चर्चाएं ‘हॉट-स्पॉट’ में है कि क्या बख्तियारपुर वाले नीतीश कुमार दिल्ली के 6-मौलाना आज़ाद रोड में ‘लैंड’ हो रहे हैं ?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ; सुनकर, पढ़कर गजबे का आनंद हो रहा है। तस्वीर: मातृभूमि के सौजन्य से

पटना / नई दिल्ली : वैसे तनिक ‘टंच’ होकर सोचियेगा क्योंकि पिछले कुछ दिनों से पटना का अशोक राज पथ और दिल्ली का राजपथ राजनीतिक दृष्टिकोण से शेरशाह सूरी का ग्रैंड ट्रंक रोड हो गया है। चाहे जनता दल युनाइटेड के नेता हों या भारतीय जनता पार्टी के, या फिर किसी अन्य झंडे के तले फल-फूल रहे हों, चतुर्दिक सुनियोजित तरीके से ढिंढोरा पीट रहे है कि बख्तियारपुर वाले नीतीश कुमार जी जल्द ही दिल्ली के 6-मौलाना आज़ाद रोड के वासिंदे होने जा रहे हैं। कई लोग तो दिल्ली के बंगाली मार्किट में कई टन लड्डू का भी आदेश दे रखे हैं। इधर भारत सरकार के मंत्रालय द्वारा मौलाना आज़ाद रोड की कोठी नीतीश कुमार को लिखा गया; उधर बस, ट्रक, ट्रेलर, टैक्सी, मैक्सी से मोतीचूर का लड्डू दिल्ली में बांटा जाय। और ‘चुपके’ से दूसरी घोषणा के साथ ही, पटना मुख्यमंत्री कार्यालय में “भाजपा का झंडा” लहराने लगे।

दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में बैठकर बिहार की राजनीति पर चर्चा करने वाले मूर्धन्य पत्रकारगण, हस्ताक्षरित राजनीतिक विशेषज्ञगण सादे कागज पर अंकगणितीय दृष्टि से नाप-जोख करने में व्यस्त हैं। कई तो यह भी कह रहे हैं कि ‘जब पत्रकार श्रेणी से प्रभात खबर के पूर्व संपादक जनता दल युनाइटेड के तरफ से ऊपरी सदन का सम्मानित उप सभापति हो गए हैं; फिर उसी सदन का सभापति जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार कैसे हो सकते हैं ? कुछ तो इस बात पर कमर कैसे कबड्डी खेलने लगे हैं कि नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस के नेता आपस में ही भीड़ रहे हैं और बिहार के साथ-साथ दिल्ली में भी भाजपा-जनता दल यूनाइटेड के संबंधों को ‘डिवाईड’ करने में व्यस्त हैं। कई तो इस मारामारी को ‘प्रायोजित कार्यक्रम’ कह रहे हैं, तो कई इसी उठापटक में अपना राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं।

हाल में ही, जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर चिपके बाबू ललन सिंह ‘बिहार को विशेष राज्य का दर्जा’ मांग रहे हैं। अब किसके ‘इशारे’ पर, किस आधार पर बिहार को ‘विशेष दर्जा’ चाहते हैं बाबू ललन सिंह, यह तो वही बता सकते हैं या फिर जो उनके कान में फूंका, वह ही बता सकते हैं। उधर भारतीय जनता पार्टी के बिहार के छह-फीटिया नेता सम्मानित राजीव प्रताप रूडी, एक तरफ बाबू ललन सिंह की मांग का ‘विरोध’ भी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ आरोप भी लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार बिहार राज्य के विकास के लिए जो भी आर्थिक मदद कर रही है, उसे राज्य सरकार उपयोग करने में पूर्णतः विफल रही है। इतना ही नहीं, बिहार भाजपा के नेता सम्मानित संजय जायसवाल बिहार में ‘गुजरात मॉडल’ को आयात करने पर तुले हैं। गजब का घनचक्कर जैसा माहौल है। लेकिन “कुछ तो है जो अंदर ही अंदर हो रहा है। क्योंकि अगर बिहार के नेतागण बिहार के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षिक, पर्यटन आदि के चतुर्दिक विकास के लिए, मतदाताओं की अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए, मतदाताओं के चेहरों पर मुस्कान के लिए कभी चिंतित होते तो आज बिहार का यह हश्र नहीं होता।

