भारत में वेश्यावृति “कलंकित” है 😢 लेकिन उन महिलाओं का मत विधायकों और सांसदों का भविष्य निर्धारित करता है ✍

रायसीना हिल (नई दिल्ली) : सन 1950 में भारत का संविधान लागू होने और स्वतंत्र भारत को एक गणराज्य घोषित होने के बाद विगत सितम्बर, 2024 तक संविधान में कुल 106 संशोधन किये गए हैं और उम्मीद है कि आने वाले दिनों में संविधान के पन्नों में कुछ और नए संशोधन किये जायेंगे। लेकिन, अगर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय देश में लगभग 30 लाख वेश्याओं के सामने चट्टान के तरह नहीं खड़ा हुआ होता, तो आज़ादी के 78 साल बाद भी देश के नेताओं की नजर में वेश्याओं का जीवन मूक-बधिर जानवरों के जीवन बराबर ही होता। वैसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद आज भी समाज के इन उपेक्षित महिलाओं का जीवन नारकीय जीवन से कम नहीं है, लेकिन न्यायालय का आदेश कुछ हद तक इन महिलाओं को ‘सांस लेने का संरक्षण’ अवश्य दिया हैं। 

विगत दिनों एक महत्वपूर्ण आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने वेश्यावृत्ति को एक ‘पेशा’ के रूप में मान्यता दी है और कहा है कि इसके व्यवसायी कानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा के हकदार हैं। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया। अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसा आदेश पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो। चार वर्ष पूर्व 2020 में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने यौनकर्मियों को अनौपचारिक श्रमिकों के रूप में मान्यता दी थी ।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की मुख्य बातें यह थी कि वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाएं कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं और आपराधिक कानून सभी मामलों में ‘आयु’ और ‘सहमति’ के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिए। जब यह स्पष्ट हो जाता है कि सेक्स वर्कर वयस्क है और सहमति से भाग ले रही है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 21 घोषित करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को उपलब्ध है। न्यायालय का आदेश था कि जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाता है, तो सेक्स वर्कर को “गिरफ्तार या दंडित या परेशान या पीड़ित” नहीं किया जाना चाहिए, “क्योंकि स्वैच्छिक सेक्स वर्क अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना ही अवैध है”।

न्यायालय ने यह भी स्वीकार किया कि वेश्याओं के बच्चे को केवल इस आधार पर माँ से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में है। मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा वेश्याओं और उनके बच्चों के लिए भी है। इसके अलावा, अगर कोई नाबालिग वेश्यालय में या वेश्याओं के साथ रहता हुआ पाया जाता है, तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि बच्चे की तस्करी की गई है। अगर वेश्या दावा करता है कि वह उसका बेटा/बेटी है, तो यह निर्धारित करने के लिए परीक्षण किए जा सकते हैं कि क्या दावा सही है और अगर ऐसा है, तो नाबालिग को जबरन अलग नहीं किया जाना चाहिए। चिकित्सा देखभाल: यौन उत्पीड़न के शिकार सेक्स वर्करों को तत्काल चिकित्सा-कानूनी देखभाल सहित हर सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। मीडिया की भूमिका: मीडिया को गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान सेक्स वर्करों की पहचान उजागर न करने के लिए “अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए, चाहे वे पीड़ित हों या आरोपी और ऐसी कोई भी तस्वीर प्रकाशित या प्रसारित न करें जिससे ऐसी पहचान उजागर हो। 

यह तो संवैधानिक बातें हैं। अब राजनीतिक और प्रशासनिक बातों के लिए देश की राजधानी दिल्ली के कर्तव्य पथ के रास्ते रायसीना हिल पर चलते हैं और इस बात पर विचार करते हैं कि आज़ाद भारत में देश के लगभग 2.63 लाख पंचायतों, 787 जिलों, 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेश के रास्ते भारत के लोकसभा और राज्य सभा में बैठने वाले विधायक अथवा सांसद इन वेश्याओं के बारे में सोचे हैं कभी? शायद नहीं। 

