प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं ‘एनडीए गठबंधन कमजोर’ हो गया है, ‘संख्या का अभाव’ है, परन्तु ‘एक राष्ट्र – एक चुनाव’ ब्रह्मास्त्र बना रहे हैं भाजपा के लिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

विजय चौक (नई दिल्ली) : इंडिया गेट से कर्तव्य पथ के रास्ते रायसीना पहाड़ी और संसद की ओर जाने वाली सड़कों की मिलन स्थल पर बहुत तरह की चर्चाएं आम हो रही है। अन्य बातों के अलावे देश के दूरदरस्त इलाकों से रायसीना पहाड़ी पर स्थित भारत के प्रथम नागरिक के आवास से लेकर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री जैसे देश के शीर्षस्थ नेताओं के कार्यालयों और नव-निर्मित संसद भवन देखने आने वाले सैकड़ों, हज़ारों भारतीय मतदाता कुछ क्षण के लिए लिए सही, चर्चाएं अवश्य करते हैं कि क्या भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘प्रवक्ता’ बन गए हैं? क्या मोदी जी 75 वर्ष आयु के बाद भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहेंगे? क्या एक राष्ट्र-एक चुनाव विधेयक को कानून बनते ही प्रधानमंत्री संसद भंग कर देंगे आम चुनाव के लिए? आप क्या सोचते हैं कि 240 अंक से मोदी जी प्रसन्न हैं? क्या मोदी जी, उनके मंत्रिमंडल और नेतृत्व के प्रति भारत के मतदाताओं के मन में कोई शंका हो गई है? 

राष्ट्रीय राजधानी में भ्रमण-सम्मेलन करने वाले लोगों का मानना है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा 2014 के चुनाव में 282 अंक प्राप्त करती है। उस कालखंड में चुनावी मैदान में न तो अटल बिहारी वाजपेयी थे, न लालकृष्ण आडवाणी थे और न अन्य भाजपा के अधिष्ठाता। उस चुनाव में जो भी अंक आये थे वह नरेंद्र मोदी के नाम पर आया था। 2019 के चुनाव में वह अंक 303 तक चढ़ा। लोगों का मानना है कि जिस कदर 282 से अंक 303 चढ़े, भाजपा के नेताओं के तेवर भी चढ़ने लगे, जो अप्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं के हितों के विपरीत था। परिणाम यह हुआ कि 2024 के चुनाव में भाजपा सांसदों की संख्या 240 पर लुढ़क गयी। भाजपा की संख्या का कम होना और विपक्ष की संख्या का बढ़ना, राजनीतिक दृष्टिकोण से सत्तारूढ़ पार्टी, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और कार्य शैली पर प्रश्नचिन लगा दिया। सत्ता के गलियारे में इस बात की चर्चाएं हैं कि प्रधानमंत्री इस ‘धब्बा’ को मिटाना चाहते हैं और अब तक के लोकसभा के चुनाव में 404 की संख्या से ऊपर चढ़ा जाय। 

लोगों का कहना है कि – ‘एक राष्ट्र – एक चुनाव’ की बात बेहद सुन्दर है। इससे समय, अर्थ दोनों का बचत होगा। यह भी कहते हैं कि ‘सिफारिश’ को मानना इस बात का द्योतक है कि इस दिशा में कार्य बहुत शीघ्रता से होंगी। इन सिफारिशों के आधार पर अब विधेयक का प्रारूप बनेगा जिसे राज्य सभा और लोक सभा में पेश किया जायेगा। भले आगामी सत्र में इसलिए पेशी न हो सके, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बजट सत्र आते-आते देश में कुछ राजनीतिक सरगर्मी शुरू हो जाएगी । जैसे ही विधेयक कानून का रूप ले लेता है, तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि 2029 लोकसभा चुनाव से पूर्व देश को आम चुनाव के साथ-साथ राज्यों के विधानसभाओं को भी चुनाव में झोंक दिया जाय।  

उन मतदाताओं, जिसमें अवकाश प्राप्त नौकरशाहों के अलावे अनुभवी राजनीतिक विशेषज्ञ भी अपने-अपने परिवारों के साथ भ्रमण-सम्मेलन करने आते हैं, यह भी स्पष्ट किये कि पिछले दिनों केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह सार्वजनिक रूप से कहे थे: “मैं अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी और इंडिया ब्लॉक से यह कहना चाहता हूं कि बीजेपी के संविधान में ऐसा कुछ भी (75 साल पुरानी सीमा नियम का) उल्लेख नहीं है। पीएम मोदी न केवल यह कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं बल्कि पीएम मोदी भविष्य में भी नेतृत्व करना जारी रखेंगे। देश में इसे लेकर कोई भ्रम नहीं है।” वैसी स्थिति में अगर अमित शाह की बात सत्य है तो आगामी कई चुनाव ही नहीं, आने वाले सभी चुनावों में, जब तक परदेश भाजपामय नहीं हो जाएगा, नरेंद्र मोदी भाजपा का प्रधानमंत्री पद के  लिए दावेदार बने रहेंगे, नेतृत्व करेंगे। 

