भारतकीसड़कों से भारतकीकहानी (18) ✍ दोषी सिर्फ दिल्ली का ऑटो वाला ही क्यों ? हम-आप भी तो दोषी हैं 🙏

आप दिल्ली के किसी मेट्रो स्टेशन में उतरें, सड़क पर आएं या फिर अपने घर से बाहर निकल कर किसी ऑटो वाले से अपने गंतव्य पर जाने के बारे में पूछें। आप भाग्यशाली होंगे आपको तुरंत कोई ले जाने के लिए तैयार हो जाय । 

आप ऑटो में बैठें और यात्रा प्रारम्भ करने से पहले उसे ‘मीटर’ चलाने के लिए कहें। आपके शब्द अभी ख़त्म भी नहीं हुए होंगे, सामने सीट पर बैठा ड्राइवर तक्षण कहेगा ‘मीटर ख़राब’ है। फिर शुरू होगी किराये की खींच-खींच। या तो आप उसकी बात मानकर, उसके द्वारा बताये किराये का मोल-जोल कर चलने को तैयार हो जायेंगे, या फिर तपती गर्मी, हड्डी-पसली में छेद करने वाली ठंड के मौसम में, बारिश में भीगते दूसरे ऑटो की प्रतीक्षा करने लगेंगे। 

यह एक दिन की बात नहीं, रोजमर्रे की बात हो गयी है। अगर आप किसी ऑटो वाले को प्रशासन, पुलिस की धमकी देंगे तो सामने बैठा वह महाशय बॉलीवुड के अभिनेता या खलनायक जैसा मुस्कुरा देगा। उसकी हंसी से हम-आप तक्षण इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि दोनों में गहरा प्रेम है। 

दिल्ली देश ही नहीं, दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला एक शहर है। सन 1960 में दिल्ली की आबादी 2283000 थी और आज, यानी 2022 में 32066000 के आस-पास है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अन्य राज्यों से रोजी-रोजगार के लिए नित्य आना-जाना अलग। 

यह नहीं कह सकते कि इन विगत वर्षों में शहर में और आस-पास के इलाकों में सुख-सुविधाओं में बढ़ोत्तरी नहीं हुआ है, लेकिन जिस तेजी से शहर की जनसंख्या में वृद्धि हुई, उस तेजी से यहां के भौतिक संरचना में बदलाव नहीं हो सका। उसी आधारभूत समस्याओं में एक समस्या ऑटो और ऑटो वालों की है। 

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एक रिपोर्ट के आधार पर 1997 में दिल्ली में परमिट वाले 82,138 ऑटो रिक्शा थे। सरकार ने ऑटो रिक्शा से होने वाले प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए इस संख्या के आगे परमिट जारी करना बंद कर दिया। जबकि उस समय शहर की जनसंख्या 1,34,51,000 थी। जनसंख्या जहां तेजी से बढ़ती गई, वहीं ऑटो रिक्शा की संख्या स्थिर रही क्योंकि सरकार ने नए परमिट जारी नहीं किए। वर्ष 2002 में सरकार ने 5 हजार नए परमिट जारी किए जिससे कुल ऑटो रिक्शा की संख्या बढ़कर 87,138 हो गई। 

वर्तमान में दिल्ली की जनसंख्या बढ़कर 3,20,66 ,000 है जबकि ऑटो रिक्शा की संख्या मात्र 1,18 95,000 है। इतना ही नहीं परमिट की अनुपलब्धता के कारण एक ऑटो रिक्शा की शो-रूम कीमत जहां 1.75 लाख रुपये के लगभग है, वहीं बिचौलियों और दलालों के कारण सड़क पर उतरते समय इसकी कीमत 4.5 लाख से 5 लाख हो जाती है। ऑटो चालकों के द्वारा मीटर से न चलने और मनमाना किराया वसूलने के पीछे बड़ा कारण यह भी है।

सवाल यह है कि अगर निजी वाहनों का सड़क पर आगमन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, यानी कोई भी व्यक्ति 100 रुपये देकर, बैंक से लोन लेकर, तत्काल शो-रम से चार पहिया वाहन खरीद कर दिल्ली सड़कों पर उतर सकता है, चाहे वे वाहन चलाने में निपुण हों अथवा नहीं, फिर  ऑटो पर परमिट क्यों, इसकी संख्या पर पाबंदी क्यों? 

आखिर खुद जीने के लिए, परिवार का पालन-पोषण करने के लिए एक कल्याणकारी राज्य को इतना तो सोचना ही पड़ेगा। हम सभी मामलों में ऑटो वालों को दोषी नहीं ठहरा सकते। ऑटो वाला भी इसी समाज का हिस्सा है और जो सत्ता अथवा प्रशासन में बैठे हैं, वे भी इसी समाज का हिस्सा हैं। कानून से ऊपर कोई नहीं है। एक बेहतर दिल्ली बनाने के लिए, ऑटोवाला और यात्रियों के बीच सुखमय-मधुर सम्बन्ध बनाये रखने के लिए हमें बेहतर सोचना पड़ेगा। 

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