शिक्षक दिवस पर ‘राजनीतिक गुरु’ का अपने शिष्य को आशीष: ‘गुरूजी’ के पुत्र हेमंत सोरेन को 81 में 48 मत, यानी ‘विश्वास की जीत’

झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी अर्धांगिनी

रांची: आज शिक्षक दिवस है। सन 2011 जनगणना के आधार पर कुल 66.41 शैक्षिक दर (महिला शैक्षिक दर: 55.42 प्रतिशत और 76.84 पुरुष शैक्षिक दर) के बीच वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव जीत गए। यह अलग बात है  कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायकों ने सदन से बहिर्गमन किया। आंकड़ों के अनुसार 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा पेश विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 48 विधायकों ने मतदान किया।

सोरेन ने आज विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था। सोरेन ने एक दिवसीय विशेष सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें नहीं हैं वहां वह (भाजपा) लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है’’ और इसी कारण विश्वास मत हासिल करने की जरूरत महसूस की गई। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए दंगे भड़का कर देश में ‘गृह युद्ध’ जैसे हालात पैदा करने की कोशिश कर रही है। सोरेन सरकार के विश्वास मत हासिल करने के बाद विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।

पूर्व के दक्षिण बिहार और आज के झारखण्ड (कोयलांचल) के ‘ऐतिहासिक’ नेता शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन पटना हाई स्कूल, पटना (बिहार) से इंटरमीडिएट तक शिक्षा प्राप्त किये हैं। हालांकि चुनाव आयोग के समक्ष दायर हलफनामे के अनुसार, हेमंत ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीआईटी मेसरा (रांची) में प्रवेश लिया था, परन्तु पढ़ नहीं सके। नजदीकी का कहना है कि उनके पिता शिबू सोरेन उन्हें झारखण्ड की राजनीति उन्हें ‘वंशगत धरोहर’ के रूप में प्रदान करना चाहते थे। 

ये भी पढ़े   #भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (17) ✍️ दिल्ली के 12-जनपथ में नामोनिशान मिट गया राम विलास पासवान का 😪

10 अगस्त, 1975 को जन्म लिए हेमंत सोरेन 23 दिसंबर, 2009 को विधान सभा के सदस्य के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत किये और एक वर्ष के अंदर ही वे 11 सितंबर 2010 से 8 जनवरी 2013 तक झारखंड के डिप्टी सीएम बन गए। हेमंत सोरेन 2019 में झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिए। 

बहरहाल, विगत दिनों वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव लिखे कि ‘झारखण्ड में हेमंत सोरेन का पतन भाजपा को अधिलाभांश (बोनस) में हासिल हो रहा है। रांची में ‘‘ऑपरेशन लोटस‘‘ (कमल) की जरूरत नहीं पड़ी। नौबत ही नहीं आयी। पड़ोस में साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर पटना में पिछले पखवाडे़ भाजपा को जनता दल ने दरवाजा दिखाया था, सियासी कलाबाजी में कीर्तिमान नीतीश कुमार ने गुलाटी मारकर दर्ज किया। आज उस हानि की आंशिक भरपायी हो गयी। मगर कहानी यथार्थवादी प्रतीत तो होती है। हेमंत सोरेन-48 वर्ष के भरे यौवन में ही भ्रष्टाचार के सिरमौर बन बैठे। निखालिस सोरेनवाली कुटुंबवादी परिपाटी में कदाचार के दोषी पाये गये। यथार्थ से लबरेज। मुख्यमंत्री के पद पर रहते हेमंत खनिज मंत्री भी रहे। उन्होंने स्वयं अनगढ़ा पत्थर खदान को खोदने का लाइसेंस अपने ही नाम पर आवंटित कर दिया। यह अत्यधिक नूतन तरीका है। दायें हाथ बायें हाथ को दे।’

