दरभंगा: जीएम रोड-4: बाजार मूल्य Vs अंतिम देय मूल्य, क्रेता-विक्रेता का गुंडागर्दी, कलकत्ता उच्च न्यायालय का ‘अवमानना’ (भाग-2)

यहाँ क्रेता-विक्रेता का गुंडागर्दी ही नहीं कलकत्ता उच्च न्यायालय का 'अवमानना' भी है : कीर्ति झा 'आज़ाद'

कलकत्ता / दरभंगा : नब्बे के दशक के उत्तरार्ध रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने भारत के सर्वोच्च न्यायलय सहित कलकत्ता उच्च न्यायालय को लिखित याचना देकर न्यायालय से गुहार किये थे कि उन्हें  रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्टसे कार्यमुक्त कर दिया जाय। उन्होंने कहा कि जीवन के अंतिम वसंत में वे ‘बेइज्जत’ नहीं होना चाहते हैं। याचकों ने कचहरी को कहा था कि चुकी इस सम्पूर्ण कार्य में अनेकानेक लोगों का ‘स्वार्थ’ निहित है, अतः बढ़ती उम्र और ढ़लती स्वास्थ्य के मद्दे नजर, वे अपने कार्य को निष्पादित करने में असहाय हैं, नहीं कर सकते हैं। अतः वे न्यायालय से निवेदन किये कि उन्हें ‘मुक्ति’ दिया जाय और सम्पूर्ण कार्य को निष्पादित करने के लिए न्यायालय एक प्रशासक की नियुक्ति कर दे ।  

तीन दशक, बाद उसी कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष अधिकारियों का अवमानना करते हुए, दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह द्वारा अर्जित संपत्ति को लेकर, उसी दरभंगा राज की भूमि पर कुछ ऐसे कारनामे हुए हैं, जो न केवल निरीह लोगों की जान लिया, बल्कि कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त तीन विशेष अधिकारियों का “खुलेआम, सार्वजनिक रूप से अवमानना” भी किया। माँ के गर्भ में पल रहे आठ-माह के नौनिहाल के साथ-साथ उसकी माँ और मामा दोनों मृत्यु को प्राप्त किये। 

वजह: 30.20 डिसमल (13155. 13 वर्ग फुट या 9.66 कट्ठा) जमीन और उसमें बना घर और स्थान था 4-जी एम रोड। इंटरनेट पर उपलब्ध डाटा के अनुसार 4-जीएम रोड पर जिस जमीन और जमीन पर बने स्ट्रक्चर के कारण घटना हुई है; वह जमीन के साथ स्ट्रक्चर 28,720,800 रुपये में बेची गई है। इस जमीन और स्ट्रक्चर को बेचने वाले कुमार कपिलेश्वर सिंह और कुमार राजेश्वर सिंह हैं। ये दोनों दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह के अनुज राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह के छोटे पुत्र दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के पुत्र-द्वय हैं। विडंबना यह है कि उस जमीन और स्ट्रक्चर में रहने वाला परिवार और कोई नहीं, बल्कि सिंह-भाइयों की माँ की अपनी छोटी बहन, यानी अपनी मौसी और उसके बच्चे थे। शायद उस कमजोर परिवार से उन्हें भय था कि वह उस जमीन को, उस संपत्ति को, जो बाज़ार में कई करोड़ का है, हड़प न ले। 

आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम से बात करते हुए दरभंगा के पूर्व सांसद और युवा नेता कीर्ति झा ‘आज़ाद’ दरभंगा राज की वर्त्तमान पीढ़ियों के वंशजों के क्रिया-कलापों से क्षुब्ध है। कीर्ति आज़ाद कहते हैं: “दरभंगा राज की मिट्टी को विगत दिनों की घटना कलंकित कर दिया। महाराजाधिराज जिस दरभंगा राज को, यहाँ की मिट्टी को अपने पसीने से सींचा था, अपनी सोच से पाला-पोसा था, यहाँ के लोगों को सुरक्षा और संरक्षण दिया था; आज उन्ही के परिवार के लोग दरभंगा की मिट्टी को लहू-लहुआन कर रहे हैं। विधि द्वारा स्थापित सम्पूर्ण पद्धति का अवमानना कर रहे हैं। चतुर्दिक चाटुकार, चापलूसों का जमघट है। यह समझ पाना मुश्किल है कि आखिर उनके सिपा-सलाहकार कौन हैं? गुंडा-गर्दी से समस्या का समाधान नहीं होता, बल्कि निरीह, कमजोर और अपनों की जान जाती है, बस। और दरभंगा के जीएम रोड-4 के बंगला में ऐसा ही हुआ। ”

कीर्ति झा ‘आज़ाद’ कहते हैं: “यह एक अमानुषिक घटना है। संपत्ति की खरीद-बिक्री क़ानूनी तौर पर किसी भी हालत में गलत नहीं है। लेकिन जिस तरह से इस संपत्ति पर क्रेता अपना अधिकार ज़माने की कोशिश किया है, जिस तरह से विक्रेता संपत्ति को बेचा है; स्पष्ट रूप से कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेशों का अवमानना है। क्रेता और विक्रेता में आपसी क्या बातचीत हुई, किस परिस्थिति में वह उस जमीन और स्ट्रक्चर को ख़रीदा गया या बेचा बेचा, यह पूर्ण रूप से अन्वेषण का विषय है। लेकिन इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि विक्रेता को उस स्थान/मकान में रहने वाले परिवार को क़ानूनी रूप से लिखित सूचना देनी चाहिए था। उन्हें यह स्पष्ट कर देना चाहिए था कि वे उस प्रॉपर्टी को बेच रहे हैं क्योंकि उस पर उनका ही अधिकार है। अपने अधिवक्ता के माध्यम से भी सूचित कर सकते थे। चुकी उस स्थान पर रहने वाला परिवार कोई और नहीं बल्कि उनकी अपनी मौसी-मौसा-भाई-बहन थे, अतः मानवता और मानवीयता भी यही कहता है कि वे व्यक्तिगत रूप से इस समस्या का समाधान कर लेते। लेकिन जहाँ तक मुझे जानकारी है, ऐसा नहीं हुआ।”

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घटना स्थल के आस-पास का दृश्य

कीर्ति आज़ाद आगे कहते हैं: “बात करने से भारत-पाकिस्तान की समस्या, अमेरिका-रूस की समस्या, जर्मनी-जापान की समस्या या यूँ कहें की विश्व की किसी भी आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक, वैचारिक समस्याओं का समाधान होता आया है, होता रहेगा। लेकिन जहाँ तक मैं जानता हूँ, दरभंगा के जीएम रोड – 4 के बंगले में ऐसा नहीं हुआ। यहाँ तक कि क्रेता के तरफ से भी आधिकारिक तौर पर ऐसी कोई पहल नहीं हुई। प्रॉपर्टी खरीदने से पहले क्रेता यह भी कह सकता था कि उसे उस स्थान पर रहने वाले लोगों को खाली करवा दे। अगर आपसी सुलह से संभव नहीं था, तो स्थानीय प्रशासन, पुलिस की मदद से इस कार्य को संपन्न किया जा सकता था। अगर दरभंगा प्रशासन से नहीं हो पाता तो आगे प्रशासन की श्रृंखला है। लेकिन स्थानीय प्रशासन की चुप्पी, उसकी निष्क्रियता, उसकी शिथिलता, क्रेता – विक्रेता का भूमिगत हो जाना, प्रशासन की ओर से किसी भी प्रकार की सकारात्मक पहल नहीं करना और अंत में एक परिवार के तीन सदस्यों का मृत्यु को प्राप्त करना – सम्पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था को, सम्पूर्ण न्यायिक व्यवस्था को, सम्पूर्ण मानवीयता को चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। न्याय तो मिलना ही चाहिए उस परिवार को।”

