मार्च का महीना है। इसी महीने में 23 तारीख को शहादत दिवस मनाया जाता है। कोई नब्बे वर्ष पूर्व दो पंजाबी और एक मराठी, नाम था – सुखदेव थापर, भगत सिंह और राजगुरु – मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए तत्कालीन समय की पुकार को स्वीकारते फांसी के फंदों पर लटक गए। उनके बारे में विगत नब्बे वर्षों में समाजसेवियों से लेकर राजनेताओं तक, सबों ने अपने-अपने तरीकों से उनके बलिदानों का आख्यान-व्याख्यान किये। यकीन मानिए, मृत्यु को प्राप्त करने के बाद भी भारत माता के इन तीन सपूतों ने कभी भी उनकी इक्षाओं को निराश नहीं किये। प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सभी लाभान्वित ही हुए। यह अलग बात है कि इन तीन क्रान्तिकारियों के अलावे न जाने कितने हज़ार और सपूत हैं , जिनकी कुर्बानियां न तो समाज के दस्तावेजों में दर्ज हो पाया और ना ही, सरकारी फाइलों में – फिर भी, गुमनामी होते हुए भी, अपनी-अपनी अदृश्य शक्तियों से समाज और जिन्दावाद-जिन्दावाद का नारा लगाने वालों को वे भी लाभान्वित ही करते आये।
वैसे देश में कोरोना की स्थिति भी सुधरने लगी है। लोग-बाग़ दाहिने-बाएं हाथ में “टीकाकरण” कराना प्रारम्भ कर दिए हैं। कई राज्यों में विधान सभा का भी चुनाव घोषित हो गया है। कई राज्यों में पंचायती चुनाव भी हो रहा है। इन तमाम ताम-झाम के बीच सबसे सबसे बड़ी खबर यह आ रही है कि “अर्थशास्त्र के नियमानुसार, अगर अन्य बातें सामान्य रही तो अगले महीनों से देश के सभी सांसदों, विधायकों को बिना कोरोना ग्रसित माहवारी वेतन मिलने वाली है। इन 788 सांसदों में सत्तारूढ़ भाजपा के 46 फीसदी और कांग्रेस के 25 फीसदी सम्मानित सांसद “किसान” हैं। बहरहाल, “जय जवान – जय किसान” वाले सम्मानित देश के किसान यूपी गेट, हरियाणा गेट, राजस्थान गेट, बंगाल गेट, बिहार गेट, महाराष्ट्र गेट, हिमाचल गेट इत्यादि स्थानों को जिन्दावाद-जिन्दावाद करते हैं।
आज देश आज़ाद है। 15 अगस्त, 1947 को भारत का तिरंगा देश के कोने-कोने में लहराया, देश आज़ाद हुआ। आज़ादी मिलने के 16-वर्ष पूर्व भारत के ऐसे सभी क्रान्तिकारी, जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने-अपने प्राणों को उत्सर्ग किये, शायद नहीं जानते थे की आज़ाद देश में तिरंगा की ऊंचाई को भी भारतीय राजनीतिक बाजार में स्वहित के लिए इस्तेमाल किया जायेगा। चाहे दिल्ली हो या राँची, कलकत्ता हो या असम, देश के लगभग सभी प्रदेशों में “तिरंगे की ऊंचाई को लेकर एक राजनीतिक प्रतियोगिता हो रही है, जहाँ सत्ता के लोग, भारतीय लोगबाग और समाज की संवेदना के साथ कबड्डी खेल रहे हैं।
विगत दिनों देश के संसद में कुछ सांसदों से राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान के बारे में पूछा था पत्रकारों ने, निन्यानबे फीसदी माननीय सांसद गण उत्तर नहीं दे सके। समय-समय पर्व भारत के विभिन्न प्रदेशों में प्रदेश के विधान सभा और विधान परिषदों के सदस्यों से सम्पूर्ण राष्ट्रगान को गा कर सुनाने की बात कही गयी थी। उत्तर सामान्यतया “नकारात्मक” था। उन विधायकों, सांसदों से यह भी पूछा गया था की राष्ट्रगान गायन की कुल अवधि कितनी है? सभी एक-दूसरे के चेहरे का भाव-भंगिमा देख रहे थे। यह “राष्ट्रगान” में यह हाल दिखा, तो उस घटना के बाद “राष्ट्रगीत” के बारे में पूछने की हिम्मत वे सभी नहीं जूता पाए और यह भी नहीं पूछ पाए की कितनी भाषाओँ में राष्ट्रगीत गाए जाते हैं ?
