75 वें गणतंत्र दिवस पर एक सवाल: क्या ‘सरला ग्रेवाल’ भाप्रसे को छोड़कर आज़ाद भारत में कोई भी महिला कैबिनेट और गृह सचिव के लायक नहीं हुई?

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी .

नई दिल्ली: स्वतंत्र भारत के 75 वे गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक सवाल है भारत के राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू से। वही सवाल देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से है, गृहमंत्री अमित शाह से है, वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन् से है या उन सभी महानुभावों, मोहतरमाओं, राजनेताओं, अधिकारियों, पदाधिकारियों से जो देश के प्रशासन, कानून व्यवस्था, प्रशासन से जुड़े हैं और सत्ता के गलियारे में क़ुतुब मीनार जैसा अस्तित्व रखते हैं।  

क्या सुश्री सरला ग्रेवाल को छोड़कर आज़ाद भारत में विगत 77 वर्षों में कोई भी महिला भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी भारत सरकार के कैबिनेट सचिव और गृह सचिव की कुर्सी पर बैठने योग्य नहीं हुईं? 

इस पुरुष प्रधान नौकरशाही और राजनीतिक ब्रह्माण्ड में सुश्री सरला ग्रेवाल ही एक भाप्रसे के अधिकारी हो पायी जो कैबिनेट सचिव की कुर्सी तक पहुंची। अगर देश के वर्तमान प्रधानमंत्री की महिला सशक्तिकरण सम्बन्धी विभिन्न योजनाओं को देखें तो आखिर महिला भाप्रसे भी तो इसी देश की नागरिक है, मतदाता हैं और वे भी संविधान में प्रदत्त अधिकार-कर्तव्यों के अधीन हैं – फिर उनके साथ भेदभाव कैसा? प्रश्न जटिल अवश्य हैं लेकिन सोचनीय, शोधनीय भी हैं। 

क्या महिला सशक्तिकरण की बात सिर्फ भारत के 664,369 गाँव में रहने वाली, खेतों की आड़ पर जीवन यापन करने वाली, पुरुषों की तुलना में 14.4 फीसदी कम साक्षरता का आंकड़ा (पुरुष: 84.7 फीसदी और महिला 70.3 फीसदी) वाला बोर्ड गर्दन में लटकाई महिलाओं के लिए ही है? 

क्या भारत के शिक्षित, मेधावी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को, देश की गरिमा को स्थापित करने वाली महिलाएं उस सशक्तिकरण का हिस्सा नहीं है? घर में तो उन्हें ‘रसोई घर’ में सीमित कर ही देते हैं परिवार के ‘पुरुष’, शैक्षिक रूप से अव्वल होने के बावजूद दफ्तर में भी ‘राजनीतिक मास्टर’ और ‘पुरुष अधिकारी’ ‘दरकिनार’ कर देते हैं उन्हें ? फिर कैसा सशक्तिकरण? 

कहते हैं कि “भाप्रसे के अधिकारी (महिला सहित) इस संवर्ग के किसी भी पद को अपनी वरीयता एवं योग्यता के आधार पर पहुँच सकती हैं बशर्ते उन्हें किसी विभागीय कार्रवाई में सजा नहीं मिली हो या विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं मिला हो को छोड़कर । विभागीय कार्रवाई और विजिलेंस क्लीयरेंस सबके लिए ज़रूरी है,” यह तो सत्यता का उत्कर्ष है। 

परन्तु, केंद्रीय सतर्कता आयोग की ‘सतर्कता’ पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है। लेकिन अगर आज से 23-साल पहले 2001 में आयोग के तत्कालीन प्रमुख एन. विठ्ठल द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक पद पर नियुक्ति संबंधी केंद्र सरकार को प्रेषित ‘सिफारिश’ को देखा जाय, तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ‘कभी-कभी सतर्कता आयोग के आला अधिकारी भी पारदर्शी निर्णय नहीं लेते हैं। 

