
नई दिल्ली : रेखा गुप्ता महज एक नाम नहीं है बल्कि दिल्ली की सामाजिक गलियों से राजनीतिक गलियारों तक एक गहरी रेखा को दर्शाती है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी आज भले सुश्री रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का सेहरा अपने माथे बांधें, या फिर ‘महिला सशक्तिकरण’ का दृष्टान्त देते सशक्त भारत के निर्माण का डंका बजाएं – लेकिन सुश्री रेखा गुप्ता आज से तीन दशक पहले दिल्ली विश्वविद्यालय प्रांगण में जो इतिहास रची थी, शायद आज के लोग नहीं जानते हैं। अगर जानते, तो इस बात की चर्चा खुलेआम होती, खास होती। इतना ही नहीं, तीन दशक पहले उनके साथ दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में शपथ लेने वाली सुश्री अलका लम्बा भी अपने कद को छोटी समझीं। जिस शपथ लेती तस्वीर को सामाजिक क्षेत्र के मीडिया पर चिपकाया गया वह इस बात का गवाह है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जिस कालखंड में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ में अपने अस्तित्व पर आंच लगा लिया था, उस कालखंड में सुश्री रेखा गुप्ता अकेली छात्रा थी, जो विद्यार्थी परिषद् के झंडे को नीचे नहीं झुकने दी। उस वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सभी अभ्यर्थियों को हार का सामना करना पड़ा था।
तारीख था 16 सितम्बर और 1994 साल। सुवह सवेरे दिल्ली से प्रकाशित एक-एक समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुखता के साथ प्रकाशित हुई थी कि दिल्ली पुलिस और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खूंखार अपराधियों के बीच मुठभेड़ में दो अपराधी मारे गए। अपराधी की गाड़ी से प्राप्त सामानों से स्पष्ट था कि वे दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अभ्यर्थियों को मदद करने आया था।
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उस घटना के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में एक भय का माहौल था। एक ग्लानि का माहौल था। छात्र समुदाय अपने हितों की रक्षा के लिए अपराधियों का सहारा नहीं लेना चाहते थे। यह अलग बात थी कि देश के राजनीतिक गलियारे में अपराधियों का राजनीतिकरण और राजनीति का अपराधीकरण का दौर उत्कर्ष पर था। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय की बात कुछ और थी, आज भी कुछ है, जहाँ तक शिक्षा और अनुशासन का प्रश्न है ।
सन 1994 छात्रसंघ के चुनाव के बाद अगले वर्ष 1995 में जब विश्वविद्यालय छात्रसंघ का चुनाव हुआ तो सचिव पद अपनी विश्वसनीयता का ठप्पा लगाते हुए, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वयं का नाम पुनः स्थापित किया। आज वही अभ्यर्थी दिल्ली की मुख्यमंत्री की शपथ ली हैं। नाम तो आप सभी जानते ही हैं – सुश्री रेखा गुप्ता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मंत्री समेत तमाम मंत्री, भाजपा और एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्री के अलावा साधु-संत और कारोबारियों के साथ ही हजारों लोग रेखा के शपथ ग्रहण में शामिल हुए। शपथ ग्रहण के लिए रामलीला मैदान में सुरक्षा के लिए एनएसजी कमांडो, दिल्ली पुलिस के जवान और आरएएफ के जवान तैनात कर दिए गए थे। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। बिना सुरक्षा जांच के किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया जा रहा।
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शालीमार बाग विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बनीं सुश्री रेखा गुप्ता के साथ प्रवेश वर्मा, मनजिंदर सिंह सिरसा, कपिल मिश्रा, आशीष सूद, पंकज सिंह और रविंदर सिंह इंद्राज को भी मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है। रेखा गुप्ता सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और आतिशी के बाद दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री हैं। अरविंद केजरीवाल वाली आम आदमी पार्टी के 10 साल के शासन पर विराम लगाते हुए सुश्री गुप्ता के रूप में भाजपा दिल्ली में 27 साल बाद सत्ता में वापस आयी है।
चलिए नब्बे के दशक में चलते हैं। उस कालखंड में दिल्ली में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपराधियों की तूती बोलती थी। भय का वातावरण चतुर्दिक था। उसी अपराधियों में मेरठ के खूंखार अपराधी बृज मोहन त्यागी को पकड़ने का प्रयास प्रारम्भ हुआ था । उस ज़माने में एम बी कौशल दिल्ली पुलिस के आयुक्त थे और पश्चिमी जिला के उपायुक्त थे दीपक मिश्रा। त्यागी का काम कथित तौर पर जबरन वसूली करने, दिल्ली के व्यापारियों को सुरक्षा राशि के लिए धमकाने और कॉन्ट्रैक्ट किलिंग आदि में शामिल था। साथ ही, उस पर 1994 के दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनावों में नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया के उम्मीदवारों को धमकाने का भी संदेह था।