प्रधानमंत्री सम्मानित नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार – आपका प्रस्ताव (यदि सही है और दिल्ली-पटना में प्रचारित, प्रसारित हो रहा है) सुनकर ही मन में गुदगुदी हो रहा है। तस्वीर: इण्डियन एक्सप्रेस के सौजन्य से 

बहरहाल, आज़ादी के 73वें वर्षगाँठ के एक सप्ताह पूर्व गाजीपुर वाले मनोज सिन्हा साहेब को लखनऊ के हज़रतगंज-विधान सभा रोड पर दूर से प्रदेश का विधान सभा, मुख्यमंत्री कार्यालय दिखाकर जम्मू-कश्मीर का उप-राज्यपाल बनने के लिए हवाई जहाज पर बैठा दिया गया। उस समय उनकी आत्मा की तड़प को, दर्द को कोई शब्दबद्ध नहीं किया। फिर पटना के राजेंद्र नगर रोड नंबर – 8 (पार्क के सामने वाले) के सुशील कुमार मोदी, जो अपने जीवन के आधे से अधिक उम्र अपने पीले-रंग के वेस्पा स्कूटर पर ‘टेढ़ा’ बैठकर ‘तथाकथित रूप से सीधी राजनीती’ करने का ‘स्वांग’ रचते गए; पटना की सड़कों को नापते रहे और जब ‘समय’ आया तो उन्हें ‘एयर लिफ्ट’ करके दिल्ली ले आया गया, फिर तो कुछ भी हो सकता है। और इस बार निगाहें बख्तियारपुर वाले नीतीश कुमार पर आ टिकी है।

कहते हैं जो ‘पॉवर’ में होते हैं, वे ‘इतिहास लिखते है’, और जो ‘शक्तिहीन’ होते, वे गीतकार-संगीतकार बन जाते हैं। देश के प्रधानमंत्री सम्मानित श्री नरेंद्र मोदी जी ‘इतिहास’ लिख दिए – गाजीपुर ही नहीं, उत्तर प्रदेश के बेहतरीन नेता को प्राकृतिक आनंद लेने के लिए, कहानियां लिखने के लिए, कवितायेँ गढ़ने के लिए, गीत को शब्दबद्ध करने के लिए कश्मीर की वादियों में स्पीड-पोस्ट कर दिए। साल था 2020 का अगस्त महीना।

मनोज सिन्हा पिछले लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के अफ़ज़ल अन्सारी से 1,19,392 मतों से चुनावी-कुश्ती हार गए थे। यदि राजनीतिक समयावली से देखें तो भाजपा मनोज सिन्हा को ‘लाट साहब’ बनाकर अगले 9-वर्ष के लिए निश्चिन्त हो गयी। प्रदेश के राज्यपालों का समय-काल’ पांच वर्षों के लिए होता है। यकीनन 2024 में होने वाली आम चुनाव में सिन्हा साहेब जम्मू – कश्मीर का ‘लाट -साहेब’ के कार्यालय में रहेंगे ही, इसलिए ‘टिकट’ का सवाल ही नहीं उठता। और फिर चुनवोपरांत केंद्र में नयी सरकार बनने के एक साल बाद उनका ‘समय’ समाप्त होगा। “तब का तब देखा जायेगा” – शायद यह सोचकर ही उत्तर प्रदेश और गाजीपुर की राजनीतिक-मुख्यधारा से मनोज सिन्हा को दरकिनार किया गया होगा।अब तो वही बताएँगे की “हँसे” या “कोसें” ।  

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हमारे राजेंद्र नगर वाले सुशील मोदी भैय्या का हाल भी कुछ इसी तरह है। पटना में तो पत्रकार बंधू-बांधव पूछ भी लेते थे और बार्तालाप के आधार पर स्थानीय अख़बारों में कुछ-न-कुछ दो-चार पैरा प्रकाशित भी हो जाता था। कभी-कभार नीतीश बाबू के साथ बगल में बैठकर फोटो भी खिंचबा लेते थे, प्रकाशित भी हो जाता था। यानी प्रदेश के समाचार पत्रों में ‘जीवित’ थे। लेकिन जब से दिल्ली आये, किस कोने में चले गए – किसी को पता नहीं है – जबकि दिल्ली की पत्रकारिता में बिहारी बाबुओं का वर्चस्व है। अब वही बात हो गई – जब बड़े मोदी जी हैं, शाह साहब है, तो राजेंन्द्र नगर रोड नंबर – 8 वाले मोदी को कौन पूछता है। कहते हैं “कितने चौड़े लोग दिल्ली में आकर मई-जून के महीने में भी ठिठुरने लगते हैं।”

