
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ की एक रैली में कहा, “मैंने अखबार में पढ़ा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष श्रीमान नामदार ने ये कहा कि कांग्रेस मुस्लिमों की पार्टी है। पिछले दो दिन से चर्चा चल रही है। मुझे आश्चर्य नहीं हो रहा है। पहले जब मनमोहन सिंह जी की सरकार थी तब स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने कह दिया था कि देश के प्राकृतिक संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार मुसलमानों का है।”
बीबीसी की एक खबर के मुताबिक कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर पलटवार करते हुए उन पर देश के लोगों से झूठ बोलने का आरोप लगाया है। कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा गया है, “प्रधानमंत्री भारत के लोगों से झूठ बोलना जारी रखे हुए हैं। उनकी असुरक्षा उनका बेहतर पहलू बाहर ला रही है। आप किस बात से डरे हुए हैं मोदी जी?” दूसरी ओर, इससे संबंधित ज़ी हिन्दुस्तान की एक खबर का क्लिप घूम रहा है। आइए, देखें मामला क्या है।
मुझे राहुल गांधी के भाषण का वीडियो नहीं दिखा। मुख्यधारा के किसी अखबार में जिसपर मैं यकीन कर सकूं, खबर नहीं दिखी। एक वीडियो जरूर घूम रहा है और यू ट्यूब पर भी है। इसमें एंकर कह रही है कि राहुल गांधी ने कहा है कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। चैनल ने कोई उर्दू अखबार दिखा कर इसे उस वक्त की बड़ी खबर कहा और न्यूजरूम में किसी से कहा कि वे उर्दू अखबार पढ़ कर सुनाएं। इसके मुताबिक राहुल गांधी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात के बाद कहा कि कांग्रेस मुस्लिम पार्टी है।
मैं नहीं कहता कि राहुल गांधी ने ऐसा नहीं कहा होगा या नहीं कहना चाहिए। और प्रधानमंत्री ने कहा है कि उन्होंने अखबार में पढ़ा तो पढ़ा भी होगा। इतने सारे अखबारों में क्या कुछ छपता है सबकोई नहीं देख सकता है और हर कोई अपनी पसंद या काम की चीज ही पढ़ता है। पर राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी से संबंधित एक ऐसी खबर जो लगभग कहीं नहीं छपी है, के एक उर्दू अखबार में छपने से क्या प्रधानमंत्री को यह शैली शोभा देती है? – “मैं कांग्रेस पार्टी के नामदार से पूछना चाहता हूं कि कांग्रेस पार्टी मुस्लिमों की पार्टी है, आपको ठीक लगे, आपको मुबारक़ लेकिन ये तो बताइये कि मुसलमानों की पार्टी सिर्फ पुरुषों की है या महिलाओं की भी है। क्या मुस्लिम महिलाओं की इज्ज़त के लिए सम्मान के लिए गौरव के लिए उनके हक़ के लिए कोई जगह है क्या?”
कहने की जरूरत नहीं है कि इसी आधार पर ज़ी हिन्दुस्तान ने खबर बना दी और उसका क्लिप वायरल भी हो जएगा। हो सकता है इससे आम जनता कांग्रेस को मुसलमानों की पार्टी मान ले। तो? अगर आप उम्मीद करते हैं कि इससे आपको हिन्दुओं के वोट मिल जाएंगे तो क्या इससे यह नहीं पता चलता है कि आप आम मतदाताओं को क्या समझते हैं। मुझे नहीं लगता कि राहुल गांधी ने जो कहा है उसमें कुछ गलत है या उससे मुकरने की जरूरत है। अगर नहीं कहा है तब भी इस मुद्दे पर कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में आने की बजाय आक्रामक ही होना चाहिए और मतदाताओं को बताना चाहिए कि एक कहीं नहीं छपी खबर में भाजपा (प्रधानमंत्री) की इतनी दिलचस्पी क्यों है।
इस मामले में जिस ढंग से सवाल उठाए जा रहे हैं, ना सिर्फ प्रधानमंत्री द्वारा बल्कि रक्षा मंत्री द्वारा भी उससे भाजपा की राजनीति मालूम होती है। कांग्रेस इसकी पोल खोलने की बजाय बचाव की मुद्रा में है। आखिर क्यों? दूसरी ओर, प्रधानमंत्री क्या कर रहे हैं। उन्हें झूठ बोलने, गलत तथ्य परोसने वाले और घटिया राजनीति करने वाले की अपनी छवि की जरा भी चिन्ता नहीं है? अभी तक तो यही लगता है कि नहीं है। इससे देश के मतदाताओं के बारे में उनकी राय मालूम होती है और कांग्रेस ने अगर इतने वर्षों में देश के मतदाताओं का मानसिक स्तर ऐसा रखा कि घटिया उपायों से वोट मिले तो दोष कांग्रेस का है और अब बचाव की मुद्रा में आकर वह भी स्वीकार कर रही है कि आम मतदाताओं के मानसिक स्तर के बारे में उसकी राय क्या है।
कांग्रेस को (खासकर राहुल गांधी को इस उम्र में) स्पष्ट करना चाहिए था कि उन्होंने क्या कहा और नहीं कहा तो मोदी जी के सवाल उठाने का क्या मतलब है। हो सकता है इससे 2019 भाजपा जीत जाए पर एक बार मतदाताओं को भाजपा की राजनीति समझ में आ जाए तो राहुल गांधी जैसे नामदार को अभी कई चुनावों बाद ही कोई कांग्रेसी चायवाला मार्गदर्शक मंडल में भेज पाएगा। राहुल गांधी को क्या डर है जो वो ऐसे आरोपों (हालांकि यह आरोप नहीं सर्टिफिकेट भी हो सकता है) से भागें और उसका खंडन करें। ठीक है, मीडिया की बदमाशी के कारण यह संभव है कि आम आदमी तक राहुल गांधी की बात इस चुनाव में ना पहुंचे पर उनकी छवि तो एक निष्पक्ष राजनेता की बनेगी। उन्हें जल्दी क्या है?
यह अच्छी बात है कि राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी पर घटिया हमला नहीं करते हैं। खराब भाषा का उपयोग नहीं करते हैं। पर हर आक्रमण में बचाव की मुद्रा क्यों अपनाना? हमले के जवाब में तो हमला किया ही जा सकता है। राहुल गांधी के साथ सबसे अच्छी बात है कि उन्हें मार्ग दर्शक मंडल में डालने की स्थिति नहीं आई है और अगर वे अपनी छवि आदर्श रखना चाहते हैं तो आदर्श रखें – चुनाव जीतें या हारें। अगर चुनाव जीतना ही लक्ष्य हो तो वो सब करें जो चुनाव जीतने के लिए करना चाहिए। या किसी उपयुक्त को आगे करें। दो नावों की सवारी लक्ष्य पर नहीं पहुंचाएगी।