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उस दिन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ का चुनाव हो रहा था। साल 1994 था। विश्वविद्यालय परिसर में मतदाता अपने-अपने अभ्यर्थियों के लिए प्रचार प्रसार कर रहे थे। पूरा परिसर, विशेषकर उत्तरी परिसर (नॉर्थ कैम्पस) खचाखच भरा था। अनुशासन और शांतिपूर्ण मतदान संपन्न हो, इसके लिए दिल्ली पुलिस की ओर से पर्याप्त व्यवस्था की गयी थी। आज के विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन से परिसर की ओर आने वाली सड़क जब मिरांडा हॉउस-विधि संकाय से आगे निकलती है, पुलिस की तैनाती अधिक थी। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा व्यवस्था थी। छात्र-छात्राओं को इतनी पुलिस की मौजूदगी खल भी रही थी।
अचानक पुलिस पुलिस की गाडी हड़कत में आ गयी। शस्त्रों पर उंगलियां सजने लगी। दिल्ली पुलिस दिल्ली विश्वविद्यालय के आस-पास के इलाकों में उसकी गतिविधियों के बारे में खुफिया नेटवर्क की मदद से, 15 सितंबर 1994 को बृज मोहन त्यागी को उसकी कार में देखा गया था । मिरांडा हॉउस के नुक्कड़ पर स्थित पुलिस की गाड़ी निकल पड़ी थी। पुलिस की गाड़ियों का काफिला दिल्ली विश्वविद्यालय के इलाके से राजौरी गार्डन तक उसका पीछा किया। उस इलाके में उसे एक व्यापारी को मारने के लिए जाना था। कहते हैं इस कार्य के लिए उसे 50 लाख रुपये की सुपारी मिली थी।
करीब दोपहर का 2.15 बजा होगा जब दिल्ली पुलिस का मुठभेड़ वाला ब्रांच राजौरी गार्डन चौक के यातायात के लाल बत्ती पर बृज मोहन त्यागी की कार को घेर लिया। इस बीच जैसे ही दिल्ली पुलिसकर्मी त्यागी के कार तक पहुँचने वाली थी, त्यागी के तरफ से गोलीबारी शुरू हो गई। परिणाम यह हुआ कि दोनों तरफ से गोलियों की बारिश होने लगी और अंततः उस मुठभेड़ में बृजमोहन त्यागी अपने एक साथी अनिल मल्होत्रा के साथ मारे गए। उस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिसकर्मी – सुनील शर्मा और बिजेंद्र सिंह – को भी गोली लगने से घायल हो गए। अपराधियों की गोलीबारी में तीन आम राहगीर भी घायल हुए थे। कहते हैं दीपक मिश्रा का यह पहला मुठभेड़ था।
उस समय का जो दृश्य था वह किसी सिनेमा से कम नहीं था। सड़कों के बीचोबीच बिजली के खम्भे पर भी दर्जनों गोलियों के निशान बने थे। त्यागी के सर पर दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस की तरफ से तीन लाख रुपये का इनाम था। इस मुठभेड़ को दिल्ली से प्रकाशित सभी समाचार पत्रों ने बहुत ही प्रमुखता से प्रकाशित किया था। यहाँ तक की इसे सिनेमाई मुठभेड़ नहीं कहकर, ‘असली मुठभेड़’ करार दिया। जख्मी पुलिसकर्मी को पेट में गोली लगी थी जो दिन दयाल उपाध्याय अस्पताल में लगभग दो सप्ताह तक भर्ती रहे।
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दिलचस्प बात यह हुई कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उम्मीदवारों के समर्थन में बैनर/पोस्टर, हमलावर अपराधी बृजमोहन त्यागी की कार से बरामद किए गए थे। इस बात को तस्वीरों के साथ, अगले दिन यानी 16 सितंबर 1994 को छात्रसंघ के चुनाव के दिन समाचार पत्रों में प्रकाशित किया था। इस प्रकाशन का परिणाम यह हुआ कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रा मतदाता इस बात से आश्वस्त हो गए कि संभवतः बृजमोहन त्यागी छात्रसंघ के चुनाव में परिषद् के उम्मीदवारों का समर्थन करने आयी थी। इस समाचार से परिषद् के उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था।
अगले वर्ष 1995 के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अभ्यर्थी के रूप में सुश्री रेखा गुप्ता सचिव चुनी गई और अध्यक्ष के पद पर सुश्री अलका लम्बा विजयी हुयी। फिर अगले वर्ष, यानी 1996-1997 के चुनाव में सुश्री रेखा गुप्ता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अभ्यर्थी के रूप में अध्यक्ष भी बनी। खैर। रेखा गुप्ता ने पहली बार विधानसभा का चुनाव जीती हैं। उन्होंने विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार वंदना कुमारी को 29,595 वोटों के बड़े अंतर से मात दी है। रेखा गुप्ता बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रिय सदस्य हैं। 1994-95 में वह दौलत राम कॉलेज में सचिव चुनी गईं।
