#भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (19) ✍ #दिल्लीपुलिस: #संवेदना Vs #वेदना 😪 कैसे मुस्कुराएं जनाब ?

दिल्ली के पालम क्षेत्र में स्थित सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के परिसर में यत्र-तत्र-सर्वत्र लिखा है “मुस्कुराइए ….. आप सुलभ में हैं” – भावार्थ यह है कि आप ‘लघु’ अथवा ‘दीर्घ शंकाओं’ से अगर पीड़ित हैं तो आप ‘घबराने’ के बजाय ‘मुस्कुराएं’; क्योंकि आप एक ऐसे परिसर में हैं जो भारत के 130 करोड़ आवाम को इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने हेतु विगत पांच दशकों से कार्यरत हैं। लोगों ने सराहा है।

यह अलग बात है कि जब सुलभ के संस्थापक डॉ बिंदेश्वर पाठक, जो बाद में ‘पद्मविभूषण’ से भी अलंकृत हुए, अपने हाथों से भारत की गलियों में, गाँव में, शहरों में, मेट्रोपोलिटन और कॉस्मोपोलिटन में लोगों का ‘मल-मूत्र’ उठाकर, साफ कर ‘सेवा’ कार्य किया; आज लघु और दीर्घ शंकाओं का भी कोर्पोरेटजेशन हो गया। लोग बाग़ ‘मल-मूत्र से भी मालामाल हो रहे हैं। ‘मुस्कुराने’ का वजह कब अपने उत्कर्ष पर होता है, इसका प्रयोग बादशाह अकबर के ऊपर भी किया गया था जब उन्होंने ‘बीरबल’ से पूछा था कि जीवन में सबसे अधिक ‘प्रसन्नता’, ‘मुस्कुराने का वजह’ कब होता है। बीरबल ने कहा था कि जब हम दैनिक प्राकृतिक आवश्यकताओं से निवृत होते हैं।

लेकिन अगर भारत सरकार के गृह मंत्रालय यह अपेक्षा करें कि उनके अधीनस्थ की सभी संस्थाएं, साथ ही, दिल्ली पुलिस के कर्मी गण जनता के साथ मधुर संबंध बनाए रखे, हमेशा मुस्कुराते रहें, पुलिस भी और जनता भी – यह संभव तो है ही नहीं, नामुमकिन ही है, बशर्ते ‘शीर्षस्थ अधिकारी से लेकर नीचे तक सबों की इक्षाशक्ति बहुत मजबूत हो। मजबूत होने के लिए, मुस्कुराने के लिए ‘मानवीय’ होना नितांत आवश्यक है । क्योंकि जो व्यक्ति वर्दी पहनकर समाज की, राष्ट्र की सेवा करते हैं, खासकर निचले तबके के लोग, उसे समाज से ही नहीं, संस्थान से भी वह नहीं मिल पाता, जिसका वह हकदार है।

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वर्दी वाले नीचे तबके के कर्मियों को वह सम्मान नहीं मिल पाता जिसकी मनोवैज्ञानिक रूप से उम्मीद होती है। सम्बद्ध विभाग के उत्कर्ष अधिकारियों की बात छोड़ें, उनके विभागाध्यक्ष भी (अपवाद छोड़कर) अपने अधीन कार्य करने वाले कर्मियों को नाम से नहीं पहचानते हैं। संस्थान में उच्च पदों पर आसीन अधिकारीगण उसी संस्थान में कार्यरत छोटे-छोटे, अदना सा कर्मचारियों को कभी देखे भी नहीं होते हैं, देखते भी नहीं हैं।

विश्वास नहीं हो तो दिल्ली पुलिस सहित गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत सभी संस्थानों में लगे सीसीटीवी का फुटेज देखें, जब वरिष्ठ अधिकारी दफ्तर में आते-जाते हैं और कनिष्ठ उन्हें सल्यूट करते हैं। औसतन 90 फीसदी से अधिक वरिष्ठ अधिकारी उसे देखते भी नहीं, मुस्कुराने की बात तो अलग है। ‘मुस्कुराना’ या अपने कनिष्ठ का अभिवादन स्वीकारना शायद पुलिस मैन्युअल में नहीं लिखा है कि गलत है।

मनोवैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, मानवीय दूरियां इतनी अधिक होती है जिसके कारण सेवा क्या, अवकाश के बाद बिरले (अपवाद छोड़कर) कोई पदाधिकारी होते हैं जिन्हें उस संस्थान के कर्मी उन्हें याद करते हैं। यह बात गृह मंत्रालय ही नहीं, शासन, व्यवस्था, सरकार, न्यायालय से जुड़े सभी लोगों के साथ है। लेकिन गृह मंत्रालय की बात यहाँ इसलिए करना उचित है कि गृह मंत्रालय अपने अधीन (दिल्ली पुलिस सहित) कार्यरत सभी कर्मियों को, खासकर जो वर्दी में हैं आवाम के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाने की बात कर रहा है। कह रहा है “आप मुस्कुराएं”

विगत दिन दिल्ली पुलिस मुख्यालय गया था। आईटीओ पर स्थित मुख्यालय और पार्लियामेंट थाना के पीछे, वाईएमसीए के सामने नवनिर्मित पुलिस मुख्यालय में बहुत अंतर है – संवेदनात्मक । संभव है समय अंतराल में यह अंतर ना दिखे, महसूस नहीं हो; लेकिन आईटीओ पुलिस मुख्यालय में प्रवेश के साथ जो एक ‘आकर्षण’ होता था, इस नए गगनचुंबी इमारत में नहीं महसूस किया। खैर।

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पिछले 75 वर्षों में भारत सरकार में 31 गृह मंत्री आये। कुछ दोबारा भी बने थे। विगत 14 वर्षों में शायद यह तीसरा मौका और दूसरे गृह मंत्री थे जो दिल्ली पुलिस मुख्यालय आये थे। दो वर्षों में यह उनका दूसरा भ्रमण-सम्मलेन हैं। उनसे पहले सन 2009 में तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम आये थे। गृहमंत्री द्वारा ‘मुस्कुराने’ की बात, अथवा ‘जनता-पुलिस मधुर सम्बन्ध’ की बात की शुरुआत वे स्वयं किये, ऐसा प्रतीत होता है।

वे अधिकारियों के साथ लम्बी बैठक की। दोषसिद्धि दर को बढ़ाने और आपराधिक न्याय प्रणाली को फोरेंसिक विज्ञान जांच के साथ एकीकृत करने के लिए दिल्ली में 6 वर्ष से अधिक सजा वाले सभी अपराधों में फोरेंसिक जांच अनिवार्य करने के निर्देश दिये। वे गंभीर प्रकृति के चिन्हित अपराधों में पुलिस द्वारा चार्जशीट को लीगल वैटिंग के पश्चात ही दायर किया जाए, यह भी कहा ।उनका मानना है कि निगरानी अपराध को रोकने व इसकी जांच में पुलिसिंग का प्रमुख अंग है, इसलिए दिल्ली में सिविल प्रशासन, पुलिस द्वारा लगाए गए कैमरों के साथ ही सार्वजनिक स्थानों, मसलन हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, बाजार, RWAs द्वारा लगाए गए सीसीटीवी कैमरों को पुलिस कंट्रोल रम में जोड़ने की बात भी कही – बहुत बेहतर पहल है।

सरकार ड्रग्स के अभिशाप से देश को मुक्त करने के लिए संकल्परत है इसलिए दिल्ली में नार्कोटिक्‍स के ऊपर नकेल कसने के लिए विस्‍तृत कार्य-योजना तैयार की गई है। दिल्ली/एन.सी.आर व समीप के राज्यों में सक्रिय मल्‍टी स्‍टेट क्रिमिनल गैंग्स पर नकेल कसने की रणनीति बनाई गई है। महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा को वे अपनी प्राथमिक बताये। पुलिस फिटनेस पर भी चर्चा किये। वे यह भी कहे कि पुलिस द्वारा किये जा रहे मानवीय कार्यों को जनसामान्य तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो और इस कड़ी में पुलिस के प्रति आम लोगों की धारणा बदलने के लिए पुलिस कांस्टेबलों को स्कूली बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए। सभी बेहतर बातें हैं।

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लेकिन, सबसे बड़ी बात है कि संस्थान के अंदर, छतों के नीचे रहने वाले निचले कर्मियों और वरिष्ठों के बीच मानवीय, संवेदनात्मक, भावनात्मक संबंधों का होना। निचले कर्मियों को ही नहीं, ऊपर बैठे अधिकारियों के लिए भी वही पाठ होनी चाहिए। आखिर वर्दी में दोनों हैं और जनता वर्दी को पहचानती है। अच्छा काम निचले तबके के कर्मी करें और पीठ ऊपर बैठे का थपथपाया जाए – यह चेहरों पर मुस्कुराहट कैसे ला सकती है।

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