रांची / दरभंगा / पटना : प्रतिभा और संवेदना — “मिथिला” की यह दो खास देन है। मिथिलांचल से आने वाली प्रतिभाओं की कमी नहीं है। मिथिला की प्रतिभाएं आज विभिन्न क्षेत्रों में अपनी खास पहचान बना चुकी है। लेकिन मिथिलांचल से आने वाली अधिकांश महिलाओं की प्रतिभाओं सहित अन्य क्षेत्रों (राज्यों) की महिलाओं से (पुरुष की तुलना में) हम आम तौर पर अपरिचित हैं। मिथिला की महिलाओं से अनुरोध है कि पारिवारिक (घरेलू) कार्यों के बाद यदि आप या आपके परिवार की अन्य महिला सदस्य अतिरिक्त समय में खाली बैठती हैं तो इस खाली समय में “मातृभाषा संघर्ष समिति” को अपनी अवैतनिक सेवा देकर स्वयं को व्यस्त रखें तथा अपनी प्रतिभा व क्षमता के प्रदर्शन से मैथिली को राज्य/राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में भरपूर सहयोग करें।
अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद, केन्द्रीय समिति, बिहार के संरक्षक, राष्ट्रीय शैक्षिक महोत्सव सह पटना-राॅ॑ची पुस्तक मेला के संस्थापक और नोवेल्टी एण्ड कम्पनी के प्रबंध निदेशक नरेन्द्र कुमार झा ने लिखा है कि सोमवार दिनांक 7 फरवरी, 2022 को प्रोफेसर शांति श्री धूलिपुडी़ पंडित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली की कुलपति नियुक्त की गई है। उन्हें जेएनयू पहली महिला कुलपति बनने का भी गौरव मिला है। उनका कार्यकाल 5 वर्ष होगा। वह अभी महाराष्ट्र के सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय, पुणे के राजनीति व लोक प्रशासन विभाग में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर थीं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रा रहीं शांति श्री ने 1986 में यहीं से एमफिल और 1990 में पीएचडी की थी। तमिलनाडु से सम्बन्ध रखने वाली जेएनयू की पूर्व छात्रा को यह जिम्मेदारी सौंपने के लिए प्रधानमंत्री का आभार है। उन्होंने कार्यभार संभाल लिया है।
झा ने लिखा है कि हमेशा नहीं लेकिन कभी-कभार ही हमें महिलाओं की प्रतिभा व क्षमता का उदाहरण मिल पाता है हालांकि मिथिला के धरती की अधिकांश महिलाएं प्रतिभासम्पन्न होती हैं। इसका मूल कारण यह है कि मिथिला की परम्परागत संस्कृति के कारण अधिकांश महिलाओं की प्रतिभा व क्षमता का प्रदर्शन विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न विषयों पर नहीं हो पाता है। ले-देकर उनके लिए मात्र शिक्षण का ही क्षेत्र बचता है जिसमें वे अपनी प्रतिभा व क्षमता का प्रदर्शन अपनी परम्परागत संस्कृति का निर्वाह करते हुए कर सकें। लेकिन महाविद्यालयों में उनकी लगभग 6 घंटे तक उपस्थिति की अनिवार्यता के फलस्वरूप अधिकांश महिलाएं शिक्षण कार्य के साथ-साथ अपने पारिवारिक (घरेलू) कार्य में समुचित समय नहीं दे पातीं हैं जिसके कारण कतिपय अन्य विषयों के संघर्षों हेतु प्रतिभा सम्पन्न होते हुए भी महिलाओं का कम प्रतिशत ही इस क्षेत्र में भी अपनी क्षमता का प्रदर्शन करता है।
हमारे विचार से ‘मैथिली भाषा संघर्ष समिति’ के स्थान पर “मातृभाषा संघर्ष समिति” नामकरण माध्यम से हम महिलाओं व विभिन्न क्षेत्रों के आम नागरिक से भी अभूतपूर्व सहयोग प्राप्त कर सकते हैं। जहाँ तक झारखंड में अपनी मातृभाषा की सफलता का प्रश्न है इसमें बिहार-झारखंड की अधिक से अधिक महिलाओं की एकजुटता को शामिल करना तो अति आवश्यक है ही। हमें पूरा विश्वास है कि बिहार व झारखण्ड में प्रतिभाओं की उर्वरक धरती मिथिला से आई महिलाओं के सहयोग से असम्भव को सम्भव किया जा सकता है। एक ओर जहाँ शिक्षण-प्रशिक्षण विषय पर इन प्रतिभासम्पन्न महिलाओं की क्षमता का प्रदर्शन किसी भी महाविद्यालय को श्रेष्ठता प्रदान कराता है वहीं दूसरी ओर झारखण्ड में मातृभाषा की अनिवार्यता विषय पर भी सहयोगी महिलाओं की क्षमता का प्रदर्शन हमें सफलता प्रदान करेगा।
