
पटना : नीतीश कुमार से करोड़ों गुना बेहतर थे कर्पूरी ठाकुर जिन्होंने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में कर्पूरी डिवीजन लागु किये थे, वह भी ‘सीना ठोक कर’। लेकिन बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके लोगबाग, मंत्री-संत्री-अधिकारी-पदाधिकारी सभी एक तरफ भूमिगत तरीके से प्रदेश में महिला शिक्षा के विरोधी दीखते हैं। खजांची रोड का नाम डॉ विधान चंद्र राय पथ कर दिए, राजनीतिक लाभ के लिए लेकिन डॉ विधान चंद्र राय की माता श्रीमती अघोर कामिनी देवी द्वारा बिहार में महिला शिक्षा प्रारम्भ करने वाले विद्यालय की बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से सम्बद्धता निरस्त करने में भी पीछे नहीं रहे। इसे कहते हैं “बख्तियारपुर की राजनीति” – इतना ही नहीं, दूसरी तरफ ‘पढ़ेगी बेटी-बढ़ेगी बेटी’ नारे का बाजारीकरण करने, राजनीतिक लाभ उठाने में ‘एक छटाक’ कमी नहीं छोड़ते। क्या नीतीश कुमार महिला शिक्षा के विरोधी है? क्या वे नहीं चाहते कि समाज के दबे-कुचले लोगों की बेटियां पढ़े? सुन रहे हैं नीतीश बाबू।
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा संचालित साल 2019 का माध्यमिक परीक्षाफल प्रकाशित हुआ था। अघोर प्रकाश बालिका विद्यालय की सात छात्राएं प्रथम श्रेणी में अपनी उपस्थिति दर्ज की। एक साल बाद 2020 में 16 छात्राएं प्रथम श्रेणी में अव्वल आई । कोरोना का प्रभाव 2021 तक आते-आते छात्र-छात्राओं की पढ़ाई को दबोच लिया था, परिणाम स्वरुप प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने वाली छात्रों की संख्या छः अंक पर सिमट गई। लेकिन अघोर प्रकाश बालिका विद्यालय की छात्राएं हार नहीं मानने वाली थी। सभी न केवल अपनी, बल्कि विद्यालय का नाम, इस विद्यालय की संस्थापिका का नाम रौशन करने को कृतसंकल्पित थी।
तभी बिहार सरकार द्वारा अनुशंसित और बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा जारी फरमान सैकड़ों महिला छात्राओं के भविष्य को चकनाचूर कर दिया। उधर प्रदेश की सड़कों पर, सरकारी फाइलों में नारा बुलंद हो रहा था – ‘पढ़ेगी बेटी – बढ़ेगी बेटी’ और बिहार से प्रकाशित अख़बारों में, पत्रिकाओं में, टीवी चैनलों पर प्रदेश के राजा बाबू नीतीश कुमार मुस्कुराते दिख रहे थे ।
जबकि सच्चाई यह थी कि बेटियों को एक ही नियम के दो पहलुओं ने ‘लंगड़ी-लुल्ली-मूक-बधिर-दिव्यांग एक साथ बना दिया। दस साल पूर्व वही अधिकारी विद्यालय को दसवीं कक्षा तक बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से सम्बद्धता दिए थे, दस साल बाद वही अधिकारी उन्हीं नियमों के तहत सम्बद्धता समाप्त कर दिए। यह बिहार है। यहाँ मंत्रियों, अधिकारियों की तूती बोली जाती है। जनता का स्थान महज मत प्रदान करने के लिए है और छात्र छात्राओं का प्रयोग राजनीतिक स्वहित के लिए इस्तेमाल करना, इस्तेमाल होना होता है।
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति नियमावली – 2011 (यथा अद्यतन संशोधित) के अध्याय – IV क्रम संख्या – 15 में वर्णित है कि “किसी विशिष्ठ विषय अथवा, सभी विषयों में सम्बद्धता की वापसी की जा सकेगी। माध्यमिक शिक्षा देने वाली संस्था असम्बद्ध की जा सकेगी, यदि बोर्ड का समाधान हो जाए ऐसी संस्था बोर्ड की सम्बद्धता जारी रखने योग्य नहीं हैं।” बिलकुल सत्य है।
परन्तु, बिहार गजट असाधारण अंक, बृहस्पतिवार 14 जुलाई, अधिसूचना 8 जुलाई, 2011 Bihar School Examination Board (Senior Secondary) Affiliation Bye Laws के chapter 2 के बिंदु (j) के दूसरे पैरा में विशेष परिस्थिति में शिथिलता की जो मार्गदर्शन किया गया है की – ‘the affiliation committee shall have power to relax the condition of affiliation in case of women’s institutions’ – लेकिन बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के सम्मानित अधिकारी, पदाधिकारी, निरीक्षणकर्ताओं ने बिहार गजट के उस आदेश के प्रति ‘आँख मूंद ‘ लिए, मूक बधिर हो गए। ऐसा क्यों हुआ, किसके आदेश और मार्गदर्शन पर हुआ – यह तो वे बताएँगे। यह स्पष्ट करता है कि मंच के पीछे तो कोई है अवश्य जो महिला शिक्षा का विरोधी है।
