“कुछ तो हुआ है..कुछ हो गया है..दो चार दिन से.. लगता है जैसे..सब कुछ अलग है..सब कुछ नया है..कुछ तो हुआ है.. कुछ हो गया है”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (तस्वीर: मनीकंट्रोल के सौजन्य से)

नई दिल्ली: शायद सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है भारत के राजनीतिक ‘कर्तव्य पथ’ पर। दिल्ली की भौगोलिक मानचित्र में ‘कर्तव्य पथ’ और ‘लोक (कल्याण) मार्ग’ के बीच की दूरी भले 3.3 किलोमीटर की हो, गूगल महाशय के अनुसार इस दूरी को भले सात से दस मिनट समय में मापा जा सके; परंतु दिल्ली की राजनीतिक मानचित्र पर सब कुछ सामान्य नहीं दिख रहा है। कहने के लिए भले विश्व के श्रेष्ठतम प्रजातंत्र से अलंकृत किया जाता हो भारत को, यहाँ की राजनीतिक व्यवस्था को; लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के सम्मानित और शीर्षस्थ नेताओं से लेकर छोटे कद के नेताओं की विचारधाराएं ‘दो धाराओं’ में बंटा दिख रहा है – आप माने या नहीं, आपकी मर्जी। 

सन 2014 से 2022 तक रायसीना हिल की ओर आने-जाने वाली हवाओं में ‘प्रजातान्त्रिक’ नहीं, अपितु ‘कुछ और’ ‘वादी’ गंध बह रही हैं, यह भारत के लोग कहते हैं, मतदाता कहते हैं, गरीब-गुरबा कहते हैं – कुछेक कॉर्पोरेट घराने के मालिक-मोख्तार को छोड़कर । हवाओं का रुख परखने वाले आध्यात्मिक विद्वानों और विदुषियों का मानना है कि पार्टी के लोगबाग अन्तःमन से खुश नहीं हैं। वैसे सत्ता के गलियारे में ‘स्वदेशी रसगुल्ला’ खाने वाले पार्टी के एक खास का मानना है कि 15 अगस्त, सन सैंतालीस के पूर्व और उसके बाद 2014 तक आज़ाद भारत में जो हुआ ‘वह भारत के विकास के लिए नहीं’, अपितु ‘स्वहित’ के लिए, परिवार-परिजनों के हितार्थ था। देश की जनता की नजर में कोई मोल नहीं है उन कार्यों का। परन्तु सन 2014 से जो हो रहा है, वही राष्ट्रहित में है, भारत के लोगों के हितार्थ है। 

कर्तव्य पथ से नीचे 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों की ओर उन्मुख होने वाली हवाएं भारत के मतदाताओं की नाकों से गुजर रही है जो विगत आठ वर्षों की ‘राजनीतिक चरित्र’ को आधार मानकर हवाओं की जांच-पड़ताल कर रही है।  लोगों का रोजगार, लोगों का स्वास्थ्य, लोगों की शिक्षा, मेहनत-मजदूरी से मिलने वाली आय, रोजगार आदि को जांच-पड़ताल का अभिन अंग मान रहा है। अगर हवाओं की पड़ताल को आधार माना जाए तो संभव है आगामी आम चुनाब आते-आते देश की राजनीतिक गतिविधियों में एक भूचाल आने वाला है। 

यानी “एको अहम् द्वितीयो नास्ति”, अर्थात समस्त भारत में ‘वे’ ही मात्र एक हैं, शेष सब मिथ्या है। लोक कल्याण की बात सिर्फ और सिर्फ लोक कल्याण मार्ग का निवासी ही सोच सकता है। यानी ‘विकास’ का, ‘कल्याण’ का ‘आरम्भ’ और ‘अंत’ वही हैं, दूसरा कोई भारत के लोगों के लिए सोच ही नहीं सकता। आखिर राजनीतिक चरित्र में कितनी भी गिरावट हुई हो, मतदाता आज भी चरित्रवान है, भले 10 फीसदी ही सही। और भारत का दस फीसदी आवाम तो अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकी थी, कांग्रेस को उखाड़ फेंकी थी। इतिहास गवाह है। 

