गंगा की ‘मृत धाराओं को जीवित करना’ यानी भारत की ‘संस्कृति, अध्यात्म और गरिमा को पुनः स्थापित करना’ है 

गंगा की मृत धाराओं को जीवित करना यानी भारत की संस्कृति, अध्यात्म और गरिमा को जीवन पुनः स्थापित करना है 

नई दिल्ली / पटना : विगत दिनों भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी का कहना था कि जलग्रहण क्षेत्र की दृष्टि से गंगा बेसिन भारत का सबसे बड़ा नदी बेसिन है, जो देश के कुल भूमि द्रव्यमान (8,61,404 वर्ग किमी) का 26% है और इसकी लगभग 43% आबादी (2001 की जनगणना के अनुसार 448.3 मिलियन) का समर्थन करता है। बेसिन पूर्वी देशांतर 73°02′ और 89°05′ और 21°06′ और 31°21′ के उत्तरी अक्षांशों के बीच स्थित है, जो भारत, नेपाल और बांग्लादेश में फैले 1,086, 000 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है।  

गंगा बेसिन का लगभग 79 प्रतिशत क्षेत्र भारत में है। बेसिन में 11 राज्य शामिल हैं, जैसे उत्तराखंड, यूपी, एमपी, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली। विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजनाओं (एनजीआरबीपी) का वर्तमान फोकस है उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में बहने वाली गंगा नदी के मुख्य स्टेम पर । इसके अलावे इस बात पर भी बहुत ध्यान दिया जा रहा है कि गंगा के किनारे बसे शहरों की सुंदरता को अधिकाधिक निखारा जाए, साथ ही, जो धाराएं ‘मृत’ हो गई हैं, उसे पुनः जीवित किया जाए। गंगा की धाराओं को पुनः जीवित करना यानी अपनी संस्कृति, सभ्यता को अनंतकाल के लिए पुनः  जीवित करना। 

अधिकारी का कहना है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विगत दिनों जिस कदर पटना जिले के बख्तियारपुर और अथमलगोला के घोसवरी घाट ठाकुरबाड़ी, सीढ़ी घाट, मुक्तिधाम घाट होते हुए रामनगर घाट तक पुरानी एवं मृतप्राय: गंगा नदी की उपधारा को पुनर्जीवित करने के कार्य का शुभारंभ किया, यह न केवल संस्कृति और सभ्यता को जीवित करेगा; बल्कि आने वाले दिनों में एक मृत मानवता को भी जीवनदान देगा। गंगा नदी की यह उपधारा दशकों से मृत हो गई थी।

इसका दृष्टान्त यह है कि इस कार्य प्रारम्भ करते ही प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने जीवन के साठ-दशक पुरानी बातों को याद करने लगे और कहने लगे कि इसी सीढ़ी घाट के पास ही वे सभी बचपन में गंगा नदी में स्नान करने आते थे। यह महज एक इत्तेफाक नहीं है। गंगा की मृत धारा को जीवित करने के साथ ही नीतीश कुमार जैसे, न केवल बिहार, बल्कि उन तमाम प्रदेशों में जहाँ गंगा की धाराएं ‘मृत’ हो गई हैं और उन्हें जीवित की जा रही है, लाखों-लाख लोग होंगे जिनका ‘बचपन पुनः जीवित’ हो जायेगा, चाहे वे उम्र के जिस पड़ाव पर हों। और इस सम्पूर्ण कार्य अग्रणी है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्हों गंगा की धाराओं पर विशेष ध्यान दिए हैं। 

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गंगा नदी का न सिर्फ़ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि देश की 40% आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। 2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, “अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है”। इस सोच को कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दे दी और इसे 100% केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया।

गंगा के किनारे बदलता पटना – तस्वीर इंटरनेट से

यह समझते हुए कि गंगा संरक्षण की चुनौती बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी है और इसमंं कई हितधारकों की भी भूमिका है, विभिन्न मंत्रालयों के बीच एवं केंद्र-राज्य के बीच समन्वय को बेहतर करने एवं कार्य योजना की तैयारी में सभी की भागीदारी बढ़ाने के साथ केंद्र एवं राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर करने के प्रयास किये गए हैं। कार्यक्रम के कार्यान्वयन को शुरूआती स्तर की गतिविधियों (तत्काल प्रभाव दिखने के लिए), मध्यम अवधि की गतिविधियों (समय सीमा के 5 साल के भीतर लागू किया जाना है), और लंबी अवधि की गतिविधियों (10 साल के भीतर लागू किया जाना है) में बांटा गया है।

