दिल्ली में शिक्षा निदेशालय और उत्पाद विभाग के क्षेत्राधिकार वाले विद्यालय तथा शराब के ठेके का अनुपात 4:1 है यानी चार विद्यालय और एक ठेका 😢

​हँसिये !!! आप दिल्ली में हैं जहाँ विद्यालयों और शराब के ठेकों का अनुपात 4:1 का अनुपात है ​-(मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के उप, यानी उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जेल में हैं )

नई दिल्ली: वैसे अलग बात है कि विगत दिनों दारू की दुकानों को लेकर दिल्ली सरकार और उसके मंत्री, संत्री, आला अधिकारी सभी चर्चा में रहे, जांच के अधीन हैं । अख़बारों में और टीवी पर सुर्खियों में रह रहे हैं । लेकिन बावजूद इसके दिल्ली सल्तनत में दिल्ली सरकार 2022-2023 वित्तीय वर्ष में 762 करोड़ और अधिक शराब से भरी बोतलों को बेचकर 6,821 करोड़ रुपये सरकारी कोष में जमा की। मज़ाक बात नहीं है इतनी राशि का एकत्रीकरण ।

यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि दिल्ली की वर्तमान आबादी (32,941,000) में पियक्कड़ों की संख्या उम्मीद से अधिक है। यह बात भी अलग है कि सरकार शराब की बोतलों पर अंग्रेजी में, हिंदी में, पंजाबी में, उर्दू में, चाहे जिस भाषा में लिखकर चिपकते रहे – शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इतना ही नहीं, अगर इन शराब के बोतलों को गिनने वाले स्थान पर किसी ‘उम्दा भारतीय भाषाओँ का अकादमी’ भी खोल दें तो उस भाषा को बोलने वालों को, लेखकों को, सम्बद्ध लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर ऐसा नहीं होता तो शराब नियंत्रण कक्ष में ‘मैथिली-भोजपुरी अकादमी’ कराहता नहीं। आखिर भाषा की उन्नति पर विचार तो शराब पर चर्चा के बाद ही होगा। इसी को कहते हैं भाषा के नाम पर राजनीति। लेकिन आपको क्या?

यह बात यहाँ इसलिए लिख रहा हूँ कि दिल्ली सल्तनत में कुल 573+12 = 585 शराब के ठेके हैं। कुछ ठेके/दुकानें दिल्ली के मॉलों में भी स्थित है। दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय द्वारा संचालित कुल 2400 विद्यालय हैं और नगर निगम द्वारा संचालित विद्यालयों की संख्या 1735 है। यानी कुछ 4135 विद्यालय हैं। अगर नगर निगमों के विद्यालयों को तत्काल छोड़ भी दिया जाए तो दिल्ली सल्तनत में शिक्षा निदेशालय के क्षेत्राधिकार वाले प्रत्येक चार विद्यालयों पर दिल्ली सरकार द्वारा संचालित दारू का एक ठेका है।

विगत दिनों नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा था। नगर निगमों की विद्यालयों को छोड़ दें तो दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय द्वारा संचालित 1024 विद्यालयों के एक अध्ययन के अनुसार में सिर्फ 203 विद्यालयों में प्राचार्य अथवा विद्यालय के सर्वोच्च अधिकारी हैं। यानी 2400 विद्यालयों में से 1024 विद्यालयों में से 824 विद्यालयों में सर्वोच्च अधिकारी नहीं हैं। वैसे दिल्ली सरकार और सरकार के आला अधिकारी भी कम चालाक नहीं हैं। तक्षण उन्होंने इस जबाबदेही को दिल्ली सल्तनत के उपराज्यपाल के मथ्थे मढ़ दिया। कहने में तनिक भी देर नहीं किये कि प्राचार्यों/सर्वोच्च पदाधिकारियों को नियुक्त करने का अधिकार उपराज्यपाल के पास है। इसी को राजनीति कहते हैं।

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दिल्ली और दारू की दुकान

अब अगर दिल्ली सरकार की शराब की दुकानों (585) और शिक्षा निदेशालय के विद्यालयों की सांख्यिकी (2400) की तुलना करें तो औसतन चार सरकारी विद्यालयों पर एक एक सरकारी शराब का ठेका है। परन्तु कोई भी सरकारी ठेका विक्रेता से लेकर शराब-मादक-मदिरा से जुड़े विभाग और मंत्रालय की कोई भी कुर्सी खाली नहीं है। अलबत्ता, अधिकारी से लेकर पदाधिकारी तक, अगर कहीं कोई स्थान ‘रिक्त’ दीखता है तो एक अधिकारी के मथ्थे दो-चार विभाग लगा दिया गया है।