गृह मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रूपति कार्यालय को जोड़ने वाली रायसीना हिल सड़क के बीचो बीच खड़े एक वरिष्ठ राजनेता कहते हैं: “मैं पांचवी लोक सभा से अठारहवीं लोकसभा तक आम चुनाव के साथ-साथ राज्यों के विधान सभाओं का चुनाव देखा हूँ। सन 1971 में संपन्न लोक सभा के कुल 518 सदस्यों की संख्या में तत्कालीन कांग्रेस पार्टी को 352 स्थान मिले थे और श्रीमती इंदिरागांधी प्रधानमंत्री कार्यालय में विराजमान हुई। करीब 53-साल बाद विगत 18 वें लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी संसद के कुल 543 स्थानों में 240 स्थान जीतकर प्रधानमंत्री कार्यालय तीसरे बार पहुंचे। लेकिन, पांचवीं लोक सभा से आज 18वीं लोक सभा के साथ साथ राज्यों के विधान सभाओं अथवा ने निर्वाचित निकायों में चुनकर आने वाले प्रतिनिधियों को कभी मैं इन वेश्याओं के दरवाजे पर मत मांगने जाते नहीं देखा। यह अलग बात है कि वर्षों तक काले अक्षरों वाली निर्वाचन सूचियों में इनका नाम दिखा नहीं।”

कोई अस्सी बसंत की राजनीतिक हवाओं का अनुभव रखने वाले नेताजी आगे कहते हैं: “कभी उनके बच्चों को अपने गोद में उठाकर प्यार करते, तस्वीर खिंचवाते नहीं देखा। कभी इन महिलाओं या उनके बच्चों के कल्याणार्थ संसद अथवा विधान सभाओं में आवाज उठाते नहीं देखा, सुना। जो कल भी सत्ता में थे, आज भी सत्ता में हैं, जो कल भी नौकरशाह थे, जो आज नौकरशाह हैं, अधिकारी है, पदाधिकारी हैं – इन वेश्याओं और उनके परिवार, बच्चों के लिए नहीं सोचे हैं।”“अगर भारत का न्यायालय नहीं होता, अगर न्यायालय में बैठे सम्मानित न्यायमूर्ति संवेदनशील नहीं होते, समाज का एक खास संवेदनशील वर्ग उन वेश्याओं के जीवन के प्रति विवेकहीन होता, तो शायद इन वेश्याओं का हाल आज और भी बद्तर होता। सांख्यिकी कितना सही है यह तो सरकार के विभाग बताएंगे, लेकिन मेरा मानना है कि भारत में आज भी 30 + लाख वेश्याएं देहव्यापार के क्षेत्र में कार्यरत हैं। सभी के पास आधार कार्ड है।  सभी के पास मतदान का पहचान पत्र है जो भारत का निर्वाचन आयोग द्वारा जारी है।”

वे आगे कहते हैं: “अब सवाल यह है कि जब इन वेश्याओं का नाम निर्वाचन सूची में नहीं छपता था, उस कालखंड की बात छोड़ भी दें, आज अगर ये सभी 30+ लाख वेश्याएं सामाजिक प्रथा के तहत मान्य नहीं हैं तो इनके मत कैसे मान्य हो सकते हैं जो इन नेताओं के भविष्य का निर्माण करते हैं? नेता लोग, मंत्री लोग, अधिकारी लोग इन विषयों के दरवाजे तक, कोठों पर जाना अपने व्यक्तित्व और पुरुषार्थ के विरुद्ध समझते हैं।”“आपने कभी राजनेताओं को इन मतदाताओं के घरों में खाना खाते देखा है ? इनके बच्चों को गोदी उठाते देखा है ? बीमार, बिलखती, कलपती इन महिलाओं को सांत्वना देते देखा है ? फिर इनके मतों का इतना मोल क्यों ? कभी यह नहीं सोचते कि उनके जय-विजय में इन 30+ लाख वेश्याओं के मतों का भी मोल है। इस दृष्टि से अगर वेश्या कलंकित है, तो इन नेताओं का जय-विजय होना भी कलंक के दायरे में ही है।” वर्तमान में देश के 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधान सभाओं और परिषदों के कुल 4557 विधायक (विधानसभा: 4131 + विधान परिषद: 245) और 788 सांसद (लोकसभा: 543 + राज्यसभा: 245) हैं। आज़ादी के बाद से पहला और अठाहरवीं लोकसभा / विधानसभाओं के बीच सदस्यों की गणना कर लें। 

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सरकारी आंकड़ों के अनुसार आंध्र प्रदेश- 320024, अरुणाचल प्रदेश- 2750, असम- 52625, बिहार- 161321, छत्तीसगढ़- 12500, गोवा- 5375, गुजरात- 146950, हरयाणा- 15500, हिमाचल प्रदेश- 5375, जम्मू एवं कश्मीर- 15500, झारखंड- 20000, कर्नाटक- 200701, केरल- 68750, मध्य प्रदेश- 144338, महाराष्ट्र- 401300, मणिपुर- 4875, मेघालय- 4250, नागालैंड- 6000, उड़ीसा- 45066, पंजाब- 45000, राजस्थान-167305, सिक्किम- 425, तमिलनाडु- 303750, त्रिपुरा- 1375, उत्तर प्रदेश- 271868, उत्तराखंड- 8125, पश्चिम बंगाल- 367058, चंडीगढ़- 10750, दमन और दीव- 493, दिल्ली- 16785 और पुडुचेरी- 1400 कुल : 2827534 वेश्याएं थी दस वर्ष पूर्व। जबकि UNAIDS का आंकड़ा यह कहता है कि भारत में 2016 तक 657829 वेश्याएं हैं। 

