क्या श्री जगदम्बिका पाल साहब !! ‘प्रतिवेदन’ शीतकालीन सत्र में या ‘मामला’ प्रशीतित कक्ष (डीप फ्रीज़र) में, क्या कहते हैं ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल और संसद भवन

विजय चौक (नई दिल्ली) से : एक-चौथाई दशक पहले सन 1998 में एक दिन के लिए अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और एक-चौथाई दशक बाद तीन-तीन राजनीतिक पार्टियों में कूदते-फांदते भारतीय जनता पार्टी का शरणागत हुए; उर्दू, फ़ारसी भाषाओँ में ‘कमजोर’ लोक सभा के सांसद और वक़्फ़ संशोधन विधेयक पर बने संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल क्या संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर सकेंगे? सैद्धांतिक दृष्टि से ‘हां’ कह सकते हैं, लेकिन ‘व्यावहारिक दृष्टि’ से ‘नहीं’ यह पक्का है । वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निगाहें समिति के प्रतिवेदन पर टिकी है। 

रायसीना पहाड़ी के सूत्रों के अनुसार ‘यह असंभव’ है। https://www.aryavartaindiannation.com से बात करते हुए सूत्रों का कहना है कि “यह राजनीति है और राजनीति में वैसे कुछ भी हो सकता है। परन्तु इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसदीय संयुक्त समिति का नेतृत्व करने वाले सांसद सम्मानित जगदम्बिका पाल का उर्दू, फ़ारसी से दूर-दूर तक कोई बहुत बेहतर नाता नहीं है। विगत लोक सभा के चुनाव में 78 मुसलमान अभ्यर्थी चुनावी मैदान में थे जिसमें 24 उम्मीदवार ही जीतकर संसद पहुँच सके। इस 24 में 21 सांसद विपक्षी इंडिया गठबंधन के दलों – 9 सांसद कांग्रेस, 5 तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), 4 समाजवादी पार्टी, 3 इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और एक नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के सांसद हैं। एआईएमआईएम के एक हैं। इसके अलावा और दो मुस्लिम सांसद भी हैं जो निर्दलीय जीते हैं। दुर्भाग्य से सत्तारूढ़ एनडीए का एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे पारी में। यह अलग बात है कि देश की कुल आबादी में मुसलमानों की संख्या लगभग 15 फीसदी है।” 

सूत्रों का कहना है कि संयुक्त समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल ने आम जनता से इस संशोधन विधेयक पर राय मांगी थी और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि देश भर से अब तक करीब 1.2 करोड़ प्रतिक्रियाएं ई-मेल के जरिए संयुक्त समिति को प्राप्त हो चुकी है। इसके अलावा 75,000 प्रतिक्रियाएं दस्तावेज के रूप में संयुक्त समिति के संसद भवन स्थित कार्यालय में पहुंची है। संसद के इतिहास में किसी कानून के संशोधन के लिए आम जनता की इतनी बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाएं शायद इससे पहले किसी कानून के लिए नहीं आई थी। प्रतिक्रिया की भाषा भी अनेकानेक हैं ,हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी में भी प्रतिक्रियाएं आयी है। यही कारण है कि समिति के अध्यक्ष ने दर्जनों से अधिक लोगों को इन सुझावों को अलग-अलग करने, पढ़ने, मुख्य बातों को लिखने, टिपण्णी बनाने में लगाए हैं। इतना ही नहीं, कई भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को, दस्तावेजों वाली भाषाओँ के विद्वानों और विदुषियों को भी संभवतः अलग से न्यौता देने की बात हो रही है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि समिति के अध्यक्ष को लोकसभा सचिवालय से और अधिक कर्मचारियों की मांग करनी पड़े। सवा-करोड़ प्रतिक्रियाओं के एक-एक शब्दों को पढ़ना, उसका भाव-भंगिमा समझना, टिपण्णी लिखना – यह आसान नहीं है।”

