![हमारी कशिश होगी कि 'एक देश-एक चुनाव प्रक्रिया' जो बिहार से टुटा था, बिहार से ही पुनः स्थापित हो। संभव है प्रदेश का नेतृत्व किसी और के हाथ में हो। मेरा रिकार्ड बन गया](http://www.aryavartaindiannation.com/wp-content/uploads/2024/12/Nitish-fotor-20241214173327.jpg)
रायसीना हिल (नई दिल्ली) : एक देश-एक चुनाव सम्बन्धी विधेयक को 240 कुर्सियों की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार मंत्रिमंडल विगत दिनों अपनी स्वीकृति दे दी। इस स्वीकृति के साथ नए और पुराने संसद भवनों के गलियारे में नेताओं का एकत्रीकरण प्रारम्भ हो गया है। अलग-अलग पार्टी के अलग-अलग नेता इस संवेदनशील मुद्दे पर अलग-अलग खम्भे का सहारा लेकर चर्चाएं कर रहे हैं, कह रहे हैं प्रक्रिया प्रारम्भ होने के पूर्व सम्मानित मोदी जी अपने स्थान पर अन्य भरोसे वाले नेता को बैठाएंगे और उधर नीतीश कुमार का भी विदाई समारोह आयोजन हो गया रहेगा।।
राजनीतिक विशेषज्ञ इस बात की भी पुष्टि कर रहे हैं कि इस मामले पर संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जा सकता है, जिससे देश के विभिन्न राजनीतिक दलों का विचार लिया जा सके। इस बीच नए संसद भवन के एक कोने में खड़े बिहार के एक पुराने सांसद मुस्कुराकर कहते हैं कि “एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की पद्धति बिहार और दिल्ली के कारण 55 वर्ष पूर्व टूटा था और 60 वर्ष होते-होते पुनः अपने पुराने स्वरुप में वापस आ जायेगा। लेकिन उस समय बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे और दिल्ली में तो नए प्रधानमंत्री होंगे ही।”
अख़बारों के पन्नों पर बिना अपना नाम उद्धृत कराये बिहार के सांसद ने आर्यावर्तइण्डियननेशन।कॉम को कहते हैं: “आपका यह दोनों अखबार उस दिन प्रथम पृष्ठ पर आठ कॉलम में समाचार प्रकाशित किया था जब चौथे विधानसभा काल खंड में बिहार में 482 दिनों की सरकार में चार मुख्यमंत्री आये और गए। इसी कालखंड में ‘आया राम-गया राम’ वाला राजनीतिक लोकोक्ति गांधीमैदान में चर्चाएं आम हुआ था। इस कालखंड में सबसे पहले महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने। सिन्हा साहेब जन क्रांति पार्टी के नेता थे और वे 329 दिन मुख्यमंत्री कार्यालय में रहे। इसके बाद शोषित दल के श्री सतीश प्रसाद सिंह चार दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। पांचवे दिन आ गए शोषित दल के ही श्री बीपी मंडल, जो पचास दिनों तक मुख्यमंत्री कार्यालय में विराजमान रहे।”
सांसद महोदय आगे कहते हैं: “प्रदेश में राजनीतिक उठापटक सुबह-दोपहर-शाम हो रहा था। इसी उठापटक में लोकतान्त्रिक कांग्रेस के श्री भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री कार्यालय में चौथे विधानसभा कालखंड के चौथे मुख्यमंत्री के रूप में विराजमान हुए। भोला पासवान शास्त्री शतक नहीं लगा सके और 99 वे दिन दरवाजे की ओर उन्मुख हो गए उनकी सरकार को अल्पमत में आने के कारण। भोला पासवान शास्त्री के बाद बिहार में राष्ट्रपति शासन 29 जून, 1968 से 26 फरबरी, 1969 तक 242 दिनों तक रहा और फिर विधानसभा को भंग कर दिया गया। वहीं दिल्ली में इंदिरा गांधी 11 महीने पहले संसद भंग कर लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दी। परिणाम यह हुआ कि 1970 के बाद एक देश-एक चुनाव का तार टूट गया। आगामी 2029 में होने वाले लोक सभा चुनाव के कोई आठ महीने बाद 2030 में बिहार विधानसभा का चुनाव होगा। लेकिन उस दिन इंदिराजी 11 महीने पहले आम चुनाव की घोषणा की थी, आने वाले दिनों में 11 महीने पहले बिहार विधानसभा भंग होगा और विधान सभा के साथ-साथ लोकसभा का चुनाव एक साथ संपन्न होगा। लेकिन उस समय सम्मानित मोदी जी अपने स्थान पर अन्य भरोसे वाले नेता को बैठाएंगे और उधर नीतीश कुमार का भी विदाई समारोह आयोजित जो गया रहेगा।”