बहरहाल, पिछले दशक में युवा लड़कियों की तस्करी में वृद्धि सरकारी और गैर सरकारी संगठन दोनों हलकों में चिंता का कारण बन रही है। नेपाल में STOP और MAITI जैसे गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट है कि भारत में (सीमा पार और देश के अंदर) सबसे अधिक तस्करी वेश्यावृत्ति के लिए होती है। और वेश्यावृत्ति में तस्करी करने वालों में से 60 प्रतिशत 12 से 16 वर्ष की आयु वर्ग की किशोर लड़कियाँ हैं। इन आंकड़ों की पुष्टि महिला एवं बाल विभाग द्वारा उत्तर प्रदेश के 13 संवेदनशील जिलों में किए गए एक अध्ययन से होती है। इससे पता चलता है कि इस सर्वेक्षण का हिस्सा बनने वाली सभी यौनकर्मियों ने युवा लड़कियों के रूप में इस पेशे में प्रवेश किया था। कई ट्रांससेक्सुअल यौनकर्मी हैं। उन्हें जनता के विरोध का सामना करना पड़ता है, और रोजगार से वंचित होने पर वे भीख मांगते हैं और फिर सेक्स बाजार में प्रवेश करते हैं।बालिका वेश्याएं मुख्य रूप से निम्न-मध्यम आय वाले क्षेत्रों और व्यावसायिक जिलों में स्थित हैं और अधिकारी उन्हें जानते हैं। वेश्यालय चलाने वाले नियमित रूप से युवा लड़कियों को भर्ती करते हैं।

बालिका वेश्याओं को सामान्य वेश्याओं, गायिकाओं और नर्तकियों, कॉल गर्ल, धार्मिक वेश्याओं या देवदासी और पिंजरे में बंद वेश्यालय वेश्याओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है। महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा से लगे जिले, जिन्हें “देवदासी बेल्ट” के रूप में जाना जाता है, में विभिन्न स्तरों पर तस्करी संरचनाएं संचालित होती हैं। यहां महिलाएं या तो वेश्यावृत्ति में हैं क्योंकि उनके पतियों ने उन्हें छोड़ दिया है, या फिर जबरदस्ती और धोखे से उनकी तस्करी की जाती है। कई देवदासियां देवी येल्लम्मा के लिए वेश्यावृत्ति में समर्पित हैं।बालिका वेश्याओं को सामान्य वेश्याओं, गायिकाओं और नर्तकियों, कॉल गर्ल, धार्मिक वेश्याओं या देवदासी और पिंजरे में बंद वेश्यालय वेश्याओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है। महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा से लगे जिले, ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, भारत में लगभग 15 मिलियन वेश्याएँ हैं। एशिया के सबसे बड़े सेक्स उद्योग केंद्र बॉम्बे में 100,000 से अधिक महिलाएं वेश्यावृत्ति में हैं। भारत, पाकिस्तान और मध्य पूर्व में वेश्यावृत्ति में लड़कियों को प्रताड़ित किया जाता है, आभासी कारावास में रखा जाता है, यौन शोषण किया जाता है और बलात्कार किया जाता है।

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जिन्हें “देवदासी बेल्ट” के रूप में जाना जाता है, में विभिन्न स्तरों पर तस्करी संरचनाएं संचालित होती हैं। यहां महिलाएं या तो वेश्यावृत्ति में हैं क्योंकि उनके पतियों ने उन्हें छोड़ दिया है, या फिर जबरदस्ती और धोखे से उनकी तस्करी की जाती है। कई देवदासियां देवी येल्लम्मा के लिए वेश्यावृत्ति में समर्पित हैं।ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, भारत में लगभग 15 मिलियन वेश्याएँ हैं। एशिया के सबसे बड़े सेक्स उद्योग केंद्र बॉम्बे में 100,000 से अधिक महिलाएं वेश्यावृत्ति में हैं। भारत, पाकिस्तान और मध्य पूर्व में वेश्यावृत्ति में लड़कियों को प्रताड़ित किया जाता है, आभासी कारावास में रखा जाता है, यौन शोषण किया जाता है और बलात्कार किया जाता है। बालिका वेश्याएं मुख्य रूप से निम्न-मध्यम आय वाले क्षेत्रों और व्यावसायिक जिलों में स्थित हैं और अधिकारी उन्हें जानते हैं।