शुरूआती स्तर की गतिविधियों के अंतर्गत नदी की उपरी सतह की सफ़ाई से लेकर बहते हुए ठोस कचरे की समस्या को हल करने; ग्रामीण क्षेत्रों की सफ़ाई से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों की नालियों से आते मैले पदार्थ (ठोस एवं तरल) और शौचालयों के निर्माण; शवदाह गृह का नवीकरण, आधुनिकीकरण और निर्माण ताकि अधजले या आंशिक रूप से जले हुए शव को नदी में बहाने से रोका जा सके, लोगों और नदियों के बीच संबंध को बेहतर करने के लिए घाटों के निर्माण, मरम्मत और आधुनिकीकरण का लक्ष्य निर्धारित है।

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मध्यम अवधि की गतिविधियों के अंतर्गत नदी में नगर निगम और उद्योगों से आने वाले कचरे की समस्या को हल करने पर ध्यान दिया जाएगा। नगर निगम से आने वाले कचरे की समस्या को हल करने के लिए अगले 5 वर्षों में 2500 एमएलडी अतिरिक्त ट्रीटमेंट कैपेसिटी का निर्माण किया जाएगा। लंबी अवधि में इस कार्यक्रम को बेहतर और टिकाऊ बनाने के लिए प्रमुख वित्तीय सुधार किये जा रहे हैं। परियोजना के कार्यान्वयन के लिए वर्तमान में कैबिनेट हाइब्रिड वार्षिकी आधारित पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर विचार किया जा रहा है। अगर यह मंजूर हो जाता है तो विशेष प्रयोजन वाले वाहन सभी प्रमुख शहरों में रियायत का प्रबंधन करेगा, प्रयोग किये गए पानी के लिए एक बाजार बनाया जाएगा और परिसंपत्तियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जाएगी।

औद्योगिक प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए बेहतर प्रवर्तन के माध्यम से अनुपालन को बेहतर बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। गंगा के किनारे स्थित ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को गंदे पानी की मात्रा कम करने या इसे पूर्ण तरीके से समाप्त करने के निर्देश दिए गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इन निर्देशों के कार्यान्वयन के लिए कार्य योजना पहले से ही तैयार कर चुका है और सभी श्रेणी के उद्योगों को विस्तृत विचार-विमर्श के साथ समय-सीमा दे दी गई है। सभी उद्योगों को गंदे पानी के बहाव के लिए रियल टाइम ऑनलाइन निगरानी केंद्र स्थापित करना होगा।

इस कार्यक्रम के तहत इन गतिविधियों के अलावा जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण (वन लगाना), और पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं। महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित प्रजातियों, जैसे – गोल्डन महासीर, डॉल्फिन, घड़ियाल, कछुए, ऊदबिलाव आदि के संरक्षण के लिए कार्यक्रम पहले से ही शुरू किये जा चुके हैं। इसी तरह ‘नमामि गंगे’ के तहत जलवाही स्तर की वृद्धि, कटाव कम करने और नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति में सुधार करने के लिए 30,000 हेक्टेयर भूमि पर वन लगाये जाएंगे। वनीकरण कार्यक्रम 2016 में शुरू किया जाएगा। व्यापक स्तर पर पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए 113 रियल टाइम जल गुणवत्ता निगरानी केंद्र स्थापित किये जाएंगे। लंबी अवधि के तहत ई-फ़्लो के निर्धारण, बेहतर जल उपयोग क्षमता, और सतही सिंचाई की क्षमता को बेहतर बना कर नदी का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित किया जाएगा।

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इसका उल्लेख करना आवश्यक है कि गंगा नदी की सफ़ाई इसके सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व और विभिन्न उपयोगों के लिए इसका दोहन करने के कारण अत्यंत जटिल है। विश्व में कभी भी इस तरह का जटिल कार्यक्रम कार्यान्वित नहीं किया गया है और इसके लिए देश के सभी क्षेत्रों और हरेक नागरिक की भागीदारी आवश्यक है। 

बहरहाल, विशाल जनसंख्या और इतनी बड़ी एवं लंबी नदी गंगा की गुणवत्ता को बहाल करने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है। सरकार ने पहले ही बजट को चार गुना कर दिया है लेकिन अभी भी आवश्यकताओं के हिसाब से यह पर्याप्त नहीं होगा। स्वच्छ गंगा निधि बनाई गई है जिसमें आप सभी गंगा नदी को साफ़ करने के लिए धनराशि का योगदान कर सकते हैं। रिड्युस (कमी), रि-यूज (पुनः उपयोग) और रिकवरी (पूर्ववत स्थिति): हममें से अधिकांश को यह पता नहीं है कि हमारे द्वारा इस्तेमाल किया गया पानी और हमारे घरों की गंदगी अंततः नदियों में ही जाती है अगर उसका सही से निपटान न किया गया हो। सरकार पहले से ही नालियों से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रही है लेकिन नागरिक कचरे और पानी के उपयोग को कम कर सकते हैं। उपयोग किए गए पानी, जैविक कचरे एवं प्लास्टिक की रिकवरी और इसके पुनः उपयोग से इस कार्यक्रम को काफ़ी लाभ मिल सकता है।

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