“चौकीदार” शब्द भी 1974 की फिल्म ‘चौकीदार’ की ‘टाईटिल’ का ‘कट-पेस्ट’ है क्या ?

दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर
दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर "चौकीदारी" शब्द के इस्तेमाल पर बहस करती दो सड़क पर भीख मांगती लड़कियां - ठोको ताली !!!!

नई दिल्ली : सन १९७४ में मदन मोहन जी के बोल पर मोहम्मद रफ़ी साहेब “चौकीदार” फिल्म में एक गीत गाये थे। इस गीत को संजीव कुमार पर फिल्माया गया था और इस फिल्म की अभिनेत्री थीं योगिता बाली।

शब्द ​था : “चौकीदार” और गीत के बोल ​थे :

ये दुनिया नहीं जागीर किसी की, राजा हो या रंक यहाँ तो सब हैं “चौकीदार”
कुछ तो आकर चले गए, कुछ जाने को तैयार, खबरदार खबरदार………..

इस फिल्म को देश सिनेमाघरों में परदे पर आते-आते जयप्रकाश नारायण का कांग्रेस विरोधी सम्पूर्ण क्रांति भी अपनी उत्कर्ष पर पहुँच रही थी। सभी स्वयं को देश का रक्षक मानने लगे। सत्ता बदली और जनता पार्टी की सरकार दिल्ली से विभिन्न राज्यों में पदासीन हुई। मकसद देश को बचाना था अथवा नहीं यह तो तत्कालीन नेतागण जो उस क्रान्ति में झंडा उठाये थे, वही बता सकते हैं; लेकिन अगर वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था को देखें तो आज भी सैकड़ों तत्कालीन झंडा उठाने वाले नेतागण सत्ता में तो विराजवान हैं और मजे ले रहे हैं; परन्तु उनके मतदातागण कराह रहे हैं।

उस समय मतदान करने की आयु २१ वर्ष थी। यक़ीनन वर्तमान माननीय प्रधान मन्त्रीजी की न्यूनतम तीन बार मतदान किये होंगे क्योंकि सन १९७४ में उनकी आयु २४ वर्ष थी। आज वे ६८ वर्ष के हैं।

चौकीदार फिल्म के जिस शब्द को भारत के लोग ४४ वर्ष पहले भूल गए, उसी शब्द को राजनीतिक बाज़ार में वे आज भुनाया जा रहा है, ऐसा लगता है। वैसे आजकल अशिक्षित लोग भी हिन्दी शब्द “चौकीदार” नहीं कहता है। वे अब “वॉचमैन” कहते हैं या फिर “गार्ड”। विस्वास नहीं हो तो अपने अगल-बगल के आवासीय क्षेत्रों में, कार्यालयों के प्रवेश द्वार पर पूछकर देखिये।

हाँ, गलती से भी भारत सरकार अथवा राज्य सरकारों के गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाले सुरक्षा कर्मियों को, या फिर रक्षा मंत्रालय के जवानों को “चौकीदार”, “वॉचमैन” कहकर उन्हें “अपमानित” नहीं करेंगे।

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गले की हड्डी बन गया है #चौकीदार बीजेपी के लिये:

​बहरहाल, प्रशांत टंडन के अनुसार : ​ट्विटर पर चौकीदारी की घोषणा के दूसरे दिन ही बीजेपी की सांस फूल रही ​हैं। सारे मंत्री आसानी से नहीं राज़ी हुये ट्विटर पर अपने नाम के आगे चौकीदार लगाने के ​लिए।

खबरों के मुताबिक राजनाथ सिंह शुरू में नहीं ​माने। उनकी दलील थी कि उनका समाज (ठाकुर) इसे सहजता से नहीं ​लेगा। जनरल वीके सिंह तो आखिरी दम तक अड़े रहे. उनका पक्ष भी वाजिब ​था।

सेना के जनरल रह चुके हैं जिसकी अपनी एक मर्यादा होती है और रिटायर होने बाद भी नाम के आगे जनरल के पहले कुछ और लगाने की परंपरा नहीं ​है। उनका ट्विटर हैंडल भी @Gen_VKSingh ​है। समझा जाता है बहुत दबाव के बाद सोमवार शाम को उन्होने अपने नाम के पहले चौकीदार लगाया और ट्वीट करके सफाई भी दी ​है।

सुषमा स्वराज भी सबसे बाद में जुड़ी इस अभियान ​में, लेकिन सुब्रह्मण्यम् स्वामी अभी भी अड़े हुये हैं और उन्होने ने अपने आपको चौकीदार घोषित नहीं किया ​हैं।

खबरें मिल रहीं हैं कि इतवार को मोदी, अमित शाह, मंत्रीपरिषद और बीजेपी के नेताओं के नाम से पहले चौकीदार जोड़ने के बाद सोशल मीडिया ने जिस तरह बखिया उधेड़ी है उसे लेकर इस अभियान को जारी रखने पर मंथन शुरू हो गया है.