निदेशक शैक्षणिक, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति को लिखे गए एक पत्र में कहा गया है कि “आरोपित विद्यालय, अघोर प्रकाश बालिका उच्च विद्यालय, केवल बालिकाओं के लिए है और प्रबंधन समिति में पारित उपनियमों के अनुसार 75 प्रतिशत बालिकाएं, बंचित और निर्धन परिवार से ही हैं। अतः प्रबंध समिति से करबद्ध प्रार्थना है कि केवल बालिकाओं का विद्यालय होने के कारण रियायत देने की कृपा की जाय।
लेकिन अघोर शिशु संस्थान के प्रबंध समिति की करबध्य प्रार्थना पर, उनके निहोरा-विनती पर की यह विद्यालय मुख्यतः बंचित और निर्दशन परिवार के केवल बालिकाओं का विद्यालय होने के कारण, मानकों में शिथिलता देने की कृपा करें और विद्यालय की सम्बद्धता तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का आदेश निरस्त करें – सरकारी कार्यालयों के रद्दी की टोकड़ी में फेंक दिया गया। उधर प्रदेश के मुख्यमंत्री भारत से प्रकाशित समाचार पत्रों, टीवी चैनलों पर ‘अपने प्रदेश में महिला शिक्षा के प्रति घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं।”
अघोर प्रकाश बालिका उच्च विद्यालय प्रबंध समिति के लोग साक्षात् दंडवत कर, हाथ-पैर जोड़कर बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से, शिक्षा मंत्री से, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अधिकारियों से कहते नहीं थक रहे हैं कि “विगत दस वर्षों से, आपके ही शासनकाल में बच्चियां पढ़ रही थी, बढ़ रही थी – लेकिन आपके द्वारा सम्बद्धता समाप्त करने सम्बंधित इस निर्णय से इनकी पढ़ाई बंद हो जाएगी, हमारी कोशिश बिफल हो जाएगी और विगत 73 वर्षों का बिहार राज्य की इस ऐतिहासिक धरोहर स्वरुप विद्यालय की गरिमा समाप्त हो जाएगी।”
लेकिन कौन सुनता है ?
ज्ञातव्य हो कि खजांची रोड का राजनीतिकरण करने के समय इसे ‘डॉ विधान चंद्र राय’ के नाम से नामकरण करते समय वार्ड काउंसिलर से लेकर, विद्यायक से लेकर, सांसद से लेकर प्रदेश के प्रशासनिक वयवस्था में जुड़े लोगों, मंत्रियों, संत्रियों, मुख्यमंत्री किन्ही को भी लज्जा नहीं हुआ की प्राचीन काल से चली आ रही इस सड़क का नाम बदलकर डॉ विधान चंद्र राय पथ बना दिए। इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते हैं कि खजांची रोड का नाम खजांची रोड क्यों पड़ा, बिहार विधान सभा में, विधान परिसद में बैठे सम्मानित सदस्यगण नहीं जानते होंगे। यह प्रथा दिल्ली से पटना सीधा निर्यात हुआ।
लेकिन जिस व्यक्ति के नाम पर इस सड़क का नामकरण किया गया, जिस व्यक्ति के जन्मस्थान पर इस सड़क का नामकरण का राजनीतिक लाभ बटोरा गया, बटोरा जा रहा है – डॉ विधान चंद्र राय के उसी जन्मस्थान पर, उन्हीं की माता के नाम से विगत सात दशक से भी अधिक समय से चलने वाला विद्यालय, जो प्रदेश की महिला शिक्षा का पथ प्रदर्शक है – सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं की आखों का काँटा हो गया और विद्यालय की सम्बद्धता समाप्त की दिया गया।
गजब की है राजनीति नीतीश बाबू। आपसे तो लाख नहीं, करोड़ों गुना बेहतर थे कर्पूरी ठाकुर जिन्होंने सीना ठोक कर प्रदेश में कर्पूरी डिवीजन बिहार माध्यमिक विद्यालय परीक्षा समिति में लागू किये। सम्बद्धता का निरस्तीकरण इस बात का गवाह है कि आप और आपके लोग तो भूमिगत तरीके से महिला शिक्षा के विरोधी हैं।
क्रमशः
बिहार में सुशासन है।बाकी सब फालतू!👩
आभार