शरद यादव – नीतीश कुमार : वे भी क्या दिन थे -तस्वीर: दी प्रिंट के सौजन्य से

यहाँ एक बात और बताना चाहूंगा। जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र को नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन वाले ‘तत्काल’ बंगला खाली करने को कहे थे, डॉ मिश्र के तत्कालीन निजी सचिव दिल्ली के अख़बार वालों को, पत्रकारों को जिनका बिहार की भूमि से नैहर-ससुराल का रिस्ता था; खटखटाने लगे, कहने लगे आप सभी एक मुहीम छेड़ें ताकि डॉ साहेब का बंगला बचा रहे। बहादुर शाह ज़फर मार्ग स्थित एक समाचार पत्र के संवाददाता ने दो-टूक कहा: “जीवन पर्यन्त तो डॉ साहब बिहार के लिए कुछ नहीं किये, बिहार गर्त में चला गया, स्वहित में पत्रकारों को काला प्रेस बिल दिए – अब कोई भी बिहारी पत्रकार उनके लिए क्यों आगे आएगा।” इन शब्दों को सुनकर निजी सचिव साहब कहते हैं: “बात तो गलत नहीं है, लेकिन ….” और अंत में डॉ साहब को बंगला छोड़ना पड़ा। 

इसी तरह, आजकल मध्यप्रदेश से विस्थापित और बिहार में राजनीतिक जीवन-जीने वाले, सात बार सांसद और तीन बार राज्यसभा के सदस्य रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री शरद यादव भी दिल्ली में घर-बिहीन होने का राग अलाप रहे हैं। कह रहे हैं कि उनके पास दिल्ली में रहने के लिए अपना घर नहीं है । निजी चैनल पर बता रहे हैं कि गांव की सारी जमीन बेच दिए और उन्हें 7 – तुगलक रोड का यह सरकारी आवास तीन महीने के अंदर खाली करना है। लेकिन एक बात आज तक समझ में नहीं आया 76 वर्षीय शरद यादव बिहार के लोगों के लिए क्या योगदान है ? वे जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। मधेपुरा से चार बार संसद गए – लेकिन मधेपुरा के लोगों को क्या दिए?

बहरहाल, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों तथा धारा 35 ए को खत्म करने की पहली वर्षगांठ के ठीक अगले दिन श्री सिन्हा को गिरीश चंद्र मुर्मू की जगह जम्मू-कश्मीर का नया उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है। नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया था।   वैसे लोग बाग कहते हैं कि सिन्हा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विश्वासपात्र” नेताओं में एक हैं और मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में संचार और रेल राज्यमंत्री जैसे प्रमुख पद पर रहे। लेकिन कितना विश्वास पात्र अब हैं, यह करोड़ों का सवाल हैं। पूर्वांचल क्षेत्र में भाजपा की राजनीति के बड़े चेहरे श्री सिन्हा छात्र राजनीति से उभर कर आए हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र संघ अध्यक्ष बनकर उन्होंने राजनीति जीवन शुरू किया। अपनी अद्भुत प्रशासनिक क्षमता, जुझारू और ईमानदार छवि के बूते वह केंद्रीय मंत्री बने। 

गाजीपुर जिले के मोहनपुरा गांव में एक किसान परिवार में एक जुलाई 1959 को जन्मे 61 वर्षीय श्री सिन्हा ने छात्र जीवन सिन्हा से राजनीति में कदम रखने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांव के प्राथमिक विद्यालय से प्रारंभिक पढ़ाई करने के उपरांत आगे की शिक्षा के लिए देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय बीएचयू पहुंचे। वाराणसी में ही आईआईटी की उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद यहीं से छात्र राजनीति में पदार्पण किया। वह 1982 में बीएचयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने। आईआईटी करने के बाद श्री सिन्हा को कई अच्छी नौकरियों की पेशकश आईं किंतु उन्होंने जीवन में राजनीति को चुना। 

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के झंडे तले श्री सिन्हा का राजनीतिक कद बढ़ता ही गया। वह धीरे-धीरे पूर्वांचल की राजनीति का बड़ा चेहरा बन गये। वर्ष 1989 से 1996 तक भाजपा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहने के बाद 1996 में पहली बार गाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे वह 1998 का लोकसभा चुनाव हार गए किंतु 13 माह बाद 1999 में हुए चुनाव में दूसरी बार जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद करीब 15 साल तक उन्हें चुनावी जीत का वनवास भोगना पड़ा।  उत्तर प्रदेश के 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जब प्रंचड जीत हासिल की तो श्री सिन्हा का नाम मुख्यमंत्री के रूप में आगे था किंतु अंतिम समय में बाजी योगी आदित्यनाथ के हाथ लगी। 