एक रिपोर्ट का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी पार्टी के वर्तमान सभी नेताओं से कहीं अधिक ‘विचारवान’ ‘राजनीतिक चरित्रवान’, ‘शिक्षित’ हैं और वे अनायास ही कुछ भी नहीं बोलते। वह अपने बेबाक बोल के लिए जाने जाते हैं। एक बार फिर नितिन गडकरी के एक बयान की चर्चा हो रही है जिसमें उन्होंने कहा है कि मैं राजनीति कब छोड़ दूं और कब नहीं । राजनीति के माहिर खिलाड़ी पूर्व में भी राजनीति के अंदाज पर सवाल उठा चुके हैं। ऐसे कोई उनके एक या दो बयान नहीं है। उनके बयान के इस बार भी मायने मतलब निकाले जा रहे हैं और पूर्व में भी निकाले गए। उनका यह मानना रहा है कि राजनीतिक दलों के नेताओं को सिद्धांतों से समझौता नहीं करना चाहिए। उन्होंने अलग-अलग मंचों से राजनीति (Politics) को लेकर ऐसी कई बातें कही हैं जिसकी समय-समय पर चर्चा होती है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी

एक सवाल के जवाब में नितिन गडकरी ने कहा था: “मुझे लगता है कि मैं कब राजनीति छोड़ दूं और कब नहीं…क्योंकि जिंदगी में करने के लिए और भी कई चीजें हैं। एक निजी कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यदि बारीकी से देखें तो राजनीति समाज के लिए है और इसका विकास करने के लिए है। वहीं मौजूदा वक्त में राजनीति को देखा जाए तो इसका इस्तेमाल शत प्रतिशत सत्ता पाने के लिए किया जा रहा है। गडकरी हंसते-हंसते गंभीर से गंभीर बात कह जाते हैं।”

आपको याद होगा पिछले साल की बात है जब एक कार्यक्रम में उन्होंने सत्ता के लालच पर चुटकी ली थी। गडकरी ने कहा था कि आपको शायद ही कोई नेता खुश मिलेगा। उन्होंने बतौर बीजेपी अध्यक्ष अपने कार्यकाल का हवाला देते हुए कहा था कि वह पार्टी अध्यक्ष थे तो कोई ऐसा नहीं मिला जो दुखी न हो। राजस्थान विधानसभा में ‘संसदीय प्रणाली और जन अपेक्षाएं’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही थी। गडकरी ने कहा कि इन दिनों राज्यों के मुख्यमंत्री इस बात को लेकर दुखी रहते हैं कि ना जाने उन्हें कब हटा दिया जाए। उनके इस बयान को उनकी ही पार्टी से जोड़कर देखा गया था क्योंकि उस वक्त कुछ ही महीनों में बीजेपी ने अपने कई मुख्यमंत्रियों को बदल डाला था।

ज्ञातव्य हो कि जनवरी 2019 की बात है जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि जो नेता लोगों को सपने दिखाते हैं लेकिन उन्हें पूरा नहीं कर पाते, जनता उनकी पिटाई करती है। गडकरी ने कहा कि वह काम करते हैं और अपने वादों को पूरा करते हैं। उन्होंने कहा लोग ऐसे नेताओं को पसंद करते हैं जो सपने दिखाते हैं। लेकिन अगर सपने सच नहीं हुए तो लोग उन नेताओं की पिटाई भी करते हैं। मैं सपने नहीं दिखाता बल्कि जो भी बात करता हूं उसे 100 प्रतिशत पूरा करके दिखाता हूं। गडकरी ने महाराष्ट्र में लोक निर्माण विभाग मंत्री रहते हुए अपने कार्यकाल की उपलब्धियां भी गिनाईं और कहा कि जब राज्य में 1995 से 99 तक शिवसेना-भाजपा की सरकार में था सब जानते हैं कि मैं किस तरह का व्यक्ति हूं।

एक वक्त महाराष्ट्र की राजनीति पर कहा था कि क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि जो मैच हारता हुआ दिखाई देता है वास्तव में वह जीत भी सकता है। उन्होंने यह बात तब कही थी जब भाजपा से अलग हो चुकी शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी की मदद से सरकार बनाने जा रही थी। महाराष्ट्र में बने राजनीतिक हालात के बारे में जब उनके सामने एक सवाल पर उन्होंने कहा कभी आपको लगता है कि आप मैच हार रहे हैं लेकिन परिणाम एकदम विपरीत होता है। इसी साल मार्च महीने की बात है जब नितिन गडकरी ने कहा था कि लोकतंत्र के लिए मजबूत कांग्रेस अहम है और यह उनकी ईमानदारी से इच्छा है कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बने। 

उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र दो पहियों के सहारे चलता है जिनमें से एक पहिया सत्ताधारी पार्टी है जबकि दूसरा पहिया विपक्ष है। गडकरी ने कहा कि लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष की जरूरत है और इसलिए मै हृदय से महसूस करता हूं कि कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होना चाहिए। उन्होंने कहा चूंकि कांग्रेस कमजोर हो रही है, अन्य क्षेत्रीय पार्टियां उसका स्थान ले रही हैं। लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है कि अन्य क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस का स्थान लें।

