अबोध बच्चों का कसूर: वे गरीब हैं, उनके माता पिता भी बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य की मांग किसी से नहीं कर सकते, नीतीश कुमार से भी नहीं

दिव्यांगों का विद्यालय और मानसिक रूप से दिव्यांग व्यवस्था

बिहार के बेगूसराय जिला से डॉ रमन झा लिखते हैं: ये है भारत के विकास की असली रफ्तार और ये है सामाजिक न्याय का टूटा हुआ वह मंदिर जिसके दम पर हम सबके साथ-सबका विकास और एक समृद्ध व विकसित भारत देश का स्वप्न देख रहे हैं… जी हाँ यह है 1988 में स्थापित प्राथमिक विद्यालय सुग्गा मुसहरी, बखरी बेगूसराय जो जन्म से ही विकलांग है।

गरीबी व बदहाली के बीच अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा से भी महरूम महादलितों की इस वस्ती के अधिकांशतः लोग वर्त्तमान में नशापान को ही अपनी जिंदगी का कीमती वक्त सौंप चुके हैं। ना जाने किनके और कितने सद्प्रयासों के बाद आज से 40 वर्ष पूर्व इस प्रारंभिक पाठशाला की नींव आजादी के बाद पहली बार इस गाँव में पड़ी थी ताकि यहाँ का भी समाज बदले। परन्तु दुर्भाग्य है कि अपने जन्म से ही यह उपेक्षा का शिकार ही हमेंशा होता रहा है।

जानकारी तो यह है कि 1988 से 2020 तक तो यह सिर्फ कागजों पर ही चला। अब जाकर कुछेक शिक्षक बिना दरवाजे व खिड़कियों के इस अधूरे व जीर्ण-शीर्ण सामुदायिक भवन में नौकरी बजाने का काम करने लगे हैं। अभावग्रस्त महादलितों की इस वस्ती के अबोध बच्चों का सिर्फ यही कसूर है कि वे गरीब हैं और उनके माता पिता वोट के बदले अपने नौनिहालों के बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य की माँग किसी से नहीं कर सकते और शराब तारी व नशा को ही अपने जीवन के साथ जोड़ने को विवश हैं।

विश्वमाया चैरिटेबल ट्रस्ट ने इस विद्यालय के बच्चों के सपनो को नई उड़ान देने के लिये यहाँ कार्यरत शिक्षकों, टोला सेवकों,समुदाय के लोगों,शिक्षा विभाग के अधिकारियों व अपने स्वयंसेवकों को साथ लेकर नये सिरे से एक पहल शुरू करने की कोशिश शुरू की है और उम्मीद है कि कुछ वर्षों तक काम करने के पश्चात इस वस्ती में शिक्षा का दीप अनवरत जले और यहाँ की दुनिया बदले….!

ये भी पढ़े   जी.एम.रोड, दरभंगा-बंगला नंबर-4: कौन मौसेरा-कौन चचेरा? आग की लपटें, मृत माँ, एमिकल कॉड से जुड़ा मृत बचा, मृत मामा और 'मृत मानवता' (भाग-1)

आओ कुछ करें – उनके लिए

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here