिन बाद उनके घर आकर मिलने के लिए कहा। मुलाकात का समय प्राप्त करने के लिए मैंने एक बार फिर राहुल मेहरा की सहायता ली और उनके सहायक वैभव के साथ समन्वय स्थापित किया, जो अंततः जून में मुझे मुख्यमंत्री के आवास पर ले गए। इस बार बैठक में जेल प्रभारी सत्येंद्र जैन सहित अन्य लोग भी मौजूद थे, जिन्होंने इस बात की पुष्टि की की उन्हें भी कुछ कैदियों का पक्ष लेने के कारण आलोक वर्मा के विरुद्ध शिकायत प्राप्त हुयी थी। उनके लाभ के लिए मैंने सहारा युग में मैंने जो कुछ देखा था, उसे दोबारा दोहरा दिया। जैसे ही चाय परोसी गयी, मैंने उनसे तिहाड़ में छपा डलवाने का अनुरोध किया, ताकि मैंने जो आरोप लगाया था, उसकी सत्यता परमिट हो सके।
दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल को उद्धृत करते गुप्ता कहते हैं: “सुनील, मैं सब कुछ जनता हूँ। अरविन्द केजरीवाल ने कहा, ‘मुझे साक्ष्य की आवश्यकता है। मुझे कोई फोटो या वीडियो लेकर दो, जिसे दिखाया जा सके। वरना यह भी एक कहानी बनकर रह जाएगी। मैं कोई फोटो या वीडियो नहीं ला सकता’, मैंने उनसे कहा , ‘परन्तु मैं सिद्ध कर सकता हूँ की सुब्रत राय को लाभ पहुँचाया जा रहा है। तत्पश्चात केजरीवाल सत्येंद्र जैन की ओर मुखातिब हुए और उनसे पूछे की क्या कोई छापा मारना संभव था? उन्होंने अपनी सहमति दे दी। मैंने उनसे कहा की यदि आप शाम में छपा मारें तो आपको वहां शराब की बोतलें भी मिल सकती हैं। ‘
इतना ही नहीं, गुप्ता-केजरीवाल-जैन वार्तालाप के क्षण ही एक प्रश्न केजरीवाल ने किया था “‘लेकिन इसका आरोप अपने ऊपर कौन लेगा? क्या वह सुप्रिंटेन्स्डेट नहीं होगा?” किताब कहता है: “वे सही थे। सारा दोष केवल उसी एक व्यक्ति के मत्थे मढ़ दिया जायेगा और अन्य लोग अपना कार्य पूर्ववत ऐसे जारी रखेंगे, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। मेरे (केजरीवाल) कहने का आशय यह है की तुम यह कैसे सावित करोगे की वरिष्ठ अधिकारी सुब्रत राय के चरण स्पर्श करते थे, जिसे मैंने अपनी आँखों से देखा था। वे वस्तुतः उसके सामने दास बन जाते थे।”
“मैंने (गुप्ता) मुख्यमंत्री से कहा की इस बारे में आपको निर्णय करना है। संभव है मैंने छापा मारने का जो सुझाव दिया है, उसके परिणाम स्वरुप कोई जांच बैठा दी जाए, जिसकी आंच महानिदेशक के शीर्ष स्तर तक पहुँच जाय। किताब कहता है कि “उन्होंने कहा की वे इस विषय में विचार करके सूचित करेंगे। मैंने उन्हें बताया की मेरे उन तक पहुँचने का एकमात्र कारण यह था की मैं उनके ऊपर भरोसा करता था और उनकी निष्ठा का सम्मान करता था। उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया और मैं वहां से वापस चला आया।”
गुप्ता-केजरीवाल-जैन वार्तालाप शायद खुली हवा के रास्ते कोई 20 किलोमीटर दूर तिहाड़ के कारावास महानिदेशक के कक्षा ता पहुँच गयी। अब सवाल यह था कि केजरीवाल-जैन में किसने महानिदेशक को वार्तालाप का सार बताया? गुप्ता ने अपनी पुस्तक में लिखा है: “वह मुझे हर बार यही यही सन्देश देते थे की ‘हमें आलोक वर्मा को रेंज हाथ पकड़ने की आवश्यकता है। और मैं हर बार उनसे यही कहता था की ‘इसका दायित्व आप लोगों पर है। मेरा कर्तव्य था आपको सूचित करना।”
तिहाड़ की हवाएं बदल गयी थी। एक महीने बाद “आलोक वर्मा ने मुझे ऑफिस में बुलाया,” गुप्ता ने पृष्ठ संख्या 231 पर अलोक वर्मा को उद्धृत करते लिखा : “तुम सत्येंद्र जैन को कैसे जानते हो? उन्होंने पूछा और कहा की जैन तुम्हारी बहुत प्रशंसा करते हैं।” गुप्ता कहते हैं कि “मैंने उन्हें बताया की वह मेरे स्थानीय विधायक थे और चुकी वह जेल मंत्री थे, इसलिए मैं सरकारी कारणों से उनसे मिलता रहता था। अब तक मैं थोड़ा असहज था। अगले दिन मुझे आलोक वर्मा के कार्यालय में पुनः बुलाया गया। इस बार मुझे थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के लिए कहा। जब मैं उनके कमरे के अंदर गया तो उनके व्यवहार में विशिष्ठ परिवर्तन देखा। राजनितिक नेताओं के पास जाकर उनसे आवश्यकता है? क्या तुम्हे यह नहीं मालूम कि यह आचरण नियमों के विरुद्ध है?