दरभंगा समाहरणालय – लोगों का विश्वास जीतना होगा।  तस्वीर मिथिला कनेक्टस के सौजन्य से 

बहरहाल, अगर http://bhumijankari.bihar.gov.in/BiharPortal/Admin/AdvSearch/AdvSearch.aspx पर दी गई जानकारी को सही माना जाय, जहाँ संपत्ति की खरीद-बिक्री की जानकारी उपलब्ध है, तो “टोकन नंबर 12429 के तहत बुक नंबर – 1 के सीरियल नंबर 12171 और निबंधन संख्या 2017 के अधिक 13350 संख्या का डीड फाइल हुआ था। यह डीड दिनांक 23 अगस्त, 2017 को फाइल किया गया और उसी तारीख को DSRO /SRO दरभंगा को पेश भी किया गया। पेश करने वाले थे राजकुमार गंज, थाना – टाऊन, दरभंगा के निवासी नवो नारायण झा के पुत्र शिव कुमार झा। इस दस्तावेज में पार्टी के बारे में जो विवरण दिया गया है उसमें इस डीड के एक्सेक्युटेंट थे रामबाग पैलेस,  थाना-ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा निवासी राज कुमार शुभेश्वर सिंह (ये जीवित हैं अथवा मृत इसका विवरण इस साईट पर नहीं लिखा गया है) के पुत्र कपिलेश्वर सिंह। 

इस डीड के दो क्लेमण्ट हैं। पहला रामबाग़ पैलेस, थाना ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के राजेश्वर सिंह (पीओए) और दूसरे क्लेमण्ट हैं राजकुमार गंज, थाना-टाउन, दरभंगा निवासी नवो नारायण झा के पुत्र शिव कुमार झा। मिथिला में एक कहावत है “हड़बड़ी में वियाह आ कनपट्टी में सिंदूर” – इस डीड में भी कुछ ऐसा ही हुआ है अगर इंटरनेट पर अंकित जानकारी को माना जाय। ‘क्लेमण्ट – 1’ में राजेश्वर सिंह का नाम है, साथ ही, उन्हें रामबाग पैलेस का निवासी बताया गया है। लेकिन उनके पिता का नाम भी ‘राजेश्वर सिंह’ लिखा गया है। और तहकीकात के दौरान रामबाग पैलेस परिसर में ऐसा कोई भी राजेश्वर सिंह नहीं मिले, जिनके पिता का नाम भी राजेश्वर सिंह ही हो। 

http://bhumijankari.bihar.gov.in/BiharPortal/Admin/AdvSearch/AdvSearch.aspx पर दी गई जानकारी

जहाँ तक प्रॉपर्टी के बारे में अंकित विवरण का सवाल है, इंटरनेट पर लिखा है कि ‘स्ट्रक्चर के साथ इस भूमि की खरीद/निबंधन हुई है जो DSRO /SRO दरभंगा, सर्किल-दरभंगा अर्बन, थाना – सैफूल्लाहगंज, स्थानीय निकाय – नगर निगम के अधीन आती है। भूमि टाइप में आवासीय (मेन रोड) लिखा हैं। जानकारी में इस बात को भी लिखा गया है कि इस संपत्ति का मार्केट मूल्य: 810000 रुपये हैं और इसे 28720800/- रुपये फ़ाइनल मूल्य पर ख़रीदा/निबंधित किया गया है। इस प्रॉपर्टी खाता संख्या n/a है। इसका प्लाट नंबर – 644 है। जमीन और स्ट्रक्चर के साथ कुल 30.20 डिस्मिल एरिया में यह प्रॉपर्टी है। विवरण में यह भी लिखा गया है कि इस प्रॉपर्टी के पूर्व दिशा में आशु दत्त झा और अन्य रहते हैं। पश्चिम दिशा में रंजू मिश्र रहते हैं। उत्तर दिशा में प्लाट नंबर – 9521 है जो खाली स्थान है और दक्षिण दिशा में रोड है। इस विवरण के नीचे “डिपार्टमेंट ऑफ़ रजिस्ट्रेशन एक्साइज और प्रोहिबिशन बिहार सरकार” लिखा है।