इतना ही नहीं, दिल्ली सरकार का प्रत्येक शराब का ठेका ‘आधुनिक साज-सज्जा’ से लैश है, जबकि सरकारी क्षेत्र के विद्यालयों में ‘प्राचार्य’, ‘हेड-मास्टर’ ‘वरीय शिक्षकों’ की बात तत्काल नहीं करें तो ‘डस्टर’, ‘पेन्सिल’, ‘मानचित्र’, ‘झाडू’, ‘कुर्सी’, ‘किताब’, ‘पेन्सिल’ की घोर किल्लत है। अब सवाल यह है कि अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल की सानिग्धता ‘नवमी कक्षा’ के समकक्ष वाले ‘बिहार के उप-मुख्यमंत्री’ श्रीमान तेजस्वी यादव जैसे ‘विचारवान’ राजनेताओं से रहेगा तो दिल्ली में विद्यालयीय शिक्षा का क्या हश्र होगा – आप समझ सकते हैं। हालांकि अंदर के लोग यह कहते हैं कि ‘स्थान तो कागज पर रिक्त है लेकिन निजी क्षेत्र से ठेका प्रथा के अधीन लोगों को भर दिया गया है।’

मैथिली-भोजपुरी अकादमी जिस भवन में है, उस भवन में शराब के ठेकों का नियंत्रण होता है

बहरहाल, एनसीपीसीआर ने तो पत्र में यह भी लिखा था कि ‘इंफ्रास्ट्रक्चर’ की बात यदि छोड़ भी दें, तो अधिकांशतः विद्यालयों में विद्यालय प्रमुख (Head of School-HoS) की कुर्सी खली होने के कारण परिसर के किसी कोने में राखी दिखी। अब अगर दिल्ली सल्तनत में शिक्षा विभाग का यह हाल है तो दिल्ली सल्तनत में स्थापित ‘मैथिली-भोजपुरी अकादमी’ का क्या हश्र होगा यह बात झंडेवालान के एक ऑटोवाला के कथन से स्पष्ट है।

विगत दिनों झंडेवालान् मेट्रो स्टेशन से नीचे सड़क पर उतरते ऑटो वाला से पूछा कि ‘मैथिली-भोजपुरी अकादमी’ चलोगे? ऑटो वाला मुस्कुराते कहता है ‘वहीं न सर जिस ऑफिस में केजरीवाल का दारू खाना है, जहाँ बोतलों की गिनती होती है और मुख्यमंत्री कार्यालय में बताया जाता है कि आज, इस सप्ताह, इस माह, इस वर्ष इतनी शराब की भरी बोतलें बिकी और इतने पैसे की आमदनी हुई।’

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मैं ऑटो वाले का मुख टकटकी निगाह से देखता रहा। उसकी भाषा सुनकर मैं उससे मैथिली में पूछा: ‘कतए घर भेल?’

वह कहता है: ‘सर !!! हमर घर भुसारी छै, समस्तीपुर जिला।’ मुझे देखकर वह मुस्कुराया और आगे कहता है: ‘मिथिला में लोक सभ मैथिली के नै बचाबैक कोशिश करै छथिन, आ एतय दारू वाला ऑफिस में ‘मैथिली-भोजपुरी अकादमी’ छै – लिखलहा !!!

यह बात इसलिए लिख रहा हूँ कि जिस भवन में शराब की बोतलों की गिनती होती हैं, बोतलों की बिक्री से एकत्रित पैसों की गिनती होती है – उसी भवन के नीचले तल्ले के कोने में “मैथिली-भोजपुरी अकादमी” स्थित है। भवन का नाम है – 7-9 आपूर्ति भवन, आराम बाग़, पहाड़गंज, नई दिल्ली। वैसी स्थिति में दिल्ली सरकार के लिए ‘मैथिली’ और ‘भोजपुरी’ भाषा की क्या अहमियत है आप स्वयं निर्णय करें। ‘मैथिली-भोजपुरी अकादमी’ में बैठने वाले कर्मचारी ‘मैथिली’ और ‘भोजपुरी’ भाषा को शायद अपने जीवन में कभी नहीं सुने होंगे। वैसी स्थिति ‘विद्यापति’ और ‘भिखारी ठाकुर’ बारे में पूछना कुल्हाड़ी पर अपना पैर पटकना है। कांग्रेस के ज़माने से, यानि श्रीमती शीला दीक्षित के ज़माने से आज तक, इन दो समुदाय के लोगों का उपयोग महज राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए होती आई है। मैथिली और भोजपुरी भाषा के विकास से इन अकादमी का कुछ भी लेना देना नहीं है।

विगत दिनों @अखबारवाला001 मैथिली-भोजपुरी अकादमी पर एक श्रृंखला प्रारम्भ किया। यूट्यूब की कहानी संख्या 119 “पऊआ, अद्धा, बोतल और दिल्ली में मैथिली-भोजपुरी अकादमी’ – उस कहानी को करने से पहले भारत सरकार के ‘साहित्य अकादमी’ के मैथिली साहित्य के दस हस्ताक्षरों को ईमेल के माध्यम से निवेदन किया कि वे दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित/संचालित ‘मैथिली-भोजपुरी अकादमी’ के बारे में ज्ञानवर्धन करें। क्या यह अकादमी ‘मैथिली’ और ‘भोजपुरी’ भाषा को मजबूत बनाने में सफल रही है या महज यह एक राजनीतिक लाभ हेतु मंच बनाया गया है ?

