कांग्रेस पार्टी को बचाना है तो पार्टी का जबाबदेही मजबूत, ऊर्जावान युवक/युवतियों के कंधे पर दें, अन्यथा ‘फ्रैंक हार्टे’ की बात मान लें

लखनऊ सचिवालय के सामने उत्तर प्रदेश का एक मतदाता

लखनऊ / नई दिल्ली : युग के युवा – मत देख दायें – और बाएं – और पीछे – झांक मत बगले – ना अपनी आँख कर नीचे – अगर कुछ देखना है – देख अपने वे – वृषभ कंधे – जिन्हें देता निमंत्रण – सामने तेरे पड़ा – युग का जुआ – युग के युवा!

यह कविता कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष मोहतरमा सोनिया गाँधी के ‘ननकिरबा’ और उनकी विवाहित पुत्री श्रीमती प्रियंका वाड्रा को अवश्य पढ़ना चाहिए। क्योंकि देश का मतदाता अब ‘बुरबक’ नहीं रहा। कांग्रेस के ‘ओल्ड फॉक्स’ नेताओं की तो बात ही छोड़िये । हर व्यक्ति तो ‘बिहारी’ हो नहीं सकता जैसे जय प्रकाश नारायण, बाबू जगजीवन राम जो ‘आत्म-सम्मान’ में, लोगों के हितार्थ पार्टी हाईकमान के विरुद्ध जा सकते हैं। समय आ गया है जब कांग्रेस पार्टी के रक्षार्थ सोनिया गांधी को, राहुल गांधी को, प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस पार्टी का जबाबदेही देश एक मजबूत युवक – युवतियों के कंधे पर दे देना चाहिए।

क्योंकि फ्रैंक हार्टे ने लिखा है कि ‘जो सत्ता में रहते हैं, वे इतिहास लिखते हैं; और जो सत्ता के ‘विषाद’, ‘दर्द’, ‘कठिनाइयों’ को सहते हैं, कष्ट भोगते हैं, वे “गीत’ लिखते हैं। कितनी सच्चाई हैं इन शब्दों में। आज-कल भारत के कुल 3,287,263 वर्ग किलोमीटर में फैले 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के में फैले 138 करोड़ लोग – देश के प्रथम नागरिक से लेकर अंतिम नागरिक तक – दो फांकों में विभक्त हैं। कोई ‘इतिहास’ रच रहे हैं तो कोई ‘गीत को शब्दबद्ध’ कर रहे हैं, गीत गुनगुना रहे हैं। 

यदि देखा जाय तो एक फांक ‘इतिहास लिखने वालों’ का अनुयायी हैं, जबकि शेष ‘गीत लिखने वालों’ को शब्द का शाब्दिक अर्थ बता रहे हैं, शब्दों का वाक्य में विन्यास कर रहे हैं, शब्दों से बोल बना रहे हैं, अंतरा गुनगुना रहे हैं। कुछ ‘हर्ष’ से तो कुछ ‘विषाद’ से। यह परंपरा मुद्दत से चलती आयी है, मुद्दत तक चलती रहेगी। 

लेकिन यकीन कीजिये टेक्नॉफ, म्यांमार सीमा के तरफ बांग्लादेश से पश्चिम काबुल तक, अफ़ग़ानिस्तान, चित्तागाँव, कलकत्ता, प्रयागराज (इलाहाबाद) के रास्ते दिल्ली, अमृतसर होते हुए पाकिस्तान के लाहौर, रावलपिंडी और पेशावर को जोड़ने वाली सड़क के निर्माता शेरशाह सूरी जैसे इतिहास में वे कभी दर्ज नहीं होंगे – जहाँ तक राष्ट्रीय विकास का प्रश्न है। यह अलग बात है कि इस सड़क के निर्माण में भारत के अनेकानेक ऐतिहासिक पुरुष और ऐतिहासिक साम्राज्यों का योगदान है। आने वाले दिनों में इस बात का भी इंकार नहीं कर सकते हैं कि भारत जो कभी सोने का देश था, प्रतिमाओं का देश हो जायेगा। अगर आपको विश्वास नहीं हो तो आप दिल्ली के आईटीओ से मथुरा रोड का रास्ता लें। भारत का सर्वोच्च न्यायालय से जब आगे बढ़ेंगे तो लाल बत्ती से दाहिने इण्डिया गेट की ओर जाने वाली सड़क, जिस पर दिल्ली उच्च न्यायलय अवस्थित है – शेरशाह सूरी के नाम पर भी गोदना गोदाया है। 

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वैसे बड़े-बड़े समाजशास्त्रियों ने लिखा भी है कि जो समाज अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता में अपने प्राणों को उत्सर्ग करने वालों को भूल जाता है, कोई तबज्जो नहीं देता; वह समाज ‘सामाजिक और मानसिक रूप से मृत’ होता है। लेकिन क्या प्रतिमाओं के माध्यम से हम राष्ट्र की नींव को मजबूत बना सकते हैं ? 

