#भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (17) ✍️ दिल्ली के 12-जनपथ में नामोनिशान मिट गया राम विलास पासवान का 😪

कहते हैं भीमराव रामजी राव अम्बेडकर साहेब की मृत्यु 6 दिसम्बर, 1956 को हुई, लेकिन उनकी मृत्यु से कोई 10-साल पहले बिहार के खगरिया जिले के शाहरबन्नी गाँव में एक बच्चा का जन्म हो गया था, जिसके कान में बाबा साहेब फूंक दे दिए थे की तुम दलित नेता बनना – तुम्हारा पुस्त-दर-पुस्त का जीवन बदल जायेगा, भले भारतवर्ष में वास्तविक दलितों की स्थिति बद-से-बत्तर हो जाय। जाओ बालक !! तुम दलितों की राजनीति करो, दलितों के लिए कभी राजनीति नहीं करना – आज अकेले करना, कल सपरिवार। लेकिन एक बात राम विलास जी में “जबरदस्त” थी और वह की “12-जनपथ का प्रवेश द्वार अर्धरात्रि से भोरुकुआ (कोई 4 घंटा) छोड़कर, 20-घंटाx 7 कभी बंद नहीं होता था । जिसको आना है – आ जाओ – जिसको जाना है, चले जाओ – चिठ्ठी लिखवाना है बिहार के किसी नेता के नाम, किसी अधिकारी के नाम, ट्रेन में आरक्षण के लिए अधिकारी के नाम, मंत्रीजी से मिलना है आ जाओ, पंक्तिबद्ध हो जाओ – कोई रुकावट नहीं। कोई सुरक्षा प्रहरी नहीं । लेकिन “जे है से कि ई बात ननकिरबा में नहीं है।” 

भारतवर्ष का ये एकलौता दलित नेता हैं जो आज़ाद भारत में छः प्रधानमंत्रियों के साथ मुस्कुराये हैं, हँसे हैं – गजब का रिकार्ड है । अब देखिये न, जैसे ही पासवान साहेब गए, वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी से ननकिरबा का एक हाथ की दूरी हो गयी। श्री पासवान जी अपने जीते-जी विगत 32 वर्षों में 11 चुनाव लड़ चुके हैं और उनमें से नौ जीत चुके हैं। देश की राजनीति की नब्ज और टेंटुआ दोनों पकड़ने में माहिर थे । कोई भी प्रधान मंत्री उनकी मुस्कराहट पर फ़िदा हो जाते थे। पासवान जी एक अकेला “दलित नेता” थे  जो अपने साढ़े-चार दसक के राजनीतिक जीवन में छः प्रधान मंत्रियों के कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री के पद को शोभायमान बनाया। उन्होंने प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच डी देवगौडा, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और मोदी की कैबिनेट में काम किया है। 12-जनपथ पर लाल कार्पेट बिछता रहा।किसी राजनीतिक विचारधारा को अपनी राजनीतिक जीवन के राह में नहीं आने दिया और अंत में अपनी अनंत यात्रा पर निकल गए । अब ननकिरबा में तो इतनी न तो सामाजिक-सोच है और ना ही राजनीतिक सम्बन्ध मधुर बना सकें। 

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आठ बार लोक सभा संसद चुनाब जितने वाले राम विलास पासवान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, लोकदल, जनता पार्टी, जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड) में रहे और फिर 2000 में अपनी पार्टी लोजपा का गठन किया। हाजीपुर सीट से 5 लाख से अधिक मतों से जीतकर उन्होंने गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्डस में अपना नाम दर्ज कराया था ।  पासवान जी एम ए, एल एल बी थे और मौंटब्लैंक कलम से लिखने में दिलचस्पी रखते थे, जबकि ननकिरबा के बारे में सब कुछ “गार्डेड सेकेट” है। 1969 में पहली बार बिहार के विधानसभा चुनावों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप निर्वाचित हुए और फिर कभी मुड़कर नहीं देखा। पहले अकेले थे, समयान्तराल ‘सपरिवार हो गए।

2014 आम चुनाव के बाद 12-जनपथ के एक कमरे में गप-शप के दौरान पासवान जी कहे थे कि “हम तो हताश हो गए थे। तभी चिराग निर्णय लिया की मोदी जी के साथ होना चाहिए। पहले तो मैं असमंजस में था की चिराग अभी राजनीति में बच्चा है, परन्तु एक युवक की सोच पर विश्वास करते हुए मोदी जी के साथ हो गए। मेरे अच्छे-खासे (छः) सांसद भी जीते। हम हाजीपुर से जीते, चिराग पासवान (पुत्र) जमुई से जीते, रामचंद्र पासवान (भाई) समस्तीपुर से जीते। अन्य – श्रीमती वीणा देवी (मुंगेर), चौधरी महबूब अली केशर (खगरिया) और रमा किशोर सिंह (वैशाली) से जीते। हम मंत्री भी बने ।”लोग बाग़ को विस्वास था की ननकिरबा देश की राजनीति में पिता का नाम रौशन करेगा । जितना ही “चिक्कन-चुनमुन” है अपने दिवंगत पिता के नाम को, उनकी कीर्ति को शीर्ष तक ले जायेगा। लेकिन सब कुछ उलट-पुलट हो गया – एटीच्यूड में।

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एक बार हम और पासवान जी 12-जनपथ आवास पर ड्राइंग रूम में बैठे थे – अकेले। दरवाजे पर श्री नारायण जी और श्री योगेंद्र जी विराजमान थे। बातचीत करते, मुस्कुराते माननीय पासवान जी कहते थे : “10 जनपथ में सोनिया जी रहतीं हैं। लोगबाग 10-जनपथ को तो देखेंगे ही, वे श्री राजीव जी की पत्नी हैं, वे श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी की बहु हैं। इसी बहाने 12 जनपथ भी देखेंगे ही, नेम प्लेट भी पढ़ेंगे ही: रामविलास पासवान, इसलिए मैं कभी 12-जनपथ नहीं छोड़ा।”  कितनी सच्चाई थी उनकी बातों में। अंत तक 12 जनपथ रामविलास पासवान के नाम से सुरक्षित रहा। 

लेकिन आज जब जनपथ-मौलाना आज़ाद रोड के मिलन स्थल के बाएं हाथ फुटपाथ पर एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने बाएं हाथ कोने वाली कोठी 12 -जनपथ को देख रहा था तो पासवान जी बहुत याद आ रहे थे। आज 12-जनपथ में देश के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद साहब का आवास हो गया। कल तक जहाँ इस कोठी में आना-जाना आम रास्ता के सामान था, आज चतुर्दिक सुरक्षाकर्मी भरे थे। 

जब उनका पुत्र उनके जीवन काल में राजनीति में आया था, रामविलास पासवान मन ही मन यह जरूर सोचे होंगे कि उनके जाने के बाद भी पुत्र और परिवार के लोग 12 जनपथ में रहेंगे ही। लेकिन उनकी मृत्यु के महज 22 माह बाद 12-जनपथ से राम विलास पासवान का नामोनिशान समाप्त हो गया। कहानी करते इस वृक्ष के नीचे ऐसा महसूस हो रहा था की रामविलास पासवान की आत्मा आज भी 12 जनपथ में ही है। शायद सोचते होंगे कि उनके कोई भी राजनीतिक वंशज मंत्री बनकर 12-जनपथ में आएगा। लेकिन वर्तमान राजनीतिक और पारिवारिक स्थिति को देखकर ऐसा लगता है जैसे अब पासवान जी की आत्मा की यह इक्षा अतृप्त रह जाएगी। 

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