सूत्रों का कहना है कि “आखिर ऐसा क्या हुआ कि सरकार इस विकट समस्या को छेड़ दी, खासकर उस समय जब संसद के शीतकालीन सत्र के आसपास महाराष्ट्र विधान सभा का चुनाव होना है। महाराष्ट्र चुनाव के बाद अगले वर्ष (2025) में दिल्ली और बिहार विधान सभा का चुनाव होना है। सन 2026 में पांच राज्यों – असम, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल – में चुनाव होना है। ये सभी राज्य मुस्लिम मतदाताओं वाला राज्य है। किसी भी प्रकार की गलती इन आठ राज्यों के विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ केंद्रीय सरकार के लिए घातक हो सकता है। वैसे यह समझ के परे है कि आखिर ऐसी विषम परिस्थिति में किस महानुभाव या राजनीतिक विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री को यह सुझाव दिया। ऐसी स्थिति में इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते हैं कि यह मुस्लिम मतदाताओं में एक रुझान जागृत करने के लिए संयुक्त संसदीय समिति का यह जांच-पड़ताल, उसका प्रतिवेदन प्रशीतित कक्ष (डीप फ्रीज़र) में रख दिया जाय। राजनीती है, कुछ भी हो सकता है।”

@अखबारवाला001(219) ✍ ‘सशक्तिकरण और दक्षता’ के नाम पर सरकार ‘वक्फ’ को नियंत्रित करना चाह रही है क्या?

बहरहाल, पिछले वर्ष दिसंबर महीने में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लोक सभा को बताई की सर्वोच्च न्यायालय सहित देश के उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में करीब पांच करोड़ से अधिक मुकदमा मुद्दत से लंबित है, तो मुद्दई और मुद्दालयों के साथ-साथ देश के मतदाताओं, समाचार पत्र-पत्रिकाओं के पाठकों और टीवी के दर्शकों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उस समय केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल अपने चेहरे पर बिना किसी सिकन के साथ लोक सभा को बताये कि देश के 25 उच्च न्यायालयों में तक़रीबन 61.7 लाख और जिला, सत्र तथा अन्य निचली अदालतों में कोई 4.4 करोड़ मुकदमा लंबित है। उन्होंने यह भी कहा कि पूरे न्यायिक व्यवस्था में कोई पांच करोड़ से अधिक मुक़दमा लंबित है। उस मंत्रिमंडल में किरण रिजूजी क़ानून राज्य मंत्री थे। 

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पिछले वर्ष तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार को सत्ता में आये कोई 9 वर्ष हो चुके थे। कानून मंत्री इन लंबित मुकदमों का शीघ्रातिशीघ्र निष्पादन कैसे हो, इस विषय पर कोई व्याख्यान नहीं दिए। अलबत्ता, लंबित मुकदमों के आंकड़े को बताकर संसद में बैठ गए। ऐसा लगा जैसे इन लंबित मुकदमों के प्रति, मुद्दई और मुद्दालय के प्रति, इस क्षेत्र के रखरखाव पर सरकारी कोष से निकलने वाली राशि के प्रति, न्यायिक व्यवस्था के प्रति देश के आम लोगों के विश्वास के प्रति उनके चेहरे पर, कपाल पर, मुख पर कोई शिकन नहीं देखा गया। आप चाहें तो संसद की कार्यवाही का टीवी फुटेज देख सकते हैं। 

अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री किरेन रिजिजू,

लेकिन नौ महीने बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तीसरी पारी की सरकार बनाये, उनके मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री किरेन रिजिजू, जो पहले कानून मंत्री भी रह चुके हैं, ने जब कहा कि “वक्फ बोर्ड के अंदर में 12,792 मुकदमे आज लंबित है। अधिकरणों (ट्रिब्यूनल) में कुल 19,207 मुक़दमे लंबित हैं । क्यों इसको हम खत्म नहीं कर सकते हैं। समय-सीमा (टाइमलाइन) बहुत जरूरी है, न्याय मिलना चाहिए लेकिन समय पर न्याय मिलना चाहिए। अब हमने टाइमलाइन सेट कर दिया है। अपील 90 दिन के अंदर, 6 महीने के अंदर डिस्पोजल होना चाहिए।” इतना ही नहीं, मंत्री महोदय अपने भाषण के दौरान शोर करने वाले विपक्षी सांसदों से कहा, “अगर सुनना नहीं चाहते हैं तो इतना सवाल क्यों पूछा। आप सवाल पूछकर भाग जाना चाहते हो, ऐसा नहीं होने देंगे।”

