#भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (10) ✍️ #दिल्लीकांस्पीरेसीकेस, हम और हमारा प्रयास

आज के लोग बाग़ चाहे जो कह लें, स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले हुतात्मा जानते हैं कि 23 मार्च, 1912 को दिल्ली के चांदनी चौक के घंटा घर इलाके में तत्कालीन वायसराय लार्ड हॉर्डिंग के जुलुस पर फेंके गए बम्ब इस बात का गवाह था कि अंग्रेजी हुकूमत हमें पसंद नहीं है, इसलिए अंग्रेज भारत छोड़ो। उस घटना को एक और दृष्टि से देखा जाता है वह है तत्कालीन ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली आना।

दिल्ली की चांदनी चौक की मिट्टी आज भी इस बात की गवाही देती है कि दिल्ली दरबार में तत्कालीन ब्रितानिया सरकार और उसके अधिकारियों की सुरक्षा के लिए चप्पे-चप्पे पर व्यवस्था की गई थी। प्रशासन को भनक थी अंदेशा की। क्रांतिकारी रास बिहारी बोस कोई मौका चूकना नहीं चाहते थे। वे युगांतर के क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ बनर्जी यानी बाघा जतिन से बहुत प्रभावित थे। फिर एक व्यूहरचना का निर्माण हुआ। रास बिहारी बोस के नेतृत्व में बसंत विश्वास, मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद, अवध बिहारी और लाला हनुमत सहाय आदि। सोच 23 मार्च को अनुवादित हुआ। बम्ब फेंकने वालों के सर पर 10000 रुपये का इनाम रखा गया। रास बिहारी बोस किसी तरह छिपते-छिपाते जापान निकल गए ताकि आज़ादी की लड़ाई बरकारार रहे। बसंत विश्वास, मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद और अवध बिहारी बाद में पुलिस के गिरफ्त में आ गए। उन्हें फांसी दी गई। लाला हनुमत सहाय उम्र कैद की सजा काटकर चांदनी चौक स्थित शीशगंज गुरुद्वारे के पीछे वाली गली में जीवन पर्यन्त सांस लेते रहे।

आज वृहस्पतिवार है और तारीख 18 अगस्त, 2022 यानी उस घटना के 110 साल बाद और भारत को स्वतंत्र होने के 75 साल बाद जब चांदनी चौक के घंटा घर के पास खड़े होकर उस दृश्य को याद कर रहे थे, रास बिहारी बोस, अमीरचंद, भाई बाल मुकुंद, अवध बिहारी, लाला हनुमंत सहाय की मुखाकृतियों की कल्पना कर रहे थे तो खुद पर हंसी आ रही थी। चांदनी चौक के इलाके में आज कोई नहीं जानता उन्हें। लेकिन मुझे अपने पर, अपने प्रयास पर नाज है कि हम आज बाघा जतिन के वंशजों को, सचिन्द्रनाथ सान्याल के वंशजों को, विष्णु पिंगले के वंशजों सहित 75 अन्य वंशजों को जानता हूँ जिन्होंने मातृभूमि की आज़ादी के लिए अपने-अपने प्राणों को उत्सर्ग किये थे। स्वाधीनता संग्राम के गुमनाम क्रांतिकारियों और अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले क्रांतिकारियों के वंशजों की खोज और उन्हें नया जीवन देना भी एक अलग प्रकार की राष्ट्रभक्ति है – आप नहीं समझेंगे।

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