अब सवाल यह है कि जब देश के कुल 5335 सांसदों और विधायकों का यह हाल है, जो देश के 130 करोड़ लोगों द्वारा चयनित किये जाते हैं {लोक सभा सदस्य: 545, राज्य सभा सदस्य: 245, विधान सभा के सदस्य: 4121 और विधान परिषद् के सदस्य: 426} तो फिर मतदाताओं के बारे में सोचना शोध का विषय होगा। वजह यह है कि औसतन 35 फीसदी मतदाता मतदान नहीं करते हैं – इन मतदाताओं में अधिकांश मतदाता ‘राष्ट्रगीत’ और ‘राष्ट्रगान’ में अंतर भी समझते हैं, गायन अवधि का भी ज्ञान होता है उन्हें, साथ ही, उन्हें यह भी ज्ञान होता है कि राष्ट्रगीत का मूल भाषा कौन है?
कहा जाता है कि “राष्ट्रगान” और “राष्ट्रगीत” भारत की आत्मा और साँसे हैं। लेकिन यह ‘सम्वेदनात्मक बातें उनके लिए है जो भारत की गावों से चुनकर विधान सभाओं में, लोक सभा में, राज्य सभा में, विधान परिषदों में मतदाताओं की भलाई के लिए जाते हैं। एक अवसर की तलास में जाते हैं जिससे भारत के लोगों की मदद की जा सके।
लेकिन यदि लोक सभा और राज्य सभा की सांख्यिकी को देखें तो लोक सभा – राज्य सभा के कुल 788 सम्मानित सदस्यों में 216 सांसदों की ‘औसतन संपत्ति’ 18 करोड़ है (18 को छोड़कर सभी करोड़पति हैं) और ये सभी 216 सम्मानित सांसद “किसान” भी हैं। बहुत बड़ा शोध का विषय है। जैसे माननीय नेताजी (श्री मुलायम सिंह यादव) के ज़माने में बॉलीवुड के हस्ताक्षर अमिताभ बच्चन साहेब भी “किसान” बने और आज चाहे राजनीतिक दूरियां माननीय मुलायम सिंह यादव और माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के बीच जितनी हो, श्री बच्चन साहेब आज भी किसान ही हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस के जमाय-राजा श्री वाड्रा साहेब भी किसान ही हैं। दुर्भाग्य सिर्फ इतना है कि “वास्तविक भारतीय किसान एक महीने में 9000/- रुपये भी नहीं कमा पाता , जबकि लोक सभा/राज्य सभा के सम्मानित सांसदों की माहवारी तन्खाह 1,73,000/- रुपये हैं (कोरोना ग्रसित)।
सांख्यिकी तो यह भी कहता है कि कुल 538 माननीय सांसदों में न केवल 216 किसान हैं, बल्कि 9 सांसदों के पास 100 करोड़ से भी अधिक की संपत्ति है। वर्तमान सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के 302 सांसदों में 139 किसान हैं, जिनमें 3 के पास 100 करोड़ की ज्यादा की संपत्ति है। विपक्ष के कांग्रेस पार्टी के ५१ सनसदों में से 13 किसान हैं, जिनमे 12 के पास एक करोड़ से अधिक की संपत्ति है। इतना ही नहीं, मंत्रियों की सांख्यिकी में, केंद्र में कुल 53 मंत्री महोदय हैं – 21 कैबिनेट और 32 राज्य मंत्री गण । उन 21 कैबिनेट मंत्री महोदय में 7 मंत्री गण का डीएनए ‘किसान’ का है, जबकि, 32 राज्य मंत्रियों में 13 की पत्नियों का डीएनए किसान ही है। यानि, ये 32 राज्य मंत्री महोदय खुद को किसान नहीं, अपनी अर्धांगिनी को किसान बनाया है। किसान सांसदों में बीजू जनता दल की श्रीमती प्रमिला बिश्नोई की सम्पत्ति सबसे कम है। उनकी सम्पत्ति 732000/- रुपए है।
