आखिर बंगाल के वे कौन ‘दो अधिकारी’ हैं जो डॉ बिधान चंद्र राय के जन्मस्थान की मुसीबत भरी बातों को मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी तक नहीं पहुँचने दे रहे हैं (भाग-1)

पश्चिम बंगाल की मंत्री सुश्री ममता बनर्जी (फोटो पीटीआई के सौजन्य से) पीछे: बंगाल के द्वितीय मुख्यमंत्री (दिवंगत) डॉ बिधान चंद्र राय का फ़ाइल फोटो

पटना / कलकत्ता / दिल्ली : पटना के खजांची रोड स्थित अघोर प्रकाश शिशु सदन विद्यालय परिसर पाकिस्तान के इस्लामाबाद या करांची में नहीं है। यह विश्व के किसी भी ऐसे प्रदेश अथवा भूमि पर स्थित नहीं है जो संवेदनशील क्षेत्र में हो। यह स्थान किसी ऐसे जगह पर भी नहीं है जहाँ भारत राष्ट्र का एक नागरिक, दिव्यांग सहित, नहीं पहुंच सकता है। यह हवाई मार्ग, जलमार्ग, रेलमार्ग, सड़क मार्ग से मुद्दत से जुड़ा है। कोई भी व्यक्ति, किसी भी मार्ग से यहाँ पहंच सकता है – अपना माथा टेक सकता है। विश्व के सिख समुदाय के लिए जितना ही महत्वपूर्ण स्थान पटना साहेब का गुरुद्वारा है, जहाँ सिख संप्रदाय के अंतिम गुरु का जन्म हुआ था; अशोकराज पथ – नयाटोला (बारीपथ ) के बीचोबीच खजांची रोड में स्थित अघोर शिशु विद्यामंदिर का परिसर न केवल भारत के राजनेताओं के लिए एक धार्मिक स्थान है, बल्कि भारत के लगभग साढ़े बारह लाख ऐलोपैथी चिकित्सकों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कोई भी धार्मिक स्थान। 

परन्तु आज यह स्थान बिहार ही नहीं, बंगाल ही नहीं, उड़ीसा ही नहीं दिल्ली के रायसीना हिल पर बैठे राजनितिक मठाधीशों की उपेक्षा का शिकार हो गया है। इतना ही नहीं, डॉ बिधान चंद्र राय के जन्मस्थान की मुसीबत भरी बातों को, ताकि इसे एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में निखारा जा सके, बंगाल में मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी तक पहुँचने नहीं दे रहे हैं। खजांची रोड के अधिकार “उदास” हैं, जबकि कलकत्ता के राईटर्स बिल्डिंग में मुख्यमंत्री कार्यालय बैठे “अधिकारी-द्वय” चाय-बिस्कुट-मुढ़ी का आनंद उठा रहे हैं। इस कार्य से उन्हें क्या फ़ायदा प्राप्त हो रहा है, इस बात का खुलासा तो वे ही करेंगे; लेकिन समय दूर नहीं है जब “खुलासा सार्वजनिक हो जायेगा आखिर करोड़ों-अरबों की उस संपत्ति से किसे फायदा कराने को संकल्पित हैं। 

अगर ऐसा नहीं होता तो आज भारत के कर्मठ राजनीतिज्ञ, पश्चिम बंगाल के द्वितीय मुख्यमंत्री डॉ बिधान चंद्र राय का जन्मस्थान इतना उपेक्षित नहीं होता। परिसर के बाहर पटना के लोग कूड़ा-करकट-मल-मूत्र नहीं फेकते। वैसे, दिल्ली ने नार्थ ब्लॉक में इस बात की भी चर्चाएं हो रही हैं कि डॉ बिधान चंद्र राय के जन्मस्थान को ‘धरोहर स्थान/संरक्षित स्थान” बनाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह कृतसंकल्प हैं – बिना किसी राजनीति के। 