राष्ट्रीय राजधानी में भ्रमणकारी मतदाताओं का मानना है कि अगले वर्ष, यानी 2025 में सिर्फ दिल्ली और बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है। जबकि 2026 में चार राज्यों – असम, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और केरल में विधानसभा का चुनाव निश्चित है। उसके अगले साल, यानी 2027 में भारत के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति के अलावे सात राज्यों – गोवा, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होना निश्चित है। वैसी स्थिति में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अधिक दिनों तक ‘अन्य राजनीतिक पार्टियों की सहयोग से केंद्र में सरकार नहीं चलना पसंद करेंगे। उनकी नज़रों में संख्या का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, खासकर जब अपने दूसरे कालखंड में ही उन्होंने अपने बलबूते पर ऐतिहासिक संख्या को प्राप्त किया था। 

ये भी पढ़े   दिल्ली सल्तनत में सरदार पटेल को वह सम्मान नहीं मिला जिसका वे हकदार थे 😢
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

यह अलग बात है कि वर्त्तमान संसद और सरकार में, उन्हें किसी भी सहयोगी राजनीतिक पार्टियों से कोई मनमुटाव नहीं है, कोई भी अब तक उनके कार्यों में दखलंदाजी नहीं किये हैं, लेकिन संख्या का होना अलग बात है। वजह यह है कि 2014 में जब पहली बार नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत कर चुनाव लड़ा गया था, भाजपा को 282 अंक प्राप्त हुए थे। साथ ही अन्य सहयोगी पार्टियों के भी अच्छे अंक थे। विपक्ष में कांग्रेस का हश्र सोचनीय हो गया था। 2019 के चुनाव में देश के मतदाता नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को जबरदस्त विजयश्री दिया। 282 के अंक बढ़कर 303 हो गया। वैसे यह अंक लोक सभा चुनाव में भाजपा के लिए बहुत अधिक था, लेकिन राजीव गाँधी की अगुआई में कांग्रेस की संख्या इससे बहुत अधिक थी। 

2019 चुनाव में 303 का अंक ऐतिहासिक था। लेकिन 2024 आम चुनाव में एक ओर जहाँ भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टी की संख्या लुढ़की, विपक्ष, खासकर कांग्रेस पार्टी की संसद में संख्या में अप्रत्यासित इजाफा हुआ। विगत 2024 आम चुनाव में भाजपा का 303 से लुढ़क कर 240 पर आना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनितिक पुरुषत्व को एक चुनौती दे दिया। लोगों का मानना है कि भले नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के लोग पिछले दस वर्षों में मोदी की अगुआई में कार्य सम्पादित, निष्पादित करने के आंकड़े बनायें, हकीकत यह है कि लोगों का उनमें, उनकी सरकार में विश्वास डगमगा गया। और यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंदर से भयभीत हो गए हैं, टूट गए हैं। वे चाहते हैं कि देश के मतदाताओं का विश्वास पुनः जीता जाय, वह भी उनके मतों से, चुनाव से। इसी बहाने एक राष्ट्र एक चुनाव का मुद्दत बाद परीक्षण भी हो जायेगा पोकरण की तरह। 

भ्रमणकारी मतदाता इस बात पर भी चर्चा करते हैं कि देश के उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि बनाने और निखारने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । कल की ही तो बात है। उपराष्ट्रपति ने गांधीनगर (गुजरात) में चौथे ग्लोबल री-इन्वेस्ट, 2024 के समापन समारोह में इस बात पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में आशा और संभावना का माहौल पैदा किया है। 

चौथे ग्लोबल री-इन्वेस्ट, 2024 के समापन समारोह को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “मैं श्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा का वर्णन तीन पहलुओं में करता हूँ। पहला, 2014 में वे एक रॉकेट की तरह थे जिसने उड़ान भरी। बहुत प्रयास की आवश्यकता थी। देश निराशा के मूड में था। उनका उद्देश्य आशा और संभावना का माहौल पैदा करना था। अंतर बहुत बड़ा था। 2019 में आशा और संभावना का माहौल पैदा करके यह गुरुत्वाकर्षण बल से से परे चला गया। 2024 में, छह दशकों के बाद पहली बार लगातार तीसरे कार्यकाल में प्रधान मंत्री बनकर इतिहास रचने के बाद, रॉकेट अब गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में नहीं है। रॉकेट अंतरिक्ष में है और इसलिए उपलब्धियां खगोलीय होनी चाहिए।”

उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़

घनखड़ ने तो यहाँ तक कहा कि “यह गर्व की बात है कि बहुत लंबे समय के बाद भारत का कोई नेता वैश्विक विमर्श में छाया हुआ है। हम इस समय सौभाग्यशाली हैं कि इस देश से बहुत लंबे समय के बाद, इस देश का कोई नेता वैश्विक चर्चा में छाया हुआ है। उनकी आवाज हर जगह सुनी जाती है, वे मानवता और वैश्विक हित के मुद्दों पर बात करते हैं और इसलिए मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस देश ने पिछले एक दशक में उन क्षेत्रों में सफलता की जो गाथा देखी है, वह तीन दशक और उससे भी पहले चौंका देने वाली थी।” 

ये भी पढ़े   तुम सच कह रहे थे "आर्गुमेंट में मजा नहीं आ रहा था": अरुण जेटली, जो अब नहीं रहे, 'कहा-सुना माफ़' करना भाई !!

इतना ही नहीं, “भारत को विश्व में सद्भाव लाने का केंद्र बिंदु बताते हुए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैसियत को बताते हुए श्री धनखड़ ने कहा,  कि वे इस ग्रह पर व्याप्त संकटों का समाधान कर सकते हैं, “अगर भारत नेतृत्व करता है, अगर भारत के नेता प्रधानमंत्री मोदी कोई आह्वान करते हैं, तो वे इसे पूरा करके दिखाते हैं। पिछले 10 वर्षों में उन्होंने जो कुछ भी कहा है, वह जमीनी हकीकत है, यहां एक ऐसा व्यक्ति है जो न केवल आधारशिला रखता है बल्कि उनका उद्घाटन भी करता है, वह हमेशा समय से आगे की सोचता है… भारतीय नेता की आवाज को विश्व स्तर पर सम्मान के साथ सुना जाता है। उन्हें ग्रह पर एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता है जो इस समय ग्रह पर व्याप्त संकटों का समाधान कर सकता है।” 

उधर, X प्लेटफॉर्म पर पोस्ट्स की एक श्रंखला में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत परिवर्तनकारी सुधारों का साक्षी बन रहा है। उन्होंने कहा कि आज, इस दिशा में, केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा One Nation One Election पर उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने के साथ भारत ने ऐतिहासिक चुनाव सुधारों की तरफ एक बड़ा कदम उठाया है। श्री शाह ने कहा कि यह निर्णय स्वच्छ और वित्तीय रूप से कुशल चुनावों के माध्यम से हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने और संसाधनों के अधिक उत्पादक आवंटन के माध्यम से आर्थिक विकास में तेजी लाने की प्रधानमंत्री मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाता है।

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह

बहरहाल, कैबिनेट ने कल एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी । अब देश की 543 लोकसभा सीट और सभी राज्यों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव कराने की राह खुल गई। एक देश एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट के बाद प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दी है। एक देश एक चुनाव का विचार कम से कम 1983 से ही चला आ रहा है, जब चुनाव आयोग ने पहली बार इस पर विचार किया था। हालांकि, 1967 तक, भारत में एक साथ चुनाव कराना एक आदर्श नियम था। 

वर्तमान में, राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग आयोजित किए जाते हैं। इससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के कारण, चुनाव आयोग ने एक प्रणाली के गठन का सुझाव दिया ताकि राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हो सकें।एक साथ चुनाव कराने का विचार 2016 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फिर से पेश किया गया था। तब से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने एक साथ चुनाव कराने के लिए एक मजबूत तर्क दिया है। 2017 में नीति आयोग द्वारा एक साथ चुनाव पर वर्किंग पेपर तैयार किया गया था। यहां तक कि कानून आयोग भी 2018 में एक वर्किंग पेपर लेकर आया था और कहा था कि एक साथ चुनाव कराने की संभावना के लिए कम से कम पांच संवैधानिक बदलावों की आवश्यकता होगी। यह कहा जाता है कि एक साथ चुनाव सम्पन्न कराने पर चुनाव माध में खर्च होने वाली राशि में न्यूनतम 30 फीसदी की कमी होगी।

लेकिन, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक राजीव रंजन नाग कहते हैं कि “बीजेपी के पास पिछले दो कार्यकालों के विपरीत लोकसभा में इस दफा बहुमत नहीं है। विधेयकों को पारित करवाने के लिए उसे एनडीए के सहयोगियों और मित्र दलों पर निर्भर रहना होगा। लोकसभा में संख्या बल के लिहाज से, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रस्ताव का समर्थन करने वाली पार्टियों के निचले सदन में 271 सांसद हैं, जिनमें 240 बीजेपी से हैं। समिति को अपनी राय देते हुए एक साथ चुनाव का विरोध करने वाली 15 पार्टियों के 205 लोकसभा सांसद हैं। इसमें विपक्षी दल इंडिया ब्लॉक का प्रतिनिधित्व करने वाले 203 सांसद शामिल हैं। कुल मिलाकर, इंडिया ब्लॉक और वे पार्टियाँ जिन्होंने पैनल के समक्ष अपनी राय नहीं रखी, उनके 234 लोकसभा सांसद हैं।”

