उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्र को सकारात्मक दिशा देने के लिए विधानमंडल में सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम करना सभी दलों की जिम्मेदारी

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने जयपुर में

जयपुर:राजनीतिक दलों से पीठासीन अधिकारियों की गैर-पक्षपातपूर्णता का सम्मान करने का आह्वान करते हुए, उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आग्रह किया कि वे जन प्रतिनिधियों को सदन के समक्ष स्वतंत्र रूप से अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की अनुमति दें। विधायकों को अपने कामकाज में संविधान सभा का अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने उनसे संसदीय लोकतंत्र की नींव के रूप में ‘संवाद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श’ को बनाए रखने की अपील की।

विपक्ष को सदन की ‘रीढ़ की ताकत’ के रूप में संदर्भित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि सदस्यों को अलग-अलग दृष्टिकोणों को टकराव का बिंदु मानने के स्थान पर उन्हें लोक कल्याण के रूप में पहचानना चाहिए। उन्होंने कहा, राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि महत्व दिया जाना चाहिए और इसे राजनीतिक परिपेक्ष्य से नहीं देखा जाना चाहिए।

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने जयपुर में राजस्थान विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों को संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने राष्ट्र की प्रगति के लिए पार्टी लाइन से ऊपर उठकर मिलकर काम करने की विधायिका के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी पर बल दिया। उन्होंने राष्ट्र की प्रगति और विकास के स्रोत के रूप में विधायिका के महत्व को स्वीकार करते हुए, कहा कि विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका सहित राज्य के सभी अंगों के बीच संतुलन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

उपराष्ट्रपति ने जानबूझकर व्यवधान और गड़बड़ी की रणनीति के प्रति आगाह किया। उन्होंने कहा कि ऐसी रणनीतियों की ‘शेल्फ लाइफ कम’ होती है और इससे सदन में सरकार को जवाबदेह बनाए रखने के अवसर समाप्त हो जाते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अक्सर लोग कुछ शिकायतों के साथ सड़कों पर उतर आते हैं क्योंकि ऐसे मुद्दों पर सदन में उचित ध्यान नहीं दिया जाता है।

ये भी पढ़े   प्रधानमंत्री: "राज्यसभा के लिए आपने (उपराष्ट्रपति महोदय) जो कुछ भी किया है इसके लिए सबकी तरफ से ऋण स्वीकार करते हुए मैं आपका धन्यवाद करता हूं..."
दीप प्रज्वलित करते उपराष्ट्रपति

विभिन्न क्षेत्रों में भारत की प्रगति की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने इस बात पर बल दिया कि यह न केवल विधायकों द्वारा निभाई गई सकारात्मक भूमिका का परिणाम है, बल्कि भारतीय नागरिकों के ‘खून और पसीने’ का भी परिणाम है। लोक कल्याण के लिए कानूनों को व्यवहार में लाने में कार्यपालिका द्वारा निभाई जा रही भूमिका को स्वीकार करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि देश को आगे ले जाने के लिए जन-प्रतिनिधियों और सिविल सेवकों को सहयोग की भावना से मिलकर काम करना चाहिए।

भारत के संविधान के दृष्टांतों का जिक्र करते हुए, उपराष्ट्रपति ने बताया कि मौलिक अधिकारों के खंड में भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के चित्रण का उल्लेख किया, और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के खंड में भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हुए दिखाया गया है। श्री धनखड़ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि संविधान से ऐसे प्रमुख खंडों को बाहर रखा गया है, और लोगों के ध्यान में नहीं लाया गया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here