(बहरहाल, इस कहानी को अपलोड करने के समय अनेकानेक बार कोशिश करने के बावजूद वेबसाइट नहीं खुला और कुछ ऐसा दिखा मिला ) 

खैर, नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में राज दरभंगा के इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी जब 84-वर्षीय, 72-वर्षीय और 69-वर्षीय वृद्ध न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर उससे विनती किया हो कि उन्हें कार्य मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त किया जाय, कार्यमुक्त किया जाय । याचिका में लिखा है: “It is submitted that the applicants are being harassed unnecessarily by the various quarters having vested interest. They are also being confronted with various problems. The applicants further submitted that due to their old age, falling health and other difficulties they are not in a position to continue to function as Trustees. It is the sincere desire of the applicants that they may be relieved of the responsibilities of the office of the Trustees of the Residuary Estate of Maharaja of Darbhanga and also of the Charitable Trust.”

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याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध की कि ढलती उम्र और गिरती स्वास्थ्य के कारण वे सभी अब इस अवस्था में नहीं हैं की इस पद पर कार्य कर सकें। स्वाभाविक है कि इन ट्रस्टियों ने न्यायालय से अनुरोध किये कि उन्हें रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभनगा और चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी के पदों से मुक्त कर दिया जाय। यह भी कहा गया कि याचिका कर्ताओं ने न्यायालय द्वारा अनुशंसित सभी कार्यों के बहुत ही दक्षता के साथ, साथ ही जितनी भी बाकी-बकियौता था, उनमे अधिकांश को पूरा कर दिए हैं। याचिका दायर करने के दिन द्वारकानाथ झा की आयु 72 वर्ष थी, जबकि मदन मोहन मिश्र और कामनाथ झा क्रमशः 84 और 69 वर्ष के थे। याचिका में इस बात का उल्लेख किया गया कि द्वारकानाथ झा एक बार ह्रदय रोग से पीड़ित हो चुके हैं। 

साथ ही, मदन मोहन झा भी शरीर से अधिक अस्वस्थ रहते हैं और प्रबंधन का कार्य नियमित रूप से नहीं कर सकते हैं। जहाँ तक कि उनकी शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे याचिका पर अपना हस्ताक्षर भी कर सकें । द्वारकानाथ झा दरभंगा इस्टेट को विगत 30 वर्ष से देख-रेख कर रहे हैं। अतः, सभी ट्रस्टियों ने यह निर्णय लिए की रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट का कार्यभार न्यायालय द्वारा नियुक्त “प्रशासक” को सौंप दिया जाय। वैसे भारत का सर्वोच्च न्यायालय इन सभी ट्रस्टियों को सम्पूर्णता के साथ अधिकार दिए थे जिससे रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट का कार्य सुचारु रूप से चले। फिर भी सलाह के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय में तो आवेदन किया ही गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने ही यह आदेश दिया की आवेदन की एक प्रति कलकत्ता उच्च न्यायालय में भी पेश कर दिया जा।

न्यायालय का यह मानना कि “The estate of the deceased (Maharajadhiraj Sir Kameshwar Singh) is in limbo. The mechanism of the committee of management being requested to administer the estate failed. The committee of management has been in place for over 11 years. They are yet to administer the estate. The first Special officer could not complete the administration . The Second special officer resigned in view of unsavoury statements made against him by one of the members of the committee of management .

न्यायालय ने आगे कहा: “The fact that the estate requires protection is ‘disputed’ by any of the appearing parties. They seek an appropriate mechanism so that the estate is administered properly. They seek a mechanism by which the entire litigation between the parties come to an end as expeditiously as possible. In view of the factual situation, it would be appropriate to discharge the present committee of management with immediate effect. They will not operate any bank account of the estate any further. In the facts and circumstances in the instant case, it would be appropriate that three Special Officers are appointed to administer the estate.