ऐसा क्यों होता है यह वही जानते हैं या फिर जिनके कहने/सुनने पर निर्णय लिया जाता है, वे जानते हैं। और उनके उस निर्णय से किसी दूसरे अधिकारी को, चाहे वह सक्षमता के उत्कर्ष पर ही क्यों न हो, महिला अधिकारी ही क्यों न हो, पुरुष अधिकारी ही क्यों न हो, क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इस बात को दरकिनार कर दिया जाता है। यह भी सत्य है।  

रायसीना हिल का नार्थ ब्लॉक। काश यहाँ गृह मंत्रालय में महिला भाप्रसे के अधिकारी भी गृह सचिव होतीं 

यह बात यहाँ इसलिए लिख रहा हूँ कि स्वतंत्र भारत में भले लाखों लोग भारतीय प्रशासनिक सेवा के अभ्यर्थी से अधिकारी बने हों, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ‘एक महिला के अतिरिक्त’ आज तक कोई भी भाप्रसे के महिला अधिकारी रायसीना हिल स्थित गृह मंत्रालय में गृह सचिव या फिर कैबिनेट सचिव नहीं बन पाई हैं। विगत 77 वर्षों में सिर्फ एक महिला कैबिनेट सचिव की कुर्सी तक पहुंची, जबकि देश में उत्तम श्रेणी के महिला भाप्रसे अधिकारियों की किल्लत नहीं है। यह एक गहन शोध का विषय है। 

साल 2001 में देश का बागडोर राजनीतिक मर्मज्ञ अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों था। उस  समय केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक पद के लिए कई दावेदारों में सीबीआई के तत्कालीन अधिकारी पी सी शर्मा ‘प्रमुख दावेदार’ थे। सीबीआई के निदेशक पद के लिए नाम लगभग तय हो गया था, अधिसूचना जारी नहीं हुआ था । लेकिन उस नाम में शर्मा का नाम नहीं था और जिसका नाम था वे दक्षिण भारत के अधिकारी थे। 

इसी बीच एक पत्र जिसे तत्कालीन सीवीसी एन विठ्ठल ने प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रेषित किया था, वह हस्तगत हो गया। वह पत्र दो पन्नों में लिखा था जिसमें पांच पैराग्राफ थे। उन पांचों पैराग्राफ में शायद ही कोई पैरा ऐसा था जो पी सी शर्मा के विरुद्ध नहीं था और यह नहीं अनुशंसित किया गया था कि वे इस पद के योग्य नहीं हैं। कारण तत्कालीन सीवीसी ही जानते हैं। 

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गृह मंत्री श्री अमित शाह

मैं उन दिनों ‘दी स्टेट्समैन’ अखबार में ‘विशेष संवाददाता’ था और गृह मंत्रालय भी देखता था। उस पत्र के आधार पर एक कहानी लिखा जो अख़बार के अगले संस्करण में प्रकाशित हुआ। ‘दी स्टेट्समैन अख़बार भले दिल्ली के पाठक नहीं पढ़ते हों, देखते हों; लेकिन प्रधानमंत्री वाजपेयी के टेबुल पर वह पहुंचा गया था। फिर पीएमओ को प्रेषित चिठ्ठी निकली और पूर्व में बनी सूची निरस्त हो गई। दो दिन बात अधिसूचना जारी हुई – केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अगले निदेशक पी सी शर्मा के नाम पर ठप्पा लग गया। 

अब सवाल यह है कि क्या 15 अगस्त, 1947 को जब देश आज़ाद हुआ, उस दिवस से लेकर आज तक भारत में जितने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हुए या हैं, उनमें कोई भी महिला अधिकारी (सुश्री ग्रेवाल को छोड़कर) ऐसी नहीं हो पायी जो भारत सरकार के कैबिनेट सचिव और गृह मंत्रालय के सचिव पद पर बैठ पाती? क्या इस पद पर पदस्थापित होने के लिए जितनी भी क़ानूनी-प्रक्रिया हैं, मसलन केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा ‘क्लीयरेंस’ प्रमाणपत्र, विभागीय जांच आदि में ‘सफल’ नहीं हो पायी?  अगर ऐसा है तो या ‘एक शोध का विषय’ है, अगर ऐसा नहीं है तो यह ‘विचारणीय विषय’ है। 