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वर्ष 1951-52 से वर्ष 1967 तक लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के निर्वाचन अधिकांशतः साथ-साथ कराए गए थे और इसके पश्चात् यह चक्र टूट गया और अब, निर्वाचन लगभग प्रत्येक वर्ष और एक वर्ष के भीतर विभिन्न समय पर भी आयोजित किए जाते हैं, जिसका परिणाम सरकार और अन्य हितधारकों द्वारा बहुत अधिक व्यय, ऐसे निर्वाचनों में लगाए गए सुरक्षा बलों और अन्य निर्वाचन अधिकारियों की उनकी महत्वपूर्ण रूप से लंबी कालावधि के लिए अपने मूल कर्तव्यों से भिन्न अन्यत्र तैनाती, आदर्श आचार संहिता, आदि के लंबी अवधि तक लागू रहने के कारण, विकास कार्य में दीर्घ अवधियों के लिए व्यवधान के रूप में होता है। भारत के विधि आयोग ने निर्वाचन विधियों में सुधार पर अपनी 170 वीं रिपोर्ट में यह संप्रेक्षण किया है कि : “प्रत्येक वर्ष और बिना उपयुक्त समय के निर्वाचनों के चक्र का अंत किया जाना चाहिए। हमें उस पूर्व स्थिति का फिर से अवलोकन करना चाहिए जहां लोक सभा और सभी विधान सभाओं के लिए निर्वाचन साथ-साथ किए जाते हैं।
यह सत्य है कि हम सभी स्थितियों या संभाव्यताओं के विषय में कल्पना नहीं कर सकते हैं या उनके लिए उपबंध नहीं कर सकते हैं, चाहे अनुच्छेद 356 के प्रयोग के कारण (जो उच्चतम न्यायालय के एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ के विनिश्चय के पश्चात् सारवान् रूप से कम हुआ है) या किसी अन्य कारण से उत्पन्न हो सकेंगी, किसी विधान सभा के लिए पृथक निर्वाचन आयोजित करना एक अपवाद होना चाहिए न कि नियम नियम यह होना चाहिए कि ‘लोक सभा और सभी विधान सभाओं के लिए पांच वर्ष में एक बार में एक निर्वाचन’ । कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने ‘लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के लिए साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की साध्यता पर दिसम्बर 2015 में प्रस्तुत अपनी 79वीं रिपोर्ट में भी इस मामले की जांच की है और दो चरणों में साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की एक वैकल्पिक और व्यवहार्य विधि की सिफारिश की है।
यदि एक देश-एक चुनाव विधेयक कानून बन जाता है तो देश की 543 लोकसभा सीट और सभी राज्यों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव कराने की राह खुल जाएगी । पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट के बाद प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दी है। वर्तमान में, राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग आयोजित किए जाते हैं। इससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के कारण, चुनाव आयोग ने एक प्रणाली के गठन का सुझाव दिया ताकि राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हो सकें। एक साथ चुनाव कराने का विचार 2016 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फिर से पेश किया गया था। तब से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने एक साथ चुनाव कराने के लिए एक मजबूत तर्क दिया है। 2017 में नीति आयोग द्वारा एक साथ चुनाव पर वर्किंग पेपर तैयार किया गया था। यहां तक कि कानून आयोग भी 2018 में एक वर्किंग पेपर लेकर आया था और कहा था कि एक साथ चुनाव कराने की संभावना के लिए कम से कम पांच संवैधानिक बदलावों की आवश्यकता होगी। यह कहा जाता है कि एक साथ चुनाव सम्पन्न कराने पर चुनाव माध में खर्च होने वाली राशि में न्यूनतम 30 फीसदी की कमी होगी।
वैसे राष्ट्रीय राजधानी में भ्रमण-सम्मेलन करने वाले लोगों का मानना है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा 2014 के चुनाव में 282 अंक प्राप्त करती है। उस कालखंड में चुनावी मैदान में न तो अटल बिहारी वाजपेयी थे, न लालकृष्ण आडवाणी थे और न अन्य भाजपा के अधिष्ठाता। उस चुनाव में जो भी अंक आये थे वह नरेंद्र मोदी के नाम पर आया था। 2019 के चुनाव में वह अंक 303 तक चढ़ा। लोगों का मानना है कि जिस कदर 282 से अंक 303 चढ़े, भाजपा के नेताओं के तेवर भी चढ़ने लगे, जो अप्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं के हितों के विपरीत था। परिणाम यह हुआ कि 2024 के चुनाव में भाजपा सांसदों की संख्या 240 पर लुढ़क गयी। भाजपा की संख्या का कम होना और विपक्ष की संख्या का बढ़ना, राजनीतिक दृष्टिकोण से सत्तारूढ़ पार्टी, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और कार्य शैली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। सत्ता के गलियारे में इस बात की चर्चाएं हैं कि प्रधानमंत्री इस ‘धब्बा’ को मिटाना चाहते हैं और अब तक के लोकसभा के चुनाव में 404 की संख्या से ऊपर चढ़ा जाय।