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आप कहेंगे कि मनोज सिन्हा, डॉ जगन्नाथ मिश्र के बारे में, शरद यादव के बारे में इतनी चर्चा क्यों?  कलेजा थाम कर रहिये। अगर आप जनता दल (यूनाइटेड) के हैं तो गाँठ बाँध लीजिये – आने वाले समय में बिहार के सप्त ऋषि – वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक – और सुशासन बाबू के नाम से विख्यात, प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय में सात बार कुर्सी को आनंदित करने वाले सम्मानित नीतीश कुमार को लेकर दिल्ली का दीन दयाल उपाध्याय रोड में काफी गर्मी है। जबकि दिल्ली का तापमान न्यूनतम सात डिग्री तक पहुँच रही है । 

22 मार्च 1912, यानी आज से सौ साल पहले अपने अस्तित्व में आने के बाद और देश को स्वतंत्र होने के 75 साल बाद शायद सम्मानित नीतीश कुमार पहला नेता हैं, जो देश में सबसे अधिक समयकाल तक मुख्यमंत्री कार्यालय में आसीन रहे। इतना ही नहीं, आज़ाद भारत का ये संभवतः पहला मुख्यमंत्री होंगे जो अपनी पार्टी बर्चस्व विधान सभा क्षेत्रों को भारतीय जनता पार्टी के हाथों सुपुर्द कर दिए। ये सोच लिए कि वे राष्ट्रीय जनता दल और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दंपत्ति लालू प्रसाद यादव – राबड़ी देवी के दोनों ननकीरबों को किसी भी हालत में मुख्यमंत्री कार्यालय में नहीं ढुकने देंगे – इसके लिए उन्हें जो भी करना पड़े, स्वीकार है। परिणाम यह हुआ कि 30 से अधिक विधानसभा सीट भाजपा को दे दिए। साथ ही, शर्त यह भी रखे की ‘अबकी बार फिर नीतीश कुमार’ और सम्मानित प्रधानमंत्री चुनाव के पूर्व हुए फैसले का सम्मान करते हुए बिहार का दायित्व उन्हें सौंप दिए। 

देखिये नीतीश जी….. हमको दिल्ली भेज दिए तो आप भी वहीँ रहेंगे। तस्वीर: एन डी टीवी के सौजन्य से 

अब दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय चौक (आईटीओ चौराहा भी कह सकते हैं) से मिंटो ब्रिज की ओर जाने वाली सड़क, जिस पर भाजपा का केंद्रीय कार्यालय भी अवस्थित है, में बैठने वाले ‘दूरगामी’ लोग हैं। ‘निवेश’ करने में कोताही नहीं करते, चाहे आर्थिक हो या राजनीतिक। बिहार में ‘राजनीतिक निवेश’ हो गया और 45 विधायकों वाले नीतीश  कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया गया। जबकि भारतीय जनता पार्टी 74 विजय विधायकों के साथ बिहार विधान सभा में उपस्थित थी और राष्ट्रीय जनता दल 75  विजयी विधायकों के साथ। 

दिल्ली में बैठे भाजपा के ‘आलाकमान’ यह जानते थे कि “नीतीश कुमार को ‘शासनोफोबिया’ है। वे ‘सुपर-ईगो’ से ग्रसित हैं। सत्ता के बिना वे ‘अलबलाने’ लगेंगे। उनकी यह इक्षा रहती है कि वे पटना के गोलघर की ऊंचाई से अपनी प्रजा को हुर्रे-हुर्रे करें। उन्हें बताएं, उन्हें जतायें कि वे उनके प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, राजा है।” इन तमाम मनोवैज्ञानिक गुणों को देखकर, अध्ययन कर 74 विधायकों की संख्या वाली भाजपा नीतीश कुमार के नाम पर खेला खेल गई। दिल्ली में बैठे भाजपा के आलाकमान जानते थे, जानते हैं, कि “मियादी बुखार” भी कुछ दिन बाद उतर जाता है। ससुराल में भी जमाई बाबू को दो-चार बार लगातार ससुराल पहुँचने पर उनका ‘भाव’ गिर जाता है, पूरे विश्व को ग्रसित करने वाला कोरोना -19 का भाव भी आज कम हो गया है। तो फिर नीतीश कुमार किस खेत की मूली हैं और वह भी 74 के आगे 45 अंक लेकर। 