सरदार वल्लभ भाई पटेल

15 अगस्त, 1947 में जब सरदार वल्लभ भाई पटेल गृह मंत्री बने, उस समय से लेकर अमित शाह तक कुल 29 राजनेता नॉर्थ ब्लॉक के गृहमंत्री कार्यालय में विराजमान हुए। सरदार पटेल के बाद जवाहरलाल नेहरू, सी राजगोपालाचारी, कैलाशनाथ काटजू, गोविंद बल्लभ पंत, लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा, यशवंत राव चवन, इंदिरा गांधी, उमा शंकर दीक्षित, के बी रेड्डी, चरण सिंह, मोरारजी देसाई, हिरुभाई पटेल, जैल सिंह, आर वेंकटरमण, पी सी सेठी, पी वी नरसिम्हा राव, बूटा सिंह, मुफ़्ती मोहम्मद सईद, चंद्रशेखर, शंकर राव चवन, मुरली मनोहर जोशी, देवगौड़ा,इंद्रजीत गुप्त, लालकृष्ण आडवाणी, शिवराज पाटिल, पी चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे, राजनाथ सिंह और अमित शाह गृह मंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए। 

लेकिन इन काल खण्डों में एक भी महिला भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गृह मंत्रालय में गृह सचिव की कुर्सी तक नहीं आयी। एक अपवाद अवश्य है जब श्रीमती इंदिरा गांधी गृह मंत्री थी, उस समय महिला मंत्री और पुरुष गृह सचिव रहे। आज तक ऐसा कोई अवसर नहीं है जहाँ पुरुष गृहमंत्री और महिला गृह सचिव हों। व्यावहारिक रूप से प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देश का केबिनेट कमिटी ही ऐसे वरिष्ठ पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति करता है।
 
पिछले दिनों (23 मार्च, 2022) को जब भारत के संसद में सरकार की ओर से कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में कहा कि भारत में (1 जनवरी, 2022 तक) कुल 5317 पद भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों के लिए है जिसमें 1472 पदों पर कोई नहीं हैं और रिक्त पड़े हैं – यह आंकड़ा स्वयं में ही एक शोध का विषय है कि राजनेता, मंत्री, विभाग, सरकार भाप्रसे के अधिकारियों को कितना महत्व देते हैं । आम तौर पर सरकार संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित परीक्षाओं के आधार पर प्रतिवर्ष 180 भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को नियुक्त करती है। 

अब जहां तक आरक्षण का सवाल है उसमें सेंट्रल डेपुटेशन के लिए 40 %, राज्य डेपुटेशन के लिए 25%, ट्रेनिंग के लिए 3 . 5 % लीव/जूनियर के लिए 16. 5 % पद आरक्षित हैं। यह आरक्षण जाति के आधार वाले आरक्षण नहीं है। वैसे जाती के आधार पर अगर देखा जाय तो मसलन मुस्लिम, दलित, पिछड़ा वर्ग के अधिकारियों को शायद ही कभी गृह सचिव के पद पर आसीन किया गया होगा। वैसे यह शोध के अधीन है। पद पर आरक्षण कोटि से आने वाले अभ्यर्थियों की बात नहीं कर रहा हूँ। 

