एक समय लोकतंत्र का मंदिर समझा जाने वाला सदन अब कुश्ती का मैदान, युद्ध का मैदान बन गया है, अब गरिमा की अवधारणा नहीं रही : उपराष्ट्रपति

भारतीय लोकतांत्रिक नेतृत्व संस्थान (आईआईडीएल) के प्रतिनिधियों के साथ उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि हाल के वर्षों में न्यायपालिका तक पहुंचने को हथियार बना लिया गया है और यह हमारे शासन व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है। भारतीय लोकतांत्रिक नेतृत्व संस्थान (आईआईडीएल) के प्रतिनिधियों के साथ उपराष्ट्रपति आवास में बातचीत करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि देश में हमारे पास मौलिक अधिकार है जो हमें न्यायपालिका तक पहुंचने का अधिकार देता है। लेकिन पिछले कुछ दशक में इसे दूसरी तरह का हथियार बना लिया गया है जो हमारे शासन, हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए बड़ी चुनौती है।

उपराष्‍ट्रपति ने मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हर दिन आप देखते हैं कि सलाहें जारी की जा रही हैं, कार्यकारी कार्य ऐसे निकायों द्वारा किए जा रहे हैं जिनके पास उन्‍हें करने का कोई अधिकार क्षेत्र या न्यायिक अधिकार अथवा क्षमता नहीं है। आम आदमी की भाषा में कहें तो एक तहसीलदार कभी प्राथमिकी दर्ज नहीं करा सकता चाहे वह कुछ भी कर ले। हमारा संविधान संस्थाओं को अपने क्षेत्राधिकार में काम करना निर्देशित करता है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।

उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि संस्थाएं अपनी सुविधा के लिए अन्य संस्थाओं के सामने झुक रही हैं पर खुश करने के ये तरीके अल्पकालिक लाभ तो दे सकते हैं, लेकिन लंबे समय में ये संस्‍थानों के आंतरिक तंत्र को ऐसी क्षति पहुंचा सकते हैं कि जिसकी कल्‍पना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने इस पर विचार करने का आग्रह किया। उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि इस विचार से लोगों को भी जोड़ना होगा। उन्हें बताना होगा कि भारत का विश्‍व में सबसे विशाल मानव संसाधन है पर खुद का आकलन करना होगा कि दिखावटी उपलब्ध्यिों के सहारे नहीं रहा जा सकता।

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प्रतिनिधियों से बातचीत में उपराष्ट्रपति ने संसद में व्हिप के प्रावधानों पर कहा कि व्हिप क्यों होना चाहिए? व्हिप का मतलब है कि आप अभिव्यक्ति पर अंकुश लगा रहे हैं, आप स्वतंत्रता नियंत्रित कर रहे हैं और अपने पार्टी प्रतिनिधियों को आदेश पालक बना रहे हैं। आप उन्‍हें अपने विवेक के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दे रहे हैं। आप खुद देखें कि अमरीका में व्हिप है या नहीं, पता लगाएं कि पिछले दस वर्षों में सीनेट के फैसले किस तरह से समझाने-बुझाने से प्रभावित हुए हैं। लेकिन जब आप व्हिप जारी करते हैं, तो इसमें कोई विमर्श नहीं होता है। किसी को समझाया-बुझाया नहीं जाता, केवल आदेश किया जाता है। राजनीतिक दलों से लोकतंत्र को बढ़ावा देने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन चुने हुए प्रतिनिधियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आड़े व्हिप आ जाता है।

संसद में हंगामे और गतिरोध पर श्री धनखड़ ने कहा कि एक समय लोकतंत्र का मंदिर रहा सदन अब कुश्ती का मैदान, युद्ध का मैदान जैसा बन गया है। संसद में अमर्यादित व्‍यवहार किया जा रहा है और अब गरिमा की अवधारणा नहीं बची है।

उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि सदन में अराजकता, व्यवधान, गड़बड़ी रिमोट कंट्रोल से संचालित हो रही है। सदन में कुछ सदस्‍य यह सोचकर कदम रखते हैं कि आज संसद या विधानमंडल में अव्यवस्था उत्‍पन्‍न करने के आदेश को कैसे अंजाम दें।उपराष्‍ट्रपति ने जनप्रतिनिधियों को उत्‍तरदायी बनाने के लिए युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि वे उन्‍हें जवाबदेह बनाने के लिए शक्तिशाली दबाव समूह के रूप में काम करें। उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि आज युवा सोशल मीडिया की ताकत से संपन्‍न है और संसदीय संस्थाओं, उनके कामकाज, सांसदों के प्रदर्शन का लेखा-जोखा का ब्‍योरा प्रकाशित-प्रसारित कर सकते हैं।

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उन्‍होंने कहा कि आप उन लोगों को आईना दिखा सकते हैं जो अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने की बजाय ऐसे कार्यों में लिप्‍त हो रहे हैं जिन्हें कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को नहीं दिखाना चाहेंगे। उपराष्‍ट्रपति ने इस परिदृश्य को बदलने का आह्वान किया।राजनीति में प्रतिभाशाली लोगों की आवश्यकता बताते हुए उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि नीति निर्माण में प्रशिक्षित लोगों की जरूरत है जो राजनीति जानते-समझते हों। उन्‍होंने कहा कि सरकार को जवाबदेह बनाना आसान नहीं है। इसका एक मात्र तरीका विधायिका के मंच से संभव है, क्‍योंकि तभी सरकार को बताया जा सकता है कि कहां सुधार की आवश्यकता है।

अभिव्यक्ति और संवाद के महत्व पर जोर देते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि हमें गर्व है कि हम लोकतंत्र की जननी हैं। हम लोकतांत्रिक देश हैं लेकिन इसके विपरित राजनीतिक दलों के बीच कोई सार्थक संवाद नहीं है। वे राष्ट्रवाद, सुरक्षा या विकास के मुद्दों पर विचार-विमर्श नहीं करते, केवल टकराव का रुख रखते हैं। उन्‍होंने अशांति को एक राजनीतिक रणनीति का हथियार बना लिया है। वे अशोभनीय भाषा का इस्‍तेमाल करते हैं जो न केवल भारतीय जनमानस को महत्‍वहीन महसूस कराता है बल्कि भारतीय सभ्यता को भी कलंकित करता है।श्री धनखड़ ने कहा कि देश के उपराष्ट्रपति के रूप में वे इस बात से चिंतित हैं कि अभिव्‍यक्ति और संवाद जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों का तेजी से ह्रास हो रहा है।

सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को इसके लिए जवाबदेह ठहराने का आह्वान करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि ट्रेनों पर पथराव करने, सरकारी इमारतों में आग लगाने सहित सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली घटनाओं में शामिल समाज के ऐसे तत्‍वों का नाम उजागर करने और उन्हें शर्मिंदा करने के लिए लोगों को एकजुट होना होगा। शासन व्‍यवस्‍था को ऐसे तरीके अपनाने होंगे जो इन तत्‍वों को जवाबदेह ठहराकर उन्‍हें आर्थिक रूप से दंडित कर सके।कानून के उल्लंघन और सार्वजनिक अव्यवस्था पर अपनी चिंता व्‍यक्‍त करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि हमें सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान पर नरमी नहीं बरतनी चाहिए।  

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अगर किसी को एक वैध प्राधिकारी नोटिस दी जाती है और अगर वह राजनेता हो तो उसके समर्थक सड़कों पर उतर आते हैं। यह कानून का उल्लंघन, बर्बरता और लोकतांत्रिक मर्यादाओं का अनादर है। उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि कुछ, उच्च-शक्तिशाली लोग ऐसा कर रहे हैं लेकिन इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्‍होंने कहा कि लोकतंत्र में सार्वजनिक व्यवस्था को परिभाषित करना होगा कि जब राजनीतिक लाभ के लिए सार्वजनिक अव्यवस्था फैलाई जाती है या किसी व्यक्ति की ताकत बढ़ाने के लिए ऐसा किया जाता है तो यह आम जनजीवन को अस्‍त-व्‍यस्‍त कर देता है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

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