भारत में यौन कार्य की वैधता पर सवाल उठाते हुए नैतिकता, किसी के शरीर पर स्वायत्तता, गरिमा, शालीनता, बेरोजगारी, गरीबी और हताशा के सवाल उठाए गए हैं। एक पक्ष का तर्क है कि चूंकि यौन कार्य अपरिहार्य है, इसलिए इसे कानूनी पवित्रता प्रदान की जानी चाहिए ताकि अन्य कारकों के अलावा महिला यौनकर्मियों के लिए सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों, न्यायसंगत मुआवजा और गरिमा के सम्मान के लिए एक आचार संहिता स्थापित की जा सके। विरोधी दृष्टिकोण इसे ‘वैध दुरुपयोग’ कहता है और तर्क देता है कि सरकार को इस तरह के काम के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहिए क्योंकि यह मानवीय गरिमा को कम करता है, मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर करता है और व्यक्तियों को वित्तीय लाभ के लिए अपने शरीर का उपयोग करने के लिए मजबूर करता है। महिला यौनकर्मी अपने उच्च जोखिम वाले यौन व्यवहार (जैसे, कंडोम के बिना सेक्स, कई भागीदारों के साथ सेक्स) और मादक द्रव्यों के सेवन के कारण एड्स, एसटीआई और सर्वाइकल कैंसर जैसी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

जो लोग ऐसे वातावरण में काम करते हैं उन्हें शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक आघात का अनुभव होने की अधिक संभावना होती है, जिसका प्रभाव न केवल उन पर पड़ता है, बल्कि उनकी आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ता है। 
यह कहा जाता है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक पायलट परियोजना शुरू की है, जिसे राष्ट्रीय महिला संसाधन केंद्र और राज्य महिला संसाधन केंद्र के साथ निकट समन्वय में सामुदायिक संगठनों, वकालत एवं अनुसंधान केंद्र (सीएफएआर) द्वारा संयुक्त रूप से क्रियान्वित किया जा रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में कमजोर और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए सामाजिक समावेश योजना की प्रक्रिया तैयार करना और यौनकर्मियों तथा यौन अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा में लाना है। भारत सरकार को देह व्यापार के पेशे को वैध बनाने और यौनकर्मियों तथा उनके बच्चों के कल्याण के लिए ठोस कदम उठाने का सुझाव मिला है। भारतीय दंड संहिता द्वारा अनुपूरित अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से बच्चों सहित मानव तस्करी को प्रतिबंधित करता है और प्रक्रियाएं निर्धारित करता है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय “उज्जवला” को क्रियान्वित कर रहा है – तस्करी की रोकथाम और वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए तस्करी के पीड़ितों के बचाव, पुनर्वास, पुनः एकीकरण और प्रत्यावर्तन के लिए एक व्यापक योजना। आज तक, इस योजना के तहत 151 सुरक्षात्मक और पुनर्वास गृहों सहित 273 परियोजनाओं को सहायता दी गई है। इन पुनर्वास केंद्रों को आश्रय और भोजन, कपड़े, चिकित्सा देखभाल, कानूनी सहायता, पीड़ितों के बच्चों के मामले में शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ पीड़ितों को वैकल्पिक आजीविका विकल्प प्रदान करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और आय सृजन गतिविधियों को शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। 

भारत में वेश्यावृत्ति स्वयं ‘अवैध’ या ‘कानूनी’ नहीं है। इससे जुड़ी कुछ गतिविधियाँ हैं जिन्हें अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956 [आईटीपीए] के तहत अवैध घोषित किया गया है, जैसे दलाली करना, दलाली करना, वेश्यालय चलाना आदि। 2011 में, बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य का मामला सामने आया। सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने माना कि यौनकर्मियों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान का अधिकार है, जो जीवन और आजीविका का अधिकार सुनिश्चित करता है। इस फैसले के माध्यम से, भारत में यौनकर्मियों के अधिकारों से संबंधित एक रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक पैनल का गठन किया गया था। केंद्र ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पैनल की सिफारिशों को मसौदा कानून में शामिल किया गया था। हालाँकि, तब से कोई कानून नहीं बनाया गया है।

