#भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (21) भारत में 214662150000/- रुपए प्रतिवर्ष का धंधा है सिनेमा✍️ लेकिन दिल्ली में सिनेमा घर बंद हो रहे हैं 😢

भारतकीसड़कों से भारतकीकहानी की इस श्रृंखला में हम आपको एक ऐसे यथार्थ से अवगत करना चाहते हैं जिसे लोगबाग देख तो रहे हैं, परन्तु ‘स्मार्ट शहर’, उसमें भी देश की राजधानी में रहने के कारण ‘नजर अंदाज’ कर रहे हैं। वह नहीं जानते, या फिर जानना चाहते कि आज की दिल्ली का अस्तित्व और वजूद कल की दिल्ली पर ही है। परन्तु वे कहते हैं ‘वे तो स्वतंत्र भारत में जन्म लिए…… आज़ादी के पहले क्या हुआ, उन्हें क्या? खैर। 

विडंबना यह है कि भारत में 214662150000/- रुपए प्रतिवर्ष का धंधा है सिनेमा।  कोई डेढ़ हज़ार से अधिक सिनेमा प्रतिवर्ष बनते हैं। बॉक्स ऑफिस पर भारतीय सिनेमा अपना तीसरा स्थान रखते हैं। दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य अकादमी भी है और सैकड़ों संस्थाएं देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गरिमा, धरोहरों को बचाने की दिशा में कार्य भी कर रही हैं, सरकारी विभागों से विभिन्न प्रकार के मदद भी प्राप्त कर रही हैं । लेकिन दिल्ली की ह्रदय, यानी कनॉट सर्कस और कनॉट सर्किल में स्थित ऐतिहासिक चार सिनेमा गृहों में दो बंद हो गए, दो अपने नामों का अस्तित्व खो दिए। इतना ही नहीं, देश के कुल 3763 सिनेमा गृहों में एक ओर जहाँ मुंबई में इनकी संख्या 189+ है, देश की राजधानी दिल्ली में मात्र 43+- 

सन 1932 में स्थापित ‘रीगल’ सिनेमा जिसके चौखट पर, बरामदे पर, आँगन में शहर के संभ्रांतों का जमघट होता था, संसद मार्ग, जनपथ के रास्ते कनॉट सर्कस में भ्रमण-सम्मेलन होता था, आज अपनी विरानीयत पर अश्रुपात है। शहर के लोग जो कभी इनके दरवाजे को देखे बिना कदम आगे नहीं करते थे, आज नजर घुमाते भी नहीं, अनदेखा कर निकल जाते हैं। अब तो शहर की सुन्दर-सुन्दर महिलाएं, प्रेमी-प्रेयसी भी इस रास्ते को त्याग दिए हैं। ओह !!! 

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रीगल सिनेमा के बाद सन 1940 में प्लाजा सिनेमा बना था। कोई एक दशक तक ‘प्लाजा’ सिनेमा गृह पर सोहराव मोदी का अस्तित्व था। आज अपने वजूद और अस्तित्व को समाप्त कर जीवित रहने के लिए “प्लाजा पीवीआर” हो गया। सोहराव मोदी के ‘प्लाजा’ के बनने के कोई पांच साल बाद कनॉट प्लेस में “ओडियन” सिनेमा गृह अस्तित्व में आया। शहर का यह दूसरा सिनेमा हाल था जहाँ 70 एमएम सिनेमा देखते थे लोग। आज विरानीयत का शिकार हो गया। आज “ओडियन” सिनेमा गृह के प्रवेश द्वार, निकास द्वार के एक-एक ईंट, दरवाजे, दीवारें बिलख रही हैं। अब उस गलियारे में कोई नहीं आता। हां, शिवाजी स्टेडियम के सामने स्थित “रिवोली” सिनेमा गृह जीने के लिए अब पीवीआर के रूप में साँसे ले रही है। इन दृश्यों को देखने से मन विकल हो जाता है। 

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