इतना ही नहीं, भाजपा आलाकमान के लोगों का यह भी मानना है कि जनता दल (यूनाइटेड) में कहीं दूर-दूर तक ‘यूनाइटेड’ शब्द दिखता नहीं है। अन्य राजनीतिक पार्टियों की तरह यह भी “घरेलू उत्पाद’ वाली पार्टी है। अगर नीतीश कुमार को “नमस्कार” कर गोलघर के बदले दिल्ली के कुतुब मीनार पर बैठा दिया जाय तो उनकी पार्टी धाराम हो जाएगी। क्योंकि जनतादल (यूनाइटेड) में न तो कोई गोलकीपर है, न कोई डिफेंडर है, न कोई मिड-फील्डर है, न कोई सेंटर-बैक से खेल सकता है, न कोई फुल-बाइक से खेलना जानता है – यानी एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति। वैसे बिहार से लेकर दिल्ली तक बैठे राजनीतिक प्रवर्तकों का मानना है कि “अपने फायदे के बिना तो नीतीश कुमार अपना मैल नहीं दे सकते, दो दर्जन से अधिक विधायकों और उनके क्षेत्रों को भाजपा को कैसे दान कर दिया आने वाले समय में राजनीतिक शोध कर्ता शोध करेंगे। 

बिहार में भाजपा, नीतीश कुमार के घरेलु उद्योग पार्टी जनता दल यूनाइटेड को बिना डकार लिए निगल जाएगी, आज लिख लें। कांग्रेस तो पहले ही ‘निराला’ के ‘वह तोड़ती पथ्थर, इलाहाबाद के सड़क पर’ की माफित दंड पेलते पटना के सर्कुलर और सरपेंटाइन सड़क पर दम तोड़ती। कुशवाहा की घरेलु उद्योग में निर्मित पार्टी को जन्म के साथ ‘ऐठन’ थी ‘राष्ट्रीय मेधाविता’ में अव्वल आने की। गांधी मैदान का एक चक्कर लगाते ही ‘यूनाइटेड’ हो गई। पासवान की लघु-गृह उद्योग पार्टी अपने संस्थापक की अंतिम सांस के साथ ही ‘चचरी’ पर लेट गई। 

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वैसे दिवंगत राम विलास पासवान के ननकिरबा को गजब का ठेस है। वह सोचते हैं कि सीधा पटना के सर्कुलर रोड से उठकर प्रधान मंत्री आवास में ही अपना आशियाना बनाएंगे, इसलिए मुंह-कान चिकना करके, स्नो-पॉवडर लगा के अनवरत कोशिश कर रहे हैं ताकि बिहार की जनता को लपेट सकें। लेकिन वे यह नहीं जानते की बिहार की जनता लोक जनशक्ति पार्टी की उम्र के साथ-साथ अनुभवी भी हो गई है। 

बहरहाल, दिल्ली में आईटीओ से लेकर इंदिरा चौक तक, इण्डिया गेट से लेकर राजपथ के रास्ते रायसीना हिल तक, चतुर्दिक चर्चा है कि जिस तरह राजेंद्र नगर वाले सुशील मोदी को ‘उठाकर’ दिल्ली में ‘लैंड’ करा दिया गया; सम्मानित नीतीश कुमार को भी दिल्ली सल्तनत में लैंड कराने का ‘विशेष वायुयान’ सजाया जा रहा है ताकि बिहार पर भाजपा का कब्ज़ा हो जाय। रायसीना हिल पर इस बात की चर्चा भी है कि आगामी जुलाई और अगस्त महीनों में भारत के राष्ट्राध्यक्षों का समयकाल समाप्त  होने जा रहा है और इस बात की  सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मगध के राजा को दिल्ली के मौलाना आज़ाद रोड के 6 नंबर कोठी में स्थान दिया जाय। 

यह तस्वीर 5 सितम्बर, 2015 की है और स्थान है बिहार का बोध गया

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद साहब का समयकाल आगामी जुलाई महीने में समाप्त हो जाएगी। 25 जुलाई, 2017 को रायसीना हिल पर राष्ट्रपति भवन में पांच साल के लिए विराजमान हुए महामहिम कोविंद साहब। वैसे संसद के बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति ने देश के विकास में वर्तमान सरकार की अनेकानेक उपलब्धियों की, विकास की गिनतियाँ गिनाये।  स्वाभाविक भी है एक राष्ट्राध्यक्ष होने के नाते, और वह भी जिनका समय काल समाप्त होने के अगर पर हो, सरकार के कार्यों और उपलब्धियों की चर्चा तो अवश्य करेंगे। 