अगर देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी को माने तो “हाँ” – क्योंकि आज की भारत के  3,287,263 वर्ग किलोमीटर भूमण्डल में स्थित राजनीतिक परिवेश में नरेंद्र मोदी को छोड़कर कोई दूसरा मनुष्य दीखता भी नहीं। नरेंद्र मोदी सत्ता में हैं, इसलिए ‘इतिहास लिख रहे हैं’; जो दीखते हैं और हिन्द महासागर जैसी सत्ता को अरब सागर से बैठकर देख रहे हैं ‘आसीन’ होने की चाहत में, वे ‘सत्ता के विषाद को सहते गीत लिख रहे हैं, गन गुनगुना रहे हैं। 

बड़े बुजुर्ग, ज्ञानी-महात्मा हमेशा अपने ज्ञान के प्रचार-प्रसार में तुलसीदास रचित रामचरितमानस की पंक्ति को उद्धृत करते हैं और कहते हैं: “समरथ को नहीं दोष गुसाईं, रवि पावक सुरसरि की नाई।” लेकिन तुलसीदास इन पंक्तियों के माध्यम से शायद यह कहे होंगे कि “जो व्यक्ति भेद-भाव से रहित होकर कर्म करता है, वह सामर्थ्यवान होता है और उसमें कोई दोष नहीं होता। यानी जैसे सूर्य, अग्नि , जल भी भेदभाव के दोष से रहित होकर अपना कर्म करते हैं।” 

लखनऊ विधान सभा के सामने भाजपा कार्यालय

लेकिन आधुनिक युग के विद्वान-विदुषी “सत्ताधारी”, “धनाढ्य” आदि महामानवों को “समाज के समरथ” व्यक्तियों की कतार में खींच लिए, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों को ‘चाटुकारों’, ‘खुशामदियों’, ‘प्रियवादियों’, ‘मिठबोलों,’ ‘मक्खनबाजों,’ ‘चमचों’ ‘परिजीवियों’ की लम्बी कतार अपने घरों के बाहर देखने में अच्छा लगता है। अब वास्तविक रूप से ‘समरथ’ तो समाज में लोग हैं नहीं, अगर है भी, जो उनके कर्मों को पहचानने वालों की किल्लत है, फिर तुलसीदास के रामचरितमानस में उद्धृत ‘समरथ’ शब्द के पर्यायवाची में ऐसे ही लोग होंगे। 

यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि चुनाव आते ही देश-प्रदेश के सफेदपोश लोग, जो स्वयं को नेता कहते हैं; चतुर्दिक चिल्लाने लगते हैं – हम यह करेंगे, हम वह करेंगे। मतदाता भी वैसा ही है। चुनाव केंद्र तक, मतदान पेटी तक यह निर्णय नहीं कर पाता कि आखिर अपना बहुमूल्य मत किसे देना है। कौन उसका भाग्य विधाता हो सकता है?

उदाहरण लीजिये: 395 सदस्यों वाली उत्तर प्रदेश की विधान सभा में कांग्रेस आज चौथे स्थान पर है और पार्टी में “नेता” की किल्लत ही नहीं, सुखाड़ है। विगत चुनाव में 395 सीट में 7 स्थानों पर कांग्रेस के अभ्यर्थी विजय हुए। इनसे ऊपर ‘अपना दल (सोने लाल) 9 सीट पर विजय हुए थे, जबकि बहन जी का बहुजन समाज पार्टी 15, भैय्या जी (अखिलेश यादव) 49 सीटों पर विजय हुए। सत्ताधारी भाजपा 303 सीटों पर झंडा लहराए। इस दृष्टि से यदि फ्रैंक हार्टे की बातों को स्वीकार करें तो भाजपा के सभी नेता, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तुलसीदास के रामचरितमानस के ‘समरथ’ लोग हाँ। 

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अब अगर कांग्रेस के ‘ननकिरबा’ और ‘ननकिरबी’ (राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी) “भर्ती विधान: युवा घोषणा पात्र” के माध्यम से माध्यम से उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को लुभा रही हैं और कह रहे हैं कि ‘वे 20 लाख रोजगार देंगे” – कोई गलत नहीं कर रहे हैं। सभी नेता लुभाते ही हैं, लेकिन शारीरिक भाषा, बोलने की भाषा, मतदाताओं पर दबदबा रहना जरूरी है। जिसकी किल्लत है ‘ननकिरबा’ और ‘ननकिरबी’ में। इससे तो कई हज़ार गुना लालू यादव के छोटका ननकिरबा में है। 

क्योंकि ‘जीत के लिए अब तक का ऐतिहासिक झूठ’ 2014 लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी कहे थे। उनकी भाषा में, उनके प्रयोग में, उनकी शारीरिक भाषा में एक आकर्षण था। जोर-जोर से चिल्लाकर भारत के मतदाताओं को कहा कि वे भाजपा को वोट दें। उनके बैंक एकाउंट में 15-15 लाख रुपये जमा करने का वादा है । उन्होंने भी वादा किया की देश में काला बाजारी समाप्त कर देंगे, विदेशों से काला पैसा हवाई जहाज में भरकर लाएंगे। भारत के मतदाता को और क्या चाहिए – ख़कसकर बोलिये, झूठ बात भी सत्य के उत्कर्ष पर होगा। आखिर लोग उनके पक्ष में 2014 में मतदान किये, फिर 2019 में मतदान किये, आगे 2024, 2029, 2035 और आगे भी करेंगे – क्योंकि देश में आज विरोधी पक्ष में कोई ‘समरथ’ नेता है ही नहीं। उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिर देश का मतदाता राहुल गांधी या प्रियंका गांधी की बात क्यों सुने?