ज्ञातव्य हो कि 5 मई 1947  से 2 जुलाई  1948 तक आर एन बनेर्जी पहला गृह सचिव बने केंद्र सरकार में। फिर आये एच वी आर अयंगर जो 1 अगस्त 1948 से 28 फरवरी 1953 तक विराजमान रहे। पहली मार्च 1953 को ए वी पाई नए गृह सचिव बने जो 14 जनवरी 1958 तक बने रहे। श्री पाई के बाद 15 जनवरी 1958 से 26 नवम्बर 1961 तक बी एन झा भारत सरकार के गृह सचिव रहे। 

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साठ के दशक में आये वी विश्वनाथन। विश्वनाथन 27 नवम्बर 1961 से 18 सितम्बर 1964 तक कार्यालय में रहे। फिर 18  सितम्बर 1964 से 1  जनवरी 1971 तक एल पी सिंह गृह सचिव रहे।इनके बाद आये गोविन्द नारायण जो 1  जनवरी 1971 से 18 मई 1973 तक कार्यालय में रहे। 4  जुलाई 1973 से 23 जून 1975 तक निर्मल कुमार मुखर्जी गृह सचिव रहे। 23 जून 1975 से 30 मार्च 1977 तक एस एल खुराना कार्यालय में रहे। टीसीए श्रीनिवास वर्धन 31 मार्च 1977 से 29 फरवरी 1980 तक गृह सचिव थे।  एस एम एच बर्नी 29 फरवरी 1980 से 12 अगस्त 1981 तक कार्यालय में रहे। फिर आये टी एन चतुर्वेदी जो 12 अगस्त 1981 से 29 फ़रवरी 1984 तक गृह सचिव थे। 

गृह मंत्रालय

चतुर्वेदी के बाद क्रमशः एम एम के वाली (1 मार्च 1984 से 4 नवम्बर 1984), प्रेम कुमार (6  नवम्बर 1984 से 15 जनवरी 1985 तक) आर डी प्रधान (15 जनवरी 1985 से 30 जून 1986 तक), सी जी सोमाह (1 जुलाई 1986 से 16 अक्टूबर 1988 तक), जे ए कल्याणाकृष्णन (17 अक्टूबर 1988 से 29 दिसम्बर 1989 तक), सिरोमनि श्रम (29 दिसंबर 1989 से 20 मार्च 1990), नरेश चंद्र (21 मार्च 1990 से 11 दिसंबर 1990 तक), आर के भार्गव (12 दिसंबर 1990 से 3 अक्टूबर 1991), माधव गोडबोले (4 अक्टूबर 1991 से 23 मार्च 1993 तक) । फिर बने एन एन वोहरा जो 6 अप्रैल 1993 से 31 मई 1994 तक कार्यालय में रहे। वोहरा के बाद बने के पद्मनाभैया जो 1 जून 1994 से 31 अक्टूबर 1997 तक कार्यालय में रहे। फिर आये बाल्मीकि प्रसाद सिंह जो 1 नवम्बर 1997 से 4 मई 1999 तक गृह सचिव थे। 

5 मई 1999 से 15 अक्टूबर 2002 तक कमल पांडे पद पर विराजमान रहे। फिर एन गोपालस्वामी (15 अक्टूबर 2002 से 8 फरवरी 2004 तक), अनिल बैजल (8 फरवरी 2004 से 1 जुलाई 2004), धीरेन्द्र सिंह (1 जुलाई 2004 से 31 मार्च 2005), वीके दुग्गल (31 मार्च 2005 से 31 मार्च 2007), मधुकर गुप्ता (31 मार्च 2007 से 30 जून 2009), गोपाल कृष्ण पिल्लई (30 जून 2009 से 30 जून 2011), आर के सिंह (30 जून 2011 से 30 जून 2013), अनिल गोस्वामी (30 जून 2013 से 4  फरवरी 2015) , फिर आये एल सी गोयल (5 फरवरी 2015 से 31 अगस्त 2015), राजीव महर्षि (31 अगस्त 2015 से 30 अगस्त 2017) राजीव गौबा (31 अगस्त 2017 से 22 अगस्त 2019) और फिर अजय कुमार भल्ला 22 अगस्त 2019 से पदस्थापित हैं। 