संसद के गलियारे में राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पूर्व संविधान में संसोधन करना होगा और इसके लिए दो – तिहाई बहुमत होना आवश्यक है। राष्ट्रीय राजधानी में भ्रमणकारी मतदाताओं का मानना है कि अगले वर्ष, यानी 2025 में सिर्फ दिल्ली और बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है। जबकि 2026 में चार राज्यों – असम, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और केरल में विधानसभा का चुनाव निश्चित है। उसके अगले साल, यानी 2027 में भारत के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति के अलावे सात राज्यों – गोवा, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होना निश्चित है। वैसी स्थिति में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अधिक दिनों तक ‘अन्य राजनीतिक पार्टियों की सहयोग से केंद्र में सरकार नहीं चलना पसंद करेंगे। उनकी नज़रों में संख्या का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, खासकर जब अपने दूसरे कालखंड में ही उन्होंने अपने बलबूते पर ऐतिहासिक संख्या को प्राप्त किया था।
ज्ञातव्य है कई 14 मार्च 2024 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित एक साथ चुनाव संबंधी उच्च स्तरीय समिति ने भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 18,626 पृष्ठों वाली यह रिपोर्ट हितधारकों, विशेषज्ञों के साथ व्यापक विचार-विमर्श और 2 सितंबर, 2023 को इसके गठन के बाद से 191 दिनों के शोध कार्य का परिणाम है। समिति के अन्य सदस्य थे श्री अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री, श्री गुलाम नबी आज़ाद, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता, श्री एन.के. सिंह, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष, डॉ. सुभाष सी. कश्यप, पूर्व महासचिव, लोकसभा, श्री हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता, और श्री संजय कोठारी, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त। श्री अर्जुन राम मेघवाल, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कानून और न्याय मंत्रालय विशेष आमंत्रित सदस्य थे और डॉ. नितेन चंद्र एच.एल.सी. के सचिव थे। समिति ने विभिन्न हितधारकों के विचारों को समझने के लिए व्यापक विचार-विमर्श किया। 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार और सुझाव प्रस्तुत किए, जिनमें से 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। कई राजनीतिक दलों ने इस मामले पर एचएलसी के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया।
सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समाचार पत्रों में प्रकाशित एक सार्वजनिक नोटिस के जवाब में, पूरे भारत के नागरिकों से 21,558 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। 80 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीश और प्रमुख उच्च न्यायालयों के बारह पूर्व मुख्य न्यायाधीश, भारत के चार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त, आठ राज्य चुनाव आयुक्त और भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष जैसे कानून के विशेषज्ञों को समिति द्वारा व्यक्तिगत रूप से बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया था। भारत के चुनाव आयोग के विचार भी मांगे गए।
बहरहाल, सभी सुझावों और दृष्टिकोणों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, समिति एक साथ चुनाव कराने के लिए दो-चरणीय दृष्टिकोण की सिफारिश करती है। पहले चरण के रूप में, लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएंगे। दूसरे चरण में, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के साथ इस तरह से समन्वयित किए जाएंगे कि नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के सौ दिनों के भीतर हो जाएं। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि सरकार के तीनों स्तरों के चुनावों में उपयोग के लिए एक ही मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) होना चाहिए। एक साथ चुनाव कराने के लिए मिलने वाला भारी समर्थन विकास प्रक्रिया और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देगा, हमारे लोकतांत्रिक ढांचे की नींव को मजबूत करेगा और भारत की आकांक्षाओं को साकार करेगा।