प्रियंका गांधी कहती हैं: ‘‘भर्ती विधान को बनाने के लिए युवाओं से बात की गई। इसे भर्ती विधान इसलिए कहा गया है क्योंकि उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी समस्या भर्ती की है। युवा योग्य हैं, लेकिन उन्हें नौकरियां नहीं मिलती। बड़ी बड़ी घोषणएं होती हैं, लेकिन यह नहीं बताया जाता कि रोजगार कैसे दिए जाएंगे। भर्ती की प्रक्रिया को दुरुस्त किया जाएगा, आरक्षण संबंधी ‘घोटाले’ को रोकने का कड़ा प्रावधान होगा और विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनावों को बहाल किया जाएगा। सरकार बनने पर उत्तर प्रदेश में 20 लाख रोजगार दिए जाएंगे जिनमें 40 प्रतिशत यानी आठ लाख रोजगार महिलाओं को दिए जाएंगे। कोई 12 लाख नौकरियां सरकार में है जो खाली है और इनके लिए सरकार के पास पैसा भी है तथा आठ लाख रोजगार युवाओं के हुनर एवं उद्यमिता पर आधारित होंगे जिनके लिए सरकार सहयोग देगी।”

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लखनऊ विधान सभा का एक मतदाता

उत्तर प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के अंतिम चिराग थे जो 25 जून, 1988 से 5 दिसंबर, 1989 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहे। उसके बात पिछले 33-वर्ष में कांग्रेस लखनऊ मुख्यमंत्री कार्यालय की कुर्सी को कभी नहीं देखी। जिस समय नारायण दत्त दीवारी मुख़्यमंत्री थे, कांग्रेस के वर्तमान नेताद्वय, यानी राहुल गाँधी – प्रियंका गाँधी मतदान योग्य भी नहीं हुए (18 वर्ष) – सबसे बड़ा सवाल यह है कि आज इनकी बात भारत के मतदाता क्यों माने?

कांग्रेस की घोषणा के अनुसार: ‘‘उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा का बजट कम किया है। हमारी सरकार आएगी तो यह बजट बढ़ाया जाएगा और सभी कॉलेज व विश्वविद्यालयों को उन्नत किया जाएगा। अच्छी शिक्षा भविष्य निर्माण के लिए सबसे जरूरी है। युवाओं के रोजगार के लिए नये अवसर प्रदान किये जाएंगे। मल्लाहों और निषादों के लिए विश्वस्तरीय संस्थान बनाया जाएगा जिसमें उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा। अति पिछड़े समुदाय के युवाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए एक फीसदी ब्याज की दर से कर्ज दिया जाएगा।’’ 

आज अगर उत्तर प्रदेश के मतदाता गली-कुचियों में शैक्षणिक संस्थाओं की उपस्थिति को देखेंगे, आंकेंगे तो सरकारी संस्थाओं की स्थिति की बात छोड़िये, निजी क्षेत्रों में 100 में 90 फीसदी संस्थाओं पर कांग्रेस नेताओं का ही अधिपत्य पाएंगे। आखिर जब वे सभी सत्ता में थे – वे सभी तुसलीदास के रामचरितमानस के ‘समरथ’ व्यक्ति थे। इतिहास लिख दिए। उन दिनों भाजपा, बहुजन समाज पार्टी, अपना दल, भारतीय समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और अन्य छोटे-छोटी पार्टियां और नेतागण ‘गीत लिखते’ थे, ‘गीत गुनगुनाते थे। 

अंततः प्रियंका गांधी ने यह भी कह दिया: “मैं बार बार कह रही हूं कि हमारी विचारधारा अलग है। हम प्रगति और जनता की भलाई के लिए काम करेंगे। हम ध्रुवीकरण की राजनीति में शामिल नहीं हैं।’’ बस एक सवाल – कांग्रेस की विचारधारा अब वृद्ध हो गयी है और कांग्रेस पार्टी अपने घर के लोगों के अलावे भारत के अन्य युवक-युवतियों को, जो राष्ट्र को एक नई दिशा दे सकते थे, ले जा सकते थे – पार्टी से मीलों दूर रखी, कहीं उनका अधिपत्य न समाप्त हो जाय। अगर ऐसा नहीं होता तो आज ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में नहीं होते। बहरहाल, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव सात चरणों में होगा। पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को और सातवें एवं अंतिम चरण का मतदान सात मार्च को होगा। 10 मार्च को नतीजे घोषित होंगे।

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