हम विशेषकर बिहार-झारखंड के मिथिलांचल क्षेत्र के उन आम नागरिकों की एकजुटता से ही अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त कर सकते हैं जो मूलतः बिहार के ही हैं हालांकि वे अब नए प्रदेश झारखंड के आजीवन वासी हैं। कार्य कठिन है लेकिन असंभव नहीं। मिथिला की प्रतिभा ही इस कार्य को सम्भव कर सकती है।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हम अनुरोध करते हैं कि पारिवारिक (घरेलू) कार्यों के बाद यदि आप या आपके परिवार की अन्य महिला सदस्य अतिरिक्त समय में खाली बैठती हैं तो इस खाली समय में “मातृभाषा संघर्ष समिति” को अपनी अवैतनिक सेवा देकर स्वयं को व्यस्त रखें तथा अपनी प्रतिभा व क्षमता के प्रदर्शन से मैथिली को राज्य/राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में भरपूर सहयोग करें। हम आपसे आग्रह करते हैं कि बिहार-झारखण्ड की उन महिलाओं का भी नाम, मोबाइल नंबर व डाक पता आदि ह्वाट्सएप करने का कष्ट करें ताकि उन्हें अविलम्ब “मातृभाषा संघर्ष समिति” समूह में शामिल किया जा सके। महिलाओं के इस समूह हेतु एक “संचालन समिति” का निर्माण भी अति आवश्यक है।
अन्ततः हम समझते हैं कि मिथिला की पहचान बनाने की संवेदना आप में अवश्य होगी। अतः हम जिस सहयोग की अपेक्षा रखते हैं वह नि:संदेह आप अपनी मातृभाषा को देंगी। हमें आपकी सहभागिता आपके खाली समय में ही चाहिए। समय आप अपनी सुविधानुसार जो भी देना चाहें, हमें स्वीकार्य होगा। आपके समूह की प्रतिभा हमें मातृभाषा के स्तर को बरकरार रखने में जहाँ एक ओर मदद करेगी, वहीं दूसरी ओर किसी भी अन्य सामूहिक संघर्ष में भी आप सहयोगी बनने में आकर्षित होंगी।
उधर, विगत 8 फरवरी को गूगल मीटिंग आयोजन के द्वारा तिरहुत मित्र मंडल का स्थापना दिवस मनाया गया जो उसी दिन 2011 में रांची में स्थापित हुआ था। मीटिंग की अध्यक्षता डॉ धनाकर ठाकुर ने की । उन्होंने कहा की अब इसे दिल्ली समेत सभी महानगर में संगठित किया जायेगा ताकि मिथिला राज्य और मैथिली भाषा का प्रचार संगठित रूप से इस क्षेत्र में हो जिसके बिना मिथिला राज्य एवं मैथिली भाषा की कल्पना नहीं की जा सकती है। मिथिलाक्षर का पहिला शिलालेख यहीं नरकटियागंज निकट सहोदरा गाँव में मिला है जो दशवीं सदी का है।
उन्होंने कहा क़ि तिरहुत क्षेत्र वह है जहाँ ब्राह्मण त्रिकाल संध्या करते थे जो गुरु गोलवलकर का मत है वैसे बिहार में गंगा का उत्तरी भाग तिरहुत क्षेत्र कहा जाता है जो नदी के किनारे सामान्य अर्थ में है। तुर्क-अफगान काल में तिरहुत स्वतंत्र प्रशासनिक ईकाई बना जो बंगाल राज्य के अंतर्गत था। गंगा, गंडक तथा कोशी नदी से घिरा सघन आबादी वाला मैदानी हिस्सा सन 1856 तक बंगाल प्रांत में भागलपुर प्रमंडल का अंग था। संथाल विद्रोह के पश्चात तिरहुत को पटना प्रमंडल में मिला दिया गया।
सन् 1875 में बंगाल से अलग होकर मुजफ्फरपुर एवं दरभंगा नामक दो जिला में बँट गया । 1875 में दरभंगा को तिरहुत से अलग कर स्वतंत्र जिला बना दिया गया। 19 वीं सदी के उत्तरार्द्धमें इस क्षेत्र मे अकाल पड़ने के बाद बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रू फ्रेजर ने तिरहुत को अलग प्रशासनिक इकाई बनाने की आवश्यकता का अनुभव किया। जनवरी 1908 में भारत के गवर्नर जनरल की मंजूरी पश्चात तिरहुत प्रमंडल बनाया गया जिसमें सारण, चंपारण, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा जिला रख मुजफ्फरपुर मुख्यालय बनाया गया। ब्रिटिश भारत में सन 1908 में जारी एक आदेश के तहत तिरहुत पटना से अलग प्रमंडल बना ।