किरण रिजिजू वक्फ संशोधन विधेयक के बारे में बोल रहे थे जो लोकसभा में पेश हो गया था। रिजिजू ने कहा कि वक्फ संशोधन बिल पहली बार इस सदन में पेश नहीं किया जा रहा है। आजादी के बाद 1954 में कानून  लाया गया। उसके बाद कानून में कई संशोधन हुए। हम 1995 के कानून में संशोधन के लिए विधेयक  ला रहे हैं क्योंकि 2013 में ऐसे प्रावधान लाए गए, जिसने वक्फ कानून 1995 का स्वरूप बदल दिया है। आज जो विधेयक लाया जा रहा है वह सच्चर समिति की रिपोर्ट (जिसमें सुधार की बात कही गई थी) पर आधारित है, जिसे आपने (कांग्रेस ने) बनाया था। करीब एक घंटा बोलने के बाद रिजिजू ने बिल को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की बात कही, प्रस्ताव स्वीकार हुआ। किरण रिजूजीजब पिछले  मंत्रिमंडल में कानून मंत्री थे, इतनी व्याकुलता देश के न्यायालयों में लंबित मुकदमों के निष्पादन के बारे में नहीं दिखाये थे, वजह चाहे जो भी हो । वर्तमान मंत्रिमंडल में वे अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री तो हैं ही, संसदीय कार्य मंत्रालय का जिम्मा भी उठाये हुए हैं। खैर। 

पिछले 8 अगस्त, 2024 को दो विधेयक, वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 , लोकसभा में पेश किए गए, जिनका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के काम को सुव्यवस्थित करना और वक्फ संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है। सरकार का कहना है कि वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 का उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करना है, ताकि वक्फ संपत्तियों के विनियमन और प्रबंधन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों का समाधान किया जा सके। संशोधन विधेयक का उद्देश्य भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में सुधार करना है। इसका उद्देश्य पिछले अधिनियम की कमियों को दूर करना और अधिनियम का नाम बदलने, वक्फ की परिभाषाओं को अद्यतन करने, पंजीकरण प्रक्रिया में सुधार करने और वक्फ रिकॉर्ड के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी की भूमिका बढ़ाने जैसे बदलाव करके वक्फ बोर्डों की दक्षता बढ़ाना है । 

इतना ही नहीं, मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 का प्राथमिक उद्देश्य मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1923 को निरस्त करना है, जो औपनिवेशिक युग का कानून है जो आधुनिक भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए पुराना और अपर्याप्त हो गया है। निरसन का उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में एकरूपता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, इस प्रकार इस निरर्थक कानून के निरंतर अस्तित्व के कारण होने वाली विसंगतियों और अस्पष्टताओं को समाप्त करना है। वर्तमान में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को संसद की संयुक्त समिति गहराई से अध्ययन कर रही है। 

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सरकार ने संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पेश करते समय जो जानकारी दी, उसके अनुसार देश का वक्फ बोर्ड दुनिया का एकमात्र ऐसा वक्फ बोर्ड है, जिसके पास सबसे अधिक संपत्तियां हैं। विश्व में कुल 57 इस्लामिक राष्ट्रों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो देश में 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों को नियंत्रित करता है, जिसका अनुमानित मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपये है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी वक्फ होल्डिंग है। इसके अलावा, सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड भारत में सबसे बड़ा भूस्वामी है। सरकारी आकंड़ों के मुताबिक, वक्फ बोर्ड के अंतर्गत 356,051 वक्फ एस्टेट पंजीकृत हैं। वक्फ बोर्ड के अंतर्गत 872,328 अचल और 16,713 चल संपत्तियां पंजीकृत हैं। इसके पास अब तक 330000 डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड हैं। कहते हैं तुर्की, लीबिया, मिस्त्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक जैसे इस्लामिक राष्ट्रों में वक्फ बोर्ड की कोई परंपरा नहीं है। यह भी कहा जाता है कि इन संपत्तियों के कारण वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार और मनमाने तौर तरीकों का बोलबाला है। सरकार मानती है कि इसे खत्म करके इन वक्फ संपत्तियों के बेहतर रखरखाव की मांग मुस्लिम समाज के कई समुदायों से पिछले कई सालों से उठती रही है। 