अंदर की रिपोर्ट बहुत खराब मिलीं ​है। अब बीजेपी इससे बाहर निकलने का रास्ता तलाश कर रही ​है। काफी संभावना है कि इसे मार्च में खत्म कर दिया ​जाय। हो सकता है 31 मार्च को मोदी के जन संवाद में ही इसे खत्म करने की घोषणा हो ​जय। अब मोदी चौकीदार का साथ छोड़ते हैं या रखते हैं ये तो वही तय करेंगे पर खेल के पहले हाफ में एक गोल से पीछे ज़रूर हो गए ​हैं।

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वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के अनुसार : मुझे नहीं पता कि मैं भी चौकीदार से भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी को कितना फायदा होगा और होगा भी कि नहीं। पर यह तय है कि इससे विरोधियों को तो मजा आ गया है। शुरू में कंप्यूटर के बॉट्स प्रोग्राम के कारण जो वास्तविक फॉलोअर की तरह व्यवहार करता है। और इस कारण नीरव मोदी के नाम के एक पैरोडी अकाउंट वाले से भिड़ंत हो गई। उसने खूब मजे लिए। बात में इसे डिलीट करना पड़ा। इसके जवाब में कोई अंबानी का चौकीदार बन रहा है कोई बेरोजगार बन रहा है। कुल मिलाकर इससे साफ हो गया है कि सरकार मुद्दे बदलने और ध्यान हटाने का काम करती है। अब तक इसके लिए जो कुछ किया जाता था वह सीधे प्रधानमंत्री की भागीदारी वाला नहीं रहा है।

दूसरे, एमजे अकबर के मैं भी चौकीदार कहने पर रेणुका सहाने की प्रतिक्रिया और जनरल वीके सिंह का जनरल से चौकीदार हो जाना हास्यास्पद मामला है। मुझे नहीं पता इससे वोट मिलेगा कि नहीं पर हंसी तो उड़ रही है साथ ही मुद्दों से भागने की प्रधानमंत्री की कोशिश साफ दिखाई दे रही है। दैनिक अखबार अगर सरकार की भक्ति में नहीं लगे होते तो इसका फायदा होने का कोई मतलब नहीं था पर अभी की स्थिति में फायदे के बारे में भले कुछ न कहा जा सके, सरकार तो कमजोर लग ही रही है। इस फूहड़ कोशिश से यह भी साफ हो गया है कि चुनाव जीतने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। यही नहीं, सरकार मार्केटिंग और ब्रांडिंग के उपायों से प्रचार करती है यह भी स्पष्ट है और यह इसका नुकसान भी हो सकता है।

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अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राऱ ने इसे एम्बुश मार्केटिंग कहा है। यह एक ऐसी चाल है जिसका उपयोग आमतौर पर उपभोक्ता ब्रांड प्रतिद्वंद्वी के गर्जन को चुराने के लिए करते हैं। राहुल गांधी ने चौकीदार चोर है कहना शुरू किया तो मैं भी चौकीदार शुरू किया और मार्केटिंग में भले यह फायदा पहुंचाता पर राजनीति में उल्टा भी पड़ सकता है। देखा जाए।

​उधर, कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान का उपहास उड़ाते हुए सोमवार को कहा कि राफेल लड़ाकू सौदे में ‘पकड़े’ जाने के बाद नरेंद्र मोदी समूचे देश को चौकीदार बनाने का प्रयास रहे हैं। राहुल ने मोदी के ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान पर हमला करते हुए कहा ‘‘चौकीदार चोरी करते हुए पकड़ा गया और चूंकि वह पकड़ा गया इसलिए चौकीदार कह रहा है कि पूरा हिन्दुस्तान चौकीदार है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन, पकड़े जाने के पहले समूचा हिन्दुस्तान चौकीदार नहीं था । ’’

राहुल ने यह हमला ऐसे वक्त किया है जब भाजपा ने अपनी ‘मैं भी चौकीदार’ मुहिम तेज कर दी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी के अन्य नेताओं ने अपने ट्विटर प्रोफाइल पर अपने नाम के आगे ‘चौकीदार’ शब्द जोड़ा है।​ भाजपा नेताओं ने छोटे विज्ञापन वीडियो भी अपने अकाउंट से साझा किए जिनमें यह दिखाया गया है कि विभिन्न क्षेत्रों के लोग किस प्रकार मोदी की तरह देश के लिए अपना योगदान देकर ‘चौकीदार’ बन रहे हैं। इन नेताओं में कई केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।

मोदी के ट्विटर प्रोफाइल पर उनका नाम ‘चौकीदार नरेंद्र मोदी’ लिखा हुआ है और अन्य भाजपा नेताओं ने भी समन्वित मुहिम के तहत ऐसा किया है।​ राहुल ने कहा, ‘‘पकड़ाने के पहले नरेंद्र मोदी चौकीदार थे। चोर पकड़ा गया। ’’

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