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नितिन गडकरी ने कहा था कि “मुझे ऐसा लगता है कि नेताओं को स्पष्ट रूप से राजनीति का अर्थ समझना चाहिए। राजनीति महज सत्ता की राजनीति नहीं है। महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, पंडित जवाहर लाल नेहरू और वीर सावरकर जैसे नेता सत्ता की राजनीति में शामिल नहीं थे। साल2019 में नितिन गडकरी ने नागपुर के एक कार्यक्रम में कहा कि मैं किसी प्रोजेक्ट में सरकार की मदद नहीं लेता। सरकार जहां हाथ लगाती है वहां सत्यानाश हो जाता है। गडकरी ने कहा कि एक संत ने कहा कि आप अपने सामाजिक आर्थिक जीवन को खुद बनाते हैं। तब से मैंने सरकार पर भरोसा रखना बंद कर दिया। ना मैं सरकार से मदद मांगता हूं न जाता हूं।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी

इसी तरह “दी प्रिंट” ने लिखा कि नितिन गडकरी दार्शनिक अंदाज में राजनीति को अलविदा कहने की बात क्यों कर रहे हैं ? भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की जो बैठक 2010 में इंदौर में हुई थी उसे कई बातों के लिए आज भी याद किया जाता है। उसमें 52 वर्षीय नितिन गडकरी पार्टी के सबसे युवा अध्यक्ष बने थे। उस बैठक में गडकरी ने ‘सादगी’ के जो उपाय किए थे वे काफी चर्चा में आए थे। करीब 4400 पार्टी प्रतिनिधियों को तंबुओं में रहना पड़ा था। तंबुओं में सांप न घुसें इसके लिए सपेरों को तैनात किया गया था।असुविधाएं चाहे जो भी रही हों, नवनिर्वाचित पार्टी अध्यक्ष ‘हिट’ हो गए थे। कभी नागपुर में दीवारों पर पार्टी के पोस्टर चिपकाने और नारे लिखने वाले साधारण कार्यकर्ता गडकरी पार्टी के सर्वोच्च पद पर बैठे थे। परिषद के अंतिम दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम में गडकरी ने मन्ना डे का गाना ‘ज़िंदगी कैसी है पहेली हाए, कभी ये हंसाए, कभी ये रुलाए …’ गा कर सबका खूब मनोरंजन किया था। 

लेकिन आज गडकरी ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि “आज राजनीति का किस तरह ‘शत-प्रतिशत सत्ताकरण हो गया है। मैं इस पर बहुत सोच रहा हूं कि राजनीति से कब अलग हो जाऊं। ज़िंदगी में राजनीति के सिवा भी बहुत कुछ है करने के लिए।’
राजनीति से संन्यास? वह भी मात्र 65 की उम्र में? यह विचार उनके मन में आया क्यों? अफसर लोग एक वाकये को याद करते हैं जब गडकरी के मंत्रालय के सचिव को ऊपर से यह फोन आया कि वे अपने मंत्री जी को कहें कि वे हर सप्ताह के अंत में नागपुर जाना बंद करें, जो कि आरएसएस का मुख्यालय है। सचिव ने यह अप्रिय काम संयुक्त सचिव को सौंप दिया। उसने जब गडकरी को हल्के से यह संदेश सुनाया तो वे हंस पड़े: ‘जिस किसी ने यह संदेश भेजा है उसे कह दीजिए कि नागपुर मेरा चुनाव क्षेत्र है। वहां हजारों लोग अपना काम करवाने के लिए मेरा इंतजार करते हैं। मैं उन्हें निराश नहीं कर सकता।’

जहां तक ‘सत्ताकरण’ की राजनीति को लेकर उनके आक्रोश का सवाल है, अगर वे भाजपा के मौजूदा नेतृत्व पर कटाक्ष न कर रहे हों तो इसे उनका सबसे गंभीर बयान माना जा सकता है। इसलिए, उनकी दार्शनिक जुगाली का क्या मतलब है? वे मोदी मंत्रिमंडल में गिनती के उन मंत्रियों में शुमार हैं जो अपना मंत्रालय खुद चलाते हैं। जब वे भाजपा अध्यक्ष थे तब कहा करते थे कि उनकी पार्टी को सत्ता हासिल करने के लिए बस 10 फीसदी और वोट चाहिए। तब उसे करीब 18 फीसदी वोट मिलते थे। एक सरकारी अधिकारी बताते हैं कि अब वे शायद ही दखल देते हैं। गडकरी रिपोर्टरों को कहते रहे हैं कि वे तो दिल्ली में एक ‘बाहरी’ व्यक्ति हैं। गडकरी जब भाजपा अध्यक्ष बने तब तथाकथित ‘डी-4’ या ‘दिल्ली-4’ के नाम से मशहूर चौकड़ी (अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार की) का बोलबाला था। बाहर वालों के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। आज कोई डी-4 नहीं है लेकिन मोदी-शाह के दरबार में भी गडकरी ‘बाहरी’ हैं। 

