कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास बैंक लॉकर से करोड़ों की चोरी, न्यास की ट्रस्टी महारानी ‘वृद्ध’, अपने-परायों की निगाहें न्यास के सम्पत्तियों पर टिकी

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दरभंगा / नई दिल्ली : दरभंगा राज की महारानी कामसुन्दरी की वृद्धावस्था के मद्दे नजर कहीं राज से जुड़े अपने-पराये लोगों की निगाहें महाराजाधिराज डॉ. कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास की सम्पत्तियों पर तो नहीं टिक गयी है? नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। 

कहने/लिखने में यह अच्छा नहीं लगता, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि महाराजाधिराज की एकमात्र जीवित विधवा कामसुन्दरी अपने जीवन के अंतिम वसंत में सांस ले रहीं हैं। ‘संतानहीन महाराजाधिराज की यह विधवा दरभंगा के महाराजा की अंतिम रक्त-सम्बन्ध हैं।” शेष जो भी राजपरिवार के वंशज होने का दावा करते हैं, सभी ‘महाराजाधिराज के गोतिया’ हैं। उनके भाई के वंशज हैं और महारानी के माईके के लोग हैं। 

दरभंगा के लोगों को शायद मालूम हो अथवा नहीं, भारत का न्यायालयीय दस्तावेज इस बात का जिवंत दृष्टान्त है कि नब्बे के दशक के उत्तरार्ध राज दरभंगा के इतिहास में शायद वह पहली घटना घटी थी जब 84-वर्षीय, 72-वर्षीय और 69-वर्षीय वृद्ध महानुभावों ने भारत के न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर तत्कालीन न्यायमूर्तियों से विनती किये थे कि उन्हें राज दरभंगा के क्रियाकलापों को निष्पादित करने से मुक्त किया जाए। 

उन महानुभावों ने न्यायालय में प्रस्तुत अपनी याचिका में लिखे थे कि : “It is submitted that the applicants are being harassed unnecessarily by the various quarters having vested interest. They are also being confronted with various problems.” न्यायालय में प्रस्तुत वह दस्तावेज इस बात का दृष्टान्त है कि दरभंगा राज में “निहित स्वार्थ (भेस्टेड इंटरेस्ट) की किल्लत नहीं है जो चतुर्दिक हैं। 

उस घटना के कोई 30-साल बाद जैसे-जैसे महाराजा की एकमात्र जीवित विधवा अपने जीवन के अंतिम वसंत की ओर अग्रसर होती जा रही हैं, उनके निकट के सम्बन्धी, जिसे महारानी ने खुद उन सम्पत्तियों, ट्रस्टों, न्यासों की देखभाल करने नियुक्त की थी, उन सम्पत्तियों को येन-केन-प्रकेण स्वहित में किये जा रहे हैं, चाहे भारतीय स्टेट बैंक के लॉकर से धार्मिक न्यास के जेवरातों की चोरी ही क्यों न हो। देवी-देवताओं के निमित्त आभूषणों, स्वर्णों को, जो मुद्दत से बैंक के लॉकरों में बंद थे, कुछ अन्य लोगों की मिलीभगत से लॉकरों से निकालकर खुले बाज़ार में बेच दिए। वैसे अन्वेषण जारी है लेकिन औसा माना जा रहा है कि उन स्वर्णभूषाओं की कीमत करोड़ों में होगी। 

दिल्ली में अन्वेषण के क्षेत्र में जुड़े अधिकारियों का मानना है कि “यह कार्य अकेले नहीं हो सकता और अकस्मात्अ भी नहीं हो सकता। अगर उक्त व्यक्ति महारानी के पॉवर ऑफ़ अटार्नी अथवा अन्य दस्तावेजों के साथ बैंक का लौकर खोलने पहुँचता है, तो चाहे वह कितना भी विश्वसनीय क्यों न हो, बैंक के नियमानुसार उक्त बैंक के प्रबंधक भी उतने ही उत्तरदायी होंगे। उन जेवरातों को अगर निकलने की बात हुई तो बैंक के प्रबंधक अपने अन्य अधिकारियों के साथ महारानी के पास व्यक्तिगत रूप में पहुंचकर उनसे पूछा सकता था। यह अलग बात है कि छोटे शहरों में निजी रिश्ते अधिक होते हैं, लेकिन बैंक यहाँ स्वयं कटघरे में है।”

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अन्वेषणकर्ता कहते हैं: “इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि जो व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज किया है, उसका भी उस संपत्ति में अभिरुचि हो। वह जानता हो कि उस धार्मिक न्यास के एक मात्र ट्रस्टी के देहावसान के बाद, महारानी की सम्पत्तियों/न्यास की सम्पत्तियों का देखभाल करने वाला कब्ज़ा कर ले। वैसे दरभंगा राज के साथ इन बातों का होना आम है।” अन्वेषणकर्ता आगे कहते हैं: मैंने सुना है कि किसी एक व्यक्ति ने ‘बाइलॉज’ का भी जिक्र किया है और यह भी कहा है कि उस बाइलॉज’ में ऐसा प्रावधान है कि अगर ‘महिला’ काम करने लायक नहीं है तो पुरुष को ट्रस्टी बनाना चाहिए। यह भी उस व्यक्ति विशेष को शक के दायरे में ले लेता है।” 