इसी तरह, स्वतंत्र भारत में अब तक 31 कैबिनेट सचिव बने। इसमें 30 पुरुष ही कुर्सी पर चिपके। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की प्रधान सचिव रही 1952 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सुश्री सरला ग्रेवाल इकलौती महिला अधिकारी हैं जो कैबिनेट सचिव बन पायी।

सुश्री ग्रेवाल इस पुरुष प्रधान नौकरशाह और राजनेताओं की गढ़ को तोड़कर कैसे उस पद पर पहुंची यह भी एक शोध का विषय है। सुश्री ग्रेवाल 1989-90 में मध्य प्रदेश की राज्यपाल भी बनी। कहते हैं भारत के कैबिनेट सचिव भारत के सर्वोच्च कार्यकारी अधिकारी और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी हैं। कैबिनेट सचिव सिविल सेवा बोर्ड, कैबिनेट सचिवालय, भारतीय प्रशासनिक सेवा के  अध्यक्ष और भारत सरकार के नियमों के तहत सभी सिविल सेवाओं के प्रमुख हैं। 

अब तक से अगर सभी कैबिनेट सचिव और गृह सचिवों के नामों का अवलोकन करते हैं तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अब तक जितने भी अधिकारी इन पदों पर बैठे, वे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से (अगर वरीयता को ध्यान में रखा जाए) किसी न किसी तरह अपने-अपने ‘राजनीतिक मास्टर के ब्लू-आइड ही रहे। अगर ऐसा नहीं होता तो अधिकारियों के संघ में भी मनमुटाव नहीं होता। 

वैसे भारत का राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति लिंग समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्यों और नीति निर्देशक सिद्धांतों में प्रतिपादित है। संविधान महिलाओं को न केवल समानता का दर्जा प्रदान करता है अपितु राज्‍य को महिलाओं के पक्ष में किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने की भी बात करता है।  अगर ऐसा है तो क्या यह उन महिलाओं के लिए नहीं है जो संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित देश के कठिनतम परीक्षाओं अव्वल आकर कुर्सी पर बैठती हैं। महाभारत में तो ‘अभिमन्यु’ चक्रव्यूह को नहीं तोड़ सके, क्योंकि वे सो गए थे (भगवान् यही प्रारब्ध लिखे थे), लेकिन भारत की ये सभी महिलाएं इस राजनीतिक और पुरुष प्रधान नौकरशाही द्वारा रचित चक्रव्यूह को क्यों न तोड़ पा रही हैं?

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केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह 24 जनवरी, 2024 को नई दिल्ली में जननायक कर्पूरी ठाकुर जी की 100वीं जयंती समारोह को संबोधित कर रहे हैं।

लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के ढांचे के अंतर्गत हमारे कानूनों, विकास संबंधी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उन्नति के उद्देश्य बनाया गया है। पांचवी पंचवर्षीय योजना (1974-78) से महिलाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति कल्याण की बजाय विकास का दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। हाल के वर्षों में, महिलाओं की स्थिति को अभिनिश्चित करने में महिला सशक्तिकरण को प्रमुख मुद्दे के रूप में माना गया है।

महिलाओं के अधिकारों एवं कानूनी हकों की रक्षा के लिए अनेकानेक कानून हैं भारत के संविधान में। भारत ने महिलाओं के समान अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अभिसमयों और मानवाधिकार लिखतों की भी पुष्टि की है। मेक्सिको कार्य योजना (1975), नैरोबी अग्रदर्शी रणनीतियां (1985), बीजिंग घोषणा और प्लेटफार्म फॉर एक्‍शन (1995) और जेंडर समानता तथा विकास और शांति पर संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र द्वारा 21वीं शताब्दी के लिए अंगीकृत “बीजिंग घोषणा एवं प्लेटफार्म फॉर एक्शन को कार्यान्वित करने के लिए और कार्रवाइयां एवं पहले” नामक परिणाम दस्‍तावेज को समुचित अनुवर्ती कार्रवाई के लिए भारत द्वारा पूर्णतया पृष्ठांकित कर दिया गया है।  