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इसी तरह “वायर” ने लिखा है कि “बीते दिनों भाजपा संसदीय बोर्ड से बाहर किए गए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने मुंबई में आयोजित एक समारोह में भारत के बुनियादी ढांचे की मज़बूती पर बात करते हुए कहा कि समय सबसे बड़ी पूंजी है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सरकार समय पर फैसले नहीं ले रही है। एनडीटीवी की खबर के मुताबिक केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘आप चमत्कार कर सकते हैं… और क्षमता भी है… मेरा सुझाव यह है कि भारतीय बुनियादी ढांचे का भविष्य बहुत उज्जवल है। हमें दुनिया में और देश में अच्छी तकनीक, अच्छे नवाचार, अच्छे शोध और सफल प्रथाओं को अपनाने की जरूरत है।’

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार की सफलता को लेकर टिप्पणी की थी कि यह ‘अमृत काल’ चल रहा है, जिसमें बड़े मील के पत्थर पार किए गए हैं। हालांकि, भाजपा नेताओं का कहना है कि गडकरी के शब्द किसी विशेष सरकार के लिए नहीं, बल्कि सामान्य तौर पर सरकारों के लिए थे। गडकरी को पार्टी के नीति-निर्धारक भाजपा संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया था। गडकरी भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं, इसलिए उनका बाहर किया जाना और भी आश्चर्यजनक था, क्योंकि पूर्व अध्यक्ष हमेशा पेनल में रहे हैं। इसके अलावा गडकरी पार्टी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी रहे हैं और अतीत में अक्सर खुद को लेकर भी कटाक्ष करते रहे हैं। 

बहरहाल, गडकरी ने हाल में ही देश में बेरोजगारी, भूखमरी और महंगाई के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि हम मातृ भूमि को सुखी, समृद्ध और शक्तिशाली बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि देश तो धनवान हो गया पर जनता गरीब है, इसलिए देश के विकास के लिए गंभीरता से सोचना होगा की किस रास्ते जाना है। हमारा देश धनवान है पर जनता गरीब है, आज भी भारत की जनता भूखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त है। भारत विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसके बावजूद देश की जनसंख्या भूखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, जातिवाद और अपृश्यता का सामना कर रही है, जो कि देश की प्रगति के लिए ठीक नहीं है।” 

गडकरी ने आगे कहा कि देश में गरीब और अमीर के बीच गहरी खाई है, जिसे पाटने और समाज के बीच सामाजिक व आर्थिक समानता पैदा करना जरूरी है। समाज के इन दो हिस्सों के बीच खाई बढ़ने से आर्थिक विषमता और सामाजिक असामनता की तरह है।हमारे समाज मे दो विशेषरूप से वर्गों का अंतर बहुत ज्यादा है। जिससे सामाजिक विषमता है वैसे आर्थिक विषमता भी बढ़ी है। हमारे देश में 124 जिले ऐसे हैं, जो सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं। वहां, स्कूल, अस्पताल नहीं हैं, युवाओं के लिए रोजगार नहीं हैं और गांव जाने के लिए रास्त नहीं हैं, किसानों को फसलों के सही दाम नहीं मिल रहे।

हमारे देश में शहरी क्षेत्र में ज्यादातर हम काम करते हैं इसलिए वहां ज्यादा विकास हुआ है, लेकिन 1947 में 90 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती थी। अब 25-30 प्रतिशत माइग्रेशन हुआ है। ये खुशी से नहीं मजबूरी से आए हैं क्योंकि गांवों में अच्छी शिक्षा, रोजगार नहीं हैं इस कारण लोग गांव छोड़कर शहरों में आए हैं, जिससे शहरों में भी समस्याओं का निर्माण हुआ है इसलिए भारत का विकास करने के लिए गंभीरता से सोचना होगा कि हमें किस मार्ग से जाना है।”  

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