कहां गए वो दावे, जलवे और अहंकार ? बोलने वाले नेता की बोलती बंद है !!

​नरेंद्र मोदी
​नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली : ​बोलने वाले नेता की बोलती बंद है। राहुल गांधी ने साफ-साफ कहा है असली मुद्दों से डरे हुए हैं। वे छिपना चाहते हैं। मेरा मानना है कि वे चुनाव हार गए तो जेल जाने से डरे हुए हैं पर राहुल गांधी कह रहे हैं कि वे अभी ही डरे हुए हैं। सच चाहे जो हो वो प्रेस कांफ्रेंस करने की स्थिति में नहीं हैं। पांच साल यह स्थिति नहीं बनी तब भी नहीं जब पत्रकार सेल्फी खिंचवाकर चले गए। मीडिया या प्रेस किसी भी नेता के इतने अनुकूल कभी नहीं रहा। फिर भी बोलने वाले नेता प्रेस कांफ्रेंस नहीं कर पाए। वे आदर्श आचार संहिता लागू होने पर देश के वैज्ञानिक और नेहरू के जमाने में स्थापित संस्थाओं की एक पुरानी उपलब्धि का श्रेय ले सकते हैं। एक ऐसे मामले में अपनी योग्यता साबित कर सकते हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लापरवाही है। अंतरिक्ष में कचरा फैलाने जैसा है जबकि अंतरिक्ष में कचरा फैलाना पृथ्वी के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है। प्रधानमंत्री देश में तो स्वच्छता बरतने पर जोर देते रहे पर निजी (या पार्टी के) लाभ के लिए अंतरिक्ष में कचरा फैला दिया। आज के अखबारों में खबर है, भारत के परीक्षण से अंतरिक्ष में फैला मलबा, स्पेस सेंटर को खतरा। यही नहीं, नासा ने उपग्रह गिराने को “भयंकर” कहा है।

क्या इससे यह नहीं लगता कि प्रधानमंत्री जो कहते और करते रहे हैं उसपर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। उन्होंने जो कहा वो किया नहीं और जो किया वो कह नहीं रहे हैं। हालत यह है कि कल उन्होंने उड़ीसा और बिहार में कम से कम तीन रैलियां कीं। उसकी खबर आज दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं के बराबर है। आज कांग्रेस का घोषणा पत्र छाया हुआ है और उसपर विपक्ष की प्रतिक्रिया बहुत ही लचर और प्रतीकात्मक है। दूसरी ओर अंग्रेजी दैनिक टेलीग्राफ ने कहा है कि इस घोषणा का इरादा पहले जैसा भारत बनाना है। चुनाव की घोषणा पर इस अखबार ने लिखा था, 23 मई को भारत के आईडिया को पता चलगा कि वह जीता या नहीं। स्पष्ट है कि पांच साल का नरेन्द्र मोदी का कार्यकाल मुश्किल रहा है। सबसे पहले तो आंकड़े ही नहीं हैं और सारे दावे ऐसे ही किए जा रहे हैं और धुंआधार प्रचार। अगर सब जगह अच्छा है, अर्थव्यवस्था ने तरक्की की है, लोग कमा रहे हैं उड़ा रहे हैं तो उन्हें पता है, बताना किसे और किसलिए? फिर करोड़ों रुपए विज्ञापनों और प्रचार पर फूंक दिए गए। इसी से पता चला कि जो दावा किया जा रहा है वह गलत है।

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हालत यह है कि बैंक से कर्ज लेकर तमाम भाई और मित्र फरार ही नहीं हो गए हैं, बैंक के बैंक बंद हो रहे हैं या विलय हो रहा है और दावा किया गया था मैं देश नहीं बिकने दूंगा। देश बिकने से क्या मतलब था? देश कौन बेच सकता है और कौन खरीदार है? इसी तरह नहीं बिकने दूंगा, मतलब? हालांकि, इससे कुछ बेहतर था, “ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा”। इसीलिए जब नीरव मोदी भाग गया तो कहा गया कि, “पैक करवाकर ले गया”। बात यहीं नहीं रुकी। खबर आई कि रफाल विमान सौदे में रफाल ने भारत में विमान बनाने के लिए अनिल अंबानी की नई बनी कंपनी से मोटा करार कर लिया है। दुनिया जानती है कि ऐसे करार कैसे होते हैं और उसमें में एक ऐसी कंपनी से जिसे कोई अनुभव नहीं है, जिसका प्लांट ही नहीं बना है आदि। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे मामलों में परिचय भर कराने के पैसे मिलते हैं ठेका मिल जाना तो बड़ी बात है। हो सकता है आपने देश भक्ति या राष्ट्रसेवा में बिना पैसे लिए ये काम किए हों। पर इसे कहेंगे नहीं, कुछ संबंधित सवालों के जवाब नहीं देंगे तो कोई कैसे मानेंगा? पर आपको सवाल पसंद नहीं है। जवाब देना नहीं चाहते और सवाल पूछने वाले देशद्रोही ठहरा दिए जाते हैं। ऐसे में कौन आपकी बात पर यकीन करेगा।