कपिलेश्वर सिंह (यूट्यूब से फोटो)

विगत दिनों महाराजाधिराज (दिवंगत) डॉ. सर कामेश्वर सिंह के अनुज राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह (दिवंगत) के सबसे छोटे पुत्र कुमार शुभेश्वर सिंह (दिवंगत) के छोटे पुत्र कुमार कपिलेश्वर सिंह मिथिला विश्वविद्यालय थाने में एक प्राथमिकी रपट दर्ज किये। रिपोर्ट के में उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय स्टेट बैंक के लॉकर में मुद्दत से बंद दरभंगा राज के 108 मंदिरों के देवी-देवताओं के जेवरात निकालकर बाजार में बेचा दिया गया है। यह सभी संपत्ति महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर धार्मिक न्यास की है। ”

दर्ज प्राथमिकी (कांड संख्या 34/24) में उन्होंने धार्मिक न्यास के प्रबंधक उदय नाथ झा अन्य एक अन्य व्यक्ति पर आरोप लगाया है। स्थानीय पुलिस के अनुसार प्राथमिकी दर्ज होने के कुछ ही क्षण बाद दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, साथ ही, आरोपी इस बात को स्वीकार भी किया है। पुलिस का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है। सिंह ने आरोप लगाया कि महारानी अब काफी वृद्ध हो चुकी है, जिसके कारण वे अपने होशो हवास में नहीं रहती है. इसका बात का फायदा उठाकर उपरोक्त उदयनाथ झा ने कामेश्वर रिलिजियस ट्रस्ट के देवी देवताओं के मंदिर के करोड़ों की बेशकीमती संपत्ति को बेच दिया। 

स्थानीय संवाददाताओं से बात करते कपिलेश्वर सिंह ने कहा कि वे दिल्ली में रहते हैं। जैसे ही उन्हें इस बात की जानकारी मिली कि बैंक के लॉकर से गहने गायब हैं, वे तुरंत दरभंगा आ पहुंचे। उनके अनुसार, देश भर के 108 मंदिरों के आभूषण ट्रस्ट के द्वारा SBI के बैंक लॉकर में रखे गए थे। इस बात की पुष्टि सदर डीएसपी ने भी किया और कहा कि कुमार कपिलेश्वर सिंह ने बैंक लॉकर से करोड़ो रूपये के हीरे जवाहरात गायब होने को लेकर मामला दर्ज कराया है। जिस दुकानदार के पास जेवरों को बेचा गया था उसे भी गिरफ्तार किया गया है।  साथ ही, उसके दुकान से काफी मात्रा में जेवरात बरामद किए हैं।

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अपने आवेदन में कपिलेश्वर सिंह ने कहा कि कामेश्वर रिलिजियस ट्रस्ट के नियमानुसार, यदि ट्रस्ट, जिसकी वर्तमान में एकमात्र ट्रस्टी महारानी हैं, उनके द्वारा अगर सही ढंग से ट्रस्ट का कार्य नहीं किया जाता है तो राज परिवार के किसी भी पुरुष सदस्य को जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसी नियम के तहत जिला प्रशासन को उपरोक्त बातों की सूचना दे रहा हूं। ताकि देवी देवताओं के बहुमुल्य जेवरातों की बरामदगी की जा सके और दोषियों को उचित सजा मिल सके।

वैसे धार्मिक न्यास के ट्रस्टी से संपर्क करने का सिर्फ एक ही रास्ता है उदय नाथ झा, लेकिन उदयनाथ झा से संपर्क नहीं हो पाया। उनका मोबाईल बंद है। इसी तारक कपिलेश्वर सिंह के मोबाईल पर उनसे संपर्क करने की कोशिश किए, लेकिन नहीं हो सका। इस समाचार के लिखने तक उनके संवाद पेटी में प्रेषित प्रश्नों का जबाब नहीं मिल पाया। 

वैसे दरभंगा राज में “स्वार्थी और चाटुकार” लोगों की किल्लत नहीं है। साथ ही, राज के अंदर महाराजाधिराज की सम्पत्तियों पर कब्ज़ा करने वालों की भी कमी नहीं है। नब्बे के दशक के उत्तरार्ध 84-वर्षीय, 72-वर्षीय और 69-वर्षीय वृद्ध महानुभाव भारत के न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर उससे विनती किये कि उन्हें कार्य मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त किया जाय, कार्यमुक्त किया जाए । वे न्यायालय में प्रस्तुत अपनी याचिका में लिखा है: “It is submitted that the applicants are being harassed unnecessarily by the various quarters having vested interest. They are also being confronted with various problems.”