बहरहाल, 1951 में दिल्ली विधानसभा के गठन के साथ दिल्ली का राजनीतिक इतिहास काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा। 1952 में पहले चुनाव होने के बाद ब्रह्म प्रकाश दुबे दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने। लेकिन कुछ समय के बाद दिल्ली में विधानसभा को भंग हो गया केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और उपराज्यपाल के रूप में दिल्ली की सत्ता केंद्र के हाथों आ गई। कुछ समय तक केंद्र शासित प्रदेश बने रहने के बाद, दिल्ली की जनता की मांग के आधार पर पुनः 1991 में दिल्ली में विधानसभा की स्थापना की गयी। परिसीमन के बाद 1993 में एक बार फिर चुनावों का आयोजन किया गया। जिसमें भाजपा 49 सीटें जीती थी, वहीं कांग्रेस को 14 सीटें मिली थी और 4 सीटों के साथ जनता दल, जो तीसरी पार्टी के रूप में आयी थी। भाजपा के मदन लाल खुराना नए मुख्यमंत्री बने।
मदन लाल खुराना के इस्तीफा देने के बाद भाजपा के ही साहिब सिंह वर्मा को नया मुख्यमंत्री बने। जैन हवाला डायरी कांड में सर्वोच्च न्यायालय से क्लीन चिट मिल जाने के बाद भाजपा के कई बड़े नेता और कार्यकर्ताओं खुराना को दोबारा से मुख्यमंत्री बनाने के पक्षधर थे, लेकिन वे सत्ता में वापस नहीं हो पाए। प्रदेश की राजनीति बदल रही थी। नेपथ्य में पृष्ठभूमि भी बदल रहा था। अगले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा साहिब सिंह वर्मा को भी मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर सुषमा स्वराज कुछ दिनों के लिए मुख्यमंत्री बनी।
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उधर, कांग्रेस की दिल्ली की सत्ता में शुरुआत 1998 के विधानसभा चुनाव से हुई जब कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में लड़े चुनाव में जीत हासिल करके भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया था और शीला दीक्षित खुद दिल्ली की नई मुख्यमंत्री बनी थी। 1998 से 2013 तक लगातार तीन कार्यकाल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने कार्य किया। उनकी सरकार पर कई आरोप भी लगे जैसे 2010 में उनके नेतृत्व में दिल्ली में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार संबंधित कई आरोप लगे। जिसकी वजह से उन्हें 2013 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और फिर विराजमान हुए आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल। जब उन पर भी दाग लगा तो आ गयी श्रीमती आतिशी। 1993 से 2025 तक देश की राजधानी दिल्ली ने नौ विधानसभा चुनाव देखे हैं।
27 साल बाद घर वापसी के पहले और बाद में मुख़्यमंत्री सुश्री रेखा गुप्ता ने आश्वासन दिया कि भाजपा सरकार महिलाओं को 2,500 रुपये मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करने के अपने चुनावी वादे को पूरा करेगी। मासिक सहायता की पहली किस्त 8 मार्च तक उनके खातों में जमा कर दी जाएगी। चुनावों से पहले, भाजपा के घोषणापत्र का उद्देश्य आम आदमी पार्टी की सत्ता में आने पर 2,100 रुपये मासिक सहायता की घोषणा से आगे निकलना है और अपने वादों को पूरा करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को पूरा करना राजधानी के सभी 48 भाजपा विधायकों की जिम्मेदारी है। हम महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता सहित अपने सभी वादों को अवश्य पूरा करेंगे। 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।”
दिल्ली की कुल जनसंख्या और उसमें महिलाओं की भागीदारी के साथ-साथ भाजपा द्वारा निर्गत की जाने वाली राशि की गणना गणितज्ञ करेंगे। लेकिन शहर में कुल मतदाताओं की संख्या 1,55,24,858 है, जिसमें 83,49,645 पुरुष मतदाता, 71,73,952 महिला मतदाता। साथ ही 1,261 तृतीय लिंग मतदाता शामिल हैं। मुख्यमंत्री सुश्री रेखा गुप्ता की बात मान भी ली जाय की आगामी 8 मार्च तक उनकी सरकार महिलाओं के बैंक खाते में 2500 रुपये जमा कर देगी, तो इसका राज्य के वित्तीय व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा – एक शोध का विषय होगा। अगर दिल्ली के कुल महिला मतदाता को ही लें तो कुल मतदाता 71,73,952 x 2500/- रुपये = 17934880000/- रुपये प्रतिमाह। अब अगर इसे एक साल (12 महीने) से गुना किया जाय तो अंक 215218560000 आता है और मुख्यमंत्री सुश्री रेखा गुप्ता अगर पांच साल मुख्यमंत्री कार्यालय में रहती हैं तो दिल्ली की महिलाओं पर ‘अनुत्पादक’ कितनी राशियों का व्यय होता है – यह तो उनका वित्त मंत्रालय और आला अधिकारी ही बता पाएंगे।
खैर, आज का दिन उनके लिए शुभ है। 20 फरवरी दिल्ली के लिए तो महत्वपूर्ण है, देश-दुनिया के इतिहास में 20 फरवरी का दिन काफी महत्वपूर्ण है। आज ही के दिन देश में पहली बार कंप्यूटर से रेलवे टिकट आरक्षण की शुरुआत हुई थी। आज ही के दिन ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने भारत को 30 जून, 1948 तक ब्रिटेन की गुलामी से आजाद करने की घोषणा की थी। हालांकि, बाद में यह तारीख बदलकर 15 अगस्त हो गई थी।