चाहिए तो यह था कि किसी भी राजनेताओं का परवाह किये बिना, चाहे वे प्रदेश के मुख्यमंत्री हों, प्रदेश के लाटसाहब हों, दिल्ली सल्तनत में बैठे देश के प्रधानमंत्री हों या सम्मानित राष्ट्रपति महोदय हों; देश का 12,50,000+ ऐलोपैथी चिकित्सक और इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन, इण्डियन मेडिकल काउन्सिल के अधीन निबंधित चिकित्सकों के साथ-साथ आला अधिकारी एक कदम आगे बढ़कर अपने उस महान “डाक्टर” के “जन्मस्थान” को मंदिर में तब्दील कर देते, एक इतिहास बना देते – जिनके नाम पर भारत में प्रत्येक वर्ष पहली जुलाई को “डॉक्टर्स डे (डाक्टर दिवस) मनाया जाता है, देश के कोने-कोने में डॉ बिधान चंद्र राय की प्रतिमा पर, तस्वीरों पर फूलमाला अर्पित करते हैं। यह कैसा सम्मान है?

वैसे विश्व के विभिन्न देशों में अलग-अलग दिनों में ‘डॉक्टर्स डे’ मनाया जाता है। मसलन ऑट्रेलिया में 30 मार्च को, कुवैत में 3 मार्च को, ब्राज़ील में 18 अक्टूबर को, कनाडा में 1 मई को, चीन में 19 अगस्त को, इंडोनेसिया में 24 अक्टूबर को और युनाइटेड स्टेट्स में 30 मार्च को। लेकिन यदि देखा जाय तो सभी अपने-अपने राष्ट्रों में अपने-अपने देशों के चिकित्सकों को, जिनके सम्मानार्थ यह दिवस मनाया जाता है, सम्मान दिया जाता है । भारत के मामले में डॉ बिधान चंद्र राय एक ऐसे डाक्टर हैं, जिनका जन्म और मृत्यु एक ही तिथि को हुआ – 1 जुलाई – हाँ, जन्म का साल 1882 था और मृत्यु का वर्ष 1962 था। 

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सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन और विश्व स्वास्थ संगठन का आंकड़ा यह कहता है कि भारत में कुल उपलब्ध ऐलोपैथी चिकित्सकों में तक़रीबन 52+ फ़ीसदी चिकित्सक महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्णाटक, आँध्रप्रदेश और उत्तरप्रदेश में ‘अभ्यास’ (प्रैक्टिस) करते हैं, शेष 48 फ़ीसदी देश के अन्य 23 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में ‘प्रैक्टिस’ करते हैं। स्वाभाविक है बिहार भी उसी 23 राज्यों में एक है। 

डॉ बिधान चंद्र राय का फ़ाइल फोटो (दैनिक भास्कर के सौजन्य से)

इससे भी बड़ी बिडंबना यह है कि देश की कुल आवादी में प्रत्येक 1400+ व्यक्तियों पर एक डाक्टर हैं। वैसी स्थिति में एक ओर जहाँ हम ‘डाक्टरों की व्यस्तता’, ‘उनके समय की किल्लत’ का अंदाजा लगा सकते हैं; वहीँ सरकार, के नज़रों में, चाहे प्रदेश की हो या देश की, उनकी क्या अहमियत है; विशेषकर जो सत्ता में कुर्सी हथियाये बैठे हैं, यह विश्व स्वास्थ संगठन और  इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन का आंकड़ा दर्शाता है। अगर इस दृष्टि से देखें तो इन 12,50,000 भारतीय ऐलोपैथी डाक्टरों की नजर में ‘डॉक्टर्स डे’ महज एक खानापूर्ति वाला दिवस है, फिर डॉ बिधान चंद्र राय के जन्मस्थान के प्रति उनके मन में ‘वेदना’ और ‘संवेदना’ का नहीं होना भी कोई गलत बात नहीं है। 