उन्होंने न्यायालय को लिखा कि : “Due to their old age, falling health and other difficulties they are not in a position to continue to function as Trustees. It is the sincere desire of the applicants that they may be relieved of the responsibilities of the office of the Trustees of the Residuary Estate of Maharaja of Darbhanga and also of the Charitable Trust.” याचिका दायर करने के दिन द्वारकानाथ झा की आयु 72 वर्ष थी, जबकि मदन मोहन मिश्र और कामनाथ झा क्रमशः 84 और 69 वर्ष के थे। 

याचिका में इस बात का उल्लेख किया गया कि द्वारकानाथ झा एक बार ह्रदय रोग से पीड़ित हो चुके हैं। साथ ही, मदन मोहन झा भी शरीर से अधिक अस्वस्थ रहते हैं और प्रबंधन का कार्य नियमित रूप से नहीं कर सकते हैं। जहाँ तक कि उनकी शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे याचिका पर अपना हस्ताक्षर भी कर सकें। द्वारकानाथ झा दरभंगा इस्टेट को विगत 30 वर्ष से देख-रेख कर रहे हैं। अतः, सभी ट्रस्टियों ने यह निर्णय लिए की रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट का कार्यभार न्यायालय द्वारा नियुक्त “प्रशासक” को सौंप दिया जाय। यह तब की बात थी। 

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किले के अंदर के लोगों का कहना है कि महाराजाधिराज लोगों के धार्मिक भावनाओं के सम्मानार्थ महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास की स्थापना किये थे। दरभंगा ही नहीं, बिहार प्रान्त और देश के अन्य हिस्सों में जिन-जिन मंदिरों, मठों और धार्मिक स्थानों की देख-रेख करने का दायित्व लिए थे, उसका समुचित संरक्षण हो; इस निमित्त अपने राज का एक बहुत बड़ा हिस्सा का कृषि जमीन कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास को दे दिए थे, ताकि आमदनी का स्रोत बना रहे । आज दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट, कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट या महाराजाधिराज द्वारा सामाजिक-धार्मिक कल्याणार्थ बनाये गए अन्य न्यासों से “अधिक स्वस्थ” कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास का भी नहीं है। बीमारी से यह न्यास भी ग्रसित है। 

स्थानीय पुलिस

प्रशासन को इस बात की गहराई तक जांच करनी चाहिए कि कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के पास ऐसी कोई सूची है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि इस न्यास को बनाते समय महाराजधिराज ने अमुक-अमुक मंदिरों / मठों के निर्माण, रख-रखाव, पंडित/पुजारी के वेतन, प्रसाद, घुपबत्ती, अगरबती, घूमन, भगवान अथवा भगवती के लिए वस्त्र आदि-आदि मदों पर प्रत्येक दिन अथवा प्रत्येक वर्ष होने वाले खर्च के निमित्त निर्धारित किये थे? उन मंदिरों और मठों के निमित्त सुरक्षित जमीनों की सूची है कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के पास ? उन जमीनों के लिए न्यास सरकार के कोषागार में अथवा निबंधन कार्यालय में भूमि-कर का भुगतान कर रखा है? कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के तहत सभी मंदिरों, मठों की स्थिति बेहतर है? उन भूमियों की खरीद-बिक्री में तो हाथ नहीं लगाया गया है? कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के तहत संचालित और संरक्षित मंदिरों/मठों के पुजारियों की कोई सूची उपलब्ध है? 

सूत्रों का कहना है कि कोई 108 मंदिर और ठाकुरवाड़ी हैं जो कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के अधीन माना जाता है। इतना ही नहीं, यह भी कहा जाता है कि कानपुर स्थित बाजीराव पेशवा – II के महल में स्थित मंदिर का देखभाल सहित, देश में अनेकानेक ‘ऐतिहासिक लोगों द्वारा स्थापित मंदिर है जिसका देखभाल महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने अपने जिम्मे लिया था और इसका दायित्व कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास को सौंपा था। 

आज राज दरभंगा में जितने भी ट्रस्ट्स हैं, मसलन बड़ी राजमाता (महारानी रामेश्वरलाता), बाबू रबितेश्वर सिंह और अन्य, हेमचन्द्र रॉय और अन्य, जगदीश्वरी बौआसिन और अन्य, श्रीमती लक्ष्मी दाईजी, बबुआनास और दीआनस, दरभंगा राज रेसिडुअरी, कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट, कामेश्वर रिलिजियस ट्रस्ट, लक्ष्मीपुर ट्रस्ट, श्रीमान के झा ट्रस्ट इत्यादि में लगभग सभी ट्रस्टों पर छोटी महारानी की भागीदारी कागज पर तो हैं, परन्तु शरीर अब साथ नहीं दे रहा है। इतना ही नहीं, नियमानुसार ट्रस्टों में संख्या की पूर्ति हेतु ट्रस्टों में जो भी सदस्य हैं, उनका स्थान “नगण्य” है, या फिर स्थान मुद्दत से रिक्त पड़ा है।

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