सरकार यह भी कहती है कि मंत्रालय को मुसलमानों और गैर-मुसलमानों से वक्फ भूमि पर जानबूझकर अतिक्रमण और वक्फ संपत्तियों के कुप्रबंधन जैसे मुद्दों पर बड़ी संख्या में शिकायतें और अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं। मंत्रालय ने प्राप्त शिकायतों की प्रकृति और मात्रा का विश्लेषण किया है और पाया है कि अप्रैल, 2023 से प्राप्त 148 शिकायतें ज्यादातर अतिक्रमण, वक्फ भूमि की अवैध बिक्री, सर्वेक्षण और पंजीकरण में देरी और वक्फ बोर्डों और मुतवल्लियों के खिलाफ शिकायतों से संबंधित हैं। मंत्रालय ने अप्रैल, 2022 से मार्च, 2023 तक सीपीजीआरएएमएस (केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली) पर प्राप्त शिकायतों का भी विश्लेषण किया है और पाया है कि 566 शिकायतों में से 194 शिकायतें वक्फ भूमि पर अतिक्रमण और अवैध रूप से हस्तांतरण से संबंधित थीं और 93 शिकायतें वक्फ बोर्ड/मुतवल्लियों के अधिकारियों के खिलाफ थीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

लेकिन डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने कहा कि इस बिल के पास होने के बाद गैर मुसलमान भी बोर्ड के सदस्य बन सकेंगे, जो गलत है। उन्होंने कहा कि कोई पसंद नहीं करेगा कि जो आपके धर्म का नहीं है, वो आपके धर्म में हस्तक्षेप करे। इस बिल के माध्यम से विशेष समुदाय को टारगेट किया जा रहा है। यह बिल मुस्लिम और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ है। इसी तरह, टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने भी इस बिल को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के विरुद्ध बताया। उन्होंने कहा कि यह बिल संविधान विरोधी है। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पर कहा कि मैं इस विधेयक का विरोध करता हूं। विधेयक के जरिए संविधान की धज्जियां उड़ाने की कोशिश की जा रही है। वक्फ बोर्ड की संपत्ति को खत्म करके आप डीएम राज लाकर बोर्ड की संपत्ति को नष्ट कर रहे हैं।

कहते हैं कि वक्फ इस्लामी कानून के तहत धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों को संदर्भित करता है, और संपत्ति का कोई अन्य उपयोग या बिक्री निषिद्ध है। वक्फ का मतलब है कि संपत्ति का स्वामित्व अब वक्फ करने वाले व्यक्ति से छीन लिया गया है और अल्लाह द्वारा हस्तांतरित और हिरासत में लिया गया है। ‘वाकिफ’ वह व्यक्ति होता है जो लाभार्थी के लिए वक्फ बनाता है। चूंकि वक्फ संपत्तियां अल्लाह को दी जाती हैं, इसलिए भौतिक रूप से मूर्त इकाई की अनुपस्थिति में, वक्फ का प्रबंधन या प्रशासन करने के लिए वक्फ या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा एक ‘मुतवल्ली’ नियुक्त किया जाता है। एक बार वक्फ के रूप में नामित होने के बाद, स्वामित्व वक्फ (वाकिफ) करने वाले व्यक्ति से अल्लाह को हस्तांतरित हो जाता है, जिससे यह अपरिवर्तनीय हो जाता है। 

भारत में, वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दिनों से जुड़ा हुआ है, जब सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम ग़ौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के पक्ष में दो गाँव समर्पित किए और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंप दिया। जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, भारत में वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती गई। 19वीं सदी के आखिर में भारत में वक्फ को खत्म करने का मामला तब उठाया गया था जब ब्रिटिश राज के दिनों में वक्फ संपत्ति को लेकर एक विवाद लंदन की प्रिवी काउंसिल में पहुंचा था। इस मामले की सुनवाई करने वाले चार ब्रिटिश जजों ने वक्फ को “ सबसे खराब और सबसे घातक किस्म की शाश्वतता ” बताया और वक्फ को अमान्य घोषित कर दिया। हालांकि, चारों जजों के फैसले को भारत में स्वीकार नहीं किया गया और 1913 के मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम ने भारत में वक्फ संस्था को बचा लिया। तब से, वक्फ पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। 

