#भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (13) ✍️ वीरगति प्राप्त ‘मैन-इन-यूनिफॉर्म’ को ‘शहीद’ कहकर मजाक नहीं करें 😢

वीरगति प्राप्त सैन्यकर्मियों, पुलिसों के पार्थिव शरीर के साथ, परिवारों के साथ साथ क्रूर मजाक नहीं करें ‘शहीद’ कहकर, क्योंकि ‘शहीद’ शब्द भारत सरकार के किसी भी दस्तावेज में नहीं है और यह बात सरकार भी मानती है 😢 इस श्रृंखला में हम उन परिवारों के बारे में, उन विधवाओं के बारे में, उन पुत्रहीन, पतिहीन, पिताहीन परिवारों के बारे में बात कर रहे हैं जो मातृभूभि की रक्षा करते-करते, लहू-लहुआन होते, खून से लथपथ अपने शरीर के एक-बून्द रक्त को भारत माँ की मिट्टी में मिला देना श्रेयस्कर समझे, समझते हैं; परन्तु तिरंगा को नहीं झुकने देते हैं।

दुखद आश्चर्य इस बात की है कि उन वीर योद्धाओं को, चाहे देश की सीमा पर लड़ते-लड़ते मृत्यु को प्राप्त किये हों, अथवा देश की आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था को बनाये रखने में अपने प्राणों को उत्सर्ग किये हों/करते हों – राजनीतिक मंच पर, समाज के गलियों में, नुक्कड़ों पर, मैदानों में भाषण देते, प्रवचन देते लोग बाग़, नेतागण उन्हें “शहीद” शब्द से अलंकृत कर उस मृतक के परिवार के साथ, उसकी विधवा के साथ, उसके वृद्ध माता-पिता, सास-ससुर, बाल-बच्चों के साथ क्रूर मजाक करते नहीं थकते।

क्योंकि भारत सरकार ऐसे योद्धाओं को “शहीद अथवा मार्टियर्स” मानती ही नहीं है। भारत सरकार के किसी भी दस्तावेजों में, चाहे रक्षा मंत्रालय का हो या गृह मंत्रालय का, ‘शहीद/मार्टियर्स’ शब्द प्रयोग में है ही नहीं।

इस श्रृंखला के माध्यम से मैं (क्षमा याचना के साथ) भारत के राष्ट्रपति महामहीम श्रीमती द्रौपदी मुर्मुजी से, देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से, रक्षा मंत्री श्री राज नाथ सिंह जी से और गृहमंत्री श्री अमित शाह जी से प्रार्थना करता हूँ कि सन 1857 से 1947 तक जंगे आज़ादी में अपने प्राणों को उत्सर्ग करने वाले सभी योद्धाओं, क्रांतिकारियों को, जो फांसी पर लटके, गोली से छल्ली हुए, जेल की यातनाओं को सहते मृत्यु को प्राप्त किये, “शहीद/मार्टियर्स’ शब्द से अलंकृत तो करें ही; साथ ही, स्वतंत्र भारत में अपनी मातृभूमि के रक्षार्थ रक्षा मंत्रालय/गृह मंत्रालय के ‘मैन-इन-यूनिफॉर्म’ हैं, और वीरगति प्राप्त किये है/करते हैं, उन्हें भी शहीद/मार्टियर्स शब्द से अलंकृत करें या फिर बोलचाल की भाषा में उन हुतात्माओं के परिवार/परिजनों के साथ उस मृतक को शहीद’ न कहें जिस शब्द का भारत सरकार के दस्तावेजों में कोई जगह ही नहीं है।

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22 दिसंबर, 2015 को भारत सरकार का गृह मंत्रालय भारत के संसद में (लोकसभा) “मार्टियर्स स्टेटस” पर लिखित जबाब दिया था। प्रश्न करने वाली थी श्रीमती नीलम सोनकर और उत्तर देने वाले थे तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्री कीरेन रिजिजू।

जवाब में लिखा गया था: “The Ministry of Defence has informed that the word “Martyrs” is not used in reference to any of the casualties in Indian Armed Forces. Similarly no such term is used in reference to the Central Armed Police Forces (CAPFs) and Assam Rifles (AR) personnel killed in action or on any operation. However, their families/Next of Kin are given full family pension under the Liberalized Pensionary Awards (LPA) rules and lump sum ex-gratia compensation of Rupees fifteen lakh as per rules in addition to other benefits admissible.“

उससे पहले 18 दिसंबर, 2013 को राज्यसभा में श्री किरणमय नंदा ने गृह मंत्रालय से पूछा था (अनस्टार्ड प्रश्न संख्या 1474): (a) whether it is a fact that by now 31,895 security personnel belonging to paramilitary forces have lost their lives in discharging their duties in internal securities of nation, but government has not considered their sacrifice as ‘shaheed/martyrs’; and(b) if so, whether government has any plan to go for constitutional amendment in present Act so that sacrifice of our security personnel can be honoured as ‘shaheed/martyrs’.© if not, the reasons therefor?

उस समय केंद्र में गृह राज्य मंत्री थे आर पी एन सिंह। उन्होंने (a) से © तक के प्रश्न का जो उत्तर दिया वह आँख खोलने वाला है। क्योंकि विगत 75 वर्षों में हम मातृभूमि के लिए अपने-अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले वीर योद्धाओं की वीरगति प्राप्त करने के बाद नेता से अभिनेता तक, समाज सुधारक से राज्यों के विधान सभाओं में, विधान परिषदों में, राज्य सभा में, लोक सभा में बैठे सम्मानित नेतागण बोलचाल की भाषा में, राजनीतिक लाभ प्राप्त करने हेतु उन्हें “शहीद” कहते थकते नहीं, उस परिवार की वेदना के साथ खेलते थकते नहीं; हकीकत तो यही है कि उसे सरकार शहीद मानती ही नहीं।

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(a) से © तक के प्रश्न का उत्तर था: “No Sir. As reported by the CAPFs, the number of force personnel, who have sacrificed their lives in action, is 4942. The Government does not differentiate between the sacrifice made by the personnel belonging to the various armed forces of the union. The Ministry of Defence have indicated that shaheed/martyr is not defined anywhere and presently they are not issuing any such order/notification to this effect in respect of the defence personnel. Similarly, no such order/notification to this effect is issued by the Ministry of Home Affairs in respect of the CAPF personnel who are killed in action while discharging their duties. However, their families/Next of Kin (NOKs) are given full family pension under the Liberalised Pensionary Awards (LPA) rules, i.e. the last pay drawn, and ex-gratia compensation as per rules in addition to the other ex-gratia/benefits admissible.”

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