ये भी पढ़े   15वें राष्ट्रपति का चुनाव कल: विपक्ष के यशवंत सिन्हा की तुलना में सुश्री द्रौपदी मुर्मू स्पष्ट रूप से मजबूत, मुर्मू के पक्ष में 61% से अधिक मतदान की सम्भावना
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक राजीव रंजन नाग

नाग आगे कहते हैं कि “एनडीए, जिसमें टीडीपी और अन्य दल शामिल हैं, जो अब तक एक साथ चुनावों पर तटस्थ रहे हैं, के पास लोकसभा में 293 सांसदों की ताकत है। हालांकि, अगर मोदी सरकार को 543 की पूरी ताकत मिलती है, तो उसे बिलों को पारित कराने के लिए लोकसभा में 362 वोट (सांसदों) या दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। इस प्रकार बिलों को दो-तिहाई बहुमत तभी मिल सकता है, जब 100 से अधिक सांसद मतदान से दूर रहें, जिससे लोकसभा की ताकत कम हो जाए।”

जहाँ तक राज्य सभा के आंकड़े का प्रश्न है, नाग का कहना है कि “मोदी सरकार राज्य सभा में बेहतर स्थिति में है, लेकिन बिलों को पारित कराने के लिए संख्या पर्याप्त नहीं है। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास राज्य सभा में 115 सांसद हैं। इसके अलावा छह मनोनीत सदस्य भी हैं, जिससे एनडीए के पास उच्च सदन में 121 सांसद हैं। राज्य सभा में इंडिया ब्लॉक के 85 सांसद हैं। यह हमारे लोकतंत्र को और भी अधिक जीवंत और सहभागी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि मतदान के दौरान राज्य सभा के सभी 250 सदस्य मौजूद हों, तो साधारण बहुमत 125 होगा और दो-तिहाई बहुमत 164 सांसद होंगे। वर्तमान में, राज्य सभा में 234 सांसद हैं। उनकी स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार के लिए संसद के आगामी सत्रों में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रस्ताव को लागू करने वाला विधेयक पारित करना आसान नहीं होगा।

लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए पहला आम चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किया गया था। यह प्रथा 1957, 1962 और 1967 में हुए तीन आम चुनावों में भी जारी रही। हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र बाधित हो गया।इंदिरा गांधी ने साल 1970 में लोकसभा भंग करवा दी थी और तय समय से 15 महीने पहले ही 1971 में आम चुनाव करवा दिए थे। इंदिरा अल्पमत सरकार चला रही थीं और पूर्ण सत्ता चाहती थीं। उनके इस फैसले ने राज्य विधानसभा चुनावों को आम चुनाव से अलग कर दिया था। अलग-अलग समय में चुनाव करने से सरकार और अन्य हितधारकों द्वारा बहुत अधिक व्यय, ऐसे निर्वाचनों में लगाए गए सुरक्षा बलों और अन्य निर्वाचन अधिकारियों की उनकी महत्वपूर्ण रूप से लंबी कालावधि के लिए अपने मूल कर्तव्यों से भिन्न अन्यत्र तैनाती, आदर्श आचार संहिता, आदि के लंबी अवधि तक लागू रहने के कारण, विकास कार्य में दीर्घ अवधियों के लिए व्यवधान के रूप में होता है।

ज्ञातव्य हो कि भारत के विधि आयोग ने निर्वाचन विधियों में सुधार पर अपनी 170 वीं रिपोर्ट में यह संप्रेक्षण किया है कि  “प्रत्येक वर्ष और बिना उपयुक्त समय के निर्वाचनों के चक्र का अंत किया जाना चाहिए। हमें उस पूर्व स्थिति का फिर से अवलोकन करना चाहिए जहां लोक सभा और सभी विधान सभाओं के लिए निर्वाचन साथ-साथ किए जाते हैं। यह सत्य है कि हम सभी स्थितियों या संभाव्यताओं के विषय में कल्पना नहीं कर सकते हैं या उनके लिए उपबंध नहीं कर सकते हैं, चाहे अनुच्छेद 356 के प्रयोग के कारण (जो उच्चतम न्यायालय के एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ के विनिश्चय के पश्चात् सारवान् रूप से कम हुआ है) या किसी अन्य कारण से उत्पन्न हो सकेंगी, किसी विधान सभा के लिए पृथक निर्वाचन आयोजित करना एक अपवाद होना चाहिए न कि नियम नियम यह होना चाहिए कि ‘लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए पांच वर्ष में एक बार में एक निर्वाचन’ ।” 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here