बहरहाल, पटना के खजांची रोड के लोगों की बात छोड़िये, पटना शहर की बात छोड़िये, बिहार प्रदेश की बात छोड़िये, पूरे देश की भी बात करें तो शायद 90 फ़ीसदी लोगों को यह मालूम नहीं होगा कि भारत में “डाक्टर दिवस” किनके नाम पर है और जिनके नाम पर यह दिवस मनाया जाता है उस महान व्यक्ति का जन्मस्थान कहाँ है ? पटना के लोग बहुत भाग्यशाली हैं कि अगर वे श्रीकृष्ण सिंह से लेकर नितीश बाबू तक जैसे राजनीतिक योद्धागण बिहार की भूमि पर अवतरित हुए, तो श्री प्रफुल्ल चंद्र घोष के बाद पश्चिम बंगाल का दूसरा मुख्य मंत्री डॉ बिधान चंद्र रॉय, जिनका जन्म पटना के खजांची रोड में उसे सफ़ेद रंग वाला दो मंजिला मकान, जो ऐतिहासिक ज्ञानपीठ प्रकाशन से कोई 100 गज की दूरी पर है, हुआ था – अघोर शिशु विद्या मंदिर प्रांगण स्थित भवन में। यह भवन उन्ही का है।

डॉ बिधान चंद्र राय का जन्म जुलाई 1, 1882 को हुआ था। वे पश्चिम बंगाल के द्वितीय मुख्यमंत्री थे और मृत्यु तक 14 वर्ष तक वे इस पद पर थे। उनके जन्मदिन को देश में “डॉक्टर्स डे” के रूप में मनाया जाता है। उन्हे सं 1961 में भारत रत्न की उपाधि से भी अलंकृत किया गया था। डॉ रॉय पटना के अशोक राज पथ पर स्थित टी के घोष अकादमी में भी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त किये थे। विधानचंद्र राय का प्रारंभिक जीवन अभावों के मध्य ही बीता। बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण कर वे सन् 1901 में कलकत्ता चले गए। वहाँ से उन्होंने एम. डी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्हें अपने अध्ययन का व्यय भार स्वयं वहन करना पड़ता था। योग्यता छात्रवृत्ति के अतिरिक्त अस्पताल में नर्स कार्य करके वे अपना निर्वाह करते थे।

डॉ बिधान चंद्र राय का फ़ाइल फोटो (दैनिक भास्कर के सौजन्य से)

अर्थाभाव के कारण डॉक्टर बिधान चंद्र राय ने कलकत्ता के अपने पाँच वर्ष के अध्ययन काल में पाँच रुपए मूल्य की मात्र एक पुस्तक खरीदी थी। मेधावी इतने थे कि एल.एम.पी. के बाद एम.डी. परीक्षा दो वर्षों की अल्पावधि में उत्तीर्ण कर कीर्तिमान स्थापित किया। फिर उच्च अध्ययन के निमित्त इंग्लॅण्ड गए। विद्रोही बंगाल का निवासी होने के कारण प्रवेश के लिए उनका आवेदनपत्र अनेक बार अस्वीकृत हुआ। बड़ी कठिनाई से वे प्रवेश पा सके। दो वर्षों में ही उन्होंने एम. आर. सी. पी. तथा एफ. आर. सी. एस. परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर लीं। कष्टमय एवं साधनामय विद्यार्थी जीवन की नींव पर ही उनके महान् व्यक्तित्व का निर्माण हुआ। स्वदेश लौटने के पश्चात् डाक्टर राय ने सियालदह में अपना निजी चिकित्सालय खोला और सरकारी नौकरी भी कर ली। लेकिन अपने इस सीमित जीवनक्रम से वे संतुष्ट नहीं थे।

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सन् 1923 में वे सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे दिग्गज राजनीतिज्ञ और तत्कालीन मंत्री के विरुद्ध बंगाल-विधान-परिषद् के चुनाव में खड़े हुए और स्वराज्य पार्टी की सहायता से उन्हें पराजित करने में सफल हुए। यहीं से इनका राजनीति में प्रवेश हुआ। डाक्टर राय, देशबंधु चितरंजन दस के प्रमुख सहायक बने और अल्पावधि में ही उन्होंने बंगाल की राजनीति में प्रमुख स्थान बना लिया। सन् 1928 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की स्वागत समिति के वे महामंत्री थे। डा. राय राजनीति में उग्र राष्ट्रवादी नहीं वरन् मध्यम मार्गी थे। लेकिन सुभाष चंद्र बोस और यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में वे सुभाष बाबू के साथ थे।