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वेश्यावृत्ति से संबंधित मौजूदा कानून यौनकर्मियों के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करते हैं। यह पुलिस अधिकारियों और मजिस्ट्रेटों को यौनकर्मियों को बचाने और पुनर्वास करने की व्यापक शक्तियां प्रदान करता है, जिसका पुलिस अक्सर असंवेदनशील और अपमानजनक तरीके से दुरुपयोग करती है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) का उपयोग अक्सर यौनकर्मियों पर “सार्वजनिक अभद्रता” या “सार्वजनिक उपद्रव” जैसे अस्पष्ट अपराधों का आरोप लगाने के लिए किया जाता है, बिना स्पष्ट रूप से परिभाषित किए कि इनमें क्या शामिल है। यहां तक कि व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) पर मसौदा विधेयक में समुदाय-आधारित पुनर्वास, पुनर्वास घरों के लिए धन और एक मशीनीकृत बचाव प्रोटोकॉल पर स्पष्ट दिशानिर्देश शामिल नहीं हैं।

2022 में, संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने दस दिशानिर्देश जारी किए, जिन्होंने यौन कार्य को एक पेशे के रूप में मान्यता दी और कहा कि यौनकर्मी कानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा के हकदार हैं। हालाँकि, ये दिशानिर्देश अस्थायी हैं और केंद्र द्वारा किसी भी समय इन्हें खारिज किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ”यह कहने की जरूरत नहीं है कि पेशे के भारत में पहचानी गई 8.25 लाख महिला यौनकर्मियों (एफएसडब्ल्यू) में से आधे से अधिक पांच दक्षिणी राज्यों – आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना से हैं। आंध्र प्रदेश में 1.33 लाख यौनकर्मी हैं जबकि कर्नाटक में 1.2 लाख हैं। उत्तर प्रदेश में 22,060 और नई दिल्ली में 46,787 एफएसडब्ल्यू हैं।

बावजूद, इस देश में प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है। इस देश में सभी व्यक्तियों को जो संवैधानिक सुरक्षा दी गई है, उसे उन अधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाएगा जिनका अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के तहत कर्तव्य है। भारत की तरह दुनिया भी वेश्यावृत्ति को कानूनी पेशे के रूप में मान्यता देने को लेकर बंटी हुई है। उरुग्वे, नीदरलैंड, जर्मनी, तुर्की और हंगरी जैसे कुछ देशों में, यौन कार्य न केवल कानूनी है बल्कि संगठित और विनियमित है। जबकि ईरान जैसे कुछ देशों में बार-बार अपराध करने वालों को फाँसी भी दी जा सकती है।

शीर्ष अदालत ने अब कहा है कि यौनकर्मी कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं, पुलिस से उन मामलों में हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचने की अपेक्षा की जाती है जहां यह स्पष्ट है कि यौनकर्मी वयस्क है और सहमति से भाग ले रही है। शीर्ष अदालत के आदेश में कहा गया है कि यौनकर्मियों को पुलिस द्वारा परेशान, गिरफ्तार, दंडित या प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए। सरकार भी, कठिन समय के दौरान यौनकर्मियों के समुदाय के बचाव में आई है। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान यौनकर्मियों को सूखा राशन वितरित किया। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ के ताजा आदेश से इस पेशे से जुड़े लोगों को कई अन्य सुरक्षाएं दी गई हैं। पीठ ने कहा है कि यौनकर्मियों के बच्चों को जबरन उनसे अलग नहीं किया जाना चाहिए और यौनकर्मियों के साथ रह रहे किसी नाबालिग को तस्करी का शिकार नहीं माना जाना चाहिए।

अदालत ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया कि यदि यौनकर्मी अपने खिलाफ हुए किसी यौन अपराध के बारे में शिकायत दर्ज करना चाहती हैं तो उनके साथ भेदभाव न किया जाए। इसने मीडिया से गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव कार्यों के दौरान यौनकर्मियों की पहचान उजागर न करने के लिए अत्यधिक सावधानी बरतने को कहा। इसने प्रशासन को यौन अपराध की शिकार किसी भी यौनकर्मी को तत्काल चिकित्सा-कानूनी देखभाल प्रदान करने का निर्देश दिया। इस बीच, वेश्यावृत्ति को एक पेशे के रूप में पहचानने और यौनकर्मियों को गरिमापूर्ण जीवन देने का निर्देश देने वाला सुप्रीम कोर्ट का आदेश पिछले चार वर्षों में दूसरा बड़ा फैसला है जो संविधान पीठ के बाद बड़ी संख्या में लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने में मदद कर सकता है। शीर्ष अदालत ने 6 सितंबर, 2018 को फैसला सुनाया कि आईपीसी की धारा 377 के प्रावधान असंवैधानिक थे क्योंकि वे भारत में LGBTQIA+ समुदाय की स्वायत्तता, अंतरंगता और पहचान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते थे।

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