ढाई लोगों की ‘सरकार’ और 40,07,707 ‘घुसपैठिए’ !! ​अरे बाबा रे बाबा ​!!!!!

​​​राजनाथ सिंह - नरेंद्र मोदी और अमित शाह : कुछ उपाय ढूंढे (फोटो: डिक्कन क्रॉनिकल के सौजन्य से)
​​​राजनाथ सिंह - नरेंद्र मोदी और अमित शाह : कुछ उपाय ढूंढे (फोटो: डिक्कन क्रॉनिकल के सौजन्य से)


नई दिल्ली: ​एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) का आईडिया चाहे जैसा हो नतीजा बहुत खराब ढंग से सामने आया है। अखबारों में छपी तस्वीरों से नहीं लगता है कि इसे तैयार करने में कंप्यूटर का उपयोग किया गया और अगर किया गया भी गया हो तो ठीक से किया गया है। कुल मिलाकर – इससे देश में सरकारों के काम करने का तरीका ही स्पष्ट हुआ है। अगर आप पुराने दिनों को याद करें तो कल्पना कर सकते हैं कि मतदाता सूची में नाम कैसे शामिल होता था और फिर कैसे नाम मतदाता सूची में होता था वोटर आई कार्ट नहीं होते थे और कैसे इसके लिए क्या सूबत मांगे जाते थे और कैसे-कैसे सबूत स्वीकार्य थे। ये सारे हालात असम में हैं। जब काम शुरू हुआ था तो रहे भी होंगे। ऐसे ही हालात में दो-चार हजार लोग नहीं चालीस लाख लोग छूट गए हैं।

यह बहुत सामान्य और व्यावहारिक बात है। ऐसा नहीं है कि भाजपा अध्यक्ष, अमित शाह इसे नहीं समझ रहे हैं और सबों को घुसपैठिया कह दिया। ऐसा भी नहीं है कि ममता बनर्जी नहीं समझ रही हैं कि उनके कहने से कुछ नहीं होने वाला है और 40 लाख लोगों को देश निकाला नहीं दिया जा सकता है और ना यह संभव है कि उन्हें मताधिकार नहीं दिए जाएं। अगर भाजपा की सरकार ने नहीं भी दिया तो आगे मिल जाएगा। यह सब जानते हुए एनआरसी को लेकर शोर है तो सिर्फ इसलिए कि हमारे यहां काम भी ऐसे ही होता और राजनीति भी ऐसी ही है। मुझे तो कुछ भी नया नहीं लगा।

इस संबंध में असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता तरुण गोगोई का यह कहना महत्वपूर्ण है कि एनआरसी का मसौदा प्रकाशित किए जाने पर हर कोई खुश है और श्रेय ले रहा है। कोई भी कांग्रेस को श्रेय नहीं दे रहा है पर मैं दृढ़ता से कह सकता हूं कि एनआरसी मेरा आईडिया है, कांग्रेस का आईडिया है क्योंकि मैंने ही इसके लिए जोर लगाया था और 2005 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसका समर्थन नहीं किया होता तो यह हो ही नहीं सकता था। यही नहीं, इसमें बहुत सारे अधिकारियों की भूमिका है। पायलट परियोजना की शुरुआत 2010 में हुई थी पर अशांति के कारण इसे रोकना पड़ा था। यह भी राजनीति ही है। जब भाजपा और तृणमूल राजनीति करें तो कांग्रेस कैसे पीछे रह सकती है। उसकी तो मजबूरी हो गई।

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ऐसे में उनका यह कहना महत्वपूर्ण है कि इस काम में शुरू से ही गड़बड़ी रही। इसमें बहुत सारी गलतियां और लीकेज रहे हैं … मैं एनआरसी के मसौदे को स्वीकार करता हूं। पर यह गड़बड़ है। मुख्यमंत्री के रूप में मैने एनआरसी का समर्थन किया था क्योंकि मैं चाहता था कि एक बार हमेशा के लिए यह विवाद खत्म हो जाए कि राज्य में विदेशियों की संख्या कितनी है। हमारे विरोधी हमेशा यह संख्या 50 लाख और उससे ऊपर बताते थे। पर जो लोग फाइनल ड्राफ्ट में छोड़ दिए गए हैं वह बहुत कम है। 50 लाख से 10 लाख कम होना मामूली नहीं है और कहने की जरूरत नहीं है कि यह ड्राफ्ट है। फाइनल के बाद अगर लोग बचेंगे तो बहुत कम होंगे।