वे विधानसभाओं के माध्यम से राष्ट्रीय हितों के लिए संघर्ष करने में विश्वास करते थे। इसलिए उन्होंने ‘गवर्नमेंट ऑव इंडिया एक्ट’ के बनने के बाद स्वराज्य पार्टी को पुन: सक्रिय करने का प्रयास किया। सन् 1934 में डाक्टर अंसारी की अध्यक्षता में गठित पार्लमेंटरी बोर्ड के डाक्टर राय प्रथम महामंत्री बनाए गए। महा निर्वाचन में कांग्रेस देश के सात प्रदेशों में शासन रूढ़ हुई। यह उनके महामंत्रित्व की महान सफलता थी।अपनी मौलिक योग्यता के कारण वे सन् 1909 में ‘रॉयल सोसायटी ऑव मेडिसिन’, सन् 1925 में ‘रॉयल सोसायटी ऑव ट्रॉपिकल मेडिसिन’ तथा 1940 में ‘अमेरिकन सोसायटी ऑव चेस्ट फिजिशियन’ के फेलो चुने गए। डा. राय ने सन् 1923 में ‘यादवपुर राजयक्ष्मा अस्पताल’ की स्थापना की तथा ‘चित्तरंजन सेवासदन’ की स्थापना में भी उनका प्रमुख हाथ था। कारमाइकल मेडिकल कॉलेज को वर्तमान विकसित स्वरूप प्रदान करने का श्रेय डा. राय को ही है। वे इस कालेज के अध्यक्ष एवं जीवन पर्यंत ‘प्रोफेसर ऑव मेडिसिन’ रहे।

डॉ बिधान चंद्र राय का फ़ाइल फोटो (दैनिक भास्कर के सौजन्य से)

कलकत्ता एवं इलाहबाद विश्वविद्यालयों ने डा. राय को डी. एस-सी. की सम्मानित उपाधि प्रदान की थी। वे सन् 1939 से 45 तक ‘ऑल इंडिया मेडिकल काउंसिल’ के अध्यक्ष रहे। इसके अतिरिक्त वे ‘कलकत्ता मेडिकल क्लब’, ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन,’ ‘जादवपुर टेक्निकल कालेज’, ‘राष्ट्रीय शिक्षा परिषद’, भारत सरकार के ‘हायर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी’, ‘ऑल इंडिया बोर्ड ऑफ बायोफिज़िक्स’, तथा जादवपुर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष एवं अन्यान्य राष्ट्रीय स्तर को संस्थाओं के सदस्य रहे। चिकित्सक के रूप में उन्होंने पर्याप्त यश एवं धन अर्जित किया और लोकहित के कार्यों में उदारतापूर्वक मुक्त हस्त दान दिया। बंगाल के अकाल के समय आपके द्वारा की गई जनता की सेवाएँ अविस्मरणीय हैं।

डाक्टर बिधान चंद्र राय वर्षों तक कलकत्ता कारपोरेशन के सदस्य रहे तथा अपनी कार्यकुशलता के कारण दो बार मेयर चुने गए। उन्होंने कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य के रूप में सविनय अवज्ञा आंदोलन में जेल यात्रा की। वे सन् 1942 से सन् 1944 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे तथा विश्वविद्यालयों की समस्याओं के समाधान में सदैव सक्रिय योग देते रहे।15 अगस्त, सन् 1947 को उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया पर उन्होंने स्वीकार नहीं किया। प्रदेश की राजनीति में ही रहना अधिक उपयुक्त समझा। वे बंगाल के स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त हुए।