झारखण्ड विधान सभा

उनका कहना था कि ‘यूं तो राज्यपाल रमेश बैंस बड़े अनुभवी हैं। रायपुर से लोकसभाई और द्रोपदी मुर्मू (अधुना राष्ट्रपति) के बाद झारखण्ड के राज्यपाल बने। वे बड़े संभले तथा सावधान शासक है। निर्वाचन आयोग ने हेमंत सोरेन की विधायकी निरस्त करने का आदेश दिया है। मगर राज्यपाल ने तात्कालिक कदम उठाने के बजाय राज्य विधि विभाग की सलाह मांगी है। तुरंत बर्खास्त नहीं किया। बारह साल पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्षा सोनिया थीं। वह लाभ का पद माना गया। सोनिया ने लोकसभा से त्यागपत्र दिया। रायबरेली से उपचुनाव लड़ीं थीं। हेमंत भी शायद ऐसा ही कर सकते हैं।  यदि ऐसा न किया तो ? उनका राजनीतिक जीवन समाप्त हो जायेगा। यूं वे तो पद छोड़कर छह माह के अंदर उपचुनाव लड़ सकते हैं। वे त्यागपत्र देकर तत्काल दोबारा शपथ ले सकते हैं। फिलहाल अभी गंभीर राजनीतिक संकट तो जन्म ही गया है।’

ये भी पढ़े   संसद मार्ग के नुक्कड़ पर चाय की दूकान पर बैठा वह 80 वर्षीय वृद्ध नरेंद्र मोदी को कहता है: सांसद निधि बंद करें, परिजीवियों को हटाएँ, तभी 2029 और 2034 का सपना देख सकते हैं...

राव लिखते हैं: ‘हेमंत सोरेन-48 वर्ष के हैं, लम्बी पारी खेलनी है। मगर कालिमा तो लग गयी। उन्हें विरासत में भी पिता शिबू सोरेन से भ्रष्टाचार ही मिला है। शिबू सोरेन पीवी नरसिम्हा राव की काबीना में कोयला मंत्री थे, खनन लाइसेंस के भ्रष्ट आवंटन का उन पर आरोप लगा। प्रधानमंत्री  ने सोरेन को बर्खास्त कर दिया। कुछ ही समय बाद नरसिम्हा राव को अपने अल्पमत वाली सरकार बचाने हेतु सांसदों का समर्थन जुटाना पड़ा। शिबू सोरेन की अकूत राशि उत्कोच में मिली। इस आदिवासी सांसद ने अपने विवेक के मुताबिक यह काला धन बैंक में जमा कर दिया। पकड़े गयें। जेल की सजा हुयी। पिता-पुत्र ही नहीं, घर की बहू सीता बसंत सोरेन भी चुनाव में उलटा पलटी हेतु गिरफ्तार हुयी थीं। यह उड़ीसा की नेता सीता मुर्मू (शादी के बाद सोरेन) देवर के हटने पर मुख्यमंत्री की दावेदार हो सकती हैं। बहुमत की चिंता नहीं क्योंकि सोरेन-नीत गठबंधन के 49 विधायक हैं,  81 सदस्यीय विधानसभा में।’

राव आगे लिखे हैं: ‘इस बीच हेमंत सरकार बचाने में सजायाफ्ता लालू यादव खराब स्वास्थ्य के बावजूद बड़े सक्रिय हो गये हैं। उन्हें याद है कि अंगूठा छाप, ठेठ गंवई, काला अक्षर भैंस बराबर वाली मुख्यमंत्री वर्षों तक रही, राबड़ी देवी यादव को अविभाजित बिहार का मुख्यमंत्री बनाने में शिबू सोरेन के विधायकों की ही कारीगरी रही। तब के इस समर्थन के ऐवज में लालू ने सोरेन को पृथक झारखण्ड राज्य निर्माण मांग के लिये समर्थन दिया था।’

बहरहाल, राव का कहना है कि ‘क्या विडंबना है कि इन विभाजित राज्यों में दो समान नेतागण साथ-साथ सरकार में है। राजसत्ता मानों बपौती हो गयी।  हेमंत सोरेन अपराध के मामले में अपने पिता से काफी पीछे ही है। शिबू सोरेन को निजी सहायक शाशीनाथ झा की हत्या के जुर्म में सजा हुयी थी। फिलवक्त हेमंत सोरेन कब तक खैर मनायेंगे ? उनका पतन होना तय है। तब भाजपा विधान को भंग कर निर्वाचन की मांग कर सकती है। नया जनादेश पाने पर जोर दे सकती है। गेंद फिर जनता के पाले में होगी।’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here