इसमें इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत सरकार हर साल अवैध बांग्लादेशियों को वापस भेजती रही है और इनकी संख्या लगातार कम हुई है। मतलब 2014 में सत्ता में आने के बाद से अवैध बांग्लादेशियों को वापस भेजना कम हुआ और अब पता चला कि एक दो नहीं, 40 लाख से ऊपर अवैध बांग्लादेशी देश में हैं। बांग्लादेश वापस भेजे गए बांग्लादेशियों की संख्या इस प्रकार है : 2013: 5234; 2014: 989; 2015: 474; 2016: 308; 2017: 51। ऐसे में यह सवाल भी उठता ही है कि जब हर साल अवैध घुसपैठिए वापस भेजे जाते हैं तो ये कैसे रह गए और दूसरे आए कैसे? अगर इतनी बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठ हो सकती है तो उनकी गिनती करने से पहले जरूरी नहीं है कि घुसपैठ रोकी जाए। क्या नोटबंदी, आधार और जीएसटी लागू करना इस घुसपैठ को रोकने से ज्यादा जरूरी था?

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कहने की जरूरत नहीं है कि ना यह घुसपैठ है ना वे घुसपैठिए। भाजपा अपनी राजनीति कर रही है और यह कोई नई बात नहीं है। यहां यह भी गौरतलब है कि इस साल मई के आखिर में खबर आई थी कि मध्य प्रदेश के छह विधानसभा क्षेत्रों की मतदाता सूची में सवा लाख से ज्यादा फर्जी नाम हैं। वहां एक ही व्यक्ति का नाम और फोटो कई बार लिखा – लगा था। किसलिए किसने किया कराया होगा समझना मुश्किल नहीं है। इसके मुकाबले एनआरसी से जुड़ी खबर देखिए। असम में चालीस लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम एनआरसी (मोटे तौर पर मतदाता सूची में) में नहीं हैं। केंद्र सरकार इसका बचाव कर रही है और कह रही है कि ये सब घुपैठिए हैं – भारत के नागरिक नहीं हैं। इसका मतलब यह भी हुआ कि बांग्लादेश से आए ये लोग फर्जी (या असली भी) पहचान पत्र नहीं बनवा पाए जबकि मध्य प्रदेश में आदमी नहीं है पहचान पत्र बन गए हैं। मध्य प्रदेश में जो हुआ, असम में नहीं हो पाया (या होने दिया गया)। क्यों?

आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश में 15 साल से भाजपा की सरकार है और असम में भाजपा की सरकार हाल में बनी है। कायदे से, अगर वाकई घुसपैठिए हैं और उनकी नागरिकता का प्रमाणपत्र इतने समय में नहीं बना और अगर नहीं बनना सही है तो इसका श्रेय पहले की राज्य सरकारों को जाना चाहिए जिसने फर्जी पहचान पत्र नही बनने दिए. लेकिन मोर्चे पर अब की (भाजपा) सरकार है। श्रेय ले रही है। सफाई भी दे रही है। खेल समझिए अंतर देखिए। एक तरफ तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि किसी को भी परेशान नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है ही। फिर भी, उन्हीं की पार्टी के लोग कहते हैं कि जिनका नाम एनआरसी में नहीं है वे घुसपैठिए हैं और उन्हें निकाल बाहर किया जाए। यह दोहरा रुख क्यों है।

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भाजपा इस बात पर भी हंगामा मचाए हुए है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि इससे देश में गृहयुद्ध के हालात बन जाएंगे। इसपर ममता ने कहा है, देश में लोग क्या खाएं, पहनें और पढ़ें बताने वाले देश में सबसे बड़े घुसपैठिए हैं। आप जानते हैं कि एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) को लेकर दोनों पार्टियां आमने-सामने हैं। ममता ने तो यहां तक कहा है कि वे (भाजपा वाले) मीडिया को नियंत्रित करते हैं, न्यायिक निष्पक्षता में शामिल होते हैं, राजनीतिक दलों को तोड़ते हैं। ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा था। भारतीय राजनीति कभी इतनी गंदी नहीं रही।

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