दिल्ली सरकार का मैथिली-भोजपुरी अकादमी कार्यालय। यह जिस भवन में है, उस भवन में शराब के ठेकों का नियंत्रण होता है ​

इस कहानी पर पहली प्रतिक्रिया भारत सरकार के साहित्य अकादमी में मैथिली भाषा की हस्ताक्षर डा. वीणा ठाकुर कल लिखकर प्रेषित की। डॉ. वीणा ठाकुर अपनी बात ‘मैथिली’ में लिखी हैं, यह ख़ुशी की बात है।

“कोनो भाषासँ सम्बद्ध संस्था-संगठनक स्थापनाक मूलमे निहित होइत अछि ओहि भाषा-साहित्यक संरक्षण आ संवर्द्धन। ई तखने सम्भव होइत अछि जखन मौलिक दृष्टि सम्पन्न तटस्थ आ कुशल नेतृत्व होय। ओहि भाषा-साहित्य लेल मौलिक काज कयल जाय-करबायल जाय। ई तखने सम्भव होयत जखन एहन व्यक्तित्वक कुशल मार्गदर्शन भेटय जे मूलतः साहित्यकार होथि आ जिनकामे भाषा सेहो पचल होनि। किछु कविता, गीत, कथा आदि रचिकऽ कोनो गोटे साहित्यकारक शृंखलामे भने परिगणित होइत होथु, हुनक रचनो उत्कृष्ट होइत होइनि, मुदा तकर अर्थ ई कदापि नहि जे ओ भाषिक दृष्टिसँ सेहो क्षमतावान होथि।ओना तँ भाषाक ज्ञाता ओ सभ सर्वसाधारण होइत छथि जिनकर ओ मातृभाषा होइत छनि, मुदा ठोस विकास लेल साहित्यिक आ भाषिक दृष्टिकोणसँ एतबे टा होयब उपयुक्त नहि होइत अछि। भाषाक स्थायी ओ सर्वांगीण विकास लेल चाही विशेष-दृष्टि सम्पन्नता जकर अभाव दिल्लीक मैथिली-भोजपुरी अकादमीमे मैथिली लेल नजरि अबैत अछि।

जहिया एकर स्थापना लेल प्रयास कयल गेल छल आ तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्रीमती शीला दीक्षित एकर स्थापना कयने छलीह तहिया की एतबे अपेक्षा छल जे एकटा एहन संस्था होय जे अवसर विशेषपर कवि-गोष्ठी आ अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम कऽ अपन कर्त्तव्यक इतिश्री करैत रहत?

साहित्यक दृष्टिसँ एकर जे कोनो गतिविधि रहबो कयल अछि तकरा सन्तोषप्रद कहल-मानल जा सकैछ? कथमपि नहि।

हमरा तँ लगसँ एकरा देखबा-गुनबाक अवसर नहि लागल अछि, मुदा फटकीएसँ जे नजरि अबैत रहल अछि से निराश करैत अछि। ई देशक राजधानीक संस्था थिक। एकरा तँ मैथिलीक सिरमौर होयबाक चाही। एहि लेल सभक प्रति समभाव आ पारदर्शिता तँ चाहबे करी, जकर घोर अभाव बुझना जाइत अछि। लगैत अछि जेना ईहो गुटबाजीक शिकार भऽ गेल अछि। जेना सोशल मीडियापर अपन खायब-पियब, टहलब-बुलब आ अन्य अनावश्यक गतिविधिकेँ पल-पल पोस्ट कयनिहारकेँ भेटैत ‘लाइक्स’केँ लोकप्रियताक नपना मानि लेल जाइत अछि तहिना कविता-गीतक नामपर परसल जायवला अलर-बलरकेँ सेहो साहित्य मानबाक भ्रम पोसल जाय लागल अछि।

मैथिली-भोजपुरी अकादमीकेँ सेहो एहिसँ फराक रहबाक चाही। अकादमीमे मैथिली लेल नेतृत्वकर्त्ताक दायित्व छनि जे ओ बुझथु जे साहित्य-लेखन आ ओकर आकलन दुनू फराक-फराक विषय थिक। ई सभक लेल कदापि सम्भव नहि जे ओ दुनूमे क्षम होथि। अकादमीमे मुख्य भूमिका निमाहनिहारकेँ ई अनिवार्य रूपसँ ध्यान राखऽ पड़तनि तखने मैथिलीक यथार्थ विकासमे संस्था अपन असल भूमिकाक निर्वाह कऽ सकत।

विचारणीय ईहो थिक जे आइ धरि मैथिली अकादमी अपन स्वतंत्र स्वरूप किए ने पाबि सकल। स्थापनाक डेढ़ दशक बादो मैथिली लेल कोनो सार्थक प्रयास नहि कऽ सकल सेहो चिन्ता आ चिन्तनक कारण बनैत अछि।

क्रमशः

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