घटना स्थल की ओर – जीएम रोड, बंगला नंबर – ४

ज्ञातव्य हो कि अंतिम दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह की मृत्यु दिनांक पहली अक्टूबर 1962 को हुई। महाराजाधिराज अपनी मृत्यु के पूर्व 5 जुलाई 1961 को एक वसीयत बनाए थे। इस वसीयत को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा 27 जून, 1963 को न्यायमूर्ति श्री लक्ष्मीकांत झा को एकमात्र एस्क्यूटर घोषित किया गया। महाराजा के वसीयतनामे के अनुसार, महाराजा का दरभंगा राज का सम्पूर्ण अधिकार न्यायमूर्ति झा के पास जाता है। महाराजा के वसीयतनामे में तीन ट्रस्टियों का नाम भी उद्धृत किये थे जिनकी नियुक्ति “सेटलर” द्वारा किया गया – वे थे: पंडित एल के झा (स्वयं), पंडित जी एम मिश्रा और ओझा मुकुंद झा। उपरोक्त “एस्क्यूटर” को अपना सम्पूर्ण कार्य समाप्त करने के बाद दरभंगा राज का सम्पूर्ण क्रियाकलाप इन ट्रस्टियों को सौंपना था। महाराजा के वसीयतनामे में इस बात पर बल दिया गया था कि ट्रस्टियों की मृत्यु अथवा त्यागपत्र के बाद, दूसरे ट्रस्टी द्वारा रिक्तता को भरा जायेगा और वर्तमान ट्रस्ट उक्त दस्तावेज में उल्लिखित नियमों के अधीन ही नियुक्त किये जायेंगे।

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न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा संभवतः सन 1978 साल के मार्च महीने के 3 तारीख को मृत्यु को प्राप्त किये । न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा की मृत्यु के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) एस ए मसूद और न्यायमूर्ति शिशिर कुमार मुखर्जी (अवकाश प्राप्त) को दरभंगा राज के “प्रशासक” के रूप में नियुक्त किया गया था । इसके बाद तत्कालीन न्यायमूर्ति सब्यसाची मुखर्जी अपने आदेश, दिनांक 16 मई, 1979 के द्वारा उपरोक्त “प्रशासकों” को “इन्वेंटरी ऑफ़ द एसेट्स’ और ‘लायबिलिटीज ऑफ़ द इस्टेट’ बनाने का आदेश दिया थे ताकि वह दरभंगा राज के ट्रस्टियों को सौंपा जा। उक्त दस्तावेज के प्रस्तुति की तारीख के अनुसार तत्कालीन ट्रस्टियों ने महाराजाधिराज दरभंगा के रेसिडुअरी इस्टेट का कार्यभार 26 मई, 1979 को ग्रहण किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेशानुसार, महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के सभी लाभार्थी (यानी परिवार के सदस्य) इस ट्रस्ट के ट्रस्टीज बने । बाद में महाराज के कई पारिवारिक सदस्यों ने कई मुकदमें किये।अंततः यह मामला माननीय उच्चतम न्यायालय में गया और 5 अक्टूबर 1987 को फॅमिली सेटलमेंट हुआ ।