वैसे सरकार यह मानती है कि भारत में लिंग संबंधी ‘असमानता’ है और यह लिंग संबंधी असमानता कई रूपों में उभरकर सामने आ रही हैं जिसमें से सबसे प्रमुख विगत कुछ दशकों में जनसंख्या में महिलाओं के अनुपात में निरंतर गिरावट की रूझान है। लेकिन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं में तो ये महिलाएं पुरुषों के बराबर, अधिक ऊँचा स्थान बनती हैं ! 

इन सशक्तिकरण और नीतियों की बात यहाँ इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि देश में पुरुष, महिला या अन्य लिंग के रहने वाले सभी लोग, चाहे वे सरकारी क्षेत्र में, निजी क्षेत्र में कार्य करते हों अथवा नहीं। अगर देश के नागरिक हैं तो वे देश के नियम के अधीन हैं। मेरे मन में एक सवाल उठा रहा है कि क्या देश के संविधान, कानून व्यवस्था या अन्य लिखित विधि-विधानों के अंतर्गत, जिससे देश का कानून व्यवस्था, प्रशासन चलता हैं, उसमें ऐसी कोई बात उद्धृत हैं की भारत सरकार के गृह मंत्रालय के शीर्षस्थ अधिकारी, यानी गृह सचिव महिला योनि के नहीं होंगे। अगर ऐसा नहीं है तो अब तक बने 36 गृह सचिवों में महिला अधिकारी कोई क्यों नहीं नियुक्त/चयनित हुए। 

यह अलग बात है कि स्वतन्त्रव भारत में अब तक 29 राजनेता भारत सरकार में गृह मंत्री बने हैं, जिसमें श्रीमती इंदिरा गाँधी को छोड़कर, शेष सभी 28 पुरुष हैं। श्रीमती इंदिरा गाँधी पहली बार 9 नवम्बर से 13 नवम्बर 1966 में चार दिन के लिए, फिर 27 जून, 1970 से 5 फरबरी, 1973 तक कुल दो वर्ष 223 दिन गृह मंत्री भी थी। वे यशवंतराव चवण से पदभार ग्रहण की थी और उमा शंकर दीक्षित को पदभार सौंपी थी। अब सवाल यह है कि 29 राजनेताओं में एक महिला गृहमंत्री बनी और 36 गृह सचिवों में एक भी महिला नहीं। जबकि हम अपनी आज़ादी का 77 वन और गणतंत्र का 75 वन वर्षगांठ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में मना रहे हैं।  

वैसे राज्य सरकारों में महिला गृह सचिवों का पदस्थापना देखने को मिलता है। वर्तमान काल में ही कोई 25 वर्ष बाद पश्चिम बंगाल सरकार श्रीमती नंदिनी चक्रवर्ती को गृह सच्ची बनायीं है। श्रीमती चक्रवर्ती बी पी गोपालिका से पढ़भर ग्रहण की हैं। श्री गोपालिका अब प्रदेश के मुख्य सचिव  पर बैठे हैं। किसी भी प्रदेश अथवा केंद्र सरकार के अधीन मंत्रालय में महिला सचिव का होना ‘आम बात’ है। लेकिन जब मुख्य सचिव, गृह सचिव की बात होती है तब सरकार, सरकारी नियम, सरकारी नेता ‘महिला सशक्तिकरण’ के बारे में क्यों नहीं सोचते ? पश्चिम बंगाल सरकार में 1996-1998 के कालखंड में सुश्री लीना चक्रवर्ती पहली महिला अधिकारी थी जो प्रदेश के गृह सचिव के पद पर आसीन हुई थी। 

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