जब उन्होंने आगे जोड़ा कि “उस गरीब के नुकशान का असली कारण तुम्ही हो’, मुझे थोड़ी देर में यह बात समझ में आ गयी की गरीब से उनका आशय सुब्रत राय से था और उसकी विशेष सुविधाओं के प्रति उर्वर खतरा था,” गुप्ता आगे कहते हैं: “उनके द्वारा मुझे कहे गए शब्द इस बात का प्रत्यक्ष संकेत थे कि मेरी शिकायत बहरे कानों में जाकर विलीन हो गयी थी। मैं उनकी बात को नजरअंदाजक कर सकता था, परन्र्तू मुझे कुछ दिनों बाद पता चला की वे लोग मेरे खिलाफ मनगढंत आरोप लगाकर बदला लेने की योजना बना रहे हैं। इसलिए मैं सत्येंद्र जैन से दोबारा मिलने का समय माँगा, जिन्होंने मुझे आश्वासन दिया था कि मैं व्यर्थ ही परेशान हो रहा हूँ। मुझे कुछ नहीं होगा।”‘
उस दिन लम्बी उच्छ्वास लेते गुप्ता कहते हैं: “मेरे अवकाश ग्रहण के मात्र एक सप्ताह पूर्व मुझे एक आरोप पत्र थमा दिया गया, जिसमें कहा गया था की मैं आठ वर्ष पूर्व स्टाफ को ट्रेनिंग देते वक्त कुछ वित्तीय अनियमितताएं की थीं। यह बात जुलाई 2016 की की जा रही थी, जबकि वर्णित विलों का सम्बन्ध वर्ष 2007 से 2014 के बीच की तिथियों का था। मैं अत्यंत क्रोधित था, क्योंकि उन चीजों की खरीद का आदेश दो महानिदेशकों द्वारा दिया गया था – बी के गुप्ता ने प्रोजेक्टर एवं स्क्रीन की खरीद का आदेश दिया था और नीरज कुमार ने लैपटॉप एवं फॉक्स मशीन खरीदने का आदेश दिया था। चुकी मैंने सुब्रत राय को उपलब्ध कराई गई विशेष सुविधाओं का विरोध करने का हिम्मत दिखाई थी, इसलिए वे मुझे फंसाने की कोशिश कर रहे थे। अलोक वर्मा पूरी शिकायत मेरे विरुद्ध मोड़ने में सफल रहे। एक वर्ष बाद उन बिलों को गृह मंत्रालय भेजा गया जहाँ उसका निस्तारण कर दिया गया। परन्तु अब तक काफी देर हो चुकी थी। वे अपना प्रतिशोध लेने में सफल हो गए थे।”
बहरहाल, गुप्ता कहते हैं “35 वर्षों की सेवा के उपरांत उसके अंतिम कालखंड में मुझे उस सम्मान से वंचित कर दिया गया, जिसका मैं अधिकारी था। यहाँ तक कि मेरे स्टाफ के लोगों ने भी आलोक वर्मा के इशारे पर मेरी बात पर ध्यान देना बंद कर दिया। मैं कार्यालय में बैठा रहता था और गार्ड कहीं अन्यत्र होते थे। यहाँ तक की मेरे चपरासी ने भी किसी न किसी बहाने मेरा काम करना बंद कर दिया था। अंततोगत्वा, ऐसी निष्पक्ष जेलर की बात कौन सुनता है, जो रिटायर होने वाला हो .जिस निकृष्टता से मैं अपनी पूरी नौकरी के दौरान बचता रहा, वही मुझे अंत में विदाई के उपहार के रूप में आच्छादित करती नजर आई। अंततः, मैं तिहाड़ से मुक्त हो गया।
क्रमश: ….