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सरकार का मानना है कि वक्फ अधिनियम, 1954 – स्वतंत्रता के बाद से वक्फ को और मजबूत किया गया है। 1954 के पारित वक्फ अधिनियम ने वक्फों के केंद्रीकरण की दिशा में एक मार्ग प्रदान किया। 1954 के वक्फ अधिनियम के तहत भारत सरकार द्वारा 1964 में एक वैधानिक निकाय, सेंट्रल वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना की गई थी। यह केंद्रीय निकाय विभिन्न राज्य वक्फ बोर्डों के तहत काम की देखरेख करता है, जिन्हें वक्फ अधिनियम, 1954 की धारा 9(1) के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था। वक्फ अधिनियम, 1995 को भारत में वक्फ संपत्तियों (धार्मिक बंदोबस्ती) के प्रशासन को संचालित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। यह वक्फ परिषद, राज्य वक्फ बोर्डों और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की शक्ति और कार्यों और मुतवल्ली के कर्तव्यों का भी प्रावधान करता है। 

संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल

यह अधिनियम वक्फ न्यायाधिकरण की शक्ति और प्रतिबंधों का भी वर्णन करता है जो अपने अधिकार क्षेत्र के तहत एक सिविल कोर्ट के बदले में कार्य करता है। वक्फ न्यायाधिकरण को एक सिविल कोर्ट माना जाता है और उन्हें सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत एक सिविल कोर्ट द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी शक्तियों और कार्यों का प्रयोग करना आवश्यक है। न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम और पक्षों पर बाध्यकारी होगा। कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही किसी भी सिविल कोर्ट के अधीन नहीं होगी। इस प्रकार, वक्फ न्यायाधिकरण के निर्णय किसी भी सिविल कोर्ट से ऊपर हैं। वक्फ प्रबंधन को और अधिक कुशल और पारदर्शी बनाने के लिए वर्ष 2013 में अधिनियम के कुछ प्रावधानों में संशोधन किया गया था। हालांकि, अधिनियम के कार्यान्वयन के दौरान यह महसूस किया गया कि अधिनियम वक्फ के प्रशासन को बेहतर बनाने में प्रभावी साबित नहीं हुआ। 

जबकि, हितधारकों ने कई मामले उठाये – मसलन, वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के गठन में सीमित विविधता, मुतवल्लियों द्वारा शक्ति का दुरुपयोग, मुतवल्लियों द्वारा संपत्तियों के उचित खातों का रखरखाव न करना, स्थानीय राजस्व अधिकारियों के साथ प्रभावी समन्वय की कमी, अतिक्रमण हटाने के मुद्दे, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और शीर्षक की घोषणा, संपत्तियों का दावा करने के लिए वक्फ बोर्डों को व्यापक शक्ति जिसके परिणामस्वरूप विवाद और मुकदमेबाजी होती है, सीमा अधिनियम की गैर-प्रयोज्यता जिसके परिणामस्वरूप समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा होता है, वक्फ संपत्तियों से कम और नगण्य आय आदि। उनका यह भी मानना है कि इसमें न्यायाधिकरण के निर्णयों पर कोई न्यायिक निगरानी नहीं है, जिससे वक्फ प्रबंधन और भी जटिल हो जाता है। उच्च न्यायिक निकाय में अपील करने की संभावना के बिना, न्यायाधिकरण द्वारा लिए गए निर्णय वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर कर सकते हैं।

इतना ही नहीं, सर्वेक्षण आयुक्त द्वारा वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण का कार्य असंतोषजनक पाया गया। साथ ही, यह देखा गया कि राज्य वक्फ बोर्डों ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों का दुरुपयोग किया है, जिससे समुदायों के बीच वैमनस्य और असंतोष पैदा हुआ है। संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में अधिगृहीत करने और घोषित करने के लिए वक्फ अधिनियम की धारा 40 का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया गया। इससे न केवल बड़ी संख्या में मुकदमेबाजी हुई है, बल्कि समुदायों के बीच वैमनस्य भी पैदा हुआ है। यह भी कहा जाता है कि वैधानिक वैधता: वक्फ अधिनियम देश के केवल एक धर्म की धार्मिक संपत्तियों के लिए एक विशेष अधिनियम है, जबकि किसी अन्य धर्म के लिए ऐसा कोई कानून मौजूद नहीं है। 

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