सांख्यिकी आगे कहता है कि औसतन भारतीय किसानों के पास 1. 08 हेक्टेयर खेती की जमीन है, जबकि माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह भी किसान हैं। वे सबसे अमीर किसान मंत्री हैं। उनके पास कोई 40.32 करोड़ से ज्यादा सम्पत्ति है और खेती की जमीन औसतन भारतीय किसानों से चार-गुना अधिक, यानि 4. 08 हेक्टेयर। इसी तरह, माननीय श्री सदानंद गौड़ा की संपत्ति 20 . 93 करोड़ रुपए है और खेती की जमीन कुल 5 . 58 हेक्टेयर, यानि, औसतन भारतीय किसान से पांच गुना से भी अधिक। श्री नितिन गडकरी साहेब के पास कुल 18 . 79 करोड़ की संपत्ति है और हल जोतने के लिए खेती की जमीन कुल 12 . 28 हेक्टेयर, यानि औसतन भारतीय किसान से 12 गुना से भी अधिक। माननीय अर्जुन मुंडा साहेब के पास 3 . 56 हैक्टेयर खेती की जमीं है और कुल संपत्ति 9 . 15 करोड़ रुपये। श्री एम ए नकवी साहेब के पास औसतन भारतीय किसान से पांच गुना से भी आधी 5 . 77 हेक्टेयर खेती वाली जमीं है और कुल संपत्ति 6 . 63 करोड़ रुपए। देश के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह भी किसान ही नहीं। इनके पास कुल 4 . 75 हेक्टेयर खेती वाली जमीन है और कुल संपत्ति 5 . 14 करोड़ रुपए।
आकड़ों के अनुसार, देश के सत्तारूढ़ भाजपा के 46 फीसदी और कांग्रेस के 25 फीसदी सम्मानित सांसद किसान हैं। वर्तमान काल में भाजपा के कुल सांसद है 302, जबकि कांग्रेस के 51, शिव सेना के 18, द्रमुक के सांसद है 24 और जनता दाल (यूनाइटेड) के कुल सांसद हैं 16 – इन सांसदों में तेलगु देशम पार्टी के सम्मानित सांसद श्री जयदेव गल्ला 305 करोड़ रुपए से ज्यादा सम्पत्ति के साथ सबसे अमीर किसान सांसद हैं। आंकड़ों के अनुसार, पंजाब के किसानों की आमदनी सबसे ज्यादा है। पंजाब के किसान सबसे ज्यादा कमाते हैं। उनकी हर महीने की औसत कमाई 23 133 रुपए और हरियाणा के किसानों की औसत कमाई 18 496 रुपए है। जहां सबसे ज्यादा विरोध, वहां किसान की आमदनी सबसे ज्यादा। इन दोनों राज्यों के 23 सांसदों में से सिर्फ 6 ऐसे हैं, जिन्होंने खुद को किसान बताया है। इनमें 4 पंजाब और 2 हरियाणा के हैं।
संसद में अभी 543 सीटें हैं जिनमें 5 खाली हैं। यानी, 538 सांसदों में से 216 ने सरकारी दस्तावेजों में खुद को किसान बता रखा है। लेकिन किसान बने नेता और किसानों की कमाई देखने पर कुछ और ही दृष्य दिखता है। अभी कोरोना के कारण यह 11 महीने से घटकर 1 . 73 लाख रुपए मिल रही है। अगर कुछ अलग नहीं हुआ तो अगले महीने से गरीब सांसदों को फिर पूरी तनख्वाह मिलने लगेगी।