लेकिन जब वे गिनती गिना रहे थे तो अचानक 5 सितम्बर, 2015 की घटना याद आ गई। उन्होंने एक तरफ नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धियों, मसलन कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई, कृषि उत्पादों की रेकॉर्ड खरीद, महिला सशक्तिकरण के दिशा में प्रयासों और आंतरिक सुरक्षा में सुधार जैसे अनेक कदम गिनाते नहीं थक रहे थे; मन ही मन सोच रहा था बिहार के राज्यपाल के दफ्तर से भारत के राष्ट्रपति भवन की यात्रा भी तो उनके लिए सम्मानित प्रधान मंत्री की उपलब्धि श्रृंखला की ही एक कड़ी है। 

खैर, कहते हैं पांच हज़ार शब्दों की कहानी को एक तस्वीर बेबाक बोलती है। यह तस्वीर भी कुछ वैसी ही है। यह तस्वीर 5 सितम्बर, 2015 की है। देश के सम्मानित प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  26 मई 2014 को देश के 18 वे प्रधानमंत्री पद का शपथ बनने के बाद बिहार के गया जिले का भ्रमण किये थे। उन दिनों श्री रामनाथ कोविंद साहब बिहार के 26 वें लाट साहब (राज्यपाल) थे। वे 16 अगस्त, 2015 को पटना स्थित राजभवन में विराजमान हुए और 20 जून, 2017 तक देश के तत्कालीन राष्ट्रपति को बिहार के राज्यपाल के रूप में प्रतिनिधित्व किये। और फिर 25 जुलाई, 2017 को रायसीना हिल पर राष्ट्रपति भवन में पांच साल के लिए विराजमान हुए। यानी, देश के प्रधानमंत्री का क्रियाकलाप उनकी पिछली अवधि में तीन साल देखे और वर्तमान काल में दो साल। महामहिम राष्ट्रपति का कार्यकाल इसी वर्ष जुलाई में समाप्त होने वाला है।  

इसी तरह, उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैय्या नायडू का कार्यकाल आज़ाद भारत के 75 वीं वर्षगांठ से पांच दिन पूर्व समाप्त होने जा रहा है। सूत्रों का मानना है कि इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैय्या नायडू को राष्टपति कार्यालय में आसीन कर दिया जाय और बिहार के नीतीश कुमार को 6 – मौलाना आज़ाद रोड में जगह दिया जाय। क्योंकि अगर बिहार की वर्तमान राजनीतिक परिवेश को देखा जाय तो ‘अब नीतीश कुमार में कुछ बचा भी नहीं है। वे देश का सबसे अधिक समय का मुख्यमंत्री भी बन गए हैं। 

भाजपा किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय जनता दल को मुख्यमंत्री कार्यालय में प्रवेश नहीं देगी। जनता दल यूनाइटेड में नीतीश कुमार को छोड़कर कोई भी दूसरी-पंक्ति के नेता नहीं हैं जो इस पार्टी और पार्टी के नेताओं को एकबद्ध रख सकें। वैसी स्थिति में यदि नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाकर दिल्ली ले आया जाता है तो इस बात की सम्भावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि जनता दल यूनाइटेड के कुछ लोग उछल कर भाजपा में आ जाएँ और कुछ उछल कर राजद में – क्योंकि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। वैसे राष्ट्रीय जनता दल में लालू यादव के कनिष्ठ पुत्र तेजस्वी यादव में काबिलियत है (व्यक्तिगत नहीं) कि वे जब तक पिता का संरक्षण प्राप्त है, पार्टी को बचा कर रख सकते हैं। हां, लालू यादव के बाद राष्ट्रीय जनता दल का क्या हश्र होगा, इसका निर्धारण समय करेगा। 

2 COMMENTS

  1. पटना से वाया गाजीपुर, दिल्ली होते हुए कश्मीर तक की यात्रा करवाता हुआ ये लेख बहुत सी पुरानी बातों को याद दिला गया..!
    वैसे भी सुशाशन बाबू अब वानप्रस्थ आश्रम में विश्राम योग्य हो चुके हैं..! एक पेंच यह भी है कि दिल्ली के मौलाना आजाद रोड पर गृह प्रवेश का न्योता पंजाब वाले कैप्टन साहब को भी दिया गया है.. उनका क्या होगा..?

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