इस बीच, 27 मार्च, 1987 को सम्बद्ध लोगों के बीच हुए फेमिली सेटेलमेंट को लेकर दायर अपील को सर्वोच्च न्यायालय दिनांक 15 अक्टूबर, 1987 को “डिक्री” देते हुए ख़ारिज कर दिया। तदनुसार, फेमिली सेटेलेमनट के क्लॉज 1 के अनुसार, सिड्यूल II में वर्णित शर्तों को मद्दे नजर रखते, महारानी अधिरानी कामसुन्दरी सिड्यूल II में उल्लिखित सभी सम्पत्तियों की स्वामी बन गयी। स्वाभाविक है, उन सम्पत्तियों पर उनका एकल अधिकार हो गया। इसी तरह, फेमिली सेटेलेमनट के क्लॉज 2 के अनुसार, कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्र, यानी राजेश्वर सिंह, जो उस समय बालिग हो गए थे, और उनके छोटे भाई, कपिलेश्वर सिंह, जो उस समय नाबालिग थे, सिड्यूल III में वर्णित शर्तों को मद्दे नजर रखते सिड्यूल III में उल्लिखित सम्पत्तियों के मालिक हो गए। आगे इसी तरह, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 3 के अंतर्गत सिड्यूल IV में वर्णित सभी नियमों के अनुरूप में सभी सिड्यूल IV में उल्लिखित सम्पत्तियों का मालिक पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टीज हो गए। फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 5 के अधीन, श्रीमती कात्यायनी देवी, श्रीमती दिव्यायानी देवी, श्रीमती नेत्रयानी देवी (कुमार जीवेश्वर सिंह के सभी बालिग पुत्रियां) और सुश्री चेतना दाई, सुश्री दौपदी दाई, सुश्री अनीता दाई (कुमार जीवेश्वर सिंह के सभी नबालिग पुत्रियां), श्री रत्नेश्वर सिंह, श्री रश्मेश्वर सिंह (उस समय मृत), श्री राजनेश्वर सिंह (कुमार याजनेश्वर सिंह) सिड्यूल V में उनके नामों के सामने उल्लिखित, साथ ही, उसी सिड्यूल में उल्लिखित शर्तों के अनुरूप, सम्पत्तियों के मालिक होंगे।

घटना स्थल की ओर – जीएम रोड, बंगला नंबर – 4

फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 5 के तहत, पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टीज को यह अधिकार दिया गया कि वे सिड्यूल I में वर्णित ‘लायबिलिटीज’ को समाप्त करने के लिए, सिड्यूल VI में उल्लिखित सम्पत्तियों को बेचकर धन एकत्रित कर सकते हैं, साथ ही, परिवार के लोगों में फेमिली सेटेलमेंट के अनुरूप शेयर रखने का अधिकार दिया गया। साथ ही, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 6 के अनुसार, महारानी अधिरानी कामसुन्दरी और राज कुमार शुभेश्वर सिंह या उनके नॉमिनी (दूसरे क्षेत्र के लाभान्वित लोगों के प्रतिनिधि) द्वारा बनी एक कमिटी लिखित रूप से सम्पत्तियों की बिक्री, शेयरों का वितरण आदि से सम्बंधित निर्णयों को लिखित रूप में ट्रस्टीज को देंगे जहाँ तक व्यावहारिक हो, परन्तु किसी भी हालत में पांच वर्ष से अधिक नहीं या फिर न्यायालय द्वारा जो भी समय सीमा निर्धारित हो।

फैमली सेटेलमेंट के तहत, महाराजाधिराज के उस सम्पूर्ण संपत्ति स्वरुप सिक्के को जिन चार भागों में विभक्त किया गया उसमें एक – चौथाई भाग महाराजाधिराज पत्नी महारानी कामसुन्दरी को मिला। एक – चौथाई हिस्सा राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह को मिला। एक – चौथाई हिस्सा राजकुमार जीवेश्वर सिंह और यज्ञेश्वरा सिंह को मिला और अंतिम एक – चौथाई टुकड़ा चेरिटेबल ट्रस्ट के हिस्से आया। सेटेलमेंट के क्लॉज 11 के तहत, यह बात स्पष्ट किया गया कि ‘समय आने पर ट्रस्ट का निर्माण’ किया जायेगा जिसका नाम ‘कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट’ होगा और इस ट्रस्ट के सभी सदस्यों का चयन, रखरखाव आदि-आदि नियमानुसार होगा। आगे, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 14 के अधीन न्यायालय के आदेश केदिनांक 15 अक्टूबर, 1987 से पांच साल के अंदर इस सेटेलमेंट को लागू करना था। बाद में, दिनांक 7 मई, 1993 को न्यायलय ने सेटेलमेंट को दिनांक 15 अक्टूबर, 1995 तक बढ़ा दिया।

क्रमशः 

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