बिहार की दो विलुप्त होती पार्टियाँ – राम विलास पासवान वाला “लोजपा” और शरद यादव का “लोजद” 

फोटो : शरद यादव के फेसबुक पेज से 

पटना : जिस तरह लोक जनतांत्रिक पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान की मृत्यु के साथ उनकी पार्टी की क्रिया-कलाप भी “पार्थिव” होने की ओर अग्रसर हो गयी है; शरद यादव का लोकतांत्रिक जनता दल भी कोसी-गंगा की मझधार में फंस गयी है। यादव शरीर से अस्वस्थ हैं और अधिक राजनीतिक उछल-कूद करने लायक नहीं हैं; स्वाभाविक है, उनकी पार्टी का भी वही हश्र होने वाला है जो लोक जनतांत्रिक पार्टी का। 

सूत्रों के अनुसार लोकतांत्रिक जनता दल के संरक्षक शरद यादव के विश्वस्त सहयोगी ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है। दशकों से शरद यादव के विश्वस्त सहयोगी रहे अरूण श्रीवास्तव ने बुधवार को कहा कि पार्टी कहीं लुप्त होती जा रही है और पार्टी संरक्षक की बेटी के कांग्रेस के टिकट पर बिहार चुनाव लड़ने से पार्टी के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है। श्रीवास्तव लोकतांत्रिक जनता दल के महासचिव भी रहे हैं। यादव की बेटी सुभाषिनी राज राव ने हाल ही में संपन्न बिहार विधान सभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था । स्वास्थ्य कारणों से शरद यादव महीनों से राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं हैं ।

वैसे जो भी हो, बिहार के मतदाताओं को प्रदेश के हित में “विदेशी राजनेताओं को अपने प्रदेश में पनाह “नहीं देना चाहिए। शरद यादव  मध्य प्रदेश के होशंगाबाद गाँव में जन्म लिए थे। जबकि बिहार में  ‘शिक्षित, ओजस्वी, दूरदर्शी महिलाओं की किल्लत हो गयी है। या फिर, राजनीतिक परजीवी अधिक हो गए हैं। लोगों का कहता हैं कि शरद यादव का बिहार से कुछ भी लेना-देना नहीं था और ना ही है। अगर बिहार में उनकी राजनीतिक जीवन में बिहार के विकास में योगदान को आँका जाय, तो आंकने वाला स्वयं मूर्छित हो जायेगा। क्योंकि कुछ  मिलेगा ही नहीं। शरद यादव शिक्षाविद हैं, अभियंता हैं और कृषक भी हैं – लेकिन इस महानतम गुणों को बिहार के लोगों में बाँट नहीं सके जिससे बिहार के लोगों का कल्याण होता। 

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चुनाव से पूर्व सुभाषिनी यादव कांग्रेस में शामिल हुई थीं। वर्ष 2017 में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण शरद यादव को जद (यू) से निकाल दिया गया था। इसके बाद उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वह महागठबंधन का हिस्सा थे और इसी के बैनर तले मधेपुरा से चुनाव भी लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा  

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