रोहित सरदाना विदाई के साथ ‘यह विज्ञापन आजतक के अधिकारियों के मानसिक बांझपन को दर्शाता है’

इस खबर के साथ यह विज्ञापन मानसिक बांझपन को दर्शाता है 

पत्रकारिता की दुनिया में सत्तर-अस्सी के दसक तक इस बात को बहुत तबज्जो दिया जाता था कि समाचार पत्रों में, खासकर प्रथम पृष्ठ पर, अगर कोई सार्वजनिक दुःखद समाचार जाता था, तस्वीर प्रकाशित होता था तो उस पृष्ठ पर कोई भी ऐसा विज्ञापन नहीं प्रकाशित हो जिससे समाचार की भावना को ठेस पहुंचे, इसकी गारंटी दी जाती थी। 

दिल्ली के अख़बारों में अस्सी के दसक के बाद से, विशेषकर जब से अख़बारों में, टीवी चैनलों में ”समाचार और सम्पादकों” को समाचार पत्र/टीवी चैनलों के मालिकों ने अपने -अपने पैरों के जूते के नीचे रखना प्रारम्भ किया और वे सभी “समान्नित व्यक्ति” मुस्कुराते हुए मालिकों के जूते सूंघ-सूंघ कर ”वाह-वाह” भी करने लगे, पत्रकारिता सड़कों पर, शमशानों में दफ़न होने लगी। 

रोहित सरदाना, महज एक पत्रकार ही नहीं थे, बल्कि भारत के लोगों के प्रिय भी थे। भारत के लोगों के घरों में, जहाँ 75-वर्ष की आज़ादी के बाद आज भी “ढ़िबरी-लालटेन” जलता है, ज्वार, मड़ुआ की रोटी मिटटी की बर्तनों को औंधकर आग पर सेक कर बनायीं जाती है, वे शायद नहीं जानते हों रोहित सरदाना को; परन्तु इतना पक्का है कि इण्डिया टुडे समूह के मालिक या लिविंग इण्डिया समूह के अन्य आला अधिकारियों को शायद भारत के लोग नहीं जानते होंगे, लेकिन 130 करोड़ आवाम में न्यूनतम 100 करोड़ लोग रोहित सरदाना को अवश्य जानते होंगे। करोड़ों युवकों, युवतियों के लिए, जो पत्रकारिता में अपना जीवन जीना चाहते हैं,  रोहित सरदाना उनके लिए “प्रेरणा” और “प्रेरक” दोनों होंगे। 

लेकिन उसी आज तक टीवी चैनल पर, जहां रोहित सरदाना अपने जीवन की अंतिम सांस लिए, उनकी पार्थिव शरीर और विदाई की खबर के साथ “दोनों तरफ इस कदर का विज्ञापन, विज्ञापन के शब्द मालिकों, टीवी चैनल/विज्ञापन चलाने वाले अधिकारियों या वे सभी जो इस खबर और विज्ञापन के प्रसारण में साथ थे, के “मानसिक बांझपन” का सार्वजनिक प्रसारण है – जो दुःखद है।”  

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सरदाना साहेब, आप उम्र में बहुत छोटे थे, आपको अभी नहीं जाना चाहिए था। लेकिन ऐसे मानसिक रूप से बाँझ लोगों के बीच से निकलकर वाहे गुरुजी के पास आप चले गए – गुरूजी आपकी आत्मा को शांति दें, अपने शरण में स्थान दें। 

बहरहाल, पटना के एक खबर के अनुसार, बिहार सरकार के मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह का निधन हो गया है। वे कोरोना संक्रमित थे और उनका इलाज चल रहा था। 1985 बैच के आईएएस अधिकारी रहे अरुण कुमार सिंह मुख्य सचिव से पहले बिहार के विकास आयुक्त थे।दीपक कुमार के रिटायर्ड होने के बाद अरुण सिंह ने 27 फरवरी को बिहार के मुख्‍य सचिव पद की जिम्‍मेदारी संभाली थी। 

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