इसके बाद भी आप कहेंगे कि मैंने काम किए हैं। तो बताइए। स्वच्छता मिशन की चर्चा कीजिए, शौंचालय बनवाने की बातें कीजिए। पर आप नहीं करेंगे क्योंकि आप जानते हैं कि आप ही की 200 स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा के मुकाबले स्वच्छता का काम बहुत छोटा है। उसपर भी इसके लिए सेस लगाया गया है। आपने नोटबंदी की। तब कहा मैंने हिम्मत की। अब कहिए मैंने हिम्मत की – इसलिए वोट मिलना चाहिए। जिसे आपका हिम्मत करना पसंद होगा वोट देगा। अगर आप जानते हैं कि ऐसी हिम्मत से वोट नहीं मिलते तो ऐसे काम और ऐसे दावों का क्या मतलब? हालत यह है कि मंगलवार को बिहार और उड़ीशा की रैलियों में प्रधानमंत्री ने कहा, 1) “कांग्रेस जो 70 साल में नहीं कर पाई, वो हम पांच साल में कैसे कर पाते? काम करने के लिए और समय चाहिए। 2) ‘दो तरह के लोग, एक महामिलावटी और उनके पैरोकार और दूसरे आतंकवादी और उनके मददगार, यही लोग चौकीदार से परेशान हैं। 3) उड़ीशा के भवानी पटना में कहा, बीजद सरकार ने सहयोग नहीं किया, चौकीदार ने केंद्रीय योजनाओं से ओडिशा को बदला। उड़िया लोगों के कल्याण के लिए केंद्रीय योजनाओं का सहारा लिया। 4) मिशन उड़ीशा पर मोदी बोले – पांच साल मैंने बिना छुट्टी लिए देश की सेवा में काम किया। (ये बात उन्होंने तब कही जब देश का बच्चा-बच्चा जान गया है कि प्रधानमंत्री रोज ड्यूटी पर रहता है।) पांच साल दबंगई से राज करने के बाद अगर कहने के लिए यही है तो कुछ ना कुछ गड़बड़ है। और यह चिन्ता की बात है क्योंकि इससे एक दिन पहले खुल कर हिन्दुत्व का प्रतिनिधित्व किया जा चुका है।

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अगर ऐसी हालत है कि पांच साल में आपके पास किए गया काम बताने के लिए कुछ नहीं है, भविष्य के लिए योजनाएं नहीं हैं तो निश्चित रूप से देश में विपक्ष की हालत बहुत खराब है। आरएसएस और भाजपा को एक संगठित विरोध के रूप में उभरने में जितना समय लगा उसके मुकाबले खत्म होने में काफी कम समय लगा। देश में लोकतंत्र और राजनीति के लिए जरूरी है कि एक बढ़िया विपक्ष हो। पर विपक्ष इस तरह पिट जाए, लाचार हो जाए तो यह सबके लिए चिन्ता की बात है। मेरा मानना है कि यह ब्रांड मोदी पर या कहिए सिर्फ नरेन्द्र मोदी पर निर्भर करने का खामियाजा है और यह जोखिम शुरू से था। चुनाव जीतना हारना अलग है। पार्टी को तो बने रहना है। भाजपा और आरएसएस को चाहिए कि वे मुकाबले में डटे रहने के लिए कुछ करें। अभी यह काम नरेन्द्र मोदी के किसी सक्षम या स्वीकार्य विकल्प से हो सकता है पर कुछ समय बाद इसकी संभावना भी नहीं रहेगी। अभी तक की स्थितियों से लग रहा है कि वह विकल्प अमित शाह को बनाने या स्वयं उनके बनने की है। लेकिन मेरा मानना है कि उनपर जो आरोप हैं उसके मद्देनजर उन्हें सफलता मिलने की संभावना नहीं है और हो भी तो उन्हें आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि ऐसे लोग मजबूत नहीं हो सकते और प्रेस कांफ्रेंस से भागते रहेंगे।

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