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सन् 1948 में डॉ प्रफुल्ल चंद्र घोष के त्यागपत्र देने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए और जीवन पर्यत इस पद पर बने रहे। विभाजन से त्रस्त तथा शरणार्थी समस्या से ग्रस्त समस्या प्रधान प्रदेश के सफल संचालन में उन्होंने अपूर्व राजनीतिक कुशलता एवं दूरदर्शिता का परिचय दिया। उनके जीवनकाल में वामपंथी अपने गढ़ बंगाल में सदैव सफल मनोरथ रहे। बंगाल के औद्योगिक विकास के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहे। दामोदर घाटी निगम और दुर्गापुर इस्पात नगरी उन्ही का दें है। डॉ. बिधानचंद्र राय अपनी मृत्यु से छः माह पूर्व अपनी माँ के सम्मानार्थ 29 दिसंबर, 1961 को एक विद्यालय खोलने के लिए दिए थे।  डाक्टर राय की माँ का नाम श्रीमती अघोर कामिनी देवी बिधान था। 

यह बात भी अलग है कि उनके भवन के प्रवेश द्वार के दाहिने तरफ खजांची रोड के मोहतरम-मोहतरमायें-दूकानदार-रेड़ीवाला, खोमचा वाला, सब्जी वाला मुद्दत तक कचड़ा फेंकता था। उन दिनों उस रास्ते निकलना मुश्किल होता था। साँसे रोक कर चलते थे। आज भी स्थिति बेहतर नहीं होगी। अगर स्थिति सुधर गयी होगी तो धन्यवाद दें। वैसे बिहार ही नहीं, भारत में स्वच्छता और सफाई के लिए मुहिम तो सत्तर के दसक में एक और बिहारी डॉ बिंदेश्वर पाठक द्वारा प्रारम्भ किया गया था। लेकिन तकलीफ इस बात की रही – बिहार के लोगों में भी और डॉ पाठक के मन में भी – की सन 2014 आते-आते सफाई और स्वच्छता का कॉर्पोरेटाइजेशन हो गया, राजनीतिकरण हो गया, नाम-काम हथियाने की परम्परा प्रारम्भ हो गया – शेष तो आप सभी जानते ही हैं।

समय का दुर्भाग्य देखिये। प्रोविंसियल एसेम्ब्ली के दौरान श्री प्रफुल्ल चंद्र घोष के बाद (15 अगस्त, 1947 से 22 जनवरी, 1948) तक बंगाल में मुख्य मंत्री रहें। स्वतंत्र भारत में बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में डाक्टर राय 23 जनवरी, 1948 से 25 जनवरी, 1950 तक, फिर 26 जनवरी, 1950 से अपनी अंतिम सांस 1 जुलाई, 1962 तक बंगाल के मुख्यमंत्री बने रहे। स्वतंत्र भारत में राष्ट्रपति शासन के अलावे, बंगाल में अब तक आठ मुख़्यमंत्री बने – अजय कुमार मुखर्जी, सिद्धार्थ शंकर रे, ज्योति बासु, बुद्धदेव भट्टाचार्य और सुश्री ममता बनर्जी – लेकिन किसी ने इस ऐतिहासिक स्थान पर विचार नहीं किया जिन्होंने बंगाल को एक दिशा दिया था। 

जानकार सूत्रों के अनुसार विगत दिनों अघोर शिशु विद्यालय ट्रस्ट के कुछ अधिकारी बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी से मिलकर अपनी बातें, डॉ बिधान चंद्र राय के जन्मस्थान से सम्बंधित बातें, उसे ऐतिहासिक स्थान बनाने सम्बन्धी बातों को लेकर मिलने की इक्षा व्यक्त किये थे। अधिकारियों की मानसिकता की इतनी अधिक राजनीतिकरण हो गया है कि वे डाक्टर बिधान चंद्र राय के जन्मस्थान से जुड़े अधिकारियों की इक्षा को आसनसोल आते-आते दफ़न कर दिया। बंगाल सचिवालय और मुख्यमंत्री कार्यालय के वे अधिकारीगण अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री तक खजांचिरोड के अधिकारियों की बात को पहुँचाने से मन कर दिया। अब अगर सुश्री ममता बनर्जी तक बात पहुंचेगी ही नहीं, फिर बंगाल की सरकार अपने पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में सोचेंगे कैसे। वैसे डॉ बिधान चंद्र राय की तुलना न तो ज्योति बसी से की जा सकती है और ना ही बुद्धदेव भट्टाचार्य से। 

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